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Showing posts from September, 2018

मेघालय यात्रा - डौकी में पारदर्शी पानी वाली नदी में नौकाविहार

8 फरवरी 2018 सबसे पहले पहुँचे उमगोट नदी के पुल पर। उमगोट नदी अपने पारदर्शी पानी के लिए प्रसिद्ध है। हम भी इसी के लालच में यहाँ आए थे, ताकि पारदर्शी पानी पर चलती नावों के फोटो ले सकें और बाद में अपने मित्रों में प्रचारित करें कि यहाँ नावें हवा में चलती हैं। “बोटिंग करनी है जी?” पुल के पास ही एक लड़के ने पूछा। “नहीं, लेकिन यह बताओ कि यहाँ होटल कहाँ हैं?” और कुछ ही देर में हम एक नाव में बैठे थे और उमगोट की धारा के विपरीत जा रहे थे। हमारा सारा सामान भी हमारे साथ ही था, सिवाय मोटरसाइकिल के। मोटरसाइकिल उस लड़के के घर पर खड़ी थी, जो यहाँ से थोड़ा ऊपर था। लड़के ने अपने घर से इशारा करके बताया था - “वो बांग्लादेश है।” “वो मतलब? कहाँ?” मुझे पता तो था कि सारा मैदानी इलाका बांग्लादेश है, लेकिन जमीन भारत से बांग्लादेश में कब बदल जाती है, यह देखने की उत्सुकता थी।

मेघालय यात्रा - जोवाई से डौकी की सड़क और क्रांग शुरी जलप्रपात

8 फरवरी 2018 जोवाई से डौकी जाने के लिए जिलाधिकारी कार्यालय के सामने से दाहिने मुड़ना था, लेकिन यहाँ बड़ी भीड़ थी। मेघालय में चुनावों की घोषणा हो चुकी थी और नामांकन आदि चल रहे थे। उसी के मद्‍देनजर शायद यहाँ भीड़ हो। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि हमें दाहिने डौकी की ओर जाता रास्ता नहीं दिखा और हम सीधे ही चलते रहे। हालाँकि भीड़ एकदम शांत थी और शोर-शराबा भी नहीं था। आगे निकलकर एक महिला से रास्ते की दिशा में इशारा करके पूछा - “डौकी?” उन्होंने अच्छी तरह नहीं सुना, लेकिन रुक गईं। मैंने फिर पूछा - “यह रास्ता डौकी जाता है?” “इधर डौकी नाम की कोई जगह नहीं है।” उन्होंने टूटी-फूटी हिंदी-अंग्रेजी में कहा। हमें नहीं पता था, ये लोग ‘डौकी’ को क्या कहते हैं। मैंने तो अंग्रेजी वर्तनी पढ़कर अपनी सुविधानुसार ‘डौकी’ उच्चारण करना शुरू कर दिया था। “डावकी?” “नहीं मालूम।” “डाकी?”, “डकी?”, “डेकी?”, “डूकी?”, “डबकी?” हर संभावित उच्चारण बोल डाला, लेकिन उन्हें समझ नहीं आया। आखिरकार गूगल मैप का सहारा लेना पड़ा। तब पता चला कि हम दूसरे रास्ते पर आ गए हैं।

मेघालय यात्रा - नरतियंग दुर्गा मंदिर और मोनोलिथ

8 फरवरी 2018 हम योजना बनाने में नहीं, बल्कि तैयारी करने में विश्वास करते हैं। इस यात्रा के लिए हमने खूब तैयारियाँ की थीं। चूँकि हमारी यह यात्रा मोटरसाइकिल से होने वाली थी, तो मेघालय में सड़कों की बहुत सारी जानकारियाँ हमने हासिल कर ली थीं। गूगल मैप हमारा प्रमुख हथियार था और मैं इसके प्रयोग में सिद्धहस्त था। भारत के प्रत्येक जिले की अपनी वेबसाइट है। इन वेबसाइटों पर उस जिले के कुछ उन स्थानों की जानकारी अवश्य होती है, जिन्हें पर्यटन स्थल कहा जा सकता है। मेघालय में शिलोंग और चेरापूंजी ही प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हैं। इनके आसपास सौ-पचास किलोमीटर के दायरे में भी कुछ स्थान लोकप्रिय होने लगे हैं। लेकिन मेघालय 350 किलोमीटर लंबाई और 100 किलोमीटर चौड़ाई में फैला है। इसमें 11 जिले भी हैं। सबसे पूरब में जयंतिया पहाड़ियों में दो जिले, बीच में खासी पहाड़ियों में चार जिले और पश्चिम में गारो पहाड़ियों में पाँच जिले हैं। आप अगर एक साधारण यात्री की तरह कुछ सीमित दिनों के लिए मेघालय या किसी भी राज्य में जा रहे हैं और लोकप्रिय पर्यटन स्थानों से हटकर कुछ देखना चाहते हैं, तो जिलों की वेबसाइटें आपको अ

मेघालय यात्रा - गुवाहाटी से जोवाई

6 फरवरी 2018 यानी पूर्वोत्तर से लौटने के ढाई महीने बाद ही हम फिर से पूर्वोत्तर जा रहे थे। मोटरसाइकिल वहीं खड़ी थी और तेजपाल जी पता नहीं उसे कितना चला रहे होंगे। हालाँकि हम चाहते थे कि वे इसे खूब चलाएँ, लेकिन हमें पता था कि ढाई महीनों में यह ढाई किलोमीटर भी नहीं चली होगी। मशीनें भी इंसानों की ही तरह होती हैं। काम नहीं होगा, तो आलसी हो जाएँगी और बाद में उनसे काम लेना मुश्किल हो जाएगा। कभी बैटरी का बहाना बनाएगी, तो कभी कुछ। इसलिए दीप्ति दो दिन पहले चली गई, ताकि अगर जरूरी हो तो वह बैटरी बदलवा ले या अगला पहिया बदलवा ले या सर्विस ही करा ले। दीप्ति ट्रेन से गई। ट्रेन चौबीस घंटे विलंब से गुवाहाटी पहुँची। इससे पहले दीप्ति ने कभी भी इतनी लंबी ट्रेन-यात्रा अकेले नहीं की थी। वह बोर हो गई। उधर 6 फरवरी को मैंने जेट एयरवेज की फ्लाइट पकड़ी। और जिस समय आसमान में मेरे सामने नाश्ता परोसा जा रहा था, मैं समझ गया कि यात्रा बहुत मजेदार होने वाली है।

ग्रुप यात्रा: नेलांग यात्रा और गंगोत्री भ्रमण

25 जून 2018 कल शाम की बात है... “देखो भाई जी, हमें कल सुबह नेलांग जाना है और वापसी में आप हमें गंगोत्री ड्रोप करोगे। पैसे कितने लगेंगे?” “सर जी, धराली से नेलांग का 4000 रुपये का रेट है।” “लेकिन उत्तरकाशी से उत्तरकाशी तो 3500 रुपये ही लगते हैं।” “नहीं सर जी, उत्तरकाशी से उत्तरकाशी 6000 रुपये लगते हैं।” “अच्छा?” “हाँ जी... और आपको गंगोत्री भी ड्रोप करना है, तो इसका मतलब है कि गाड़ी ज्यादा चलेगी। इसके और ज्यादा पैसे लगेंगे।” “अच्छा?” इस बार मैंने आँखें भी दिखाईं। “लेकिन... चलिए, कोई बात नहीं। मैं एडजस्ट कर लूंगा। आपको 4000 रुपये में ही नेलांग घुमाकर गंगोत्री छोड़ दूंगा।” “अच्छा?”

धराली सातताल ट्रैक, गुफा और झौपड़ी में बचा-कुचा भोजन

ये पराँठे बच गए हैं... इन्हें कौन खाएगा?... लाओ, मुझे दो... 24 जून 2018 कल किसी ने पूछा था - सुबह कितने बजे चलना है? अगर सुबह सवेरे पाँच बजे मौसम खराब हुआ, तो छह बजे तक निकल पड़ेंगे और अगर मौसम साफ हुआ, तो आराम से निकलेंगे। क्यों? ऐसा क्यों? क्योंकि सुबह मौसम खराब रहा, तो दोपहर से पहले ही बारिश होने के चांस हैं। ऊपर सातताल पर सिर ढकने के लिए कुछ भी नहीं है। तो इसीलिए आज मुझे भी पाँच बजे उठकर बाहर झाँकना पड़ा। मौसम साफ था, तो लंबी तानकर फिर सो गया। ... आप सभी ने पराँठे खा लिए ना? हमने ऊपर सातताल में झील किनारे बैठकर खाने को कुछ पराँठे पैक भी करा लिए हैं और स्वाद बनाने को छोटी-मोटी और भी चीजें रख ली हैं। अभी दस बजे हैं। धूप तेज निकली है। कोई भी आधी बाजू के कपड़े नहीं पहनेगा, अन्यथा धूप में हाथ जल जाएगा। संजय जी, आप बिटिया को फुल बाजू के कपड़े पहनाइए। क्या कहा? फुल बाजू के कपड़े नहीं हैं? तो तौलिया ले लीजिए और इसके कंधे पर डाल दीजिए। हाथ पर धूप नहीं पड़नी चाहिए। और अब सभी लोग आगे-आगे चलो। मैं पीछे रहूँगा। बहुत आगे मत निकल जाना। निकल जाओ, तो थोड़ी-थोड़ी देर में हमारी प्रतीक्षा करना। सभी साथ ही