अप्रैल के महीने में लगने वाला नौचन्दी मेला मेरठ की शान है। इन दिनों यह मेला अपने पूरे शबाब पर है। यह शहर के अंदर नौचन्दी मैदान में लगता है। हर तरफ से आने जाने के साधन सिटी बसें, टम्पू व रिक्शा उपलब्ध हैं। इसकी एक खासियत और है कि यह रात को लगता है। दिन में तो नौचन्दी ग्राउंड सूना पड़ा रहता है।
नौचन्दी यानी नव चंडी। इसी नाम से यहाँ एक मंदिर भी है। बगल में ही बाले मियां की मजार है। जहाँ मंदिर में रोजाना भजन-कीर्तन होते हैं वहीं मजार में कव्वाली व कवि सम्मलेन। इसके अलावा एक बड़े मेले में जो कुछ होना चाहिए वो सब यहाँ है। भरपूर मनोरंजन, खाना-खुराक, भीड़-भाड़, सुरक्षा-व्यवस्था सब कुछ।
पहले दूर दूर के गावों से लोग-बाग़ यहाँ आते थे। इन दिनों हर तरफ नौचन्दी ही नौचन्दी रहती थी। सभी सपरिवार प्रोग्राम बनाते थे नौचन्दी जाने का। दो साल पहले मैं भी गया था- साइकिल से। अब रात को अपने गाँव में कोई वाहन तो चलता नहीं।
लेकिन पिछले कुछ सालों से यह मेला हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता की भेंट चढ़ रहा है। हर साल कुछ न कुछ बवाल हो ही जाता है। गाँव वाले तो अब कम ही जाते हैं - माहौल खराब है।
फिर भी मेला, मेला है। भारतीयता की पहचान है। एक बात और, इस नाम से एक ट्रेन भी चलती है- नौचन्दी एक्सप्रेस (ट्रेन नं 14511/14512)। मेरठ से मुरादाबाद, लखनऊ के रास्ते इलाहाबाद तक। मेरठ से सहारनपुर तक लिंक के रूप में चलती है। मेरठ को राज्य की राजधानी से जोड़ने वाली दो ट्रेनों में से एक।
तो अगर अगले दस-पंद्रह दिनों में हरिद्वार या आगे जाने का प्रोग्राम हो तो इस मेले को भी देख सकते हैं। कोई बुराई थोड़े ही है?
"नौचन्दी यानी नव चंडी। इसी नाम से यहाँ एक मंदिर भी है। बगल में ही बाले मियां की मजार है।"
ReplyDeleteहिंदू-मुस्लिम एकता के इस संगम की याद दिलाने के लिए धन्यवाद।
जिसकी जेब मे हो धेला, वही देख सकता है मेला ॥
ReplyDeleteभारतीय परंपरा के प्रतीक ये मेले अब शापिंग माल से पिछडने लगे हैं।
ReplyDeleteइस मेले की याद दिलाने के लिये धन्यवाद.
ReplyDeleteरामराम.
नौचंदी मेले की सैर मैं भी कई बार कर चुका हूं। वाकई एक अलग सी दुनिया है। जिसमें जाकर आप घंटों खोये रह सकते हैं।
ReplyDeleteनौचंडी मेले की अच्छी जानकारी दी आपने.
ReplyDeleteये मेले तो हमारी संस्कृति के धरोहर हैं। अच्छा लगा पढ़ना।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट। पर आपने इसके सांस्कृतिक पहलू की चर्चा नहीं की। इसमें कवि सम्मेलन और बहुत बड़ा मुशायरा होता है। पहले इसमें रूसी किताबें भी बहुत बड़ा आकर्षण होती थीं अब नहीं दिखती। कुल मिलाकर अच्छा सांस्कृतिक आयोजन था यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश का।
ReplyDeleteyaar Neeraj,
ReplyDeleteAchcha likhte ho. details par tumhari pakad bahut khoob hai aur kahne ki shaili bhi prabhaavshali hai par isme tumhare jaat hone ka koi yogdaan nahi hai. jaati ka itna farrukhabadi khel na karo dost.
likhte raho.
yaar Neeraj,
ReplyDeleteitna badhiya likhte ho. details par tumhari pakad laajawaab hai. shaili alag se prabhavit karti hai. par mujhe nahi lagta ki aapke is gun men aapki jaati ka koi yogdaan hai. jaati ka itna farrukhabadi khel na khelo dost.
likhte raho.
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