यह गुरुद्वारा उत्तराखण्ड राज्य के ऊधमसिंहनगर जिले में स्थित है। जिले के बिल्कुल बीच में है जिला मुख्यालय और प्रमुख नगर रुद्रपुर। यहां से एक सडक किच्छा, सितारगंज होते हुए खटीमा और आगे टनकपुर जाती है। सितारगंज और खटीमा के बीच में है नानकमत्ता। मैं जब खटीमा निवासी डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ’मयंक’ जी के यहां गया तो पहले तो एक चक्कर प्रसिद्ध शक्तिपीठ पूर्णागिरी का लगाया। फिर शास्त्री जी के साथ उन्ही की कार में बैठकर नानकमत्ता गया। शास्त्री जी तो इसी इलाके के रहने वाले हैं, उन्हे पूरी जानकारी है। इसलिये उन्होने एक पोस्ट भी लिख दी है नानकमत्ता के बारे में। अब मेरा काम आसान हो गया, फटाफट शास्त्री जी से उनकी पोस्ट का इस्तेमाल करने की आज्ञा ली। अब नानकमत्ता की पूरी कहानी उन्ही की जुबानी-
“आज जिस पवित्र स्थान का मैं वर्णन कर रहा हूँ, पहले यह स्थान “सिद्धमत्ता” के नाम से जाना जाता था। यह वह स्थान है जहाँ सिक्खों के प्रथम गुरू नानकदेव जी और छठे गुरू हरगोविन्द साहिब के चरण पड़े। तीसरी उदासी के समय गुरू नानकदेव जी रीठा साहिब से चलकर सन् 1508 के लगभग भाई मरदाना जी के साथ यहाँ पहुँचे। उस समय यहाँ गुरू गोरक्षनाथ के शिष्यों का निवास हुआ करता था। नैनीताल और पीलीभीत के इन भयानक जंगलों में योगियों ने भारी गढ़ स्थापित किया हुआ था जिसका नाम गोरखमत्ता हुआ करता था। यहाँ एक पीपल का सूखा वृक्ष था। इसके नीचे गुरू नानक देव जी ने अपना आसन जमा लिया। कहा जाता है कि गुरू जी के पवित्र चरण पड़ते ही यह पीपल का वृक्ष हरा-भरा हो गया। रात के समय योगियों ने अपनी योग शक्ति के द्वारा आंधी और बरसात शुरू कर दी और पीपल के वृक्ष हवा में ऊपर को उड़ने लगा। यह देकर गुरू नानकदेव जी ने इस पीपल के वृक्ष पर अपना पंजा लगा दिया जिसके कारण वृक्ष यहीं पर रुक गया। आज भी इस वृक्ष की जड़ें जमीन से 15 फीट ऊपर देखी जा सकती हैं। इसे आज लोग पंजा साहिब के नाम से जानते हैं।”
“गुरूनानक जी के यहाँ से चले जाने के उपरान्त कालान्तर में इस पीपल के पेड़ में आग लगा दी और इस पीपल के पेड़ को अपने कब्जे में लेने का प्रयास किया। उस समय बाबा अलमस्त जी यहाँ के सेवादार थे। उन्हें भी सिद्धों ने मार-पीटकर भगा दिया। के छठे गुरू हरगोविन्द साहिब को जब इस घटना की जानकारी मिली तो वे यहाँ पधारे और केसर के छींटे मार कर इस पीपल के वृक्ष को पुनः हरा-भरा कर दिया। आज भी इस पीपल के हरेक पत्ते पर केशर के पीले निशान पाये जाते हैं।इतिहास कहता है कि सिद्ध योगियों के द्वारा गुरूनानकदेव जी से 36 प्रकार के व्यञ्नों को खाने की माँग की गई। उस समय गुरू जी एक वट-वृक्ष के नीचे बैठ थे। गुरू जी ने मरदाना से कहा कि भाई इन सिद्धों को भोजन कराओ। जरा इस वट-वृक्ष पर चढ़कर इसे हिला तो दो। मरदाना ने जसे ही पेड़ हिलाया तो उस पर से 36 प्रकार के व्यञ्नों की बारिश हुई।”
“नानक प्रकाश में लिखा है-
“मम तूंबा पै सौ भर दीजे,
अब ही तूरण बिलम न कीजै।
श्री नानक तब लै निज हाथा,
भरियो कूप ते दूधहि साथा।”
भाई वीर सिंह जी कहते हैं कि गुरूजी ने कुएँ में से पानी का तूम्बा भर दिया जो सभी ने पिया। मगर यह पानी नही दूध था। आज भी यह कुआँ मौजूद है और इसके जल में से आज भी कच्चे दूध की महक आती है। भौंरा साहब में बैठाया हुआ बच्चा जब मर गया तो सिद्धों ने गुरू जी से उसे जीवित करने की प्रार्थना की तो गुरू जी ने कृपा करके उसे जीवित कर दिया। इससे सिद्ध बहुत प्रसन्न हो गये और गंगा को यहाँ लाने की प्रार्थना करने लगे। गुरू जी ने मरदाना को एक फाउड़ी देकर कहा कि तुम इस फाउड़ी से जमीन पर निशान बनाकर सीधे यहाँ चले आना और पीछे मुड़कर मत देखना। गंगा तुम्हारे पीछे-पीछे आ जायेगी। मरदाना ने ऐसा ही किया लेकिन कुछ दूर आकर पीछे मुड़कर देख लिया कि गंगा मेरे पीछे आ भी रही है या नही। इससे गंगा वहीं रुक गई।”
“मम तूंबा पै सौ भर दीजे,
अब ही तूरण बिलम न कीजै।
श्री नानक तब लै निज हाथा,
भरियो कूप ते दूधहि साथा।”
भाई वीर सिंह जी कहते हैं कि गुरूजी ने कुएँ में से पानी का तूम्बा भर दिया जो सभी ने पिया। मगर यह पानी नही दूध था। आज भी यह कुआँ मौजूद है और इसके जल में से आज भी कच्चे दूध की महक आती है। भौंरा साहब में बैठाया हुआ बच्चा जब मर गया तो सिद्धों ने गुरू जी से उसे जीवित करने की प्रार्थना की तो गुरू जी ने कृपा करके उसे जीवित कर दिया। इससे सिद्ध बहुत प्रसन्न हो गये और गंगा को यहाँ लाने की प्रार्थना करने लगे। गुरू जी ने मरदाना को एक फाउड़ी देकर कहा कि तुम इस फाउड़ी से जमीन पर निशान बनाकर सीधे यहाँ चले आना और पीछे मुड़कर मत देखना। गंगा तुम्हारे पीछे-पीछे आ जायेगी। मरदाना ने ऐसा ही किया लेकिन कुछ दूर आकर पीछे मुड़कर देख लिया कि गंगा मेरे पीछे आ भी रही है या नही। इससे गंगा वहीं रुक गई।”
और ज्यादा जानकारी और चित्रों के लिये शास्त्री जी की उस पोस्ट को भी पढें- गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब।
अब फोटू देखिये:
पूर्णागिरी नानकमत्ता यात्रा श्रंखला
1. पूर्णागिरी- जहां सती की नाभि गिरी थी
2. गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब
बहुत सुन्दर जगह लगी...
ReplyDeleteसुंदर बहुत सुंदर जगह और बढिया विवरण. आभार आपका और शाश्त्रीजी का.
ReplyDeleteरामराम.
मुसाफिर जी,
ReplyDeleteसुबह-सुबह गुरुद्वारे के दर्शन करवा दिये आपने. पूरा दिन अच्छा ही गुजरेगा आज.
प्रयास
श्री मयंक जी और आपका हार्दिक धन्यवाद
ReplyDeleteफोटुएं भी बडी सुन्दर हैं जी
ब्लाग पेज खुलने में बहुत देर लगा रहा है, कुछ बदलाव कीजिये
प्रणाम
प्रसिद्ध शक्तिपीठ के लिये लिंक दूसरी पोस्ट का दिया गया है
ReplyDeleteकृप्या ठीक करें
प्रणाम
प्रसिद्ध शक्तिपीठ के लिये लिंक दूसरी पोस्ट का दिया गया है
ReplyDeleteकृप्या ठीक करें
प्रणाम
अरे इसमें तो हम भी है!
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सुंदर लगा विवरण ओर चित्र बहुत ही सुंदर लगे
ReplyDeleteधन्यवाद
बोले सो निहाल, सत श्री अकाल।
ReplyDeleteनीरज, भाई जाट के ठाठ निराले सैं।
सुन्दर वर्णन और चित्र ।
ReplyDeletevaah ! sundar !
ReplyDeleteकमाल की जानकारी और शानदार चित्र...और क्या चाहिए...
ReplyDeleteनीरज
श्री नानकमत्ता साहिब के दर्शन करने का आभार. बड़ी सुन्दर जगह है. सुकून मिलता होगा.
ReplyDeleteNice pics and information.
ReplyDeleteVery nice gurudwara and brief story of gurudwara . Thanks
ReplyDeletesir ji