वो किस्सा तो सभी को पता ही है – अरे वो ही, शिवजी-सती-दक्ष वाला। सती ने जब आत्महत्या कर ली, तो शिवजी ने उनकी अन्त्येष्टि तो की नहीं, बल्कि भारत भ्रमण पर ले गये। फिर क्या हुआ, कि विष्णु ने चक्र से सती की ’अन्त्येष्टी’ कर दी। कोई कहता है कि 51 टुकडे किये, कोई कहता है 52 टुकडे किये। हे भगवान! मरने के बाद सती की इतनी दुर्गति!!! जहाँ जहाँ भी ये टुकडे गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गयी। एक जगह पर नाभि भाग गिरा, वो पर्वत की चोटी पर गिरा और पर्वत में छेद करके नीचे नदी तक चला गया। यह नदी और कोई नहीं, भारत-नेपाल की सीमा निर्धारित्री शारदा नदी है।
अब पता नहीं कैसे तो लोगों ने उस छेद का पता लगाया और कैसे इसे सती की नाभि सिद्ध करके शक्तिपीठ बना दिया। लेकिन इससे हम जैसी भटकती आत्माओं की मौज बन गयी और भटकने का एक और बहाना मिल गया। इस शक्तिपीठ को कहते हैं पूर्णागिरी। यह उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊं अंचल में चम्पावत जनपद की टनकपुर तहसील के अन्तर्गत आता है। जिस तरह से जम्मू व कटरा पर वैष्णों देवी का रंग छाया है, उसी तरह टनकपुर पर पूर्णागिरी का। आओ, पहले आपको टनकपुर पहुंचा देते हैं-
मैं धरती से जुडा हुआ सीधा-सादा इंसान हूं, इसलिये सस्ते सार्वजनिक वाहनों के प्रयोग की ही बात करूंगा। यहां के लिये पीलीभीत-बरेली से तो लोकल बस सेवा की तरह रोडवेज की बसें चलती हैं। बाकि दिल्ली से भी आती हैं, लखनऊ से भी आती हैं, हरिद्वार-देहरादून से भी आती हैं, पिथौरागढ-चम्पावत से भी आती हैं, हल्द्वानी-रुद्रपुर से भी आती हैं। एक बस तो राजस्थान रोडवेज की भी खडी थी, जो जयपुर से आयी थी। हां, दिल्ली से टनकपुर की बसें केवल आनन्द विहार से ही मिलती हैं। कश्मीरी गेट से कोई बस नहीं मिलती।
अब आते हैं रेल पर। टनकपुर पूर्वोत्तर रेलवे का इज्जतनगर मण्डल के अन्तर्गत एक टर्मिनल स्टेशन है। यह मीटर गेज की लाइन है जो सीधी पीलीभीत से आती है। पीलीभीत मीटर गेज द्वारा ही बरेली, शाहजहांपुर, गोण्डा व ऐशबाग (लखनऊ) से जुडा है। जुडा तो मथुरा से भी था, लेकिन मथुरा-कासगंज खण्ड को मीटर गेज से बडे गेज (ब्रॉड) में बदल दिया गया है। धीरे-धीरे यह पूरा रूट ही ब्रॉड गेज कर दिया जायेगा। कुल मिलाकर सबसे बढिया तरीका यह है कि बरेली, रुद्रपुर या हल्द्वानी तक तो ट्रेन से आया जाये, फिर बस से।
होली के बाद तीन महीने तक पूर्णागिरी पर मेला लगता है- बताते हैं कि जबरदस्त मेला होता है। यह इलाका नेपाल से सटा हुआ है। शारदा पार करो और नेपाल चले जाओ। हम भारतीयों के लिये सबसे सस्ती विदेश यात्रा, वो भी बिना वीजा पासपोर्ट के। सोच तो मैं भी रहा था कि कर लूं एक विदेश यात्रा, लेकिन अकेला था, नहीं गया।
शिवालिक की पहाडियों में स्थित इस शक्तिपीठ की आसपास क्षेत्र में बहुत मान्यता है। चोटी पर ही चट्टानों में एक छेद है जो सीधा नीचे शारदा नदी में जाता है। भक्तगण जो भी प्रसाद वगैरा चढाते हैं, वो सीधा शारदा में चला जाता है। आजकल पुजारी इसे बन्द रखते हैं, बहुत आग्रह करने पर ही दिखाते हैं। इसी के पास ही काली माता का मन्दिर है, जहां आज बकरों की बलि चढाई जा रही थी। लेकिन हुआ ये कि कैमरे के लैंस पर धूल जमा हो गयी, इतनी धूल कि फोटू ना खींचना ही अच्छा था। खैर, पूर्णागिरी के दर्शन करके नेपाल स्थित सिद्धबाबा के दर्शन भी करने होते हैं। वहां जाने पर भारतीय मुद्रा बडे आराम से चल जाती है, बदलने का झंझट खत्म।
टनकपुर के पास ही खटीमा नामक स्थान है, जहां प्रसिद्ध ब्लॉगर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ’मयंक’ जी रहते हैं। मैने तो अपना पूर्णागिरी का बेस कैम्प शास्त्री जी के घर पर ही लगा लिया था। सुबह दिल्ली से निकलकर शाम तक खटीमा पहुंचा, भूख लग ही रही थी, जाते ही खाने पर टूट पडा, नौ बजते ही सो गया। सुबह को सात बजे शास्त्री जी ने ही जगाया। बोले कि बेटे, पूर्णागिरी नहीं जाना है क्या? तब गया था मैं पूर्णागिरी, नहा धोकर।
अब पता नहीं कैसे तो लोगों ने उस छेद का पता लगाया और कैसे इसे सती की नाभि सिद्ध करके शक्तिपीठ बना दिया। लेकिन इससे हम जैसी भटकती आत्माओं की मौज बन गयी और भटकने का एक और बहाना मिल गया। इस शक्तिपीठ को कहते हैं पूर्णागिरी। यह उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊं अंचल में चम्पावत जनपद की टनकपुर तहसील के अन्तर्गत आता है। जिस तरह से जम्मू व कटरा पर वैष्णों देवी का रंग छाया है, उसी तरह टनकपुर पर पूर्णागिरी का। आओ, पहले आपको टनकपुर पहुंचा देते हैं-
मैं धरती से जुडा हुआ सीधा-सादा इंसान हूं, इसलिये सस्ते सार्वजनिक वाहनों के प्रयोग की ही बात करूंगा। यहां के लिये पीलीभीत-बरेली से तो लोकल बस सेवा की तरह रोडवेज की बसें चलती हैं। बाकि दिल्ली से भी आती हैं, लखनऊ से भी आती हैं, हरिद्वार-देहरादून से भी आती हैं, पिथौरागढ-चम्पावत से भी आती हैं, हल्द्वानी-रुद्रपुर से भी आती हैं। एक बस तो राजस्थान रोडवेज की भी खडी थी, जो जयपुर से आयी थी। हां, दिल्ली से टनकपुर की बसें केवल आनन्द विहार से ही मिलती हैं। कश्मीरी गेट से कोई बस नहीं मिलती।
अब आते हैं रेल पर। टनकपुर पूर्वोत्तर रेलवे का इज्जतनगर मण्डल के अन्तर्गत एक टर्मिनल स्टेशन है। यह मीटर गेज की लाइन है जो सीधी पीलीभीत से आती है। पीलीभीत मीटर गेज द्वारा ही बरेली, शाहजहांपुर, गोण्डा व ऐशबाग (लखनऊ) से जुडा है। जुडा तो मथुरा से भी था, लेकिन मथुरा-कासगंज खण्ड को मीटर गेज से बडे गेज (ब्रॉड) में बदल दिया गया है। धीरे-धीरे यह पूरा रूट ही ब्रॉड गेज कर दिया जायेगा। कुल मिलाकर सबसे बढिया तरीका यह है कि बरेली, रुद्रपुर या हल्द्वानी तक तो ट्रेन से आया जाये, फिर बस से।
होली के बाद तीन महीने तक पूर्णागिरी पर मेला लगता है- बताते हैं कि जबरदस्त मेला होता है। यह इलाका नेपाल से सटा हुआ है। शारदा पार करो और नेपाल चले जाओ। हम भारतीयों के लिये सबसे सस्ती विदेश यात्रा, वो भी बिना वीजा पासपोर्ट के। सोच तो मैं भी रहा था कि कर लूं एक विदेश यात्रा, लेकिन अकेला था, नहीं गया।
शिवालिक की पहाडियों में स्थित इस शक्तिपीठ की आसपास क्षेत्र में बहुत मान्यता है। चोटी पर ही चट्टानों में एक छेद है जो सीधा नीचे शारदा नदी में जाता है। भक्तगण जो भी प्रसाद वगैरा चढाते हैं, वो सीधा शारदा में चला जाता है। आजकल पुजारी इसे बन्द रखते हैं, बहुत आग्रह करने पर ही दिखाते हैं। इसी के पास ही काली माता का मन्दिर है, जहां आज बकरों की बलि चढाई जा रही थी। लेकिन हुआ ये कि कैमरे के लैंस पर धूल जमा हो गयी, इतनी धूल कि फोटू ना खींचना ही अच्छा था। खैर, पूर्णागिरी के दर्शन करके नेपाल स्थित सिद्धबाबा के दर्शन भी करने होते हैं। वहां जाने पर भारतीय मुद्रा बडे आराम से चल जाती है, बदलने का झंझट खत्म।
टनकपुर के पास ही खटीमा नामक स्थान है, जहां प्रसिद्ध ब्लॉगर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ’मयंक’ जी रहते हैं। मैने तो अपना पूर्णागिरी का बेस कैम्प शास्त्री जी के घर पर ही लगा लिया था। सुबह दिल्ली से निकलकर शाम तक खटीमा पहुंचा, भूख लग ही रही थी, जाते ही खाने पर टूट पडा, नौ बजते ही सो गया। सुबह को सात बजे शास्त्री जी ने ही जगाया। बोले कि बेटे, पूर्णागिरी नहीं जाना है क्या? तब गया था मैं पूर्णागिरी, नहा धोकर।
अगला भाग: गुरूद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब
पूर्णागिरी नानकमत्ता यात्रा श्रंखला
1. पूर्णागिरी- जहां सती की नाभि गिरी थी
2. गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब
वाह, मजा आगया इस यात्रा वृतांत को पढकर.
ReplyDeleteरामराम.
good to know , nice to see !
ReplyDeleteयह अच्छी घुमाई रही..इसी बहाने शास्त्री जी से मुलाकात हो ली और उनके घर भोजन भी प्राप्त कर लिया...
ReplyDeleteसुन्दर वृतांत और तस्वीरें.
सुन्दर यात्रा वृत्तान्त!
ReplyDeleteपोस्ट में हमें भी लपेट लिया!
अगला अंक तो
गुरूद्वारा नानकमत्ता साहिब का होगा!
शास्त्री जी के यहां मेहमान भी बनें .. और पूर्णागिरी तथा अन्य जगहों के दर्शन भी किए .. बहुत सुंदर वर्णन भी किया .. बहुत अच्छे चित्र भी लगाए .. कुल मिलाकर बहुत ही अच्छी पोस्ट रही !!
ReplyDeleteनीरज, धरती से जुड़े रहना एक बहुत बड़ी खासियत है। छोटे भाई जब तक रहा जाये, ऐसा ही रहना। पोस्ट बहुत बढ़िया रही। बधाई।
ReplyDeleteनीरज भाई बहुत सुंदर यात्रा का विवरण किया, ओर धरती से ही जुडे रहना चाहिये यही महानता है, चित्र भी बहुत सुंदर लगे, शास्त्री जी वाला चित्र तो बहुत ही सुंदर है.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बढिया यात्रा करवाई मुसाफिर भाई!
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर नीरज,
ReplyDeleteटनकपुर, पूर्णागिरी और खटीमा देखकर मजा आ गया गया...शास्त्री जी के घर भी कुटमैती हो गयी.
एक बात बता दूँ... नेपाल से तो अपना रोटी-बेटी का सम्बन्ध है. बिहार प.बंगाल सीमा क्षेत्र से नेपाल मेरे पड़ोस में पड़ता है... कभी इधर से भी बोर्डर पार कर वहां मस्ती कर सकते हो...
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ReplyDeleteभूली बिसरी यादें ताज़ा कर दी आपने ,बचपन में हर होली के अगले दिन पापा ले जाए करते थे ,बहुत कठिन चढ़ाई है,पर दर्शन अद्भुत हैं ,ऊपर चोटी से जो शारदा नदी का नज़ारा आता है उसके क्या कहने ,शारदा नदी से उठाये पत्थर अभी भी किसी संदूक में बंद होंगे ....महेन्द्रनगर की यात्रा हमने भी बिना पासपोर्ट वीसा के कई बार की है
ReplyDeleteअच्छा वर्णन