Skip to main content

कहानी ‘घुमक्कड़ी जिंदाबाद-2’ पुस्तक की


आखिरकार 8 महीने की देरी से यह किताब छप ही गई। चलिए, अब इस किताब की पूरी कहानी विस्तार से बताते हैं...

‘घुमक्कड़ी जिंदाबाद’ किताब प्रकाशित करने का आइडिया 2018 में आया था। इरादा था कि अपने सोशल मीडिया नेटवर्क में से अच्छा लिखने वाले कुछ मित्रों के यात्रा-वर्णन एकत्र करके उन्हें किताब के रूप में प्रकाशित करेंगे। इसकी शुरूआत 2018 में कर भी दी थी। ऐलान कर दिया कि जिन मित्रों को भी अपने यात्रा-लेख किताब में प्रकाशित कराने हैं, वे निर्धारित शब्द-सीमा में लिखकर मुझे भेज दें।

उस समय लगभग 35 मित्रों ने अपने यात्रा-लेख भेजे। हमने पहले ही तय कर रखा था कि किताब में 240 से ज्यादा पेज नहीं रखेंगे। 200-240 पेज की किताब देखने में एकदम परफेक्ट लगती है। जबकि लेख इतने ज्यादा थे कि 500 पेज भी कम पड़ते। इनमें कुछ लेख तो ऐसे थे, जो पढ़ते ही मुझे पसंद आ गए; वहीं कुछ ऐसे भी लेख थे, जो बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगे थे। कुल मिलाकर कुछ लेख तो छपने निश्चित थे और कुछ लेख नहीं छपने निश्चित थे। कुछ ऐसे भी लेख थे, जिनका छपना या न छपना किताब के पेजों पर निर्भर था। पेज सेटिंग और फाइनल एडिटिंग के समय अगर जगह बचेगी, तो लेख छपेंगे और अगर जगह नहीं बचेगी, तो लेख नहीं छपेंगे।

आखिरकार 35 में से 18 लेख फाइनल हुए।

लेकिन लेखों को एकत्र करने और इनकी पीडीएफ बनाने से तो किताब नहीं बनती। किताब के प्रकाशन में बहुत बड़ा खर्चा होता है और जिन मित्रों के लेख किताब में छपने वाले थे, उन्हें भी कुछ मेहनताना जरूर मिलना चाहिए। आखिर मैं भी इधर-उधर कई जगहों पर अपने लेख भेजता हूँ और मेहनताना लेता हूँ। तो इस प्रकार हमारे सामने दोहरा खर्चा था। 

इसका समाधान यह निकाला कि हम किसी को भी नकद मेहनताना नहीं देंगे, बल्कि जिन मित्रों के लेख किताब में शामिल हुए हैं, उन्हें प्रिंटिंग कोस्ट पर किताब की प्रतियाँ उपलब्ध कराएँगे और वे मित्र उन प्रतियों को अपने नेटवर्क में बेचेंगे और इस प्रकार उनका मेहनताना उन्हें मिल जाएगा। 

खैर, जनवरी 2019 में ‘घुमक्कड़ी जिंदाबाद’ किताब प्रकाशित हुई और कई मित्रों ने बिक्री के उद्देश्य से खूब सारी प्रतियाँ भी खरीदीं और कई मित्रों ने केवल अपने लिए एक-एक प्रति भी खरीदी। किताब बहुत सफल रही और कुछ ही महीनों में इसका पहला संस्करण पूरी तरह समाप्त हो गया।

2020 आने को हुआ और अब हमारे सामने लक्ष्य था ‘घुमक्कड़ी जिंदाबाद-2’ के प्रकाशन का। पहली किताब के प्रकाशन से कुछ सीख मिली थीं, जो इस प्रकार हैं:

1. 35 मित्रों ने अपने लेख भेजे थे, 18 प्रकाशित हुए और 17 प्रकाशित नहीं हुए। इन 17 में से कई मित्र नाराज हो गए। इनमें से दो-तीन तो बहुत अच्छे ब्लॉगर भी थे, जिनके यात्रा-लेख पत्रों-पत्रिकाओं तक में छपते थे। जाहिर है कि इस बार और भी ज्यादा मित्र यात्रा-लेख भेजेंगे, लेकिन सभी नहीं छपेंगे। यानी इस बार भी कुछ मित्रों की नाराजगी मोल लेनी पड़ेगी।

तय किया कि इस बार हम इस तरह यात्रा-लेख नहीं मंगाएँगे। बल्कि अपने फील्ड के जो स्पेशलिस्ट हैं, उनका सहारा लेंगे। तरुण गोयल हिमाचल के स्पेशलिस्ट हैं, तो जयश्री खमेसरा जी साउथ की स्पेशलिस्ट हैं; राजीव उपाध्याय जी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के, तो आदित्य निगम ट्रैकिंग के। इनके अलावा कुछ मित्र ‘घुमक्कड़ी जिंदाबाद’ फेसबुक ग्रुप में लगातार शानदार लिख रहे थे, तो उन्हें भी किताब के लिए एक लेख लिखने का इनविटेशन दे दिया। इस बार कोई भी लेख रिजेक्ट नहीं हुआ और सभी लेख शानदार बन पड़े हैं।

2. सभी मित्र किताब नहीं बेच सकते। किताब बेचकर अपना मेहनताना वसूल करने की बात अब मुझे खराब लगने लगी थी। इस बार हम ऐसा नहीं करेंगे। 

शुरू में तय किया कि एक निश्चित धनराशि सभी को दे देंगे, जैसा कि हर जगह होता है। लेकिन बाद में तय हुआ कि इस धनराशि से सभी लेखकों को 2-3 दिनों तक भ्रमण भी कराया जा सकता है। भ्रमण की बात हमारे सभी के स्वभाव के अनुकूल भी थी। व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक लेखक को कुछ सौ रुपये ही मिलते, लेकिन सभी की सम्मिलित धनराशि अच्छी-खासी हो गई। 

‘घुमक्कड़ी जिंदाबाद-2’ किताब को जनवरी 2020 में प्रकाशित हो जाना था। इसी आधार पर हमने तय किया कि फरवरी में किताब का विमोचन करेंगे। अमन आहुजा भाई ने भी खूब सहयोग किया और हिमाचल में अपना 5-स्टार कैटेगरी का The Pong Eco Village रिसोर्ट विमोचन के लिए हमारी शर्तों पर हमारे लिए खोल दिया। सभी लेखकों को आमंत्रित किया गया, जिनमें से कुछ ने आमंत्रण स्वीकार किया और कुछ ने व्यस्तता के कारण स्वीकार नहीं किया।

लेकिन किताब के प्रकाशन में विलंब होता गया। 9 और 10 फरवरी को किताब के बिना ही किताब का विमोचन पोंग डैम के किनारे हो गया। जिन मित्रों को रोज फेसबुक पर लिखते-पढ़ते देखते थे, उनके साथ ये 2 दिन शानदार बीते। पंजाब से विकास नारदा, अमनदीप सिंह; हिमाचल से तरुण गोयल; यूपी से अमित राणा, कंचन सिंह, चंद्र धर मिश्र, ब्रजेश पांडेय; एमपी से आदित्य निगम आदि लेखकों के साथ-साथ कुछ और मित्र भी पहुँचे। 

मार्च में जब किताब छपने ही वाली थी, तो लॉकडाउन लग गया। किताब अगले पाँच महीनों तक प्रिंटिंग प्रेस में फँसी रही और आखिरकार हाल ही में यानी अगस्त में प्रकाशित हुई।

किताब में इन मित्रों के ये लेख शामिल हैं:

1. नेपाल बॉर्डर (अखिलेश प्रधान): अखिलेश जी कई महीने उत्तराखंड की सबसे खूबसूरत जगह मुनस्यारी में रहे हैं। ये मुनस्यारी के आसपास घूमते रहते हैं और ऐसे ही एक दिन धारचूला की तरफ निकल गए। धारचूला नेपाल सीमा से सटा हुआ है और सीमा पार करके नेपाल में दार्चूला नाम का शहर है। अपनी इसी यात्रा का अनुभव इन्होंने लिखा है।

2. घुमक्कड़ी के रफनोट्स... (अजीत सिंह): अजीत सिंह पहलवान एक मोटीवेशनल स्पीकर हैं, जो सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय हैं। इन्होंने इस लेख में अपने अनुभव बताते हुए घुमक्कड़ी करने और अपना कम्फर्ट जोन छोड़ने की बात कही है।

3. त्रियुंड का जानलेवा सफर (अमनदीप सिंह): भटिंडा के रहने वाले अमनदीप सिंह एक डिजाइनर भी हैं। इस किताब के कवर पेज और पेज डिजाइनिंग सब-कुछ इन्होंने ही किए हैं। एक बार ये अपने मित्रों के साथ हिमाचल के प्रसिद्ध ट्रैकिंग पॉइंट त्रियुंड गए। अनाड़ीपन में रास्ता भटक गए। वही इन्होंने किताब में लिखा है।

4. आत्मबोध यात्रा (अमित राणा): यात्राओं को लेकर इनके मन में एक संकोच था। फिर एक दिन मोटरसाइकिल लेकर गंगोत्री की ओर निकल पड़े। उस समय इनके मन में क्या चल रहा था, उस अनुभव को बखूबी लिखा है।

5. ओ गगास! छिन आकाश-छिन पाताल (अरुण कुकसाल): उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में रहने वाले अरुण कुकसाल जी किसी परिचय के मोहताज नहीं। जब हमने इनसे लेख लिखने का आग्रह किया, तो इन्होंने गढ़वाल-कुमाऊँ के सीमावर्ती क्षेत्रों की यात्रा की और एकदम ताजा-ताजा लेख हमारे सामने परोस दिया। गौरतलब है कि गढ़वाल-कुमाऊँ का सीमावर्ती क्षेत्र आज भी पर्यटकों से अछूता है और न के बराबर पर्यटक इस क्षेत्र में जाते हैं।

6. चंद्रताल से आगे की धरती (आदित्य निगम): आदित्य निगम एक शानदार ट्रैकर हैं और उतने ही शानदार लेखक व फोटोग्राफर भी। किताब के कवर पेज के लिए हमारे पास सैकड़ों फोटो आए थे, जिनमें से आदित्य के फोटो का ही चयन हुआ। मनाली से स्पीति के रास्ते में चंद्रताल झील है और मनाली से लद्दाख के रास्ते में बारालाचा दर्रा है। सड़क मार्ग से दोनों स्थान काफी दूर हैं, लेकिन पैदल मार्ग से उतने दूर नहीं हैं। तो इन्होंने चंद्रताल से बारालाचा-ला की तीन दिन की ट्रैकिंग की है। उधर ट्रैकिंग करने की मेरी भी कई वर्षों से इच्छा रही है, लेकिन कभी जाना नहीं हो पाया।

7. अनाड़ी से खिलाड़ी (कंचन सिंह गौर): अगर आपको ट्रैकिंग का कोई अनुभव न हो, तो पहली बार आप कौन-सा ट्रैक करना चाहेंगे? आप कोई भी ट्रैक करें, लेकिन लद्दाख में स्टोक कांगड़ी का ट्रैक तो कतई नहीं करेंगे। कंचन को इससे पहले ट्रैकिंग का मतलब भी नहीं पता था। एक बार किसी ने इनके अहम को ठेस पहुँचा दी और इन्होंने ठान लिया कि ट्रैकिंग करनी है। और ट्रैकिंग का मतलब जाने-समझे बिना स्टोक कांगड़ी की ओर निकल पड़ीं।

8. तलाश पूरी हुई (चंद्रधर मिश्र): बाघों से भरे नेशनल पार्कों में जीप व हाथी सफारी करने की इच्छा सबकी होती है। चंद्रधर जी इसी इच्छा को पूरा करने सपरिवार जिम कार्बेट नेशनल पार्क की ओर निकल गए और हमें भी सैर करा दी। वैसे मैं स्वयं कभी भी जिम कार्बेट नेशनल पार्क में नहीं गया हूँ।

9. तमिलनाडु के मंदिरों का सौंदर्य-वर्णन (जयश्री खमेसरा): जयश्री जी साउथ के मंदिरों की स्पेशलिस्ट हैं। जब हम पिछले साल कर्नाटक गए थे, तो बंगलौर में इनसे केवल इसीलिए मिले थे, ताकि साउथ के मंदिरों की खास बातें जान सकें। इन्होंने ही हमें साउथ और नॉर्थ के मंदिरों में अंतर बताया। मंदिरों के बाहर जो मूर्तियाँ होती हैं, उनके क्या अर्थ हैं; किन घटनाओं और कहानियों को बताती हैं; किस मंदिर में आर्किटेक्ट की दृष्टि से क्या विशेष है; सब इन्होंने बताया। किताब के लिए इन्होंने तमिलनाडु के तीन मंदिरों को चुना है। ये तीन मंदिर वे हैं, जहाँ उत्तर भारतीय पर्यटक न के बराबर जाते हैं - बृहीदीश्वर मंदिर, तंजावूर; बृहीदीश्वर मंदिर, गंगाईकोंडाचोलपुरम; ऐरावतेश्वर मंदिर, दारासुरम... ये तीनों मंदिर शायद विश्व विरासल स्थल भी हैं।

10. ट्रैकिंग पराशर झील की (तरुण गोयल): यह ट्रैकिंग कथा सर्दियों की है, जब उधर बर्फ पड़ी हुई थी। तरुण गोयल हिमाचल के स्पेशलिस्ट हैं और अपने लेखन को शुरू से अंत तक रोचक बनाए रखते हैं।

11. दो फरिश्ते : अनजान हमसफर (पंकज शर्मा): पंकज जी ने यह आर्टिकल बिना इनविटेशन के तब भेजा था, जब किताब लगभग पूरी हो चुकी थी और हमारा इरादा अब कोई भी लेख शामिल करने का नहीं था। इनका कहना था कि एक बार लेख पढ़ लो और उसके बाद भले ही किताब में शामिल मत करना। मैंने लेख पढ़ा और तुरंत मैसेज कर दिया - भाई, यह लेख छपेगा। लेख पूर्वोत्तर से संबंधित इनकी आपबीती है, जो पूर्वोत्तर के बारे में आपका भी नजरिया एकदम बदल देगा।

12. अपालाचियान ट्रैल (प्रवीण वाधवा): प्रवीण वाधवा जी अमेरिका में रहते हैं और यात्रा-वृत्तांत के साथ गप्पों का ऐसा मिश्रण बनाते हैं कि पढ़ने वाला इनका मुरीद हो जाता है। हमारे आग्रह पर इन्होंने अमेरिका में अपनी एक ट्रैकिंग कथा भेजी है।

13. इतिहास के वर्तमान में (ब्रजेश कुमार पांडेय): ब्रजेश जी एक ब्लॉगर हैं और सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय रहते हैं। एक बार मेरी निगाह इनके ब्लॉग पर पड़ी और इनकी बिहार यात्रा पूरी पढ़ डाली - वैशाली से पाटलिपुत्र और बैद्यनाथ धाम तक की यात्रा। जैसे ही मैंने इसे किताब में शामिल करने का आग्रह किया, इन्होंने यह आग्रह अविलंब मान लिया।

14. पश्चिमी उत्तर प्रदेश (राजीव उपाध्याय ‘यायावर’): राजीव जी सहारनपुर में रहते हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की संस्कृति और इतिहास के विशेषज्ञ हैं। हमारे आग्रह पर इन्होंने सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बागपत और बिजनौर जिलों के इतिहास की बात की है। 

15. मंगलू (विकास नारदा): विकास जी मस्ती-मस्ती में लिखने के लिए मशहूर हैं। मस्ती में वे अपने यात्रा-लेखों को खूब लंबा लिखते हैं और सभी लेख रोचक भी होते हैं। भाखड़ा डैम पार करके बाबा बालकनाथ के मेले में जाने की छोटी-सी घटना बाकी सभी के लिए बोरियत भरी हो सकती है, लेकिन विकास जी के लिए नहीं। यह इस किताब का सबसे लंबा लेख है और सबसे रोचक भी। ‘मंगलू’ क्या है, यह या तो विकास जी जानते हैं या किताब पढ़ने वाले जानते हैं।

किताब में 200 पेज हैं और बहुत सारे ब्लैक-व्हाइट फोटो के साथ 16 पेज रंगीन चित्रों के भी हैं और 15 चैप्टर हैं। इस किताब को हमने अपने प्रकाशन Travel King India Private Limiled से प्रकाशित किया है। चलो, लगे हाथों इस प्रकाशन की कथा भी बता दूँ।

नौकरी छोड़ने के बाद हमने एक नई कंपनी शुरू की - Travel King India Private Limited... उद्देश्य था कि यात्राओं से संबंधित ही कुछ करेंगे। उधर हमें अपनी किताबों के प्रकाशन के लिए हर बार किसी नए प्रकाशक से बात करनी पड़ती थी, जिसकी अपनी शर्तें होती थीं। यूँ तो हमने 2 किताबें बिना किसी प्रकाशक के भी प्रकाशित की थीं, लेकिन किताबों के भविष्य को देखते हुए प्रकाशक की आवश्यकता महसूस हो रही थी। इसलिए अपनी कंपनी को ही प्रकाशन के लिए भी रजिस्टर कराया और पहली किताब छपी - घुमक्कड़ी जिंदाबाद-2... 

हो सकता है कि आपमें से कोई मित्र अपनी किताब का प्रकाशन हमारे यहाँ से कराना चाहे, लेकिन हमारा इरादा प्रकाशन में जाने का नहीं है। हमने केवल अपनी किताबों के लिए यह प्रकाशन बनाया है। हाँ, प्रकाशन से संबंधित कोई सहायता चाहिए, तो इसके लिए हम हमेशा ही तैयार रहते हैं।

खैर, ‘घुमक्कड़ी जिंदाबाद-2’ छप चुकी है और आप इसे इस लिंक से खरीद सकते हैं। किताब अमेजन पर भी उपलब्ध है और किंडल पर ई-बुक के रूप में भी है। आपको जैसी सहूलियत हो, आप उसी के अनुसार खरीद सकते हो।

चलते-चलते ‘घुमक्कड़ी जिंदाबाद-3’ की भी कुछ बातें कर ली जाएँ। कायदे से तो यह किताब जनवरी 2021 में प्रकाशित होनी चाहिए, लेकिन ‘घुमक्कड़ी जिंदाबाद-2’ के अत्यधिक विलंब और वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए हमने यह निर्णय लिया है कि जनवरी 2021 की बजाय जनवरी 2022 में इसका प्रकाशन होगा। बाकी आप अपने विचार दीजिए। आप ही मित्रों की किताब है, आपका जैसा डिसीजन होगा, वैसा ही होगा।

Comments

  1. Awesome. Good read. Nice to see that you are making your dreams come true.👍

    ReplyDelete
  2. पहले तो आपको बहुत बहुत बधाई, और ढेर सारी शुभकामनाये आपकी नयी पुस्तक के लिए ..

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब