Skip to main content

फूलों की घाटी के कुछ फोटो व जानकारी

फूलों की घाटी है ही इतनी खूबसूरत जगह कि मन नहीं भरता। आज कुछ और फोटो देखिये, लेकिन इससे पहले थोड़ा-बहुत पढ़ना भी पड़ेगा:
बहुत सारे मित्र फूलों की घाटी के विषय में पूछताछ करते हैं। असल में अगस्त वहाँ जाने का सर्वोत्तम समय है। तो अगर आप भी अगस्त के महीने में फूलों की घाटी जाने का मन बना रहे हैं, तो यह आपका सर्वश्रेष्ठ निर्णय है। लेकिन अगस्त में नहीं जा पाये, तब भी कोई बात नहीं। सितंबर में ब्रह्मकमल के लिये जा सकते हैं। और जुलाई भी अच्छा समय है। बाकी समय अच्छा नहीं कहा जा सकता। तो कुछ बातें और भी बता देना उचित समझता हूँ:




1. जोशीमठ-बद्रीनाथ मार्ग पर जोशीमठ से 20 किलोमीटर आगे और बद्रीनाथ से 30 किलोमीटर पीछे गोविंदघाट है। यहाँ से फूलों की घाटी का रास्ता जाता है। हरिद्वार और ऋषिकेश से गोविंदघाट तक बेहतरीन दो-लेन की सड़क बनी है। दूरी, समय और जाने के साधन के बारे में आप स्वयं निर्णय कर लेना।
2. गोविंदघाट में अलकनंदा नदी पार करके चार किलोमीटर आगे पुलना गाँव तक पक्की सिंगल सड़क बनी है। गाड़ियाँ आसानी से पार्क हो जाती हैं। मोटरसाइकिल की तीन-चार दिनों की पार्किंग के मई-जून में 150 रुपये और बाकी साल 50 रुपये शुल्क लगता है। आपकी मोटरसाइकिलों पर नज़र रखने के लिये सी.सी.टी.वी. कैमरे भी हैं और पर्ची भी मिलती है। हेलमेट व छोटा-मोटा अन्य सामान फ्री में रख सकते हैं।
3. पुलना से 9-10 किलोमीटर आगे घांघरिया है। बेहतरीन चौड़ी पगडंडी बनी है। पुलना और घांघरिया के ठीक बीच में भ्यूंडार गाँव है। भ्यूंडार में खाने के लिये कई ढाबे हैं, लेकिन ठहरने की सुविधा नहीं है। एक पुलिस चौकी भी है। आपको गोविंदघाट या पुलना से चलकर घांघरिया जाना ही पड़ेगा। गोविंदघाट 1800 मीटर पर, पुलना 2100 मीटर पर, भ्यूंडार 2600 मीटर पर और घांघरिया 3100 मीटर की ऊँचाई पर स्थित हैं। इसका अर्थ है कि चढ़ाई बहुत ज्यादा है और आपको पहले ही दिन 1000 मीटर या उससे भी ज्यादा पैदल चढ़ना पड़ेगा। वैसे खच्चर और कंडी वाले भी होते हैं। ये अमूमन 1000 रुपये लेते हैं। मोलभाव करने पर 700 रुपये तक आ जाते हैं।
4. घांघरिया में एक से बढ़कर एक आलीशान होटल हैं। मई-जून और अगस्त में साधारण कमरे 2000 रुपये तक के मिलते हैं और जुलाई व सितंबर-अक्टूबर-नवंबर में 400-500 रुपये तक के। घांघरिया में बिजली है, जो अमूमन चौबीस घंटे रहती है, लेकिन कमरों में गीजर नहीं हैं। आपको सशुल्क गर्म पानी की बाल्टी दे दी जायेगी। बेहतर होगा कि कमरा लेते समय ही फ़्री गर्म पानी की मांग कर लें। वैसे यहाँ एक गुरूद्वारा भी है, जहाँ आप उपलब्धता के अनुसार निःशुल्क ठहर सकते हैं।
5. घांघरिया से तीन साढ़े तीन किलोमीटर पैदल चलने के बाद आप फूलों की घाटी में प्रवेश कर जाते हैं। ऊँचाई 3500 मीटर है। फिर तो 8-10 किलोमीटर की घाटी आपके लिये खुली है। घांघरिया से निकलते ही वन विभाग की चौकी है, जहाँ पर पर्ची कटती है। भारतीयों के लिये तीन दिनों का 150 रुपये शुल्क है। आप भले ही एक दिन के लिये जाओ या तीन दिनों तक जाओ, 150 रुपये ही होगा। सुबह 7 बजे से प्रवेश कर सकते हैं। दोपहर बारह बजे के बाद किसी को प्रवेश नहीं करने दिया जाता और शाम पाँच बजे तक आपको लौटना पड़ेगा। यदि आप पाँच बजे तक नहीं लौटे, तो वन विभाग के कर्मचारी आपको ढूँढ़ने चल देंगे। फूलों की घाटी में कोई भी रात नहीं रुक सकता।
6. हेमकुंड़ साहिब का रास्ता भी घांघरिया से ही जाता है। ऊँचाई 4200 मीटर है। दोपहर 2 बजे गुरूद्वारा बंद हो जाता है और दर्शन भी बंद हो जाते हैं। हेमकुंड़ साहिब में भी रात नहीं रुक सकते, लेकिन यदि आपके पास टैंट और स्लीपिंग बैग हैं, तो आप अपने मालिक आप हैं। बहुत सारी दुकानें हैं, सभी दुकानदार ऊपर ही रुकते हैं। गुरुद्वारे का स्टाफ़ भी वहीं रुकता है। केवल अच्छा स्लीपिंग बैग हो, तब भी काम चल जायेगा। यह मैं आपको पर्सनली बता रहा हूँ। 4200 मीटर की ऊँचाई बहुत ज्यादा होती है, केवल अच्छी सेहत और अनुभवी लोग ही ऐसी ऊँचाई पर रुकें। सर्वोत्तम यही है कि आप शाम तक घांघरिया लौट आयें।





































फूलों की घाटी के ऊपर एक ग्लेशियर












भोजपत्र पर मौजमस्ती









1. चलो फूलों की घाटी!
2. कार्तिक स्वामी मंदिर
3. गोविंदघाट से घांघरिया ट्रैकिंग
4. यात्रा श्री हेमकुंड साहिब की
5. फूलों की घाटी
6. फूलों की घाटी के कुछ फोटो व जानकारी
7. फूलों की घाटी से वापसी और प्रेम फ़कीरा
8. ऋषिकेश से दिल्ली काँवड़ियों के साथ-साथ




Comments

  1. इतने शानदार दृश्य को देखकर बहुत कुछ कहने को है नहीं

    ReplyDelete
  2. चित्र ओर जानकारी शानदार

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर.यदि फूलों के बारे में जानकारी भी मिल जाती तो अति उत्तम.

    ReplyDelete
  4. शानदार और जबरजस्त फूलों की फ़ोटो। फूलों की घाटी वास्तव में स्वर्ग हैं।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

शिमला के फोटो

2 मई 2009, शनिवार। बीस दिन से भी ज्यादा हो गए थे, तो एक बार फिर से शरीर में खुजली सी लगने लगी घूमने की। प्लान बनाया शिमला जाने का। लेकिन किसे साथ लूं? पिछली बार कांगडा यात्रा से सीख लेते हुए रामबाबू को साथ नहीं लिया। कौन झेले उसके नखरों को? ट्रेन से नहीं जाना, केवल बस से ही जाना, पैदल नहीं चलना, पहाड़ पर नहीं चढ़ना वगैरा-वगैरा। तो गाँव से छोटे भाई आशु को बुला लिया। आखिरी टाइम में दो दोस्त भी तैयार हो गए- पीपी यानि प्रभाकर प्रभात और आनंद। ... तय हुआ कि अम्बाला तक तो ट्रेन से जायेंगे। फिर आगे कालका तक बस से, और कालका से शिमला टॉय ट्रेन से। वैसे तो नई दिल्ली से रात को नौ बजे हावडा-कालका मेल भी चलती है। यह ट्रेन पांच बजे तक कालका पहुंचा देती है। हमें कालका से सुबह साढे छः वाली ट्रेन पकड़नी थी। लेकिन हावडा-कालका मेल का मुझे भरोसा नहीं था कि यह सही टाइम पर पहुंचा देगी।

लद्दाख बाइक यात्रा- 13 (लेह-चांग ला)

(मित्र अनुराग जगाधरी जी ने एक त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाया। पिछली पोस्ट में मैंने बाइक के पहियों में हवा के प्रेशर को ‘बार’ में लिखा था जबकि यह ‘पीएसआई’ में होता है। पीएसआई यानी पौंड प्रति स्क्वायर इंच। इसे सामान्यतः पौंड भी कह देते हैं। तो बाइक के टायरों में हवा का दाब 40 बार नहीं, बल्कि 40 पौंड होता है। त्रुटि को ठीक कर दिया है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद अनुराग जी।) दिनांक: 16 जून 2015 दोपहर बाद तीन बजे थे जब हम लेह से मनाली रोड पर चल दिये। खारदुंगला पर अत्यधिक बर्फबारी के कारण नुब्रा घाटी में जाना सम्भव नहीं हो पाया था। उधर चांग-ला भी खारदुंगला के लगभग बराबर ही है और दोनों की प्रकृति भी एक समान है, इसलिये वहां भी उतनी ही बर्फ मिलनी चाहिये। अर्थात चांग-ला भी बन्द मिलना चाहिये, इसलिये आज उप्शी से शो-मोरीरी की तरफ चले जायेंगे। जहां अन्धेरा होने लगेगा, वहां रुक जायेंगे। कल शो-मोरीरी देखेंगे और फिर वहीं से हनले और चुशुल तथा पेंगोंग चले जायेंगे। वापसी चांग-ला के रास्ते करेंगे, तब तक तो खुल ही जायेगा। यह योजना बन गई।

डायरी के पन्ने-32

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। इस बार डायरी के पन्ने नहीं छपने वाले थे लेकिन महीने के अन्त में एक ऐसा घटनाक्रम घटा कि कुछ स्पष्टीकरण देने के लिये मुझे ये लिखने पड रहे हैं। पिछले साल जून में मैंने एक पोस्ट लिखी थी और फिर तीन महीने तक लिखना बन्द कर दिया। फिर अक्टूबर में लिखना शुरू किया। तब से लेकर मार्च तक पूरे छह महीने प्रति सप्ताह तीन पोस्ट के औसत से लिखता रहा। मेरी पोस्टें अमूमन लम्बी होती हैं, काफी ज्यादा पढने का मैटीरियल होता है और चित्र भी काफी होते हैं। एक पोस्ट को तैयार करने में औसतन चार घण्टे लगते हैं। सप्ताह में तीन पोस्ट... लगातार छह महीने तक। ढेर सारा ट्रैफिक, ढेर सारी वाहवाहियां। इस दौरान विवाह भी हुआ, वो भी दो बार। आप पढते हैं, आपको आनन्द आता है। लेकिन एक लेखक ही जानता है कि लम्बे समय तक नियमित ऐसा करने से क्या होता है। थकान होने लगती है। वाहवाहियां अच्छी नहीं लगतीं। रुक जाने को मन करता है, विश्राम करने को मन करता है। इस बारे में मैंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा भी था कि विश्राम करने की इच्छा हो रही है। लगभग सभी मित्रों ने इस बात का समर्थन किया था।