आज मैं आपके सामने एक सनसनीखेज खुलासा करने जा रहा हूं। आपको ये तो पता है कि इस जाट को रेल यात्रा करना पसन्द है लेकिन इस हद तक पसन्द है ये अन्दाजा नहीं होगा। अपन को एक बीमारी है कि कोई स्टेशन चुनता हूं और वहां से जाने वाली किसी सुबह वाली ट्रेन में बैठ जाता हूं और बैठा रहता हूं, बैठा रहता हूं। अगर ट्रेन लम्बी दूरी की हो तो शाम भी हो जाती है। रास्ते में ट्रेन सभी स्टेशनों पर रुकती है, सभी के नाम और समुद्र तल से ऊंचाई लिख लेता हूं। अब तो फोटो भी खींच लेता हूं। और हां, हर बार मैं नये रूट पर जाता हूं। अब तक मेरे पास 1010 स्टेशन नोट हैं। इनमें से 567 स्टेशनों की ऊंचाई भी नोट है। इन 567 में सबसे ऊंचाई वाला स्टेशन शिमला (2075 मीटर) है और सबसे कम ऊंचाई वाला स्टेशन पिताम्बरपुर (105.6 मीटर) है।
अब तक जिन रूटों पर मैं घूम चुका हूं, वे हैं दिल्ली-मेरठ-सहारनपुर-हरिद्वार-ऋषिकेश/देहरादून, दिल्ली-मुरादाबाद-बरेली-लखनऊ-गोण्डा-गोरखपुर-छपरा, गोरखपुर-कप्तानगंज, दिल्ली-अलीगढ-कानपुर-लखनऊ, दिल्ली-पानीपत-अम्बाला छावनी-कालका-शिमला, अम्बाला-लुधियाना, दिल्ली-रोहतक-जाखल-बठिण्डा-फिरोजपुर छावनी, अम्बाला-धुरी-बठिण्डा, जाखल-धुरी-लुधियाना, जीन्द-पानीपत-रोहतक-भिवानी, दिल्ली-रेवाडी-भिवानी-हिसार-सिरसा-बठिण्डा, हिसार-जाखल, मुरादाबाद-नजीबाबाद-अम्बाला, नजीबाबाद-कोटद्वार, दिल्ली-शामली-सहारनपुर, मेरठ-हापुड-खुर्जा, गजरौला-बिजनौर-नजीबाबाद, मुरादाबाद-चन्दौसी, बरेली-चन्दौसी-अलीगढ, बरेली-लालकुआं-काशीपुर, मुरादाबाद-रामनगर, रामपुर-काठगोदाम, कुरुक्षेत्र-नरवाना, पठानकोट-जम्मू तवी-ऊधमपुर, पठानकोट-कांगडा-जोगिन्दर नगर, दिल्ली-मथुरा-आगरा-ग्वालियर-झांसी-भोपाल-इटारसी-नागपुर-गोंदिया, टूंडला-आगरा, मथुरा-भरतपुर-कोटा-शामगढ-रतलाम और रतलाम-इन्दौर-महू-खण्डवा। और हां दिल्ली की दोनों रिंग रेल भी।
अब मेरा इरादा था रेवाडी से जयपुर को जोडने का। इस रूट पर केवल दो ही पैसेंजर ट्रेनें हैं। हिसार से जयपुर वाली। एक तो शाम को चलती है और दूसरी देर रात को। रात को मैं कभी भी रेल एडवेंचर नहीं करता हूं। फिर ये दोनों ट्रेनें फास्ट पैसेंजर भी हैं, किसी स्टेशन पर रुकी, किसी पर नहीं रुकी। रेल एडवेंचर के लिये ट्रेन एकदम समर्पित पैसेंजर होनी चाहिये जो हरेक स्टेशन पर रुके। पिछले कई महीनों से मैं इस रूट पर जाने के लिये तरस रहा था, लेकिन बात बन नहीं रही थी। इस बार मैं निकल पडा। जल्दी से जल्दी रेवाडी पहुंचने के लिये दो ही तरीके हैं। या तो पहली रात को ही पहुंच जाओ, या फिर दिल्ली से सुबह साढे तीन बजे चलने वाली पैसेंजर पकडी जाये। मेरे लिये दूसरा विकल्प ज्यादा अच्छा था। सुबह छह साढे छह बजे तक मजे से सोता गया और रेवाडी पहुंच गया।
रेवाडी जंक्शन। यहां से पांच दिशाओं में लाइनें जाती हैं। दिल्ली, भिवानी, महेन्द्रगढ, नारनौल और अलवर। एक छठी लाइन रोहतक के लिये भी बन रही है। महेन्द्रगढ और नारनौल वाली लाइनें तो सालभर पहले तक मीटर गेज वाली थीं। उन्हे ब्रॉड गेज में बदला गया है। हालांकि दोनों लाइनें अब पुनः खुल गयी हैं। सात बजे के करीब भिवानी से एक ट्रेन आती है जो अलवर होते हुए मथुरा जाती है। मैने टिकट लिया बांदीकुई तक का। जिस रूट को कवर करने के लिये बार-बार ट्रेन बदलनी पडे या बार-बार आना पडे, उस रूट को मैं दुर्गम रूट कहता हूं। रेवाडी-जयपुर वाला रूट भी ऐसा ही है। या कहिये दिल्ली-जयपुर वाला रूट। दिन में सीधे कोई पैसेंजर ट्रेन है ही नहीं।
ट्रेन अलवर के लिये चल पडी। सूर्य महाराज अभी-अभी निकले ही थे, गर्मी शुरू नहीं हुई थी। अनाजमण्डी रेवाडी और करनावास तो ऐसे ही निकल गये, ट्रेन नहीं रुकी। लगता है कि अनाजमण्डी केवल मालगाडियों के लिये ही है। फिर एक नन्हा सा स्टेशन आया भाडावास। इसके बाद बावल।
बावल रेवाडी जिले का एक प्रमुख कस्बा है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 पर है। यह है तो हरियाणा में लेकिन यहां से राजस्थानी संस्कृति के दर्शन होने लगते हैं। दूर अरावली की पहाडियां भी दिखती हैं। इसके बाद माजरी नांगल और अजरका आते हैं। अजरका हरियाणा का आखिरी स्टेशन है। इसके बाद राजस्थान शुरू हो ही जाता है। राजस्थान का अलवर जिला। राजस्थान में पहला स्टेशन आता है खानपुर अहीर।
खानपुर अहीर कोई खास जगह नहीं है। हां, इतना है कि यहां तक गर्मी बढने लगी थी। इसके बाद आते हैं हरसौली और फिर खैरथल।
हरसौली अलवर का एक प्रमुख नगर है। यहां अरावली का शानदार नजारा भी देखने को मिलता है।
हरसौली के बाद खैरथल, घाटला और पडीसल के बाद है अलवर जंक्शन।
यात्रा में इतना आनन्द आने लगा था कि मुझे याद ही नहीं रहा कि यह ट्रेन बांदीकुई ना जाकर मथुरा जाती है। वो तो भला हो कि आवाज गूंजी कि मथुरा से बांदीकुई जाने वाली ट्रेन आधे घण्टे लेट है। असल में यह ट्रेन तो चली जाती है मथुरा, और एक ट्रेन और आती है मथुरा से बांदीकुई जाती है। तब होश आया कि ओहो, तो अलवर आ गया। नौ-दस के करीब का समय था। धूप और गर्मी इतनी बढ गयी थी कि शरीर में खाज मारने लगी। उस ट्रेन के आधे घण्टे लेट का मतलब था कि मेरे पास अब एक घण्टे का समय है। मैं आराम से नहा सकता हूं, और थोडा बहुत अलवर शहर भी घूम सकता हूं। लेकिन यहां मुझे सुलभ शौचालय वाला ऑफिस नहीं मिला। सुलभ वाले कहीं-कहीं तो पांच रुपये लेते हैं कहीं कहीं दस रुपये। लेकिन नहाने में मजा आ जाता है। नहाने का मजा वो ही जानता है जिसके शरीर में ना नहाने की वजह से खाज मार रही हो, और उसे नहाना नसीब ना हो रहा हो।
खैर, स्टेशन से बाहर निकल पडे। दो-चार फोटो खींचे। एक घण्टा ऐसे ही बिता दिया। मथुरा-बांदीकुई पैसेंजर आ गयी तो मैं आगे की तैयारी करने लगा। हां, अब तक मेरे पास स्टेशनों की सूची 1010 से बढकर 1022 तक पहुंच गयी थी और अलवर भी इस लिस्ट में जुड गया था।
अगला भाग: रेल एड़वेंचर - अलवर से आगरा
नीरज,
ReplyDeleteअलवर गया था तो मिल्क केक तो ट्राई करता यार, जाटपना पूरा तभी होना था। या, खाया तो पर बताया नहीं कि भाई लोग कहीं फ़रमायश न कर दें?
अगली कड़ी का इंतजार करांगे भाई।
नीरज,
ReplyDeleteअलवर गया था तो मिल्क केक तो ट्राई करता यार, जाटपना पूरा तभी होना था। या, खाया तो पर बताया नहीं कि भाई लोग कहीं फ़रमायश न कर दें?
अगली कड़ी का इंतजार करांगे भाई।
अब समझा जाट भाई फोटो कहाँ से लाते है.. गूगल पर नहीं मिलते....
ReplyDeleteवैसे एक बात बताओ... टिकट तो लेते हो न? :)
अगली बार अलवर भाप वाले इंजन वाली छुक-छुक में जाना |
ReplyDeleteयही है असली घुमक्कड़ी..
ReplyDeleteकमाल है यार...इतना कैसे घूम लेते हो?...लगता है कि अभी शादी नहीं हुई है...इसीलिए आज़ाद पंछी के माफिक उड़ रहे हो ..ऊप्स!...सॉरी...ट्रेनों में सफर कर रहे हो .. :-)
ReplyDeleteमुसाफिर जी,
ReplyDeleteघुमक्कडी का ये जुनून एक दिन आपका नाम गिनीज बुक आफ वर्लड रिकौर्डस में जरूर दर्ज करवाएगा.
उम्दा और रोचक विवरण जिसे पढ़कर हमारी भी यादें ताजा हो गयी खासकर रेवाड़ी स्टेसन के तस्वीर को देखकर क्योकि वहाँ के रेलवे के रेलवे स्लीपर प्लांट में हमने HRD मैनेजर के रूप में समय बिताया है ! अच्छी प्रस्तुती ...
ReplyDeleteसही किया जाट जी.
ReplyDeleteये सारे हैं तो दिल्ली के आस पास मगर यात्रा इतनी आसान नहीं है.
लगे रहो मुन्ना भाई… हमें भी मजा आ रहा है… :)
ReplyDeleteभाई पैहलम मन्ने यो बता के या "कुई किसने बांधी थी।" जब तो एडवेंचर का बेरा पाट्टै गा। बावल के तो घणे ही बावळे होसें। अलवर के मिल्क केक का स्वाद ले लिए, भुलिए मती ना।
ReplyDeleteराम राम
आप दिखायेंगें तो जरुर देखेंगें जी
ReplyDeleteघुमक्कडी जिन्दाबाद
भारतीय रेलवे जिन्दाबाद
प्रणाम
waiting for the next post
ReplyDeleteहमारा तो दिमाग ही घुम गया कोन सी ट्रेन कहां ओर कब जायेगी, आप ने डीटेल से बताया लेकिन समझ नही आया, अब पता चला की आप ने यहां से कहां जाना है, मजे दार, लेकिन यह काम आम आदमी के बस का नही मस्त मोला ही कर सकता है ओर इसे कहते है जिन्दगी को जी भर के जीना, मस्त हो कर जीना, राम राम मिलते है बांदीकुई वाली रेल मै...
ReplyDeleteचित्रमय प्रस्तुति बहुत बढ़िया रही!
ReplyDeleteवाह रे भाई वाह...इस बार हमारे देश आ रहे हो...जयपुर...जय हो...रोचक यात्रा वृतांत...अगली पोस्ट जल्दी लिखो...
ReplyDeleteनीरज
भारतीय रेल को आप जैसे भक्तों की जरुरत है :)
ReplyDeleteyaatrayen karna aur sabkuchh yaad rakhkar use kalambaddh karana....kaabil-e-taarif hai Jaatji!... ati uttam!
ReplyDeleteअलवर से बांदीकुई तक के सफर में अलवर से चौथा स्टेशन आएगा
ReplyDeleteराजगढ
अपन मूल रूप से वहीं के रहने वाले हैं
वहां का एक ब्लॉग भी बनाया है
www.rajgarhcity.blogspot.com
राजगढ जरूर रुकिएगा
हो सके तो गाडी में मसालेदार चने की दाल की नमकीन भी खाइगा
बहुत ही जबरदस्त स्वाद होता है।