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दिनांक 12 अप्रैल 2009, रविवार। सुबह को सोकर उठे तो बुरी तरह अकड़े हुए थे। हम पैर रख कहीं रहे थे, पड़ कहीं रहे थे। ये सब कल की बिलिंग की चढाई की करामात थी। तभी रामबाबू भागा-भागा आया। बोला कि ओये, यहाँ पर भूलकर भी मत नहाना। पानी बहुत ही ठंडा है। मुझे तो ना नहाने का बहाना चाहिए ही था। हालाँकि मुहं धो लिया था। वाकई घणा ठंडा पानी था।
नाश्ता किया। हमें आज योजनानुसार पहले तो न्युगल खड जाना था।
(न्युगल खड)
खड कहते हैं नदी को। एक टम्पू वाले को पचास रूपये में पटाया। उसने न्युगल कैफे पर छोड़ दिया। यहाँ से सौ एक मीटर नीचे न्युगल खड है। यहाँ पर नदी बहुत ही गहरी घाटी बनाकर बहती है। सामने एक के बाद एक सिर उठाते पहाड़ और सबसे पीछे सबसे ऊपर धौलाधार की बर्फ।
मैंने रामबाबू से पूछा कि बेटा बोल, कैसी जगह है? बोला कि एकदम महा बकवास। बस इतना सुनते ही अपना मूड खराब हो गया। पहले तो मैं सोच रहा था कि कुछ देर तक इस नदी में उतरकर पत्थरों पर आवारागर्दी करते फिरेंगे। "महा बकवास" सुनते ही सारा उत्साह ख़त्म हो गया। मैंने कहा कि अगर यह जगह महा बकवास है तो तू ही ऐसी जगह पर ले चल, जो "बकवास" ना हो। बोला कि चल पहले पालमपुर चलते हैं, वहां से सीधे दिल्ली की बस पकडेंगे।
इतना सुनकर मैं मन में जलभुन गया। फुल गुस्से में आकर मैंने हामी भर दी। हमारा आज का दोपहर बाद चार बजे तक घूमने का इरादा था। लेकिन अब सुबह आठ बजे ही वापस जाने लगे। सोच लिया कि अब के बाद कभी भी इस 'रामबाबू के बच्चे' के साथ नहीं जाऊँगा।
पालमपुर पहुंचे। अब तक मेरा गुस्सा कुछ-कुछ माइनस हो चूका था। रामबाबू से कहा कि यार, मैं तो चामुंडा मंदिर जरूर जाऊंगा। वो बोला कि अरे, वहां पर भी चढाई करनी पड़ेगी। वह सोच रहा था कि चामुंडा मंदिर किसी पहाडी पर होगा। फिर बोला कि मैं तो केवल वहीं जाऊंगा, जहाँ बस जाती हो। अब परेशान होकर मैंने अपना निर्णय सुना दिया। "तू बस अड्डे चला जा। वहां से कांगडा जाना हो, कांगडा जा; धर्मशाला जाना हो, धर्मशाला चला जा और दिल्ली की बस मिले तो दिल्ली चला जा। मैं जा रहा हूँ चामुंडा देवी। अच्छा अब तेरी-मेरी रामराम। ओके, बाबा-टायटाय। अरे सोरी, टाटा-बायबाय।"
अब हम दोनों अलग-अलग हो गए। कहते हैं कि जब माता बुलाती है तो सभी दौडे चले आते हैं। जिसे नहीं बुलाती वो नहीं जा पाता। लगता है कि माता मुझे बुला रही थी। कितना अच्छा नसीब है मेरा!!
(पालमपुर में चाय के खेत)
...
बस पकड़ी और चिडियाघर जा पहुंचा। चिडियाघर पालमपुर-धर्मशाला मार्ग पर पालमपुर से 15-16 किलोमीटर दूर है। और चामुंडा देवी से 6 किलोमीटर पहले। यहाँ पर दस रूपये का टिकट लगता है। इसमें ज्यादा जानवर तो नहीं हैं, लेकिन धौलाधार की पृष्ठभूमि में पहाडी ढलान पर घने जंगल के बीच बना है। इसमें काला भालू, तेंदुआ, जंगली सूअर और सेही व कई तरह के हिरन हैं।
(ये है चिडियाघर)
(दूर-दूर तक चिडियाघर ही दिखाई दे रहा है)
यहाँ से निकल कर फिर बस पकड़ी और जा पहुंचा चामुंडा।
मंदिर के मेन गेट के सामने ही बस ने उतार दिया। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। हर जगह की तरह ही यहाँ भी रास्ते के दोनों और प्रसाद की दुकानें, पकड़-पकड़कर बुलाते दुकानदार और लम्बी लाइन सब हैं।
लेकिन यहाँ जो सबसे अच्छी बात लगी, वो है साफ़-सफाई। आमतौर पर बड़े मंदिरों में सफाई बिलकुल नहीं दिखती, लेकिन यहाँ पर सफाई और प्रकाश की बेहतरीन व्यवस्था है। इस मंदिर के इतिहास के बारे में मुझे अभी जानकारी नहीं है। किसी दिन गूगल बाबा की शरण में जाकर सब कुछ जान लेंगे।
मंदिर के बराबर में ही नदी के किनारे स्वीमिंग पूल जैसा कुछ बना हुआ है। दर्शन करके ज्यादातर श्रृद्धालु यहीं पूल में या नदी में खरदू मचाते हैं। मैं था अकेला, अकेले का मूड नहीं बना। रामबाबू साथ होता तो अलग बात थी।
बस, तीन बज चुके थे। मेरा प्रोग्राम यहीं तक घूमने का था। सीधे कांगडा की बस पकड़ी। कांगडा से पठानकोट और फिर पूजा एक्सप्रेस (12413/12414) से सुबह चार बजे तक दिल्ली। तीन दिन तक कांगडा घाटी में घूमते रहे और कांगडा-धर्मशाला नहीं घूमे। तो यहाँ घूमने के लिए फिर कभी जायेंगे।
बैजनाथ यात्रा श्रंखला
1. बैजनाथ यात्रा - कांगड़ा घाटी रेलवे
2. बैजनाथ मंदिर
3. बिलिंग यात्रा
4. हिमाचल के गद्दी
5. पालमपुर यात्रा और चामुंड़ा देवी
ईश्वर का लाख लाख शुक्र कि आप कैमरा ले लिए हैं और हम आपके साथ घूम रहे हैं. :)
ReplyDeleteमजा आ गया.
वाकई माँ जिसे बुलाती है वही पहुँच पाता है. बढ़िया रहा यात्रा विवरण आपका. (कमेन्ट मोडरेशन तो सिर्फ पहेली के लिए ही था न!)
ReplyDeleteक्या हरे भरे जंगल, पहाड़, बर्फ, कितनी सुन्दर जगहें थीं. माता के भी दर्शन हो गए. जरूर सुकून मिला होगा. हमें तो पढ़ कर चित्र देख कर ही मिल रहा है. आभार.
ReplyDeleteजोरदार घुमा दिया । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत ही आनंद आया आपके साथ घूम के अगली बार रामबाबू की जगह हम चलेंगे...जहाँ कहोगे वहां और जब तक दम रहेगा तब तक...हम भी भोत घूमने के शौकीन हैं भाई...
ReplyDeleteनीरज
भाई बहुत घणा दमदार यात्रा वृतांत.
ReplyDeleteरामराम.
This world is full of persons loke Rambabu. Everyone can't appreciate true beauty of nature. Anyway,u made the right decision.U r a true traveller.Nice pics.
ReplyDeleteaapki rachnaon ke sath hum bhi ghoom lete hain
ReplyDeleteMeri Kalam - Meri Abhivyakti
वाह, देखो न कितना मस्त शब्द सीखा आपसे - नदी में खरदू मचाना! :)
ReplyDeleteAapki baat karne ka andaaz mujhe bahut pasand aaya, ek bar mein bhi aapke sath ghumna chahuga....
ReplyDeleteJai Mata di
ReplyDeleteJai Mata Di
ReplyDeleteBhai maza aa gia
ReplyDeleteआया था पठानकोट-जोगिन्दर नगर रूट की खड़े पहाड़ वाली रेल लाइन तलाशते
ReplyDeleteसारे सात संस्मरण पढ़ गया
शानदार
Bahut achha laga
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी यात्रा की आप दोनों ने , मैंने भी ये यात्रा मोटरसाइकिल से की है ,ओर शाम को 7 बजे kangra से चला था वापिस अपने घर के लिए ओर 1 बजे घर चंडीगढ़ से 60 किलोमीटर आगे ,
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