18 फरवरी 2009, दिन बुधवार। रोजाना की तरह इस दिन भी मैं कोट-पैन्ट पहनकर और टाई टूई बांधकर ऑफिस के लिए निकला। अब भईया, हमने जबसे दिल्ली मेट्रो को ज्वाइन किया है, कपडे क्या, जूते जुराब तक बदल गए। मैं तो गले में कसकर बांधे जाने वाले "पट्टे" का धुर विरोधी रहा हूँ। जैसे ही शाहदरा बॉर्डर पर पहुंचा, नजर पड़ी एक अखबार वाले पर। फटाफट दैनिक जागरण लिया, और चलता बना।
खैर, कोई बात नहीं। दोपहर एक बजे लंच कर लिया, देखा कि मोबाइल जी बता रहे हैं कि "2 missed calls" । सुशील जी छौक्कर ने मारी थी दो घंटे पहले। मैंने फोन मिलाया और पूछा कि सुशील जी क्या बात? बोले कि तुमने आज का हिंदुस्तान पढ़ा क्या? मैंने कहा नहीं तो। बोले कि आज उसमे रवीश जी ने तुम्हारे ब्लॉग के बारे में लिखा है। केवल तुम्हारे।
अपुन खुश। तीन चार पांच दोस्तों को साथ लेकर लाइब्रेरी में पहुंचा। सम्पादकीय पेज पर सबसे नीचे मोटे-मोटे काले-काले अक्षरों में लिखा था- "घूमता फिरता एक मुसाफिर जाट" । इसे पढ़कर हम इतने उत्साहित हो गए कि लाइब्रेरियन को कहना पड़ा- "अरे ओये। बाहर निकलो। यहाँ शोर मत मचाओ।" तब जाकर हम जमीन पर आये। दोस्त कहने लगे कि -"अरे वाह! हम इतनी बड़ी 'हस्ती' के साथ हंसी-मजाक करते हैं। चल बेटा जाट, कैंटीन में, थोड़ी सी जेब हलकी कर।" पार्टी के नाम पर मेरी जेब का सौ रूपये का बोझ हल्का हो गया।
साढ़े पांच बजे छुट्टी हुई। दौड़ते-दाड़ते हांफते-हूँफते मैं पहुंचा गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर। वहां पर बड़ी मुश्किल से हिंदुस्तान मिला। इसका सम्पादकीय पेज फाड़कर इसे अपनी फाइल में लगा लिया। सोचा कि रविवार को घर जाऊंगा, माँ-बाप को दिखाऊंगा कि "देखो, थारा पूत अखबार में भी आण लगा है।"
लेकिन सारे किये कराये पर पानी फिर गया। रात को साढ़े नौ बजे पापा का फोन आया। ना हेलो, ना हूलो। सीधे कहा कि- " वाह बेटे! ये काम भी करण लगा?" मैंने पूछा कि क्या हुआ? पीछे बैकग्राउंड साउंड की तरह माँ की आवाज आई- "लाल्ला! तेरे पै इब लो तो हमें विश्वास था, पर अब नी रहया।" मैंने फिर पूछा कि हुआ क्या? बोले कि-"हस्तिनापुर में छोरी छेड़ी थी तूने? अर अपनी इस करतूत कू अखबार में भी छपवा रहा है।"
असल में अखबार में भी ऐसा ही लिखा था। लेकिन अपनी उस पोस्ट पर मैंने स्पष्ट लिखा था कि किसी ने एक पर्यटक लड़की को छेड़ दिया था। जब किसी ने भी नाम नहीं बताया तो पूरी की पूरी बटालियन को हस्तिनापुर का चक्कर लगवाया गया था। उनमे मैं भी था। और, बापू को कहाँ अखबार पढने का शौक है? हमारे गाँव में भी हिंदुस्तान आता है। पड़ गयी होगी किसी की नजर। उन्होंने बापू से बता दिया होगा कि देखना जरा, ये मेरठ का नीरज जाट जी है, दिल्ली मेट्रो में नौकरी करता है, कहीं तेरा ही छोरा तो नहीं है। और बापू ने कह दिया कि हाँ, वो ही है।
बस, फिर क्या था। पूरे गाँव में "हाई अलर्ट" घोषित कर दिया कि फ़लाने के छोरे ने अखबार में लिखा है कि उसने लड़की छेडी थी। गाँव वालों ने सोचा कि ये नीरज ने ही लिखा है, ना कि रवीश ने। जैसे न्यूज़ चैनलों में छोटी सी खबर भी ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती है, वैसा ही हाल गाँव वालों का हो गया। गावों में इस तरह की बातें बहुत जल्दी फैलती हैं, क्योंकि गाँव एक परिवार की तरह होता है, सभी लोग एक दूसरे को जानते हैं।
गाँव में मैं बहुत ही सीधा, सादा, शरीफ, मेहनती, पढाकू डैश डैश डैश (मतलब कि सभी अच्छाइयां) माना जाता हूँ। मन में जब तनाव भर गया तो सोचा कि सुशील जी से ही बात करता हूँ। तनाव कम से कम आधा तो हो ही जायेगा। मैंने उन्हें बताया कि ऐसा हो गया है। तो उनका जवाब था-
"यार, तू ये जो कहदे कि हाँ, छेडी थी। मेरी उम्र है तो छेडूंगा ही। चल, मजाक कर रहा हूँ। भाई, ये तो दुनिया है। उन्हें अखबार में ये तो दिखा नहीं कि तेरी कितनी प्रशंसा हो रही है, केवल यही दिखा कि लड़की छेडी थी। तू अपने मम्मी पापा को समझा दे, वे मान जायेंगे। ना भी माने तो "उस पोस्ट" का प्रिंट आउट निकालकर दिखा दे। रहे गाँव वाले, वे तो दूसरों की टांग खिंचाई में ही लगे रहते हैं।"
अच्छा, तो अब तक की खबर का सारांश ये है कि अब हम भी उन "महान" ब्लोगरों की लिस्ट में शामिल हो गए, जिन्हें रवीश जी ने ब्लॉग वार्ता में जगह दी है।
भई अखबार मे छपने के लिए बहुत बधाई. और यार आज की पोस्ट बडी मस्त लिखी है मजा आगया.
ReplyDeleteगांव सम्भल कर जाना कहीं बाबू एक आधा लठ्ठ गलत्फ़हमी मे नही चिपका दें.:) सफ़ाई पहले ही दे के रखना.
रामराम.
बहुत बधाई भाई.. मेट्रो में तो और ्धाक बढ़ गई होगी..:)
ReplyDeleteबधाई हो।गांव ज़रा संधलकर जाना।मस्त पोस्ट्।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई !!
ReplyDeleteभई, सेलेब्रिटी होने की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है. फिर से बधाई.
ReplyDeleteबधाई हो ।
ReplyDeleteभाई मजा आ गया. बधाई हो. बापला को समझा देना.
ReplyDeleteबधाई जी आपको अखबार में छप जाने की .बढ़िया लगी आपकी यह पोस्ट
ReplyDeleteफिर से एक बार बधाई। और हाँ मामला सुलझा या नही? वैसे दोस्त तीर कमान से निकल चुका है बैशक अब आप कितनी ही सफाई देते रहे। लोग अब तो बात ही बनाऐगे ही। कोई गल नही छोडो और लग जाओ अच्छी अच्छी पोस्ट लगाने। बस इतना ध्यान रखना कि पोस्ट में लड़की शब्द कही ना हो। हा हा हा।
ReplyDeleteघणी खुसी हुई जे जान के की इब थारा नाम अखबार में भी आन लाग रिया है...याने के इब आप नाम वाले हो गए भाई...बधाई हो...हम भी लोगां ने के सकेंगे की एक नाम वाला मशहूर इंसान हमारा भी परिचित है...
ReplyDeleteनीरज
Bahut bahut badhai apko...
ReplyDeleteलै भाई नीरज, इब तों तै होग्या वीआईपी बन्दा.घणी बधाई.......बस बापू के लित्तरां से बच कै इ घरां जाईयो.
ReplyDeleteडबल बधाई ले लो भाई.. पहली अखबार में आने की और दूसरी इतने मजेदार ईस्टाईल में लिखने की.. :)
ReplyDeleteभइ वाह,बधाइ हो!
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चाँद, बादल और शाम
अपनी तरफ से भी डबल बधाई.. वैसे सुशील जी ने सही कहा.. जाकर कह दो कि अब नही छेड़ेंगे तो कब छेड़ेंगे... :)
ReplyDeleteभाई मज़ा आ गया
ReplyDeleteभाई मुसाफिर
ReplyDeleteइस ग़लती के लिए माफी। दरअसल आपके ब्लाग में इतना मज़ा आने लगा कि चूक हो गई। आप हीरो तो हो ही। गांव वालों को कह दो कि मुसाफिर नेक बंदा है।
तो मेट्रो का एक चक्कर फ्री....
ReplyDeleteगांठ बांध लो
ReplyDeleteबदनाम होगे
तो ज्यादा
नाम होगा
जैसे मेरा
है हुआ
।
अविनाश
मैंने भी पढ़ा था ..बधाई स्वीकारें ..अब जरा संभल कर लिखिएगा
ReplyDeleteनीरज भाई, अखबार मे छप गये लेकिन गलत तरीके से छप गये । छपने कि बधाई ले लो । अब गांव जाओ तो हैल्मेट पहन कर जाना ओले गिरने वाले है ।
ReplyDeleteहाँ जी नीरज जी ..पढ़ा तो हमने भी..
ReplyDeleteबेहद ख़ुशी ही
सो लिखतें रहें लिखतें रहें .
हमारा देहली है ही एसा :))
बधाई !!
बधाई।
ReplyDeletecongrats bro. . .
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