मैं अनगिनत बार जोधपुर जा चुका हूँ, लेकिन कभी भी यहाँ के दर्शनीय स्थल नहीं देखे। ज्यादातर बार अपनी ट्रेन-यात्राओं के सिलसिले में गया हूँ और एक बार दो साल पहले बाइक से। तब भी जोधपुर नहीं घूमे थे और एक रात रुककर आगे बाड़मेर की ओर निकल गए थे। इस बार भी हम जोधपुर नहीं घूमने वाले थे, लेकिन मित्रों के सुझाव पर जोधपुर लिस्ट में जोड़ा गया। यह यात्रा जैसलमेर और थार मरुस्थल की होने वाली थी, लेकिन सभी के लिए जोधपुर पहुँचना ज्यादा सरल है, इसलिए जोधपुर जोड़ना पड़ा - जोधपुर से शुरू और जोधपुर में खत्म। मैं भूल गया था कि हमारे सभी मित्र हमारे एक आग्रह पर कहीं भी पहुँच सकते हैं। मैंने सभी मित्रों को सुविधाभोगी समझ लिया था और मान लिया था कि अगर हम इस यात्रा को जोधपुर से जोधपुर तक रखेंगे, तो ज्यादा मित्र शामिल होंगे।
हम आजकल दो तरह की यात्राएँ करते हैं - अपनी निजी यात्राएँ और कॉमर्शियल यात्राएँ। यह यात्रा एक कॉमर्शियल यात्रा थी - 11 से 15 दिसंबर 2019... सभी को 11 की सुबह जोधपुर में एकत्र होना था, पूरे दिन जोधपुर के दर्शनीय स्थल देखने थे और रात जोधपुर में रुककर अगले दिन टैक्सी से जैसलमेर के लिए निकल जाना था। यात्रा के लिए 14 मित्रों ने रजिस्ट्रेशन कराया। हमें उम्मीद थी कि दिल्ली से भी कुछ मित्र जाएँगे और वे मंडोर एक्सप्रेस का प्रयोग करेंगे, इसलिए तय किया कि सुबह 8 बजे निर्धारित स्थान पर सभी एकत्र होंगे और आगे बढ़ेंगे।
लेकिन दिल्ली से कोई भी नहीं आया। कुछ लखनऊ से, कुछ रायबरेली से और कुछ मित्र इंदौर से आए। ये सभी एक दिन पहले ही अर्थात 10 को ही जोधपुर पहुँचने वाले थे। कुछ का आग्रह आज भी उसी होटल में ठहरने का था, जिसमें सभी लोग 11 को ठहरेंगे... और कुछ ने अपने ठहरने की व्यवस्था अपने-आप कहीं और कर ली।
सच बताऊँ तो मुझे यह यात्रा पसंद ही नहीं थी। हो सकता है कि आप मुझे बिजनेस करने के तमाम तरह के सुझाव दें... या समझाएँ कि मेरी पसंद-नापसंद कोई मायने नहीं रखती, बल्कि ‘ग्राहकों’ की पसंद-नापसंद मायने रखती है... या ग्राहकों को गधा मानकर पैसे ऐंठने की सलाह दें... या उनके लिए कम पैसों में अधिक सुविधाएँ जुटाने की सलाह दें... लेकिन मैं इनमें से एक भी सलाह नहीं मानने वाला हूँ। मैं सबको ‘मित्र’ कहना पसंद करता हूँ और अपनी ऐसी यात्राओं में परंपरागत तरीके से काम करना पसंद नहीं करता हूँ। मैं खुद लीक से हटकर यात्राएँ करता हूँ और लीक से हटकर ही यात्राएँ कराना चाहता हूँ।
लेकिन यह यात्रा उसी बनी-बनाई लीक की यात्रा थी... वन नाइट जोधपुर, टू नाइट्स जैसलमेर, वन नाइट सम, कैमल सफारी, सैंड ड्यून्स, फोक डांस, राजस्थानी कल्चरल प्रोग्राम, राजस्थानी फूड... ऐसा कह-कहकर हमें अपनी इस यात्रा का प्रचार करना पड़ा... ऐसा ही सभी करते हैं... हम ऐसा नहीं चाहते थे, लेकिन करना पड़ा।
हम आपको किराडू दिखाना चाहते थे... मुनाबाव का बॉर्डर दिखाना चाहते थे... म्याजलार दिखाना चाहते थे... खुड़ी और धनाना में रेत के विशाल और अनछुए धोरे दिखाना चाहते थे और आसूतार के रास्ते तनोट ले जाना चाहते थे... और दावे से कह रहा हूँ कि आप इस यात्रा को उम्र-भर याद रखते...
लेकिन इस बार हमने प्रयोग किया। पहली बार हिमालय से बाहर कोई कॉमर्शियल ट्रिप आयोजित की। इसमें जोधपुर और जैसलमेर जैसी प्रसिद्ध जगहों का तड़का लगाने की कोशिश की। सुविधाएँ भी बढ़ाईं... मल्टी-स्टार होटलों में रुकना हुआ और वातानुकूलित आरामदायक गाड़ी में आना-जाना हुआ। और इनके मुकाबले में पैसे काफी कम रखे। बुकिंग का रेस्पोंस मिला-जुला रहा, लेकिन मैं इन सबसे खुश नहीं था। कोई ऊर्जा थी, जो मेरे विरुद्ध थी और मेरा मन नहीं लगने दे रही थी।
10 दिसंबर की सुबह मैंने और दीप्ति ने सराय रोहिल्ला से सालासर एक्सप्रेस पकड़ी, जो शाम तक जोधपुर पहुँचा देती है। हमारी बर्थ S-1 डिब्बे में थी। इससे अगला डिब्बा SE-1 था, SE अर्थात Sleeper Extra... लेकिन SE-1 के यात्री S-1 में चढ़ जाते और आक्रामक होकर अपनी बर्थ माँगते। हालाँकि बाद में उन्हें मुँह लटकाकर अपने डिब्बे में जाते देखना बड़ा अच्छा लगता। पूरे दिन की रेलयात्रा में बड़ा मन लगा रहा और डीडवाना से जब रजत शर्मा भी आ चढ़ा, तो और मन लग गया।
लेकिन तभी...
“नीरज जी, आपने हमारी बुकिंग फलां होटल में बताई थी, लेकिन यहाँ तो हमारी बुकिंग है ही नहीं।” सुनते ही होश उड़ गए। सारे अच्छे कॉर्डिनेशन के बावजूद मैं यह जानकारी देना भूल गया था। आनन-फानन में उन्हें सही होटल का नाम-पता दिया। उन्होंने पता नहीं मुझे कितनी गालियाँ दी होंगी। अगर उनके पास विकल्प होता, तो शायद वे बुकिंग रद्द करके वन-स्टार दे देते।
कोई तो ऊर्जा थी, जो मेरे विरुद्ध थी और मेरा मन नहीं लगने दे रही थी। थोड़ी देर मेडीटेशन किया और समझ में आया कि मैं कुछ ज्यादा ही लोड ले रहा था। मैंने सुविधाएँ बढ़ाने पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया था और मुझे लग रहा था कि कहीं ‘ग्राहक’ नाराज न हो जाएँ। मैं भूल गया था कि मेरी रेसिपी पूरी-पकवानों में नहीं, बल्कि नमक की रोटी और गुड़-मट्ठे में है।
जोधपुर रेलवे स्टेशन के ओवरब्रिज पर खड़े होकर सूर्यास्त के बाद का आसमान अत्यधिक रोमांटिक लग रहा था। मैं और दीप्ति खड़े होकर इसे निहारने लगे। रजत भी पास आ खड़ा हुआ, तो उसे लतिया दिया - “तू परे हट... उधर खड़ा होकर देख... अकेला... ” उसकी अभी शादी नहीं हुई है।
लखनऊ से सुनील द्विवेदी जी अपने तीन मित्रों के साथ और विवेक गुप्ता जी अपनी पत्नी के साथ आ चुके थे और इसी होटल में ठहरे थे। इंदौर से श्री और श्रीमति विष्णु जी भी आ चुके थे और रेलवे रिटायरिंग रूम में ठहरे थे। लेकिन दिनेश जी के छह लोगों के ग्रुप को मरुधर एक्सप्रेस लेकर आ रही थी। अपनी आदत के अनुसार, यह ट्रेन छह घंटे लेट चल रही थी और आधी रात के काफी बाद यह जोधपुर पहुँचेगी... इन्होंने भी अपने ठहरने की व्यवस्था किसी अन्य होटल में कर रखी थी।
...
11 दिसंबर 2019...
हिमालय से बाहर हमारी पहली व्यावसायिक यात्रा... पहला दिन... सभी मित्र सुबह-सुबह ही इसी होटल में एकत्र हो चुके थे। हमें शहर घुमाने के लिए गाड़ी भी तैयार थी। मैं अभी भी उस अनजानी विरोधी ऊर्जा से भरा हुआ था। सबसे हाथ मिलाया, नमस्कार हुई, आँखों में झाँका... लेकिन मैं ऊर्जाहीन ही रहा। मैं इस यात्रा का आयोजक था... ग्रुप का लीडर था... मैं जल्दी से जल्दी इस यात्रा के समाप्त हो जाने की प्रार्थना कर रहा था... सबकी निगाहें मुझ पर थीं... और मैं सुबह-सुबह ही सबको इस विरोधी ऊर्जा के अलावा कुछ न दे सका...
लेकिन...
विष्णु जी ऊर्जा से लबालब थे... दोनों जने... ग्रुप के सबसे वरिष्ठ सदस्य... इनसे मुझे भी कुछ ऊर्जा मिली और मैंने आज के कार्यक्रम की रूपरेखा समझा दी। इन्हीं की ऊर्जा का नतीजा था कि यूट्यूब के लिए एक वीडियो बनाने की कोशिश की, लेकिन अब जब मैं एडिटिंग करने बैठा, तो मुझे इसमें प्राण ही नजर नहीं आ रहे।
जोधपुर में कुछ तो था, जो मेरे विरुद्ध काम कर रहा था। इसका प्रभाव पूरे ग्रुप पर पड़ रहा था और मुझे एक भी सदस्य आनंदित नजर नहीं आया।
“आज के बाद हमारी यात्राओं में जोधपुर नहीं होगा..." मैंने रजत से कहा... “हमारी यात्राएँ जोधपुर से शुरू नहीं होंगी... बल्कि जैसलमेर से शुरू होंगी, भले ही किसी को पहुँचने में कितने भी पापड़ बेलने पड़ें..."
तीन बजे तक जोधपुर ‘हो’ गया... आखिरी पॉइंट कायलाना लेक पर बस में बैठते समय एक मित्र ने कड़क शब्दों और कड़क आवाज में कहा... “नीरज जी, आज की यात्रा में मजा नहीं आया। आपको इस पर और ज्यादा होमवर्क करना पड़ेगा...” ये मित्र मुझे नहीं जानते थे। इनके ग्रुप के एक सदस्य ही मुझे जानते थे और उन्होंने अपने रिश्तेदारों को सपरिवार इस यात्रा में शामिल होने को कहा था...
...
और आपको विश्वास नहीं होगा... अगले दिन जैसलमेर पहुँचने पर शाम को इन्हीं मित्र के शब्द थे... ”नीरज जी, यात्रा को दो दिन हो चुके हैं... लेकिन अभी तक की यात्रा को ज्यादा अच्छी भी नहीं कहा जा सकता और ज्यादा खराब भी नहीं...”
और आपको इस बात का तो कतई विश्वास नहीं होगा, जब तीसरे दिन दोपहर को ही उन्होंने कहा... ”नीरज जी, आप सब्सक्रिप्शन ऑफर शुरू कर दो और हम आपका सब्सक्रिप्शन सबसे पहले लेंगे..."
आखिरी दिन शाम को जब हम सभी विदा हो रहे थे, तो वही मित्र बोले... "नीरज जी, हम स्पीति ट्रिप में आपके साथ चलेंगे... और भविष्य में सभी यात्राएँ आपके साथ ही किया करेंगे..."
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दोस्तों, जोधपुर भारत की शान है... भारत का गौरव है... मारवाड़ का इतिहास आज बच्चा-बच्चा जानता है... हमारी भी बड़ी इच्छा थी मेहरानगढ़ के इसी गौरवशाली किले को देखने की... लेकिन कोई तो बात थी, जो हमारा मन यहाँ नहीं लगने दे रही थी...
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नीरज भाई, जिसने आपके ब्लॉग नहीं पढ़े उनके लिए नीरज के व्यक्तित्व के आयामों को जानना नामुमकिन है। वास्तविक नीरज से मुलाकात करनी है तो ब्लॉग पर आना ही पड़ेगा। इसीलिए मैं किसी भी यात्रा का वीडियो देख लूँ, किताब में पढ़ लूँ या सोशल मीडिया के माध्यम से जानकारी ले लूँ, असली मजा ब्लॉग पर ही आता है। और अगर कोई साक्षात् साथ में यात्रा कर रहा है तो समझना चाहिए की उसके साथ एक इनसाइक्लोपीडिया है।
ReplyDeleteविरोधी उर्जा वही होगी। जिसे आप कई बार भूत प्रेत कहते या मानते हैं। उसने पीछा किया होगा। फिर उसे लगा होगा कि यह हमारा लंगोट भी छीन लेगा। फिर पीछा छोड़ दिया होगा। फोटो अच्छे हैं। ट्रेन के गैलरी वाला हरा भरा एरिया और नीला पीला रंग का कोच।
ReplyDeleteजोधपुर, कुल्लू की तरह है. जैसे, मनाली जाने वालों को कुल्लू तक फ़लाइट होने के कारण वहां जाना पड़ता है, जयपुर से जैसलमेर जाने वाले भी जोधपुर होकर जाते हैं. पथरीला शहर है. जोधपुर में एक किला ही है बस. दूसरे, पैलेस का कुछ भूला भटका हिस्सा लोगों के लिए अनमना सा खोल रक्खा है. मारवाड़ सियासत का सेंटर था. बाक़ी, लोगों की मर्जी है, वो जो चाहे देखें, जहां चाहें घूमें फिरें. यह बस एक ही दिन भर की जगह है.
ReplyDeleteमै भी अपने ग्रुप के साथ इस यात्रा मे शामिल था। यात्रा की शुरुआत मे नीरज जी असहज लग रहे थे। शायद पहली कमर्शियल यात्रा थी, कुछ लोग भी पहली बार सम्पर्क आये,यह भी हो सकता है, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीता सब आपस मे घुलमिल गये और यात्रा के मजे लेने लगे।जोधपुर मे सभी लोगो ने हिन्दुस्तान के गौरवशाली इतिहास को सन्जोये हुये किलो को देखा। इसके आगे की यात्रा बहुत यादगार थी। मस्त गाड़ी, शानदार वीरान सडक, आपस मे हसी-मजाक। इसके बारे मे नीरज जी ब्लॉग में खुद ही लिखेंगे। इस सफर को बहुत ही कम पैसे मे,लग्जरी ट्रिप बनाया। यात्रा मे कुछ लोग ऐसे भी थे जो इस प्रकार के टूर मे पहली बार शामिल हुए,मजे लिए। इसलिए नीरज जी अपने टेस्ट के साथ और लोगों को भी घुम्मकडी बनने की अन्दरुनी इच्छा पूरी हो सकती है,अपने ऊपर टेशंन न ले कर।
ReplyDeleteनीरज जी जोधपुर का किला तो भारत के सबसे शानदार किलो में आता हैं, फिर आप लोग कैसे बोर हो गए, रही बात जोधपुर नगर की, तो यंहा भी बहुत कुछ हैं देखने को, मंडोर गार्डन, जसवंत थडा, महरान गढ़, ओसिय मंदिर, कोइलाना झील, घंटा घर, , और फिर जोधपुर का खानपान, आखिर मारवाड़ की राजधानी हैं, कुछ तो सम्मान करो जोधपुर का...
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