श्याम विमल द्वारा लिखित यह पुस्तक उनका एक यात्रा-संस्मरण है। लेखक का जन्म 1931 में मुलतान के शुजाबाद कस्बे में हुआ था। जब ये 16 बरस के थे, तब देश का बँटवारा हो गया और इन्हें सपरिवार अपनी जन्मभूमि छोड़कर भारत आना पड़ा। 75 साल की उम्र में ये अपनी जन्मभूमि देखने पाकिस्तान गये - 2005 में और अगले ही साल पुनः 2006 में। वहाँ जो इन्होंने देखा, महसूस किया; सब पुस्तक में लिख दिया। अपने बचपन को जीते रहे। एक-एक स्थान की, एक-एक गली की, एक-एक पडोसी की, एक-एक नाम की इन्हें याद थी और खुलकर सबके बारे में लिखा।
और कमाल की बात यह थी कि इनके पुश्तैनी घर में अब मुहाज़िर लोग रह रहे थे। यानी भारत छोड़कर गये हुए मुसलमान। अधिकांश भिवानी व हाँसी के आसपास के मुसलमान।
“पूछने पर बताया गया कि जब वे मुहाजिर होकर इस घर में रहने आये थे तो यह घर लुटा-पिटा उन्हें मिला था। चौखटों के कपाट भी उखाड़ लिये गये थे। शायद वे स्थानीय या आसपास के गाँवों के मुसलमान रहे होंगे, जो बलवे के दिनों में लूटपाट करने आये होंगे।
मुझे स्मरण है कि हम तो इस घर को भरा-पूरा छोड़ आये थे। इसी घर में बड़े भाई की शादी में मिले दहेज का सामान भी रखा गया था। हम सभी मुलतान शहर में फँसे रह गये थे और अंततः वहीं से रिफ्यूजियों की स्पेशल ट्रेन से हिंदुस्तान चले आये थे।”
आगे लिखते हैं:
“किस क्रूर हृदय ने महान देश को तोड़ने का उपक्रम रचा? किसने भाई-भाई समान सदियों से एकत्र रह रहे हिंदू-मुसलमानों में फूट के बीज बोये? किसने देश बँटवारे की नींव में मट्ठा डाला? किसने संप्रदाय शब्द को गंदी राजनीति के कीचड़ में लथपथ कर बदरंग किया? - ये सवाल बार-बार उठाने वाली घटनाएँ आम आदमी को हिला देती हैं।”
देश विभाजन के मुद्दे पर यह पुस्तक पठनीय है।
पाकिस्तान में वक्त से मुलाकात
इसके प्रकाशक हैं - आर्य प्रकाशन मंडल, गाँधीनगर, दिल्ली।
आई.एस.बी.एन. : 978-81-89982-96-6
प्रथम संस्करण: 2013
कुल पृष्ठ: 168
मूल्य: 300 रुपये (हार्ड कवर)
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