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दैनिक जागरण... 25 नवंबर 2018







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जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

शीतला माता जलप्रपात, जानापाव पहाडी और पातालपानी

शीतला माता जलप्रपात (विपिन गौड की फेसबुक से अनुमति सहित)    इन्दौर से जब महेश्वर जाते हैं तो रास्ते में मानपुर पडता है। यहां से एक रास्ता शीतला माता के लिये जाता है। यात्रा पर जाने से कुछ ही दिन पहले मैंने विपिन गौड की फेसबुक पर एक झरने का फोटो देखा था। लिखा था शीतला माता जलप्रपात, मानपुर। फोटो मुझे बहुत अच्छा लगा। खोजबीन की तो पता चल गया कि यह इन्दौर के पास है। कुछ ही दिन बाद हम भी उधर ही जाने वाले थे, तो यह जलप्रपात भी हमारी लिस्ट में शामिल हो गया।    मानपुर से शीतला माता का तीन किलोमीटर का रास्ता ज्यादातर अच्छा है। यह एक ग्रामीण सडक है जो बिल्कुल पतली सी है। सडक आखिर में समाप्त हो जाती है। एक दुकान है और कुछ सीढियां नीचे उतरती दिखती हैं। लंगूर आपका स्वागत करते हैं। हमारा तो स्वागत दो भैरवों ने किया- दो कुत्तों ने। बाइक रोकी नहीं और पूंछ हिलाते हुए ऐसे पास आ खडे हुए जैसे कितनी पुरानी दोस्ती हो। यह एक प्रसाद की दुकान थी और इसी के बराबर में पार्किंग वाला भी बैठा रहता है- दस रुपये शुल्क बाइक के। हेलमेट यहीं रख दिये और नीचे जाने लगे।

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।