पिछले दिनों अचानक दिल्ली के दैनिक भास्कर में ख़बर आने लगी कि झारखंड़ में एक रेलवे लाइन बंद होने जा रही है, तो मन बेचैन हो उठा। इससे पहले कि यह लाइन बंद हो, इस पर यात्रा कर लेनी चाहिये। यह लाइन थी डी.सी. लाइन अर्थात धनबाद-चंद्रपुरा लाइन। यह रेलवे लाइन ब्रॉड़गेज है। इसका अर्थ है कि इसे गेज परिवर्तन के लिये बंद नहीं किया जायेगा। यह स्थायी रूप से बंद हो जायेगी।
झरिया कोलफ़ील्ड़ का नाम आपने सुना होगा। धनबाद के आसपास का इलाका कोयलांचल कहलाता है। पूरे देश का कितना कोयला यहाँ निकलता है, यह तो नहीं पता, लेकिन देश की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में इस इलाके का अहम योगदान है। इधर आप जाओगे, आपको हर तरफ़ कोयला ही कोयला दिखेगा। कोयले की भरी हुई मालगाड़ियाँ अपनी बारी का इंतज़ार करती दिखेंगी। इसलिये यहाँ रेलवे लाइनों का जाल बिछा हुआ है। कुछ पर यात्री गाड़ियाँ भी चलती हैं, लेकिन वर्चस्व मालगाड़ियों का ही है।
लेकिन झरिया के माथे एक रोग भी लगा है। इस रोग की वजह से यह इलाका एक ख़तरनाक इलाका बन गया है। यहाँ जमीन के नीचे कोयले में आग लगी हुई है। और ऐसा नहीं है कि यह आग आजकल में ही लगी है। सौ साल से भी ज्यादा हो गये इसे लगे हुए। आग को तीन चीजें चाहिये - ईंधन, उच्च तापमान और ऑक्सीजन। ज़मीन के नीचे ईंधन की कोई कमी नहीं है। एक बार आग लग गयी, तो तापमान भी अपने आप बढ़ गया। अब बची ऑक्सीजन। ज़मीन के नीचे धीरे-धीरे ऑक्सीजन जाती रहती है और आग सुलगती रहती है। लपटें भले ही न निकलती हों, लेकिन अंदर ही अंदर अंगारे बने पड़े होंगे। इससे ऊपर की ज़मीन भी धँसती रहती है। भू-स्खलन भी होता रहता है। कुल मिलाकर यह भूमिगत आग ऊपर रहने वाले प्रत्येक जीव के लिये ख़तरनाक है।
इसे बुझाने के लिये बहुत प्रयास हुए, लेकिन यह नहीं बुझी। और ऐसा भी नहीं है कि केवल भारत में ही यह आग लगी है, दुनिया में और भी कोयला खदानों में इस तरह की आग लगी हुई हैं। तेल के कुओं में भी आग लगी हुई हैं। बुझती नहीं है। बड़े पैमाने पर फैलती जाती है और फिर बुझानी और भी असंभव होती जाती है।
इस आग की वजह से धनबाद में 2004 के आसपास एक रेलवे लाइन बंद करनी पड़ी थी। धनबाद से झरिया होती हुई यह लाइन आदरा और खड़गपुर तक जाती थी। तो इसे धनबाद से पत्थरडीह तक बंद करना पड़ा था। अब उस मार्ग की ट्रेनें प्रधानखांटा और सिंदरी होते हुए जाती हैं।
तो यह आग बढ़ती हुई धनबाद-चंद्रपुरा रेलवे लाइन तक भी जा पहुँची। पिछले साल ही प्रशासन ने इसे बंद करने का सुझाव दिया था। फिलहाल आज 15 मई 2017 को यह मामला पी.एम.ओ. में पड़ा हुआ है। जल्द ही वहाँ से फैसला आ जायेगा और इस लाइन को हमेशा के लिये बंद कर देना पड़ेगा।
तो इसीलिये 25 अप्रैल 2017 की सुबह दिल्ली से कालका-हावड़ा मेल पकड़कर अगले दिन सुबह मैं धनबाद जा पहुँचा। गर्मी का मौसम चरम पर था और उत्तर भारत में पूरे दिन लू चलती थी। धनबाद में तो मामला और भी खतरनाक था। यह पठारी इलाका है और जमीन के नीचे आग भी लगी है।
राँची का पैसेंजर का टिकट ले लिया। सुबह सात बजे ट्रेन चलती है। ट्रेन पर लिखा था - धनबाद-राँची-गरबेता पैसेंजर। अर्थात यह ट्रेन राँची पहुँचकर दूसरे नंबर से गरबेता चली जायेगी। गरबेता खड़गपुर के पास है।
धनबाद से चंद्रपुरा 34 किलोमीटर दूर है और कुल 16 स्टेशन हैं। यानी प्रत्येक 2 किलोमीटर पर एक स्टेशन। स्टेशनों का इतना घनत्व केवल मुंबई में ही है। इसके बावज़ूद भी ट्रेन में कोई भीड़ नहीं। इस लाइन के समांतर 5-10 किलोमीटर उत्तर में दिल्ली-हावड़ा लाइन गुजरती है और इतना ही दूर दक्षिण में गोमो-खड़गपुर लाइन। तो यदि धनबाद-चंद्रपुरा लाइन बंद होती है तो आम लोगों पर ज्यादा फ़र्क नहीं पड़ेगा। 5-10 किलोमीटर दूर जाकर ट्रेन पकड़ लिया करेंगे।
लेकिन रेलवे पर बहुत फ़र्क पड़ेगा। यहाँ से मालगाड़ियाँ भर-भरकर देश के दूसरे हिस्सों में जाती हैं। यात्री गाड़ियों का भी अच्छा-खासा घनत्व है। इन्हें धनबाद-गोमो लाइन पर ट्रांसफ़र करना पड़ेगा। ज़ाहिर है कि पहले से ही यह ओवरलोड़ सेक्शन और भी ज्यादा ओवरलोड़ हो जायेगा। गोमो में ट्रेनों का रिवर्सल भी करना पड़ेगा। ज़ाहिर है कि गोमो इतना भार नहीं सह सकेगा। आज जो हालत भारतीय रेल में कानपुर की है, उससे भी बदतर हालत गोमो की हो जायेगी।
खैर, रेलवे कुछ न कुछ तरीका निकाल लेगा। न यात्री गाड़ियाँ कम हो सकती हैं और न ही मालगाड़ियाँ। कोई नयी लाइन बिछानी पड़ेगी। अब यह देखना रोचक होगा कि नयी लाइन कहाँ बिछेगी।
ये 16 स्टेशन हैं - धनबाद जंक्शन, कुसुण्डा, बसेरिया हाल्ट, बाँसजोड़ा, सिजुआ, अंगारपथरा हाल्ट, कतरासगढ़, तेतुलिया हाल्ट, सोनारडीह हाल्ट, टुण्डू हाल्ट, बुदौरा हाल्ट, फुलवारटाँड़, जमुनी हाल्ट, जमुनियाटाँड़, दुगदा और चंद्रपुरा जंक्शन। सिजुआ स्टेशन से केवल दो किलोमीटर दक्षिण में गोमो-खड़गपुर लाइन का टाटा सिजुआ स्टेशन है। मैं दो साल पहले उस लाइन पर यात्रा कर चुका था, तो सिजुआ शब्द याद था मुझे। फुलवारटाँड़ में इस लाइन को गोमो-खड़गपुर लाइन एक पुल के द्वारा काटती है। यहाँ दोनों लाइनों का कोई संपर्क नहीं है। इनके अलावा कोयला भरने के लिये अनगिनत साइडिंग भी हैं। मेनलाइन के एकदम बगल में मालगाड़ियों में कोयला लदान चलता रहता है। कोयले के पहाड़ के पहाड़ हैं यहाँ। ऐसा लगता है जैसे ट्रेन कोयले के बीच से अपना रास्ता ढूँढ़्ती हुई बढ़ रही हो।
बहुत सारे स्थानीय लोग भी बोरों में कोयला भर-भरकर और यात्री गाड़ियों में चढ़ाकर राँची तक ले जाते हैं। एक महिला ने गैलरी में कोयले से भरा बोरा रखा तो फ़र्श पर कोयले का चूरा फैल गया। बाद में उसने उतारने के बाद फर्श को कपड़े से साफ़ भी किया। अच्छा लगा।
चंद्रपुरा जंक्शन से चार दिशाओं में रेलवे लाइन जाती है। एक तो वही जिससे मैं आया हूँ अर्थात धनबाद, दूसरी उत्तर में गोमो, तीसरी पश्चिम में बरकाकाना और चौथी दक्षिण में बोकारो स्टील सिटी। यह चौथी लाइन ही आगे राँची जाती है। यह ट्रेन भी राँची ही जायेगी। किसी दिन समय निकालकर फिर आऊँगा और बरकाकाना लाइन पर चुनार-चोपन व कटनी तक यात्रा करूँगा।
दामोदर नदी पार करके बोकारो स्टील सिटी पहुँचते हैं। यहाँ एक बड़ा स्टील प्लांट है। दामोदर का पानी इस प्लांट के काम आता है। बोकारो में पुरी से नई दिल्ली जाने वाली पुरुषोत्तम एक्सप्रेस जाती दिखी। चूँकि आज का मेरा काम पूरा हो ही गया था। मुख्य मकसद केवल धनबाद-चंद्रपुरा लाइन पर ही यात्रा करने का था। तो मेरे पास एक विकल्प इस ट्रेन से भी लौट जाने का था, लेकिन तत्काल आरक्षण की समस्याओं के चलते राँची जाना पड़ा। इस बहाने धनबाद से राँची तक का पूरा रेलमार्ग भी मेरे नक्शे में आ गया और इस मार्ग पर पड़ने वाले सभी स्टेशनों के फोटो भी।
टी.टी.ई. आया। उसके आने की भनक लगते ही एक महिला मुझसे यह कहते हुई टॉयलेट में जा छुपी कि टी.टी.ई. को बताईयेगा नहीं। ज़ाहिर है कि वह बेटिकट थी। न टी.टी.ई. ने मुझसे कुछ पूछा, न मैंने बताया।
बोकारो के बाद राधागाँव है और फिर पश्चिमी बंगाल राज्य का पुरुलिया जिला शुरू हो जाता है। पश्चिमी बंगाल का पहला स्टेशन है पुनदाग। इसके बाद डामरुघुटू हाल्ट और फिर कोटशिला जंक्शन है। कोटशिला से एक लाइन पुरुलिया चली जाती है। यहाँ आउटर पर पुरुलिया वाली लाइन पर एक ट्रेन खड़ी थी। नज़दीक से देखा तो यह हमारी ट्रेन की जोड़ीदार ट्रेन थी। यह गरबेता से राँची जा रही थी। राँची जाकर वह धनबाद जायेगी। जबकि हमारी ट्रेन राँची जाकर गरबेता जायेगी। कमाल की बात यह रही कि गरबेता वाली ट्रेन को आउटर पर ही खड़ा रखा और हमारी ट्रेन को आगे निकाल दिया गया, जबकि उस ट्रेन का शेड्यूल इस ट्रेन से पहले है।
इसके बाद आता है बेगुनकोदर स्टेशन। यह स्टेशन 1967 से 2009 तक बंद रहा। यानी 42 साल। कारण था इस स्टेशन पर भूतों का दिखायी पड़ना। हालाँकि बहुत से लोग भूतों को नहीं मानते, लेकिन मैं मानता हूँ। दिन में भले ही न मानूँ, लेकिन रात को अवश्य मानता हूँ। मैं कल्पना कर सकता हूँ कि रात में मुझे सुनसान स्टेशन पर, रेल की पटरियों पर या प्लेटफार्म पर या अपने ऑफिस के दरवाजे पर कोई चलती-फ़िरती सफ़ेदी दिखायी पड़े। भौतिक रूप से कारण कुछ भी हो, लेकिन ऐसे में मैं इस स्टेशन पर नौकरी नहीं कर सकता। ऊपर से अगर एकाध स्टाफ की मौत भी हो जाये तो मामला वाकई डरावना होने लगता है। जब रेलवे स्टाफ के साथ-साथ ग्रामीणों ने भी इस बात का उल्लेख करना शुरू कर दिया तो इस स्टेशन को बंद कर दिया गया। 2009 में स्टेशन खुला ज़रूर, लेकिन यहाँ अंधेरा होने के बाद और उजाला होने से पहले कोई ट्रेन नहीं रुकती।
इसके बाद झालिदा स्टेशन है, फिर तुलिन स्टेशन है और सुवर्णरेखा नदी पार करते ही हम फिर से झारखंड़ में आ जाते हैं। तुलिन पश्चिमी बंगाल का सबसे पश्चिमी स्टेशन है।
झारखंड़ का पहला ही स्टेशन है मूरी जंक्शन।
फिर सिल्ली है और किता है। किता के बाद चढ़ाई शुरू हो जाती है और जंगल आरंभ हो जाता है। कई बार तो अप और डाउन ट्रैकों के बीच दो-दो किलोमीटर तक का फ़ासला हो जाता है। ऐसे में एक बड़ा ही रोचक संयोग बन गया है। एक ट्रैक पर गौतमधारा स्टेशन है और इससे दो किलोमीटर दूर दूसरे ट्रैक पर जोन्हा स्टेशन है। जब आप मूरी से राँची जाते हैं तो गौतमधारा आयेगा और जब राँची से मूरी जाते हैं तो जोन्हा आयेगा। जोन्हा जलप्रपात के कारण स्टेशन को यह नाम मिला।
झारखंड़ का पहला ही स्टेशन है मूरी जंक्शन।
फिर सिल्ली है और किता है। किता के बाद चढ़ाई शुरू हो जाती है और जंगल आरंभ हो जाता है। कई बार तो अप और डाउन ट्रैकों के बीच दो-दो किलोमीटर तक का फ़ासला हो जाता है। ऐसे में एक बड़ा ही रोचक संयोग बन गया है। एक ट्रैक पर गौतमधारा स्टेशन है और इससे दो किलोमीटर दूर दूसरे ट्रैक पर जोन्हा स्टेशन है। जब आप मूरी से राँची जाते हैं तो गौतमधारा आयेगा और जब राँची से मूरी जाते हैं तो जोन्हा आयेगा। जोन्हा जलप्रपात के कारण स्टेशन को यह नाम मिला।
देश में दूसरे स्थानों पर भी भौगोलिक परिस्थितियों के कारण अप और डाउन ट्रैक दूर-दूर अवश्य हुए हैं, लेकिन अप लाइन पर एक स्टेशन और डाउन लाइन पर दूसरा स्टेशन होने का मेरी नज़र में यह एकमात्र मामला है।
मैंने जाते हुए गौतमधारा स्टेशन का फोटो ले लिया और झारखंड़ एक्सप्रेस से वापस लौटते हुए जोन्हा का फोटो लिया।
फिर गंगाघाट है, टाटीसिलवे है, नामकोम है और राँची जंक्शन है।
झारखंड़ का यह इलाका अच्छा लगा। पहाड़ भी और जंगल भी। राँची के पास नामकोम स्टेशन 650 मीटर से ज्यादा ऊपर है। इतनी ऊँचाई पर उत्तराखंड़ में एक भी स्टेशन नहीं है और जम्मू-कश्मीर के भी जम्मू समेत बहुत से स्टेशन इससे नीचे ही हैं। मानसून में इलाका दर्शनीय हो जाता होगा। अगली बार जब भी आऊँगा, मानसून में ही आऊँगा।
यकीन नही होता तुम भूतों को मानते होंगे...
ReplyDeleteकिसी दिन फुरसत मे भूतों की बातें करेंगे...
Neeraj bhai.. kya lekhoo bas.....you are great
ReplyDeleteये जो अप और डाउन स्टेशनों के नाम अलग अलग हैं उनके कोड भी अलग अलग हैं क्या?
ReplyDeleteहाँ जी, इनके कोड़ भी अलग-अलग हैं। गौतमधारा का कोड़ GATD है और दूसरी लाइन पर स्थित जोन्हा का JON है।
Deleteभूत तो भूत ही होते है, बच के रहना चाहिए।
ReplyDeleteअरे वाह ...आप आये और खबर भी नहीं किये....
ReplyDeleteBegunkodar ki kahani news me bhi aa chuki hai.
ReplyDeleteI have had traveled many times on Dhanbad Chandrapura Line. During my college days used to live at LOYABAD near the in-between station Bansjora at this line. I feel very sad about knowing that railway is planning to closed this line due to underground fire, but the Safety of passengers is most important. Phir bhi Ek jani pahchani jagah ko Ujadte dekhne me bahut dukh hota hai...
ReplyDeleteरोचक और जानकारीपूर्ण पोस्ट। प्राकृतिक रूप से धनी इस क्षेत्र का उपेक्षा ही होता आया है। कोयले से जुड़े कुछ फोटो और जोड़े जा सकते थे।
ReplyDeleteलालकिला एक्सप्रेस और मुंबई-हावड़ा मेल ट्रेन भी शायद अप और डाउन में अलग अलग रूट से जाती हैं और उनके कुछ स्टेशन भी अलग अलग हो जाते हैं।
ReplyDeleteआज धनबाद चंद्रपुरा लाइन को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है। मुझे इस घटना से गहरा दुख हुआ .. उन गरीब लोगों के लिए बहुत उदास महसूस किया। जिनकी आय ज्यादातर इस रेलवे लाइन से संबंधित थी
ReplyDeletewahh.. bahut acha lga padh kr.. thnku sir itni achi jankari dene k liye..
ReplyDeleteक्षेत्र की सम्पूर्ण रेलवे जानकारी परोस दिये हैं।
ReplyDeleteगजब का मेहनत करते है ब्लॉग लिखने के लिए, इतनी जानकारी जुटाने वो भी बिल्कुल सही सही इतना आसान भी नही है मॉनसून में रांची बल्कि झारखंड की हरियाली बहुत ही मनमोहक होती है और भी कुछ जगहे है जैसे पारसनाथ, नेतरहाट या रांची के हर तरफ 50km के रेंज में घूमना आपको अच्छा लगेगा। पत्थरडीह स्टेशन का नाम पाथरडीह है मेरी जानकारी के अनुसार एक बार देख लीजिएगा।
ReplyDeleteDC railline started again. It was an ill fated plan of BCCL and DGMS to procuring coal under the lines and for that declaring its dangerous and hence finally railway closed the section on 15 June 2017.
ReplyDeleteIt was a huge and massive protest under the People of Katras, Dhanbad and adjacent areas naming as "RAIL DO YA JAIL DO" for almost 1.6 Years and fortunately the Upcoming Election 2019 make it possible...
AND the Result -
Goods Training started to running on DC line once again from 6 Feb 2019 and from 15 Feb 2019, The 26 Express and Passenger trains will be running again..
Huge Relief...
Thank You GOD...