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Showing posts from February, 2009

हम भी आ गए अखबार में

18 फरवरी 2009, दिन बुधवार। रोजाना की तरह इस दिन भी मैं कोट-पैन्ट पहनकर और टाई टूई बांधकर ऑफिस के लिए निकला। अब भईया, हमने जबसे दिल्ली मेट्रो को ज्वाइन किया है, कपडे क्या, जूते जुराब तक बदल गए। मैं तो गले में कसकर बांधे जाने वाले "पट्टे" का धुर विरोधी रहा हूँ। जैसे ही शाहदरा बॉर्डर पर पहुंचा, नजर पड़ी एक अखबार वाले पर। फटाफट दैनिक जागरण लिया, और चलता बना। खैर, कोई बात नहीं। दोपहर एक बजे लंच कर लिया, देखा कि मोबाइल जी बता रहे हैं कि "2 missed calls" । सुशील जी छौक्कर ने मारी थी दो घंटे पहले। मैंने फोन मिलाया और पूछा कि सुशील जी क्या बात? बोले कि तुमने आज का हिंदुस्तान पढ़ा क्या? मैंने कहा नहीं तो। बोले कि आज उसमे रवीश जी ने तुम्हारे ब्लॉग के बारे में लिखा है। केवल तुम्हारे।

हरिद्वार-ऋषिकेश की प्रशासनिक सच्चाई

आमतौर पर बाहर से आने वाले लोग हरिद्वार-ऋषिकेश को एक ही जिले में मानते हैं। लेकिन अगर सच्चाई पता चले तो सभी कन्फ्यूज हो जायेंगे। हरिद्वार तो खैर जिला है ही, ऋषिकेश शहर स्थित है देहरादून जिले में, लक्ष्मण झूला क्षेत्र स्थित है टिहरी गढ़वाल जिले में, और राम झूले का नियंत्रण करता है पौडी गढ़वाल जिला। और अब विस्तार से। 1974 से पहले हरिद्वार सहारनपुर जिले का एक भाग था। इसकी तहसील थी रुड़की। अब तो खैर हरिद्वार खुद भी एक तहसील है। लेकिन जिला अस्पताल को छोड़कर इसका कोई भी सरकारी कार्यालय हरिद्वार में नहीं है। जिला मुख्यालय, जिला जेल, पुलिस मुख्यालय सब कुछ हरिद्वार से 15 किलोमीटर दूर रोशनाबाद गाँव में है। रोशनाबाद शिवालिक की पहाडियों की तलहटी में स्थित है।

देहरादून का इतिहास

भौगोलिक रूप से देहरादून शिवालिक की पहाडियों और मध्य हिमालय की पहाडियों के बीच में स्थित है। वास्तव में यह पूर्व में गंगा से लेकर पश्चिम में यमुना नदी तक फैला हुआ है। इस तरह की विस्तृत घाटियों को ही "दून" कहते हैं। इस घाटी में सौंग व आसन जैसी कई नदियाँ हैं। आसन व यमुना के संगम पर तो बैराज भी बना है। इसी जिले में ऋषिकेश व मसूरी जैसी विश्व प्रसिद्द जगहें हैं। राजाजी राष्ट्रीय पार्क का काफी बड़ा हिस्सा भी इसी में पड़ता है। भारतीय सर्वेक्षण विभाग और राष्ट्रीय वन अनुसन्धान संस्थान देहरादून में ही हैं। देश को मिलिट्री अफसर देने वाली इंडियन मिलिट्री अकेडमी (IMA) यही पर है। अब देखते हैं देहरादून का इतिहास। 1675 में सिक्खों के सातवें गुरू, गुरू हरराय के पुत्र राम राय ने यहाँ एक डेरा स्थापित किया था। इसी डेरा को बाद में "देहरा" कहा जाने लगा।

हरिद्वार जाने का वैकल्पिक मार्ग

हरिद्वार जाना चाहते हो? तो आज उनका मार्गदर्शन करते हैं जो अपनी गाड़ी से जाने की सोच रहे हैं। दिल्ली से ही शुरू करते हैं। यहाँ से तीन रास्ते है। पहला रास्ता - दिल्ली, गाजियाबाद, मोदीनगर, मेरठ, खतौली, मुज़फ्फरनगर, रुड़की और हरिद्वार। गाजियाबाद से हरिद्वार तक पूरा एन एच 58 है। दूसरा रास्ता है दिल्ली से बागपत, बडौत, शामली, सहारनपुर/मुज़फ्फरनगर, रुड़की और हरिद्वार। और जो है... तीसरा रास्ता है- दिल्ली से गाजियाबाद, मेरठ, मवाना, बिजनौर, नजीबाबाद और हरिद्वार। तो मेरी सलाह ये है कि आजकल भूलकर भी पहले दो रास्तों से ना जाएँ। क्योंकि मेरठ से मुज़फ्फरनगर तक पूरा हाईवे खुदा पड़ा है। चार लेन को छः लेन बनाया जा रहा है। बाकी पूरा रास्ता एकदम मस्त है।

स्टेशन से बस अड्डा कितना दूर है?

आज बात करते हैं कि विभिन्न शहरों में रेलवे स्टेशन और मुख्य बस अड्डे आपस में कितना कितना दूर हैं? आने जाने के साधन कौन कौन से हैं? वगैरा वगैरा। शुरू करते हैं भारत की राजधानी से ही। दिल्ली:- दिल्ली में तीन मुख्य बस अड्डे हैं यानी ISBT- महाराणा प्रताप (कश्मीरी गेट), आनंद विहार और सराय काले खां। कश्मीरी गेट पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास है। आनंद विहार में रेलवे स्टेशन भी है लेकिन यहाँ पर एक्सप्रेस ट्रेनें नहीं रुकतीं। हालाँकि अब तो आनंद विहार रेलवे स्टेशन को टर्मिनल बनाया जा चुका है। मेट्रो भी पहुँच चुकी है। सराय काले खां बस अड्डे के बराबर में ही है हज़रत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन। गाजियाबाद: - रेलवे स्टेशन से बस अड्डा तीन चार किलोमीटर दूर है। ऑटो वाले पांच रूपये लेते हैं।

अजी अब तो हम भी दिल्ली वाले हो गए

हाँ जी, बिलकुल सही कह रहा हूँ। अब हम हरिद्वार वाले नहीं रहे, दिल्ली वाले हो गए हैं। आज के बाद अपनी समस्त गतिविधियाँ दिल्ली से ही संचालित होंगी। इब आप सोच रहे होंगे कि मुसाफिर को क्या हो गया? कल तक हरिद्वार हरिद्वार करने वाला अब दिल्ली के गुणगान कर रहा है। चलो बता ही देता हूँ। दिल्ली मेट्रो में जूनियर इंजिनियर (JE) बन गया हूँ। अगस्त 2008 में रोजगार समाचार में छपा कि दिल्ली मेट्रो को बाईस मैकेनिकल जेई की जरुरत है। बाईस में से केवल ग्यारह सीटें ही अनारक्षित थी। हमने भी तीन सौ रूपये का बैंक ड्राफ्ट लगाकर फॉर्म भर दिया। दुनिया वालों ने खूब कहा कि भाई, केवल ग्यारह सीटें ही तो हैं, तू तीन सौ रूपये बर्बाद मत कर। एक से एक बढ़कर पढाकू परीक्षार्थी आएंगे, तू तो कहीं भी नहीं टिकेगा। लेकिन धुन के पक्के इंसान ने फॉर्म भर ही दिया।