यदि आपके मन में छत्तीसगढ़ और बस्तर का नाम सुनते ही डर समा जाता है और आप स्वयं, अपने बच्चों को और अपने मित्रों को बस्तर जाने से रोकते हैं, तो आप एक नंबर के डरपोक इंसान हैं और दुनिया की वास्तविकता को आप जानना नहीं चाहते। अपनी पूरी जिंदगी अपने घर में, अपने ऑफिस में और इन दोनों स्थानों को जोड़ने वाले रास्ते में ही बिता देना चाहते हैं।
जब-जब भी छत्तीसगढ़ का नाम आता है, नक्सलियों का जिक्र भी अनिवार्य रूप से होता है। और आप डर जाते हैं। मैं दाद देना चाहूँगा कंचन सिंह को कि वह नहीं डरी। वह अपने एक फेसबुक मित्र (मैं और दीप्ति) और एक उसके भी मित्र (सुनील पांडेय) के साथ बस्तर की यात्रा कर रही थी। उसके सभी (अ)शुभचिंतक डरे हुए होंगे और हो सकता है कि उसने सबको अपने छत्तीसगढ़ में होने की बात बता भी न रखी हो। वह अपनी इस यात्रा को हर पल खुलकर जी रही थी और आज जब तक हम सब सोकर उठे, तब तक वह दंतेवाड़ा शहर की बाहरी सड़क पर चार किलोमीटर पैदल टहलकर आ चुकी थी। उसने सड़क पर एक साँप देखा था, जो कंचन के होने का आभास मिलते ही भाग गया था।
दंतेवाड़ा से गीदम और बारसूर होते हुए हम जा रहे थे चित्रकोट जलप्रपात की तरफ। भारत के सबसे चौड़े जलप्रपात की तरफ। भारत के नियाग्रा कहे जाने वाले जलप्रपात की तरफ। बारसूर से चित्रकोट का यह रास्ता छोटी-छोटी पहाड़ियों से युक्त है और घने जंगल से होकर गुजरता है। एक समय यह क्षेत्र नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था, लेकिन आज ऐसा नहीं है। सुनील पांडेय जी चूँकि छत्तीसगढ़ के ही रहने वाले हैं, इसलिए नक्सल के बारे में हमसे ज्यादा जानते हैं। उन्होंने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आदिवासियों के बीच काम भी किया है। इस डरावने जंगल में वे अपने अनुभव सुना रहे थे कि किस तरह नक्सली उन्हें उठाकर ले गए थे और किस तरह समझाने के बाद उन्होंने उन्हें छोड़ा।
हल्की बूँदाबाँदी के बीच मोड-दर-मोड गुजरते रहे और हर मोड पर नए-नए नजारों का आनंद लेते रहे। तभी सामने कुछ फौजी दिखे। सी.आर.पी.एफ. के जवान। पैदल। फुल बुलेटप्रूफ वेशभूषा में। हथियारों से लैस। हमने कैमरे नीचे रख दिए। हम कभी भी फौजियों और उनकी रिहाइश के फोटो नहीं खींचते हैं। और आगे बढ़े तो और फौजी दिखे। उनकी गाड़ियाँ दिखीं। सुनसान सड़क पर बैठकर खाना खाते दिखे। हँसी-ठिठोली करते दिखे। हममें इन्हें अपने भाई दिखे, जो यहाँ नहीं आना चाहते, लेकिन देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी के लिए यहाँ आते हैं। कुछ सही-सलामत वापस चले जाते हैं, कुछ मरकर वापस जाते हैं, तो कुछ की एकाध हड्ड़ी या लोथड़ा ही वापस जाता है।
और हम... हम तो फेसबुकिया देशप्रेमी हैं, जिनके लिए छत्तीसगढ़ देश से ’बाहर’ की एक ऐसी जगह है, जहाँ जाते ही हमें मार दिया जाएगा।
दिमाग में अनगिनत खबरें कौंध उठीं, जो हम आए दिन देखते-पढ़ते रहते हैं... सुरक्षाबलों पर नक्सलियों का हमला... इतने सुरक्षाकर्मी शहीद। हमले हमेशा सुरक्षाबलों पर ही होते हैं, कभी कभार राजनेताओं पर भी... लेकिन आम जनता और यात्रियों पर कभी नहीं। हम यात्री थे, इसलिए सुरक्षित थे। लेकिन जब तक सुरक्षाबलों के बीच से निकलते रहे, तब तक असुरक्षित भी रहे। असुरक्षित इसलिए क्योंकि हमले हमेशा सुरक्षाबलों पर ही होते हैं और अगर उस समय जंगल में घात लगाए नक्सली हमला करते, तो हमें भी चपेट में आना पड़ता।
लेकिन सुनील जी ने एक घटना का जिक्र करके हमारा यह डर दूर कर दिया... कि एक बार उनकी गाड़ी को एक जगह नक्सलियों ने रोक लिया। कुछ और भी गाड़ियाँ रोक रखी थीं। कारण पूछने पर पता चला कि आगे कुछ ’बड़ा’ होने वाला है, इसलिए आम लोगों और यात्रियों को आगे जाने से रोक रखा है। अगले दिन अखबार से पता चला कि नक्सलियों ने वहाँ से कुछ ही दूर एक थाने पर हमला किया था और काफी क्षति पहुँचाई थी और कुछ पुलिसकर्मियों को शहीद भी किया था।
खैर, ये तो पुरानी बातें हैं, जो अब छत्तीसगढ़ के एक छोटे-से क्षेत्र में ही सिमटकर रह गई हैं। अब बस्तर के ज्यादातर हिस्से में नक्सलियों का कोई डर नहीं है। सुरक्षाबलों से कुछ किलोमीटर आगे निकलकर हम एक नदी के पास रुक गए और काफी समय व्यतीत किया। महसूस किया कि कैसा लगता है, बस्तर के जंगलों में। पक्षियों की चहचहाहट से महसूस करने की कोशिश की कि नक्सली अपने साथियों को कुछ संकेत भेज रहे हैं, जैसा फिल्मों में दिखाते हैं। खूब फोटो खींचे, खूब सेल्फियाँ लीं और आखिरकार मुख्य सड़क से उतरकर तामड़-घूमड़ जलप्रपात जाने वाले कच्चे रास्ते पर गाड़ी उतार दी, लेकिन आगे ज्यादा कीचड़ होने के कारण जलप्रपात तक नहीं जा सके। वापस मुख्य सड़क पर आ गए।
कुछ ही आगे मेंद्री घूमड़ जलप्रपात है। यह सड़क के एकदम बगल में है। कुछ ही कदम पैदल चलना पड़ता है। पानी काफी ऊँचाई से गिरता है और काफी दर्शनीय है।
और आखिर में पहुँच गए चित्रकोट जलप्रपात पर। इसकी तो जितनी प्रशंसा की जाए, कम है। यहाँ आकर तो हम नक्सल-वक्सल सब भूल गए। भूल गए कि हम भारत के सबसे ’डरावने’ माने जाने वाले प्रदेश में हैं।
इंद्रावती नदी। भयानक गर्जना। जिओ का शानदार नेटवर्क। फेसबुक पर लाइव चला दिया। सैंकड़ों मित्रों ने इसे देखा। सबने वाहवाही की। और मैंने सबको गालियाँ दीं। चुन-चुनकर। अपने घर, ऑफिस और इन दोनों स्थानों को जोड़ने वाले रास्ते पर अपनी पूरी जिंदगी स्वाहा कर देने वाले ये ही लोग हैं। ये ही लोग अपने बच्चों को भी यही जिंदगी जीना सिखाते हैं और अपने मित्रों को भी। फेसबुक पर कोई फोटो, वीडियो देखकर वाहवाही करने में एक मिनट भी नहीं लगती। जबकि हम एक महीने से चिल्ला रहे थे कि चलो छत्तीसगढ़। और आपको यकीन नहीं होगा... कि एक व्यक्ति ने भी... हमारे साथ चलने की बात भी नहीं की। मनाली और मसूरी में सबसे कम पैसों में ’सबसे अच्छे’ होटल का सुझाव माँगने वाले एक भी व्यक्ति ने रायपुर और जगदलपुर की बात भी नहीं की।
और कंचन ने फ्लाइट की टिकट बुक करने के बाद हमें बताया कि वह भी हमारे साथ इस यात्रा पर चलेगी।
इन गर्मियों में चित्रकोट जलप्रपात पूरी तरह सूख गया था। बताते हैं कि ऐसा पहली बार हुआ था। उधर ओड़िशा में इंद्रावती पर एक बाँध बना है। उसमें सारा पानी रोक लिया गया था। और आज मानसून में इसमें इतना पानी था... इतना पानी था... कि बताते हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है। सर्दियों में आओगे, तो टोकरे वाली नावों में बैठकर आप गिरते पानी के नीचे तक जा सकते हो।
चित्रकोट जलप्रपात के बाद हम पहुँचे तीरथगढ़ जलप्रपात। तीरथगढ़ जाते समय एक जगह का नाम आवश्यक रूप से लिया जाता है - झीरम घाटी का। यहाँ किसी जमाने में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को नक्सलियों ने मार दिया था। झीरम घाटी, तीरथगढ़ ये सब कांगेर घाटी नेशनल पार्क में स्थित हैं। इस नेशनल पार्क के एक बड़े हिस्से पर एक जमाने में नक्सलियों का कब्जा था, जबकि आज ऐसा नहीं है। आज कांगेर घाटी को भारत के प्राकृतिक आश्चर्यों में शुमार किया जा सकता है, क्योंकि यहाँ तीरथगढ़ जलप्रपात है और कुटुमसर समेत कई बड़ी गुफाएँ हैं। मानसून में गुफाओं में पानी भर जाने के कारण ये बंद हो जाती हैं, इसलिए इन्हें देखने के लिए सर्दियों में आना ठीक रहेगा, लेकिन जलप्रपातों का मौसम तो मानसून ही होता है।
जब भी मैं तीरथगढ़ जलप्रपात पर होता हूँ, तो मुझे यह चित्रकोट से भी शानदार लगता है। यह उतना चौड़ा तो नहीं है, लेकिन इसमें बहुत सारी ’वैरायटी’ हैं। आप जलप्रपात के नीचे तक जा सकते हो। नीचे उतरकर पता चलेगा कि आप एक दूसरे जलप्रपात के ऊपर खड़े हैं। दूसरे जलप्रपात के भी नीचे तक जाया जा सकता है और आप खुद को तीसरे जलप्रपात के ऊपर खड़ा पाएँगे। ये सभी जलप्रपात काफी ऊँचे हैं और मानसून में पानी की विशाल मात्रा इन्हें रोमांचक और डरावना बनाती है।
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अगले दिन वापस रायपुर लौट आए। कंचन ने वादा किया कि वह जल्द ही अरकू वैली जाएगी और उसने दिल्ली की फ्लाइट ले ली, जहाँ से वह ट्रेन से लखनऊ चली जाएगी और अपने घर पर रक्षाबंधन मनाएगी।
इधर हम सुनील पांडेय जी के घर पर कसडोल पहुँच गए और अगले कुछ दिनों तक वहीं पर रहे, जब तक कि रक्षाबंधन के ’रश’ के बाद कलिंग उत्कल एक्सप्रेस में दिल्ली तक की सीट नहीं मिल गई।
मानसून में बस्तर: दंतेवाड़ा, समलूर और बारसूर
हम भी गए थे पिछली बार, और जैसा कि आपने बताया डरने की कोई भी बात नहीं है ,और मजेदार बात तो यह है कि जब हम चार मित्र वहां गए थे भोपाल से तो रास्ते में पुलिस और सुरक्षा बल कहीं पर भी नहीं मिले और वीडियो देख कर कह सकता हूं कि पिछली बार का जलप्रपात शायद इससे भी बड़ा लग रहा था । हो सकता है।
ReplyDeleteचमत्कार है यह जलप्रपात।