Skip to main content

स्टेशन से बस अड्डा कितना दूर है?

आज बात करते हैं कि विभिन्न शहरों में रेलवे स्टेशन और मुख्य बस अड्डे आपस में कितना कितना दूर हैं? आने जाने के साधन कौन कौन से हैं? वगैरा वगैरा। शुरू करते हैं भारत की राजधानी से ही।

दिल्ली:- दिल्ली में तीन मुख्य बस अड्डे हैं यानी ISBT- महाराणा प्रताप (कश्मीरी गेट), आनंद विहार और सराय काले खां। कश्मीरी गेट पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास है। आनंद विहार में रेलवे स्टेशन भी है लेकिन यहाँ पर एक्सप्रेस ट्रेनें नहीं रुकतीं। हालाँकि अब तो आनंद विहार रेलवे स्टेशन को टर्मिनल बनाया जा चुका है। मेट्रो भी पहुँच चुकी है। सराय काले खां बस अड्डे के बराबर में ही है हज़रत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन।

गाजियाबाद: - रेलवे स्टेशन से बस अड्डा तीन चार किलोमीटर दूर है। ऑटो वाले पांच रूपये लेते हैं।
मेरठ:- रेलवे स्टेशन से बस अड्डे की दूरी पांच-छः किलोमीटर है। सिटी बसों की नियमित सेवा उपलब्ध है।
मुज़फ्फरनगर:- दूरी आधे किलोमीटर से भी कम। सभी बसें रेलवे स्टेशन के सामने से ही जाती हैं। ये बात अलग हैं कि रूकती नहीं।
सहारनपुर:- ट्रेन से उतरते ही आप किसी से भी पूछ लें कि कि भईया, बस अड्डा किधर पड़ेगा? तो कहेगा कि मुझे नहीं पता। आप स्टेशन से बाहर जाकर पूछ लो। बाहर निकले। किसी से पूछ लिया कि भई बस अड्डा कितनी दूर है? वो कहेगा कि पागल हो क्या, बस अड्डे के अन्दर खड़े हो और पूछ रहे हो कि कितनी दूर है? मतलब ये कि रेलवे स्टेशन से बाहर निकले नहीं, बस अड्डे के अन्दर पहुँच गए।
रुड़की:- दूरी तीन किलोमीटर, साधन रिक्शा, किराया- पंद्रह से बीस रूपये।
हरिद्वार:- कोई साधन नहीं है। दोनों आमने सामने ही हैं।
ऋषिकेश:- एक किलोमीटर, साधन रिक्शा।
देहरादून:- देहरादून का मसूरी बस अड्डा तो स्टेशन परिसर में ही है। जबकि ISBT तीन चार किलोमीटर दूर है। सिटी बसें व ऑटो उपलब्ध हैं।
अम्बाला:- अम्बाला छावनी रेलवे स्टेशन के सामने ही है बस अड्डा।
चंडीगढ़:- सेक्टर 17 में ISBT है। दूरी पांच छः किलोमीटर। नियमित बस सेवा।
मुरादाबाद:- रेलवे स्टेशन से आधा किलोमीटर बल्कि और भी कम।
हल्द्वानी:- हल्द्वानी यानी कुमाऊँ का प्रवेश द्वार। दूरी करीब आधा किलोमीटर।
गोरखपुर:- रेलवे स्टेशन के लगभग सामने ही है बस अड्डा।
गुडगाँव:- ऑटो वाले पांच रूपये लेते हैं। और बस अड्डे से कुछ दूरी पर छोड़ देते हैं। एक संकरी सी गली में से होकर बस अड्डे तक पहुँच जाते हैं।
रेवाडी:- दो तीन किलोमीटर की दूरी है। रिक्शा सेवा भी उपलब्ध है।

ये तो हुई मेरे देखे हुए आस पास के शहरों की सूची। आप भी इस सूची को बढा सकते हैं। तो फटाफट लिख डालिए शहर का नाम, रेलवे स्टेशन से बस अड्डे की लगभग दूरी, साधन वगैरा। ये जानकारी किसी के काम की हो या ना हो, मेरे काम की तो है।

Comments

  1. मुसाफिरों के काफी काम की है ये जानकारी. बनारस का बस अड्डा भी स्टेशन से चंद क़दमों के फासले पर ही है, कब गुजर रहे हैं इस ओर से!

    ReplyDelete
  2. बढ़िया कलेक्शन है:

    जबलपुर में बस स्टैंड मुख्य स्टेशन से लगभग ५ किमी है..आटो, रिक्शा, बस और टेम्पो उपलब्ध हैं.

    ReplyDelete
  3. उपयोगी जानकारी दी है बाकी आपने दिल्ली का बात दिया है .लाजपत नगर से यह सब जगह सिर्फ़ कुछ मिनटों की दूरी par hain ..yadi traafic jam na mile to :)

    ReplyDelete
  4. ye to apne achhi baat batayi hai...

    kafi kaam ayegi yah jankari ghumkar logo ke...

    ReplyDelete
  5. ललितपुर में बस बमुश्किल २ किलोमीटर पर बस अड्डा है. पैदल भी जा सकते हैं. रिक्शे का पता नहीं.

    ReplyDelete
  6. भाई म्हारै शहर मे रेलवे टेशन से बस अड्डे कि दुरी ही नही है. आजू बाजू है. और सामान नही हो तो पैदल ही पहुंच जाओ.

    ये कैसी रही? हमारे शहर मे हम इस बात के लिये आने वाले मेहमानों का रुपया खर्च ही नही करवाते.:)

    रामराम.

    ReplyDelete
  7. कमाल की जानकारी भाई जान ...

    ReplyDelete
  8. जोधपुर में बस अड्डा (राइकाबाग/पावटा) रेल्वे स्टेशन से करीब ४ कि मी दूर है..्सि्टी बस और ऒटो (जोधपुर में इसे भी टेक्सी कहते है) आराम से मिल जाता है..

    आओ आपका स्वागत है..

    और जाट साब.. दिल्ली में ’आपकी’ मेट्रो कश्मीरी गेट से पुरानी दिल्ली (चांदनी चौक) और नई दिल्ली भी जाती है..:)

    ReplyDelete
  9. इतनी सुंदर जानकारी । यही तो है असली बलोगिंग का मजा । ऐसी जानकारी तो गूगल बाबा भी नही बता पाते । बहुत धन्यवाद मित्र आपका ।

    ReplyDelete
  10. jaat ji apne ambala cantt ki baat ki waise ambala city me bhi station se bus stand jyada door nhi hai . sirf aadha pona kilometer hai.

    aise hi panipat me dhed do kilometer hai . aaram se rickshe se ja sakte ho.

    ReplyDelete
  11. From : shalabh310@yahoo.com

    नीरजजी, मैं आगरा का मूल निवासी हूँ। ग्रेटर नोएडा में 8-9 साल सर्विस की है और इस समय मेरठ में जाॅब कर रहा हूँ। आपके ब्लाॅग बहुत चाव से पढ़ता हूँ। क्योंकि मुझे भी घूमने का बहुत शौक है। बस अड्डे और स्टेषन की जहाँ तक बात है, तो मैं आगरा की जानकारी देना चाहूंगा। आगरा में तीन बस अड्डे हैं- ईदगाह, फोर्ट और बौद्ध विहार। अब फोर्ट अड्डे को ट्रांसपोर्ट नगर स्थित नए बने आईएसबीटी में मर्ज़ कर दिया गया है। आगरा तीन राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ा है - एनएच 2 (कोलकाता तक), एनएच 3 (आगरा-मुम्बई राजमार्ग) तथा एनएच 11(आगरा-बीकानेर राजमार्ग)। कई मुख्य शहर इन राजमार्गों पर पड़ते हैं। इसके अलावा आगरा में सात रेलवे स्टेषन हैं - कैन्ट, फोर्ट, ईदगाह, राजा की मण्डी, बिल्लोचपुरा, सिटी और यमुना ब्रिज। इनमें पहले चार मुख्य स्टेषन हैं, जो मध्य रेलवे, पष्चिम रेलवे, उत्तर रेलवे, दक्षिण मध्य रेलवे तथा उत्तरपूर्व रेलवे से जुड़े हैं।

    - शलभ सक्सेना, आगरा

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

तिगरी गंगा मेले में दो दिन

कार्तिक पूर्णिमा पर उत्तर प्रदेश में गढ़मुक्तेश्वर क्षेत्र में गंगा के दोनों ओर बड़ा भारी मेला लगता है। गंगा के पश्चिम में यानी हापुड़ जिले में पड़ने वाले मेले को गढ़ गंगा मेला कहा जाता है और पूर्व में यानी अमरोहा जिले में पड़ने वाले मेले को तिगरी गंगा मेला कहते हैं। गढ़ गंगा मेले में गंगा के पश्चिम में रहने वाले लोग भाग लेते हैं यानी हापुड़, मेरठ आदि जिलों के लोग; जबकि अमरोहा, मुरादाबाद आदि जिलों के लोग गंगा के पूर्वी भाग में इकट्ठे होते हैं। सभी के लिए यह मेला बहुत महत्व रखता है। लोग कार्तिक पूर्णिमा से 5-7 दिन पहले ही यहाँ आकर तंबू लगा लेते हैं और यहीं रहते हैं। गंगा के दोनों ओर 10-10 किलोमीटर तक तंबुओं का विशाल महानगर बन जाता है। जिस स्थान पर मेला लगता है, वहाँ साल के बाकी दिनों में कोई भी नहीं रहता, कोई रास्ता भी नहीं है। वहाँ मानसून में बाढ़ आती है। पानी उतरने के बाद प्रशासन मेले के लिए रास्ते बनाता है और पूरे खाली क्षेत्र को सेक्टरों में बाँटा जाता है। यह मुख्यतः किसानों का मेला है। गन्ना कट रहा होता है, गेहूँ लगभग बोया जा चुका होता है; तो किसानों को इस मेले की बहुत प्रतीक्षा रहती है। ज्...

जाटराम की पहली पुस्तक: लद्दाख में पैदल यात्राएं

पुस्तक प्रकाशन की योजना तो काफी पहले से बनती आ रही थी लेकिन कुछ न कुछ समस्या आ ही जाती थी। सबसे बडी समस्या आती थी पैसों की। मैंने कई लेखकों से सुना था कि पुस्तक प्रकाशन में लगभग 25000 रुपये तक खर्च हो जाते हैं और अगर कोई नया-नवेला है यानी पहली पुस्तक प्रकाशित करा रहा है तो प्रकाशक उसे कुछ भी रॉयल्टी नहीं देते। मैंने कईयों से पूछा कि अगर ऐसा है तो आपने क्यों छपवाई? तो उत्तर मिलता कि केवल इस तसल्ली के लिये कि हमारी भी एक पुस्तक है। फिर दिसम्बर 2015 में इस बारे में नई चीज पता चली- सेल्फ पब्लिकेशन। इसके बारे में और खोजबीन की तो पता चला कि यहां पुस्तक प्रकाशित हो सकती है। इसमें पुस्तक प्रकाशन का सारा नियन्त्रण लेखक का होता है। कई कम्पनियों के बारे में पता चला। सभी के अलग-अलग रेट थे। सबसे सस्ते रेट थे एजूक्रियेशन के- 10000 रुपये। दो चैप्टर सैम्पल भेज दिये और अगले ही दिन उन्होंने एप्रूव कर दिया कि आप अच्छा लिखते हो, अब पूरी पुस्तक भेजो। मैंने इनका सबसे सस्ता प्लान लिया था। इसमें एडिटिंग शामिल नहीं थी।

अदभुत फुकताल गोम्पा

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें ।    जब भी विधान खुश होता था, तो कहता था- चौधरी, पैसे वसूल हो गये। फुकताल गोम्पा को देखकर भी उसने यही कहा और कई बार कहा। गेस्ट हाउस से इसकी दूरी करीब एक किलोमीटर है और यहां से यह विचित्र ढंग से ऊपर टंगा हुआ दिखता है। इसकी आकृति ऐसी है कि घण्टों निहारते रहो, थकोगे नहीं। फिर जैसे जैसे हम आगे बढते गये, हर कदम के साथ लगता कि यह और भी ज्यादा विचित्र होता जा रहा है।    गोम्पाओं के केन्द्र में एक मन्दिर होता है और उसके चारों तरफ भिक्षुओं के कमरे होते हैं। आप पूरे गोम्पा में कहीं भी घूम सकते हैं, कहीं भी फोटो ले सकते हैं, कोई मनाही व रोक-टोक नहीं है। बस, मन्दिर के अन्दर फोटो लेने की मनाही होती है। यह मन्दिर असल में एक गुफा के अन्दर बना है। कभी जिसने भी इसकी स्थापना की होगी, उसी ने इस गुफा में इस मन्दिर की नींव रखी होगी। बाद में धीरे-धीरे यह विस्तृत होता चला गया। भिक्षु आने लगे और उन्होंने अपने लिये कमरे बनाये तो यह और भी बढा। आज इसकी संरचना पहाड पर मधुमक्खी के बहुत बडे छत्ते जैसी है। पूरा गोम्पा मिट्टी, लकडी व प...