आज भारत के मौसम की स्टडी करते हैं... भारत का काफी हिस्सा उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में आता है... यानी सूरज सीधा सिर के ऊपर चमकता है... गर्मी खूब होती है... गर्मी होने से हवाओं की डेंसिटी कम हो जाती है... जबकि हिंद महासागर में भूमध्य रेखा के दक्षिण में सर्दी पड़ने के कारण हवाओं की डेंसिटी ज्यादा रहती है... हिंद महासागर के धुर दक्षिण में अंटार्कटिका है और धुर उत्तर में भारत... यानी हिंद महासागर के दक्षिण में ज्यादा डेंसिटी वाली हवाएँ होती हैं और उत्तर में कम डेंसिटी की हवाएँ... तो जाहिर-सी बात है कि हवा ज्यादा डेंसिटी से कम डेंसिटी की ओर चलना शुरू कर देंगी...
अब होता ये है कि धरती के घूमने के कारण व अन्य कई कारणों से ये हवाएँ अफ्रीका को स्पर्श करती हुई उत्तर की ओर चलने लगती हैं... पूर्वी अफ्रीका में इन हवाओं की वजह से मार्च से ही बारिश होने लगती है... भूमध्य रेखा तक आते-आते ये ठंडी हवाएँ गर्म भी होने लगती हैं... चलते-चलते ये अरब सागर से होती हुई खाड़ी देशों से टकराती हैं और अपनी दिशा परिवर्तन करते हुए पूर्व की ओर बहने लगती हैं... ईरान, पाकिस्तान के दक्षिणी हिस्से से लगती हुए ये भारत के गुजरात राज्य के कच्छ में तेजी से प्रवेश करती हैं... खाड़ी देशों से कच्छ तक का सारा क्षेत्र मरुस्थल है और गर्मियों में अत्यधिक गर्म भी रहता है... ये हवाएँ भले ही समुद्र के ऊपर से आती हों, लेकिन इस गर्म मरुस्थल के ऊपर से गुजरने के कारण इनकी सारी नमी समाप्त हो जाती है और ये बारिश करने लायक नहीं बचतीं...
कच्छ से टकराने के बाद ये हवाएँ दो हिस्सों में बँट जाती हैं... एक हिस्सा पश्चिमी तट के साथ-साथ केरल तक जाता है और अरब सागर से नमी लेकर पश्चिमी घाट के पहाड़ों में थोड़ी-बहुत बारिश कर देता है... दूसरा हिस्सा कच्छ से राजस्थान में प्रवेश करता है और पूरे उत्तर भारत में पछुआ हवा बनकर लू के रूप में चलता है... कभी-कभार पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हो जाता है... पश्चिमी विक्षोभ साइबेरिया और यूरोप की तरफ से मध्य एशिया के रास्ते आने वाली ठंडी और नम हवाएँ होती हैं... ये हवाएँ वैसे तो सर्दियों में ज्यादा सक्रिय रहती हैं, लेकिन गर्मियों में भी कभी-कभार सक्रिय हो जाती हैं... तो जब भी पश्चिमी विक्षोभ भारत में प्रवेश करता है, तो हिमालय के पहाड़ों में बर्फबारी होती है और मैदानों में बारिश होती है... पिछले दिनों जो बारिश हुई थी, वह पश्चिमी विक्षोभ के कारण हुई थी... पश्चिमी विक्षोभ को मानसून का दुश्मन कहा जाता है, क्योंकि इससे उत्तर भारत में तापमान कम हो जाता है और हवाओं की डेंसिटी बढ़ जाती है, जिससे मानसून उत्तर भारत की ओर खिसकना कम कर देता है...
उधर सर्दियाँ समाप्त होते ही बंगाल की खाड़ी से भी हवाएँ उत्तर की ओर चलती हैं और पश्चिमी बंगाल व बांग्लादेश में प्रवेश करती हैं... इनके रास्ते में कोई रेगिस्तान नहीं पड़ता, इसलिए ये हवाएँ अपनी नमी नहीं खोतीं... फिर ये मेघालय और पूर्वोत्तर की पहाड़ियों से टकराती हैं, तो खूब बारिश करती हैं... यही कारण है कि पूर्वोत्तर में मार्च से ही बारिश का मौसम शुरू हो जाता है... वहाँ गर्मी का मौसम होता ही नहीं है... चार महीनों की सर्दियों के बाद सीधे आठ महीनों का बरसात का मौसम होता है... कभी-कभार ये हवाएँ हिमालय से टकराकर अपनी दिशा बदल लेती हैं और बिहार व यू.पी. में पूर्व से पश्चिम की ओर बहने लगती हैं... ये चूँकि नमी वाली हवाएँ होती हैं, इसलिए बरसने को बेचैन रहती हैं... ये बरसती भी हैं... लोगों को लू से राहत भी मिलती है, लेकिन ये हवाएँ गेहूँ की पकी फसल को बर्बाद भी करती हैं... इन हवाओं को ही पुरवाई कहते हैं...
तो पूरी गर्मियों इन सभी हवाओं यानी पछुआ, पश्चिमी विक्षोभ और पुरवाई का कोम्बीनेशन चलता रहता है... कभी लू चलती है और कभी एकाध दिन की राहत देने को बारिश भी पड़ जाती है... पंजाब से बंगाल तक का समतल विशाल मैदान इन सभी हवाओं का मुख्य गलियारा है... इस गलियारे में कोई अवरोध नहीं है, इसलिए बारी-बारी से सभी हवाएँ अपनी-अपनी ताकत के अनुसार इस क्षेत्र में चलती रहती हैं... मध्य भारत और प्रायद्वीपीय भारत कुछ ऊँचा है यानी पठार है और विंध्य, सतपुड़ा, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट आदि पहाड़ियों से भी घिरा है, इसलिए इस क्षेत्र में पुरवाई तो कतई नहीं चलती, पश्चिमी विक्षोभ भी यहाँ तक नहीं पहुँचता... इसलिए यह समूचा क्षेत्र पूरी गर्मियों तपता रहता है, तपता रहता है और मानसून की प्रतीक्षा करता रहता है... सूखे के लिए बदनाम विदर्भ इसी क्षेत्र में स्थित है...
हिंद महासागर की तरफ से हवाएँ चलने के बावजूद भी जब मई में गर्मी चरम पर पहुँच जाती है, तो एक समय ऐसा आता है, जब इन हवाओं की कुछ मात्रा अफ्रीका-अरब तट को छोड़कर सीधे दक्षिण भारत में प्रवेश करने लगती हैं... ये हवाएँ चूँकि अरब को टच करके नहीं आतीं, इसलिए इनमें पर्याप्त नमी रहती हैं और भारत के पश्चिमी घाट के पहाड़ों से टकराते ही जमकर बरसती हैं... यहाँ तक कि ये हवाएँ इन पहाड़ों को भी पार करके प्रायद्वीपीय भारत में भी बारिश करती हैं... इन्हें ही मानसून कहते हैं...
चूँकि हिंद महासागर से अरब की तरफ जाने वाली हवाएँ कमजोर हो जाती हैं, तो जाहिर-सी बात है कि कच्छ से भारत में प्रवेश करने वाली पछुआ हवाएँ भी कमजोर होने लगती हैं... पछुआ की कमजोरी का फायदा पुरवाई उठाती है, जो बंगाल की खाड़ी और पूर्वोत्तर भारत में मार्च से ही सक्रिय थी... यह पुरवाई पूरे मध्य व उत्तर भारत में बारिश करती है... तो मानसून में दो चीजें एक साथ होती हैं... पहली, हिंद महासागर और अरब सागर से नम हवाएँ दक्षिण भारत में टकराती हैं और खूब बारिश करती हैं... दूसरी, पछुआ कमजोर होने के कारण बंगाल की खाड़ी से चलने वाली नम हवाएँ पूर्वी, उत्तर, मध्य और पश्चिमी भारत में छा जाती हैं...
ये होता है मानसून, जिसकी पूरा देश कई महीनों से प्रतीक्षा कर रहा होता है... जैसे ही लू के थपेड़ों से झुलसे देश में मानसून की फुहारें पड़ती हैं, तो माहौल खुशनुमा हो जाता है... देश में जीवन का संचार हो जाता है... हर तरफ मेले और तीज-त्यौहार मनाए जाने लगते हैं... और देश सूखे से हरियाली में तब्दील हो जाता है... पर्यटन के लिहाज से भी मानसून ही सर्वोत्तम समय है देश घूमने का...
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आइए, अब आज (31 मई 2019) का मौसम पढ़ते हैं... यह नक्शा Windy.com नामक साइट का स्क्रीनशॉट है... इसमें हवाओं की स्पीड़ और दिशाओं के बारे में दिखाया गया है... जहाँ भी नीला रंग है, वहाँ जमीनी हवाओं की स्पीड़ न के बराबर है... जहाँ हरा रंग है, वहाँ हवाएँ चल रही हैं... और जहाँ नारंगी व लाल रंग है, वहाँ तेज हवाएँ चल रही हैं...
इस नक्शे में आपको ओमान से कराची और कच्छ तक हरे रंग की एक लहर दिख रही है... ये वही हवाएँ हैं, जो अफ्रीका में तो खूब बारिश करती हैं, लेकिन जैसे ही ये अरब देशों के संपर्क में आती हैं, एकदम शुष्क हो जाती हैं... फिर यही हवाएँ कच्छ से भारत में प्रवेश करके राजस्थान और उत्तर भारत की ओर पछुआ हवाओं के रूप में बढ़ जाती हैं... इन्हीं हवाओं की एक शाखा भारत के पश्चिमी तट के साथ-साथ चलती हुई केरल तक जाती है... इस नक्शे में कच्छ से राजस्थान और दिल्ली तक हरे रंग की लहर दिख रही है... यानी तेज पछुआ हवाएँ चल रही हैं... भारत के पश्चिमी तट के पास नीला रंग दिख रहा है... यानी इधर हवाएँ न के बराबर चल रही हैं... मुंबई से मंगलौर तक बिल्कुल भी हवा नहीं चल रही है... अगर आप कुछ दिन पहले देखते, तो गुजरात से केरल तक भी हरे रंग की लहर दिखाई देती... यानी हवाएँ चलती दिखतीं...
आपको हिंद महासागर में मालदीव से श्रीलंका तक एक और हरी लहर दिख रही है... असल में यही मानसून है... जो केरल से लगभग टकरा चुका है... इसने श्रीलंका को पूरी तरह अपने आगोश में ले रखा है... यानी पूरे श्रीलंका में इस समय बारिश हो रही है... ये हवाएँ अरब की तरफ से नहीं आ रही हैं, इसलिए इनमें खूब नमी है और किसी भी तट से टकराते ही ये बरसेंगी... अरब से भारत की तरफ आने वाली हवाएँ जितनी कमजोर होती जाएँगी, मानसून उतना ही उत्तर की ओर बढ़ता जाएगा...
बंगाल की खाड़ी में भारत के पूर्वी तट के साथ-साथ बांग्लादेश तक भी एक हरी लहर दिख रही है... ये हवाएँ असल में मार्च से ही चल रही हैं... इनमें भी खूब नमी है और ये पूर्वोत्तर में कई महीनों से बारिश भी कर रही हैं... मानसूनी हवा मिलने के बाद ये और ज्यादा सशक्त हो जाएँगी व और ज्यादा बारिश करेंगी...
बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में पुरवाई चल रही है... पछुआ और पुरवाई के बीच में पंजाब से प्रयागराग (इलाहाबाद) तक के क्षेत्र में हवा बिल्कुल नहीं चल रही है... इस समूचे क्षेत्र में इस समय भयानक गर्मी है और इस क्षेत्र के नागरिक अपनी फेसबुक पर इस भयानक गर्मी की पोस्टें डाल रहे हैं... लेकिन याद रखना, पछुआ कमजोर होती जा रही है और मानसून के कारण पुरवाई ताकतवर होती जा रही है, इसलिए जैसे-जैसे पुरवाई आगे बढ़ती रहेगी, मौसम खुशनुमा होता जाएगा...
अभी चूँकि मानसूनी हवाएँ केरल से टकराने ही वाली हैं, उसके बाद ये तेजी से बंगाल की खाड़ी और उत्तर भारत में आएँगी... तो फिलहाल उत्तर में जो पुरवाई चल रही है, उनसे बारिश तो हो सकती है, लेकिन वह मानसूनी बारिश नहीं है... इसे प्री-मानसून भी कहते हैं... प्री-मानसून की बारिश कई बार खतरनाक भी हो जाती है... कई महीनों से शुष्क धूलभरी पछुआ हवाओं के चलने के कारण वातावरण में पता नहीं कैसी-कैसी महीन धूल और गैसें जमा हो जाती हैं... प्री-मानसून की बारिश में ये सब पानी में घुलकर वापस जमीन पर आती हैं... इसलिए इस बारिश के पानी में अम्लीय या क्षारीय गुण भी होता है और त्वचा के लिए खतरनाक भी हो सकता है... इसलिए हमेशा पहली बारिश में भीगने से बचना चाहिए... हाँ, जब प्रोपर मानसून आ जाएगा, तब भीगा जा सकता है... और उसमें भीगना बनता भी है...
और हाँ, आखिर में ये भी बता दूँ कि 2013 में केदारनाथ समेत उत्तराखंड में जो त्रासदी आई थी, वह प्री-मानसून की बारिश थी...
बढ़िया जानकारी
ReplyDeleteNamaskar Neeraj Ji
ReplyDeleteplease bataye Gushaini mein acche hotel koon sa sahi rahega
बहुत बढ़िया जानकारी नीरज भाई, ये जानकारी मुझे अगर स्कूल में मिल गई होती तो निश्चित तौर पर मैं अपने सब्जेक्ट में टॉप कर लेता ! लेकिन आज की इस पोस्ट से काफी हद तक मानसून, पश्चिमी विक्षोभ और पुरवाई की जानकारी मिल गई ! एक बार फिर से धन्यवाद !
ReplyDeleteKnowledgeable post.
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