मुझे नहीं पता कि आप गूगल मैप का कितना इस्तेमाल करते हैं, लेकिन मैं बहुत ज्यादा करता हूँ। मैं इस पर इतना आश्रित हूँ कि अगर मुझे किसी यात्रा में इसकी सहायता न मिले, तो आँखों के सामने अंधेरा छा जाता है और कुछ भी नहीं सूझता। लेकिन मैं यात्राओं के दौरान गूगल मैप का इस्तेमाल करने से ज्यादा यात्रा से पहले घर बैठकर इसका इस्तेमाल करता हूँ। तो इसमें क्या करता हूँ, वो सब आज आपको इत्मीनान से बताऊंगा। पता नहीं आपकी समझ में आयेगा भी या नहीं। आज की पोस्ट पूरी तरह टेक्निकल है। अगर कोई बात समझ न आये और आप उसे जानना चाहते हैं तो बेहिचक पूछ लेना।
पहले कुछ टॉपिक हैं, उन पर चर्चा कर लेते हैं:
गूगल मैप खोलिए - चाहे मोबाइल में या लैपटॉप-डेस्कटॉप पर। ऊपर कोने में तीन पड़ी लाइनों वाला एक आइकन दिखेगा। इस पर क्लिक कीजिए। इसमें कुछ विकल्प दिखेंगे:
1. सैटेलाइट: किसी भी स्थान का सैटेलाइट व्यू देखने के लिए इसका इस्तेमाल होता है। गूगल मैप समय-समय पर पूरी धरती के छोटे-छोटे टुकड़ों के फोटो लेता रहता है और वे फोटो ही हमें सैटेलाइट व्यू में दिखते हैं। ये आज के लेटेस्ट फोटो नहीं होते। बल्कि कई महीने पुराने और यहाँ तक कि साल - दो साल पुराने भी हो सकते हैं। ये फोटो कब लिये गये थे, गूगल मैप में इसका पता नहीं चलता, लेकिन गूगल अर्थ में इसे भी जाना जा सकता है। हम बात केवल गूगल मैप की कर रहे हैं, तो कहेंगे कि सैटेलाइट व्यू में जो भी दिखता है, वो पता नहीं कितना पुराना है। लेकिन उससे क्या? पुराना है तो क्या हुआ? सैटेलाइट व्यू भी बहुत काम आता है। आगे हम इसकी विस्तार से चर्चा करेंगे।
सैटेलाइट व्यू की एक खास बात और भी है। इसमें हम किसी स्थान को थ्री-डी में भी देख सकते हैं। पहले केवल ‘टॉप व्यू’ दिखता था, यानी पहाड़ों-घाटियों का अलग पता नहीं चलता था। या फिर अनुभवी आँखें ही इनका पता लगा सकती थीं। लेकिन अब आप थ्री-डी भी देख सकते हैं। थ्री-डी की यह सुविधा केवल लैपटॉप-डेस्कटॉप में ही है, मोबाइल में नहीं है।
2. टैरेन: इस मोड़ में कंटूर लाइनों और अन्य ग्राफिक्स का इस तरह इस्तेमाल किया जाता है कि आप ऊँची-नीची जगहों को आसानी से पहचान सकते हैं। कंटूर लाइनें ऊँचाई बताती हैं। कोई एक कंटूर लाइन जहाँ से भी गुजरती है, उन सभी स्थानों की ऊँचाई समान होगी। दो कंटूर लाइनें कभी भी एक-दूसरे को काटती नहीं हैं। अगर कंटूर लाइनें पास-पास हैं, तो समझिए कि वहाँ ढलान तेज है। और अगर दूर-दूर हैं तो ढलान कम है। समतल में बहुत दूर तक भी कंटूर लाइनें नहीं दिखतीं, लेकिन अगर कहीं 100 मीटर, 200 मीटर का खड़ा ढाल है तो ऐसा लगेगा कि सभी कंटूर लाइनें एक-दूसरे को छू रही हैं।
तो कंटूर लाइनें पढ़ना अपने आप में एक कला है। मैं पहाड़ों में घूमते हुए टैरेन मोड़ का हमेशा इस्तेमाल करता हूँ। विस्तार से चर्चा आगे करेंगे।
3. ट्रैफिक: यह किसी सड़क पर लाइव ट्रैफिक बताता है। मैं इसका बहुत बहुत ज्यादा इस्तेमाल करता हूँ और हमेशा यह सही मिला है। आप ‘ट्रैफिक’ पर क्लिक करेंगे तो सड़क का रंग बदल जायेगा। हरा रंग बतायेगा कि इस हिस्से में ट्रैफिक सामान्य गति से चल रहा है यानी कोई अवरोध नहीं है। अगर ट्रैफिक रुक-रुक कर चल रहा है तो यह नारंगी, सरक-सरक कर चल रहा है तो लाल और अगर ट्रैफिक बिल्कुल भी नहीं चल रहा है, तो डार्क ब्राउन यानी लगभग काले रंग की सड़क दिखेगी। याद रखना, इस मोड़ में किसी सड़क पर गाडियों की डेंसिटी पता नहीं चलती। भले ही बहुत सारी गाड़ियाँ हों, लेकिन फर्राटे से दौड़ रही हैं तो सड़क हरी दिखेगी। लेकिन अगर एक गाड़ी है और धीरे-धीरे चल रही है, तो सड़क लाल दिखेगी। यानी खाली सड़क भी आपको लाल दिख सकती है। फिर इस बात का फायदा क्या हुआ? आगे डिस्कस करेंगे। बस, यह समझ लीजिए कि अगर गूगल मैप में कोई सड़क आपको डार्क ब्राउन दिख रही है, तो आप जाम में फँसने जा रहे हो।
4. दो स्थानों के बीच की दूरी कैसे देखें: यह वो चीज है जिसमें ज्यादातर लोग धोखा खाते हैं और फिर गूगल को गाली देते हैं। अभी हाल ही में मैंने फेसबुक पर मित्रों से उनके अनुभव जानने चाहे, तो यही बात पता चली।
असल बात यह है कि गूगल मैप को नहीं पता कि आपके मन में क्या चल रहा है। आप वास्तव में जाना कहाँ चाहते हैं, गूगल नहीं जानता। आपको उसे ‘पिन पॉइंट’ लोकेशन बतानी पड़ेगी - अपनी भी और गंतव्य की भी। अन्यथा गूगल मैप अपनी मर्जी से लोकेशन ट्रेस करेगा और आपके सामने रख देगा। फिर आप भटकते रहना। आप सड़क के इस तरफ खड़े हैं और मैप को लगा कि दूसरी तरफ खड़े हैं, तो हो सकता है कि वह आपको 5-10 किलोमीटर का फालतू चक्कर कटवा दे। इसलिये यह आपकी जिम्मेदारी है कि गूगल मैप को कमांड देने से पहले स्वयं देखिए कि क्या वास्तव में सही कमांड दी है। आप ‘रोहित के घर’ जाना चाहते हैं, तो गूगल मैप आपको ‘रोहित के घर’ पहुँचा अवश्य देगा, लेकिन ज़रूरी नहीं कि उसी ‘रोहित के घर’ पर आप जाना चाहते थे। आप किसी ‘पार्क’ में जाना चाहते हैं या ‘हॉस्पिटल’ जाना चाहते हैं, या बिलासपुर, रामपुर जाना चाहते हैं, तो मैप आपको पहुँचा ज़रूर देगा, लेकिन ज़रूरी नहीं कि आपको वहीं जाना था। तो यह जानना, समझना, परखना आपकी ही जिम्मेदारी है।
मुझे अगर किसी मित्र के यहाँ जाना हो, तो मैं ‘लाइव लोकेशन’ का इस्तेमाल करूंगा। इसके बारे में जल्द ही बतायेंगे। लेकिन किसी वजह से अगर लाइव लोकेशन कामयाब नहीं हो रही हो तो मैं मित्र से उसके घर के आसपास कोई लैंडमार्क पूछूंगा। मान लो कि वो बतायेगा ‘गांधी चौक’। अब हर शहर में गांधी चौक होते हैं, तो हो सकता है कि मैप आपको दूसरे शहर वाले गांधी चौक भेज दे। इस बात को परखना आपकी जिम्मेदारी है।
दूसरी बात, जब आप एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने का रास्ता ढूंढ़ते हैं तो मैप दो-तीन विकल्प सुझाता है। लेकिन हाईलाइट केवल उसे ही करता है जिस पर उसके अनुसार सबसे कम समय लगेगा। तो ज़रूरी नहीं कि आप इसके सुझाये रास्ते से ही जायें। इसके बारे में हम इसी पोस्ट में आगे विस्तार से चर्चा करेंगे।
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चलिए, इमेजिन करते हैं कि हमारे पास कुछ दिनों की छुट्टियाँ हैं और हम मेघालय घूमना चाहते हैं। हमें जितना भी घूमना है, सब मोटरसाइकिल से ही घूमना है।
मेघालय जाना है, तो शिलोंग तो जाना ही पड़ेगा। अब गूगल मैप खोल लेते हैं और गुवाहाटी से शिलोंग की दूरी देखते हैं। फिलहाल हम डेस्कटॉप पर मैप देखेंगे। अगर आप मोबाइल पर देखना चाहते हैं, तब भी कोई बात नहीं। किन्हीं दो स्थानों के बीच की दूरी कैसे जाननी है, यह तो अब बताने की ज़रूरत नहीं। या है ज़रूरत?
तो गुवाहाटी से शिलोंग की दूरी मिली है 99.5 किलोमीटर। साथ ही गूगल मैप यह भी बता रहा है कि कार से 2 घंटे 28 मिनट लगेंगे। यानी आपकी कार 40 की स्पीड से चलेगी। अब एक सोचने वाली बात है कि गूगल को कैसे पता कि सड़क कैसी है। अगर सड़क खराब हुई तो ज्यादा समय भी लग सकता है। तो जी, बात ये है कि कुछ समय पहले तक हम और आप जैसे लोग ही गूगल मैप को अपडेट किया करते थे। तो कोई भी कुछ भी अपडेट कर देता था। जब सड़क अपडेट करनी होती थी तो उसमें हमें और आपको यह भी लिखना होता था कि इस सड़क पर कितनी स्पीड़ से गाड़ी चलायी जा सकती है। अब वो सब आप पर निर्भर करता था कि आप किसी ग्रामीण सड़क पर भी 100 की स्पीड़ अपडेट कर सकते थे और चकाचक फोरलेन पर 20 की स्पीड़ भी। तो गूगल मैप इसी स्पीड़ को आधार बनाकर समय बताता है। गूगल मैप को नहीं पता होता कि सड़क कैसी है और कितनी स्पीड़ पर गाड़ी चल सकती है। किसी ने दो साल पहले वो स्पीड़ अपडेट की और हो सकता है कि उसके बाद अपडेट की ही नहीं। हो सकता है कि सड़क और भी ज्यादा खराब हो गयी हो या और भी अच्छी बन गयी हो। तो हमेशा इस बात को भी ध्यान में रखना। गूगल मैप अगर बता रहा है कि गुवाहाटी से शिलोंग की 100 किलोमीटर की दूरी को तय करने में ढाई घंटे लगेंगे तो यह बात हमेशा सत्य नहीं होगी। मैदानी रास्ता होगा तो आप एक घंटे में भी पहुँच सकते हैं और अगर खराब पहाड़ी रास्ता हुआ, तो पाँच घंटे भी लग जायेंगे।
तो हमें यह तो पता चल गया कि गुवाहाटी से शिलोंग 100 किलोमीटर दूर है। इसे तय करने में ढाई घंटे लगेंगे, इसे मैं कभी नहीं देखूंगा क्योंकि मुझे पता है कि इस सिस्टम में क्या झोल है। तो मुझे गूगल मैप से ही पता लगाना होगा कि वर्तमान में सड़क कैसी है। अभी हम सैटेलाइट मोड़ नहीं देखेंगे। तो चलिए, गूगल मैप को सिंपल मोड़ से बदलकर टैरेन मोड़ में कर लेते हैं। अब पता चलेगा कि कहाँ समतल जमीन है और कहाँ पहाड़ी। इसका मतलब है कि गुवाहाटी से शिलोंग का ज्यादातर रास्ता पर्वतीय है। यानी सड़क पर मोड़ ज्यादा मिलेंगे। साथ ही मुझे अनुभव से यह भी पता चल रहा है कि उतनी घनी पहाड़ियाँ नहीं हैं। इसका मतलब है कि मोड़ ज्यादा तीखे नहीं होंगे।
तो हमें यह भी पता चल गया कि गुवाहाटी से शिलोंग तक पहाड़ी रास्ता है। अब यह भी जानना है कि रास्ता कैसा है।
जब आप किन्हीं दो स्थानों के बीच की दूरी देखते हैं तो सड़क नीले रंग की दिखती है। इसमें ‘लाइव ट्रैफिक’ भी इनक्लूड रहता है और नीले रंग का मतलब वही है, जो ‘लाइव ट्रैफिक’ में हरे रंग का। यानी ट्रैफिक स्मूथ चल रहा है। कभी-कभी इसमें लाल रंग के पैच भी आ जाते हैं, जिसका मतलब है कि आपके द्वारा देखी गयी दूरी में उतनी दूरी तक ट्रैफिक ठीक नहीं है।”
फिलहाल हमने गुवाहाटी से शिलोंग की दूरी देखी है, वह नीली है। इसका मतलब है कि वर्तमान में इस 100 किलोमीटर पर बहुत स्मूथ ट्रैफिक चल रहा है। इसका यह भी मतलब है कि सड़क अच्छी है।
अब नीचे फोटो को गौर से देखिए। यह इसी सड़क का एक छोटा-सा हिस्सा है। बाकी सड़क तो नीली दिख रही है और एक घुमाव नारंगी रंग में दिख रहा है। इसका क्या मतलब है? क्या इस मोड़ पर जाम लगा है? जी नहीं, यह मोड़ इतना तीखा है कि यहाँ पर सभी गाड़ियाँ अपनी स्पीड़ कम कर लेती हैं। और उसी के आधार पर गूगल मैप बता रहा है कि यहाँ ट्रैफिक कुछ स्लो है।
अगर किसी सड़क पर एक ही गाड़ी है और वो किसी खास जगह पर धीरे हो जाती है, तो गूगल मैप के ‘ट्रैफिक’ में सड़क का वो हिस्सा लाल हो जायेगा। वह गाड़ी किसी मोड़ की वजह से भी धीरे हो सकती है और खराब सड़क की वजह से भी। तो लाल सड़क का एक अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि उस हिस्से में सड़क खराब है। बाकी आपकी कॉमनसेंस है।
तो हमें पता चल गया कि गुवाहाटी से शिलोंग की दूरी 100 किलोमीटर है, रास्ता पहाड़ी है और सड़क अच्छी है।
अब एक काम और करके देखते हैं। इस सड़क के किसी भी हिस्से को जूम करके सैटेलाइट से देखते हैं। याद रखना कि सैटेलाइट इमेज कुछ महीने पुरानी होती है। तो जो सैटेलाइट इमेज में दिखता है, वह भी कुछ महीने पुराना ही होता है। नीचे फोटो में इसी सड़क के एक हिस्से की सैटेलाइट इमेज है। इससे क्या पता चल रहा है?
जनाब, इससे पता चल रहा है कि सड़क फोर लेन है और इसके बीच में डिवाइडर भी है। चलिए, थोड़ा और ज़ूम करते हैं।
सड़क की सफेद पट्टियाँ भी दिख रही हैं और पूरी सड़क काली दिख रही है। इसका मतलब है कि जब भी फोटो लिया गया था, तो सड़क शानदार थी। और आज अभी लाइव ट्रैफिक बता रहा है कि ट्रैफिक स्मूथ चल रहा है, तो यह मानने में कोई हर्ज़ नहीं है कि आज भी यह सड़क शानदार ही है।
तो इतनी कवायद करने के बाद हमें घर बैठे ही पता चल गया कि गुवाहाटी से शिलोंग की दूरी 100 किलोमीटर है, रास्ता पहाड़ी है, बहुत तेज घुमाव नहीं है, सड़क फोरलेन है और शानदार बनी है। गूगल भले ही ढाई घंटे बता रहा हो, लेकिन हम इसे दो घंटे से भी कम से तय कर सकते हैं।
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एक उदाहरण और दे रहा हूँ। नीचे फोटो देखिए:
यह मोदीनगर का नक्शा है। ऊपर की सड़क मेरठ की ओर जा रही है और नीचे वाली दिल्ली की तरफ। फिलहाल (रविवार, 4 मार्च 2018, दोपहर ढाई बजे) यहाँ दिल्ली जाने वाली लेन पर बुरी तरह जाम लगा है, जबकि मेरठ जाने वाली लेन पर ठीक ट्रैफिक चल रहा है।
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यह तो हुई एक नेशनल हाईवे की बात, जो दो राजधानियों को जोड़ता है। अब हमें जाना है कहीं दूर-दराज में। हमारी यात्राएँ हमेशा ही दूर-दराज में होती हैं। और हम गूगल मैप के भरोसे ही योजना बनाते हैं। पहले घर पर बैठकर जमकर अध्ययन करना पड़ता है, फिर योजना को अमली-जामा पहनाया जाता है। (यह ‘अमली-जामा’ क्या होता है और इसे कौन पहनाता है, कैसे पहनाता है, किसे पहनाता है; यह मत पूछ लेना)
तो बनते-बनते हमारी योजना बनी कि मेघालय यात्रा में हम पहले जोवाई जायेंगे और फिर वहाँ से डौकी। आप अगर कभी डौकी गये होंगे तो मुझे पूरा यकीन है कि शिलोंग-डौकी मार्ग से ही गये होंगे, जोवाई-डौकी मार्ग से नहीं गये होंगे। शिलोंग-डौकी सड़क का ऊपर बतायी विधि से स्टेटस देखा, शानदार सड़क मिली। लेकिन जोवाई-डौकी सड़क कैसी होगी? ऊपर बतायी विधि से तो इसे भी शानदार ही बताया जा रहा है, लेकिन इसके साथ एक प्लस पॉइंट भी जुड़ा है। वो यह कि इस पर शिलोंग वाली सड़क के मुकाबले बहुत कम ट्रैफिक मिलेगा। सड़कें ज्यादातर अधिक ट्रैफिक के कारण खराब होती हैं। ट्रैफिक नहीं है, तो सड़कें अमूमन खराब नहीं होतीं। सैटेलाइट मोड़ में जोवाई वाली सड़क अच्छी दिख रही है, तो इसका मतलब है कि कुछ महीने पहले यह अच्छी थी। लेकिन ट्रैफिक नहीं है, तो आज भी अच्छी ही मिलेगी।
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अब जब हम और ज्यादा खोजबीन कर रहे थे, तो एक झरने का पता चला - मूपुन वाटरफाल (Moopun Falls)। यह गूगल मैप पर मिल भी गया, लेकिन पता चला कि नज़दीकी सड़क से यह दूर है और काफी पैदल चलना पड़ेगा। कितना पैदल चलना पड़ेगा? गूगल मैप में एक सुविधा है - Measure Distance. लैपटॉप में आप किसी स्थान पर राइट क्लिक करेंगे तो यह विकल्प मिल जायेगा और मोबाइल में किसी स्थान पर कुछ देर तक अंगूठा लगाये रखिए, तो यह विकल्प मिल जायेगा। यह विकल्प रास्ता नहीं बताता, बल्कि किन्हीं दो बिंदुओं के बीच की सीधी दूरी बताता है। तो हमने मूपुन वाटरफाल और नज़दीकी सड़क की सीधी दूरी देखी, तो यह 2.37 किलोमीटर मिली। यानी अगर हम उस स्थान पर बाइक खड़ी कर दें और वाटरफाल तक पैदल जायें तो नाक की सीध में कम से कम 2,37 किलोमीटर चलना पड़ेगा। लेकिन पैदल रास्ते हमेशा नाक की सीध में तो होते नहीं। यानी वास्तविक दूरी लगभग 3 किलोमीटर होगी।
हमें 3 किलोमीटर चलने में कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन जिस स्थान पर हम बाइक खड़ी करेंगे, वहाँ न तो कोई गाँव था और न ही कोई दुकान। ऊपर से जीरो टूरिज्म। हमारा सारा सामान बाइक पर ही बंधा रहेगा। इसलिये सामान चोरी होने का भी डर था।
लेकिन यह क्या! नीचे इसी का सैटेलाइट व्यू देखिए।
झरने के एकदम नज़दीक यह क्या है? क्या यह सड़क है? चलिए, ज़ूम करके देखते हैं।
अरे वाह! ये तो मज़े आ गये। यह तो सड़क है। और सड़क का रंग बता रहा है कि पक्की सड़क है। हालाँकि यह कुछ महीने पुराना फोटो है, लेकिन जो सड़क गूगल मैप में भी नहीं है, वो निहायत ही ग्रामीण सड़क है। और उस पर बिल्कुल भी ट्रैफिक नहीं मिलेगा। ट्रैफिक नहीं मिलेगा, तो सड़क खराब भी नहीं हुई होगी। और अगर खराब भी हो गयी होगी, तब भी बाइक तो चली ही जायेगी। यहाँ एक गाँव भी है, जहाँ आसानी से बाइक खड़ी की जा सकती है और सड़क से झरने की पैदल दूरी है - केवल 255 मीटर।
लेकिन एक समस्या अब भी आयेगी। हम अगर गूगल को ही सर्वज्ञ मानकर इसके ही भरोसे बैठे रहें, तब तो हमारा काम कभी नहीं होगा। जो सड़क गूगल मैप पर भी नहीं है और केवल सैटेलाइट व्यू में ही नज़र आ रही है, उस सड़क तक पहुँचेंगे कैसे? आज हम दिल्ली में बैठकर अच्छे नेट के इस्तेमाल से ये सारी जानकारियाँ हासिल कर रहे हैं, लेकिन जब हम मेघालय के उस सुदूर इलाके में जायेंगे, तो कौन जानता है कि नेटवर्क हो या न हो? यह सड़क किसी नेशनल हाईवे से, किसी स्टेट हाईवे से या गूगल मैप में दिखने वाली किसी अन्य सड़क से कहाँ से अलग होती है? ताकि हम गूगल मैप में दिखने वाली सड़क को छोड़कर मैप में न दिखने वाली इस सड़क पर आ जाएँ।
इसके लिये सैटेलाइट मोड़ का ही सहारा लिया। सड़क के पश्चिम में चलना शुरू किया और कुछ ही आगे जाने पर पाया कि आखिरकार यह एक तिराहे पर समाप्त हो जाती है और इससे आगे दो कच्चे रास्ते चले जाते हैं। उन कच्चे रास्तों को देखा तो पता चला कि कुछ दूर चलकर वे भी पूरी तरह खत्म हो जाते हैं।
इसका मतलब पश्चिम में यह सड़क किसी अन्य सड़क से नहीं मिल रही। तो हमें इसका उदगम पूर्व में देखना पड़ेगा। और देखते-देखते हम पहुँच जाते हैं जोवाई और खिलेरियाट के बीच में एन.एच. 6 पर, जहाँ से हमारी यह सड़क अलग होती है। इसके कोर्डिनेट (25.416826, 92.287393) नोट कर लिये और मोबाइल मैप में सेव भी कर लिये।
हम खराब से खराब परिस्थिति की कल्पना करते हैं - नेटवर्क बिल्कुल नहीं होगा, इस सड़क पर कोई सूचना-पट्ट भी नहीं लगा होगा और रास्ता पूछने के लिए कोई इंसान भी नहीं मिलेगा। हम जोवाई की तरफ से आयेंगे, तो जोवाई से इसकी दूरी भी देख ली। यह पूरे 20 किलोमीटर मिली। यानी जोवाई से खिलेरियाट की तरफ चलने पर 20 किलोमीटर बाद हमें दाहिनी तरफ जाती एक सड़क मिलेगी, जो गूगल मैप पर नहीं है।
लेकिन गूगल मैप द्वारा बतायी गयी दूरी में और मोटरसाइकिल द्वारा बतायी गयी दूरी में फ़र्क भी तो हो सकता है। यह फ़र्क 20 किलोमीटर में 1 किलोमीटर तक का भी हो सकता है। हो सकता है कि इस तिराहे से एक किलोमीटर पहले ही हमारी मोटरसाइकिल बता दे कि हो गये 20 किलोमीटर और अब इस नेशनल हाईवे को छोड़कर दाहिने मुड़ जाओ। हो सकता है कि एक किलोमीटर पहले भी दाहिने जाती कोई कच्ची या पक्की सड़क हो। ज़ाहिर है कि वह सड़क हमें हमारे लक्ष्य पर नहीं पहुँचायेगी। हो सकता है कि उस सड़क पर चलने की वजह से हम किसी मुसीबत में फँस जाएँ।
तो इस बात का पता कैसे लगायेंगे? हमारे पास न नेट है, न नेटवर्क है, न कोई रास्ता बताने वाला है, न ही कोई साइनबोर्ड है। “गूगल ने कहा था कि 20 किलोमीटर बाद दाहिने मुड़ जाना।” तो क्या हम दाहिने मुड़ जाएँ? 20 किलोमीटर तो हम आ ही चुके हैं, इस बात में कोई शक नहीं। और अगर हम इस गलत सड़क पर चलकर किसी मुसीबत में फँसते हैं, या नहीं भी फँसते हैं; तो वापस लौटकर हम कहेंगे - “गूगल ने हमें गलत रास्ता बता दिया।”
अब काम आता है जी.पी.एस.। बहुत-से मित्र जी.पी.एस. और गूगल मैप को एक ही मानते हैं, लेकिन गाँठ बांध लीजिए कि ये दोनों अलग-अलग हैं और इनका आपस में कोई भी संबंध नहीं है। गूगल मैप के बिना भी जी.पी.एस. चल सकता है और जी.पी.एस. के बिना गूगल मैप भी। हाँ, हम जब दोनों के इस्तेमाल से अपना काम निकालते हैं तो बेहद शानदार परिणाम आते हैं। प्रत्येक स्मार्टफोन में जी.पी.एस. होता है। जब हम घर पर बैठकर मोबाइल में गूगल मैप खोलते हैं, तो यह मोबाइल में सेव हो जाता है और तब तक सेव रहता है, जब तक कि हम इसे डिलीट न करें। यानी अगर हमने जोवाई, खिलेरियाट और मूपुन वाटरफाल को दिल्ली में मोबाइल में देखा है, तो यह तब भी खोला जा सकेगा, जब हमारे पास नेटवर्क नहीं होगा। या फिर हम अलग से ‘ऑफलाइन मैप’ भी डाउनलोड कर सकते हैं। उस मोड़ के कोर्डिनेट हमने पहले ही नोट करके रख लिये थे। अब हम जी.पी.एस. ऑन करके मैप पर अपनी लोकेशन देखेंगे, तो आसानी से पता चल जायेगा कि उस दाहिने जाने वाली सड़क से अभी हम कितना दूर हैं।
जी.पी.एस. और अपनी लाइव लोकेशन स्वयं एक बड़ा विषय है। इसके बारे में अगली बार चर्चा करेंगे।
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अभी हाल ही में हमने फेसबुक पर मित्रों से गूगल मैप से संबंधित अनुभव जानने चाहे। मिले-जुले अनुभव मिले, लेकिन यह स्पष्ट हुआ कि बहुत सारे मित्रों को गूगल मैप की जानकारी नहीं है और न ही यह पता कि इसका सही इस्तेमाल कैसे करें। तो कुछ मित्रों के अनुभव यहाँ भी साझा कर देते हैं:
1. नवीन प्रकाश जी कहते हैं: “शहरों और हाईवे के लिए ही ज्यादा कारगर है। छोटे शहरों और कस्बो में बिल्कुल ही अलग रास्तों पर भटका देता है। कुछ दिन पहले भवानीपटना में 10 किमी खेतो में भटकाया था गूगल मैप ने। इस पर पूरी निर्भरता ठीक नही। फिर भी उपयोगी तो बहुत है, बेहतर होता जा रहा है। गाँवों-कस्बो के नाम पर अभी बहुत सुधार होना बाकी है।
हम फ़िल्म देखने गए थे। बस अड्डे पहुँच कर गूगल मैप से रास्ता पूछा तो उन्होंने घुमाकर ऐसी जगह पटका जहाँ रास्ता था ही नही। फिर ऐसी जगह से सड़क और सीधा रास्ता बताते रहे जो खेतों से होकर जाता था और एक छोटी पहाड़ी पर खत्म। कच्चे रास्ते और खेतों से परेशान होकर आखिर वापस लौटे और लोगों से रास्ता पूछा। बस सीधे रास्ते में 2 किमी दूर था। वहाँ पहुँचकर वापसी का रास्ता बिल्कुल सटीक था गूगल मैप में। फिर भी पूछते बताते ही वापस लौटे।”
2. राहुल गोस्वामी जी कहते हैं: “शहरों में काफी उपयोगी। यात्रा के माध्यम में बाइक जोड़ने के बाद काफी बेहतर जानकारी देता है।
अपने शहर में कभी जरुरत नहीं पड़ी।
जागेश्वर में एक बार चक्कर लगवा दिए थे। ना-मौजूद रास्ते को दिखाता रहा। 19-20 का अंतर होता तो चलता, पर बिलकुल ही बे-सिर-पैर का रास्ता दिखाया था।”
3. ओम राजपूत जी ने बताया: “यह बात थोड़े दिन पहले की है। मै अपनी बहन के घर गया था। यह उसने मुझे कहा कि राम(भांजा) को इंजेक्शन लगवाना है। गवर्मेंट हॉस्पिटल चल। वो थोड़ी दूर था। हालाँकि हॉस्पिटल कहाँ है यह उसको भी नहीं पता था। और मैंने कहा मैं देख लूंगा। तो चल, गूगल मैप लोकेशन डाली - नियर गवर्मेंट हॉस्पिटल और गाड़ी चल पड़ी मंज़िल पर। बाज़ार की तंग गलियों से गुजर कर हम पता नहीं कहाँ गाँव से बाहर पहुँच गये। और वहाँ जाकर एक अम्मा से पूछा, तो उन्होंने कहा लला, तुम गलत आ गये। सरकारी अस्पताल तो बाज़ार के बाहर ही है।
फिर गूगल को गालियाँ। कई लोगों से पूछ-पूछकर पहुँचा। तब तक हॉस्पिटल बंद।”
4. अमन शौकीन जी की शिकायत है: “गूगल मैप एक अच्छा ऑप्शन हैं, लेकिन कभी-कभी गूगल को भी गलती लग जाती है, क्योंकि सरकार रोज़ाना सड़क खुदाई करती है और गूगल के पास डेली की अपडेट नहीं होती, तो गूगल अपडेट वाले रोड़ दिखाता है। अब गूगल को तो नहीं पता होता कि आज रात रोड़ ठीक है और सुबह सरकार उसको खोदना स्टार्ट कर रही है।
गूगल इतनी बड़ी कंपनी होने के बाद भी अगर अपडेट ठीक नहीं करे तो क्या गलती हमारी ही होगी?
5. आशीष शर्मा जी ने कहा: “नोएडा में एक बार मुझे नेविगेशन ने ऐसे डायरेक्शन दिये कि एक्सप्रेस-वे पर चढ़ा दिया। और वहाँ से वापस आना बहुत रिस्की हुआ। रोंग साइड़ आना पड़ा। चालान का डर, कोई यू-टर्न नही था। ऐसा ही सिरसी जाते वक्त जयपुर में हुआ, 30 किलोमीटर का एक्स्ट्रा चक्कर। फ्लाईओवर के बगल से जाना था और नेविगेशन ने ऊपर चढ़ा दिया। फ्लाईओवर पर जहाँ बगल में एक और सड़क हो, तो नेवीगेशन पर कम विश्वास करना चाहिए।
जोधपुर में एक बार पैदल का नेवीगेशन यूज कर रहा था। ऐसी गली से निकाला, जिसका अंत मेन रोड़ पर था। लेकिन 15 फ़ीट ऊपर से नीचे कैसे जाया जाए? कूद तो सकते नही। और हाँ, फ्लाईओवर्स पर हमेशा नेवीगेशन कन्फ्यूज करता है। फ्लाईओवर्स के नीचे से गुजरते वक्त सावधानी बरतें।”
6. विकास तिवाडी जी ने कहा: “गूगल मैप पर नेवीगेशन का एरो नेटवर्क पर डिपेंड है। स्टार्ट के बाद यदि नेटवर्क और आपकी स्पीड़ में जरा भी अंतर रहा तो कहाँ पहुँच जाओगे, यह आपको भी पता नही चलेगा।”
7. और इन सबसे दो कदम आगे बढ़कर प्रभु आहिर जी कहते हैं: “कल ही गूगल मैप के दिखाये रास्ते पर दो युवाओं को मौत मिली।”
इनके अलावा बहुत सारे मित्रों ने अपने शानदार अनुभव भी बताये।
तो एक बात पक्की है कि बहुत सारे लोगों को गूगल मैप इस्तेमाल करना नहीं आता। मुख्य समस्या यह आती है कि हमें जाना कहीं और था और मैप ने कहीं और पहुँचा दिया।
तो चलिए, इसी से संबंधित अपना एक अनुभव और सुना देता हूँ:
अभी पिछले दिनों जब हम मोटरसाइकिल से गुवाहाटी से दिल्ली लौट रहे थे तो शाहजहाँपुर में नीरज पांडेय जी से भी मिलना था। रोजा फ्लाईओवर के पास रुककर उन्हें फोन किया तो उन्होंने बताया - “सीधे बाईपास पर आओ और इतने किलोमीटर बाद हुंडई के शोरूम के सामने पहुँचकर फोन करना।”
अब मैंने गूगल मैप खोला और टाइप किया - Hyundai Showroom. एक शोरूम मिल गया। अगर आप होते, तो सीधे उसकी ओर दौड़ लगा देते और कुछ ही देर में कहते - “गूगल मैप ने हमें शाहजहाँपुर की तंग, भीड़ भरी गलियों में कई किलोमीटर भटकाया।” वह शोरूम शाहजहाँपुर रेलवे स्टेशन के पास स्थित था। रेलवे स्टेशन यानी शहर के बीचोंबीच। लेकिन पांडेय जी ने बताया था कि शोरूम बाईपास पर है। तो हम मैप के सुझाये अनुसार शहर के भीतर नहीं गये। बाईपास पर ही चलते रहे और कुछ ही देर में पांडेय जी के साथ हांडी पनीर खा रहे थे।
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तो आज की पोस्ट से क्या निष्कर्ष निकला? कि गूगल मैप कभी भी रास्ता नहीं बताता है। यह केवल रास्ता सुझाता है। अब आगे आपकी अपनी समझ और कॉमनसेंस है - आप रास्ता भटक भी सकते हैं और रास्ते पर आ भी सकते हैं।
बेहतरीन पोस्ट। इतना समय और जानकारी देने के लिए बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख , जानकारियो से भरपूर ,, और इसमें हमें भी जगह मिल गयी 😊 धन्यवाद
ReplyDeleteबेहतरीन post
ReplyDeleteVery informative
ReplyDeleteकि गूगल मैप कभी भी रास्ता नहीं बताता है। यह केवल रास्ता सुझाता है। अब आगे आपकी अपनी समझ और कॉमनसेंस है - आप रास्ता भटक भी सकते हैं और रास्ते पर आ भी सकते हैं।
ReplyDeleteतब तो आपने गूगल मैप के डायरेक्शन फीचर का इस्तेमाल ही नही किया "जो रास्ता बताता भी है "
गूगल मैप रास्ता बताता भी है और सुझाता भी है ।
लंबे सफर में आप रिसर्च कर सकते है पर अक्सर आपको तुरंत ही रास्ता ढूंढना होता है । समय कम होता है और जानकारियां कई बार अधूरी । नए जगहों या नए बने स्थानों पर अक्सर भटकाव होता है चाहे आप कितने भी विशेषज्ञ क्यो ना हो ।
गूगल को फिर से सुधार संशोधन की प्रक्रिया आसान करनी चाहिए जिससे गलतियां दूर होंगी ।
गूगल मैप का डायरेक्शन फीचर भी रास्ता सुझाता ही है :)
Deleteआने वाले दिनों में एआई और क्राउड सोर्सिंग और डेटा-माइन से 99% सटीकता से नेविगेशन संभव हो सकेगा, यह तो तय है. अभी भी आलेख में सुझाए टिप्स के आधार पर सटीकता से नेविगेशन किया जा सकता है.
धन्यवाद नीरज जी, ज्ञानवर्धक लेख, काफी बातों का पता चला, सही सही कहूँ तो मैप उपयोग करना अब आया । थोड़ा बहुत उपयोग करता रहा हूँ पर मैप का , पर इस तरह भी उपयोग हो सकता है, आपकी पोस्ट से पता चला । सही बात है कही जाने से पहले थोड़ा सा होमवर्क हमें आगे हो सकने वाली परेशानी से बचा सकता है ।
ReplyDeleteMeasure Distance के बारे में कन्फूज़न है , मैं मोबाइल पर यूज़ करता हूँ मैप, तो ज़रा इस सेक्शन तो थोड़ा और किल्यर कर दीजिए....
सधन्यावाद....
1. मोबाइल पर गूगल मैप खोलिए...
Delete2. जहाँ से आपको किसी स्थान की सीधी दूरी देखनी है, उस जगह पर दो-चार सेकंड अंगूठा रखिए...
3. कुछ इनफोर्मेशन लोड होंगी और स्क्रीन पर नीचे दाहिने कोने में एक विकल्प मिलेगा - More Info...
4. More Info पर क्लिक करेंगे तो कुछ विकल्प आपके सामने आयेंगे... इनमें एक विकल्प Measure Distance भी होगा...
5. Measure Distance पर क्लिक कीजिए और बाकी आप स्वयं समझ जायेंगे...
ध्यान रखना कि Measure Distance रास्ता नहीं बताता, बल्कि दो बिंदुओं के बीच की सीधी दूरी बताता है...
शुक्रिया, फिर से कोशिश की और इस बार हो गया...
Deleteएक बात "कोर्डिनेट" के लिए , किसी जगह के क्या कोर्डिनेट है यह मैप पर कहाँ देख सकते है?
जहाँ Measure Distance का विकल्प आया था, उसके एकदम नीचे उस स्थान के कोर्डिनेट लिखे मिलेंगे...
Deleteबढ़िया जानकारी नीरज भाई, मेरे मन में भी कुछ सवाल थे गूगल मैप को लेकर, जिनका हल आपकी पोस्ट से मिल गया !
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी आपने।
ReplyDeleteमैं गूगल मैप 2008 से प्रयोग कर रहा हूँ। कभी कभार फंसा भी देता है लेकिन सौ प्रतिशत परिणाम तो कहीं नहीं मिलते। इस लेख से मुझे भी एक नई जानकारी मिली। धन्यवाद।
ReplyDeleteनीरज भाई,यह सच है कि वर्तमान में हम सब गूगल मैप का इस्तेमाल करना चाहते हैं और करते भी है।पर,मैप और इससे जुड़े अन्य पहलुओं को सही सही समझने की जरूरत होती है, जो संभवतः हड़बड़ी में, जल्दी मे और होमवर्क ना होने के कारण अक्सर विपरीत परिणाम देता है। आपके इस जानकारी से भरे ज्ञानवर्धक पोस्ट से हम सबको इसे बेहतर तरीके से समझने में आसानी होगी।
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी , मेने कभी उपयोग नही किया था, अब शुरू करता हूं।
ReplyDeleteमजा भी आया पढ़ने में और जानकारी भी खूब मिली। कभी कभी यूज़ करता हूँ लेकिन अब और आसानी से यूज़ कर पाऊंगा !!
ReplyDeleteबहुत उपयोगी जानकारी साझा की है आपने धन्यबाद
ReplyDeleteशुक्रिया, अब तक तो अंधेरे में ही भटक रहे थे।
ReplyDeleteBahut hi achhi jankari. Vaise kuch mobiles me satellite mode me bhi 3D view dikhta hai. Mere pas lenevo vibe k5 hai. Isme dikhta hai.
ReplyDeleteगूगल मैप का उपयोग बहुत समय से कर रहा हूँ अपनी यात्राओं में इसी के भरोसे इसी पर ज्यादा भरोसा करता हु . आज टैरेन मोड में कंटूर लाइनों का मतलब भी समझ में आ गया धन्यवाद / मेरे साथ भी समस्या उत्पन्न होने जैसी स्थिति हुई थी तब अपनी समझ से भी कम लेना होता है /
ReplyDeleteजहा पर नेटवर्क की समस्या हो सकती है वहा के लिए गूगल ऑफलाइन मैप के अलावा POLARIS Navigation GPS बहुत काम आता है इसमें हमारी speed ,Altitude ,ऑफलाइन सेटेलाइट व्यू को जीपीएस के साथ देख सकते है / लेकिन इसके लिए यात्रा शुरू करने से पहले अच्छी speed वाली WIFI से गूगल मैप सेटेलाइट व्यू को डाउनलोड करना होता है /
बेहद अनूठा और ज्ञानवर्धक.
ReplyDeleteएक सलाह-पोस्ट बहुत लम्बी है.इसे टुकड़ों में पोस्ट करते तो ज़्यादा सहज हो जाती.