15 मार्च 2016
जब आणंद के उस 100 रुपये वाले आलीशान कमरे में मैं गहरी नींद में सोया हुआ था तो विमलेश जी का फोन आया- उठ जाओ। चार बज गये। वैसे मैंने अलार्म भी लगा रखा था लेकिन अलार्म से अक्सर मेरी आंख नहीं खुला करती। विमलेश जी गजब इंसान हैं कि चार बजे उठ गये, केवल मुझे जगाने को। अगर मैं नींद में उनका फोन न उठाता, तो मुझे यकीन है कि स्टेशन स्टाफ आ जाता मुझे जगाने।
04:55 बजे खम्भात की ट्रेन थी। आणंद-खम्भात के बीच में सभी डेमू ट्रेनें ही चलती हैं, विद्युतीकृत मार्ग नहीं है। खम्भात के नाम पर ही खम्भात की खाडी नाम पडा। खम्भात के पास साबरमती नदी समुद्र में गिरती है। ब्रिटिश काल में इसे कैम्बे कहा जाता था, जिसकी वजह से खम्भात स्टेशन का कोड आज भी CBY है।
जब आणंद के उस 100 रुपये वाले आलीशान कमरे में मैं गहरी नींद में सोया हुआ था तो विमलेश जी का फोन आया- उठ जाओ। चार बज गये। वैसे मैंने अलार्म भी लगा रखा था लेकिन अलार्म से अक्सर मेरी आंख नहीं खुला करती। विमलेश जी गजब इंसान हैं कि चार बजे उठ गये, केवल मुझे जगाने को। अगर मैं नींद में उनका फोन न उठाता, तो मुझे यकीन है कि स्टेशन स्टाफ आ जाता मुझे जगाने।
04:55 बजे खम्भात की ट्रेन थी। आणंद-खम्भात के बीच में सभी डेमू ट्रेनें ही चलती हैं, विद्युतीकृत मार्ग नहीं है। खम्भात के नाम पर ही खम्भात की खाडी नाम पडा। खम्भात के पास साबरमती नदी समुद्र में गिरती है। ब्रिटिश काल में इसे कैम्बे कहा जाता था, जिसकी वजह से खम्भात स्टेशन का कोड आज भी CBY है।
साढे चार बजे तक नहा-धोकर टिकट लेकर ट्रेन में बैठ गया। ट्रेन बिल्कुल खाली पडी थी। यहां से 51 किलोमीटर दूर खम्भात है और इसे तय करने में इस ट्रेन को पौने दो घण्टे लगते हैं। मैं एक सीट पर लेट गया और नींद आ गई। जब ठीक समय पर ट्रेन चली तो एकबारगी आंख खुल गई। अन्धेरा तो था ही। फिर ख्याल आया कि वापसी में यह ट्रेन साढे आठ बजे आणंद पहुंचेगी, तो ऑफिस टाइम होने के कारण इसमें काफी भीड हो जायेगी। सिंगल लाइन है, तो कोई प्लेटफार्म इस तरफ आयेगा, तो कोई उस तरफ। बोर्डों के फोटो मुझे वापसी में ही लेने हैं क्योंकि तब तक उजाला हो जायेगा। भीड के कारण मैं एक खिडकी पर खडा रहूंगा। प्लेटफार्म दूसरी तरफ आयेगा तो उसका फोटो छूट जायेगा। इसलिये बेहतर है कि अभी सभी प्लेटफार्मों की लोकेशन नोट करता चलूं, ताकि वापसी में समय रहते खिडकी बदल सकूं।
आणंद के बाद वल्लभ विद्या नगर, करमसद, अगास, भाटीएल, पेटलाद जंक्शन, पंडोरी, नार टाउन, तारापुर, यावरपुरा, सायमा, कालीतलावडी और खम्भात स्टेशन आते हैं। पेटलाद जंक्शन पर ही क्रॉसिंग की सुविधा है, इसलिये आणंद और खम्भात दोनों तरफ से ट्रेनें चलती हैं और पेटलाद में एक-दूसरे को क्रॉस करती हैं। सभी आठ जोडी ट्रेनों की समय-सारणी इसी तरह बनाई गई है कि पेटलाद में हमेशा क्रॉसिंग होती है।
खम्भात से वडताल का टिकट ले लिया और इसी ट्रेन में वापस आणंद जाने के लिये बैठ गया। उजाला होने लगा था। गाडी खम्भात में ही पूरी भर गई थी। अगला प्लेटफार्म अगर इसी तरफ आयेगा, तो मैं इसी खिडकी पर खडा रहता, अन्यथा धीरे-धीरे करके दूसरी खिडकी पर जा पहुंचता। जितने स्टेशन निकलते जाते, उतनी ही भारी भीड चढती जाती। लेकिन उम्मीद के विपरीत लगभग सारे यात्री आणंद से दो स्टेशन पहले करमसद में उतर गये, बचे खुचे वल्लभ विद्या नगर में उतरे और मेरे जैसे एकाध ही आणंद गये। लेकिन मैं सभी स्टेशनों के बोर्डों के फोटो ले चुका था, यह सुकून की बात रही।
नौ बजे आणंद पहुंच गया। धर्मेन्द्र जी मिल गये। नाश्ता करके प्लेटफार्म एक पर जा पहुंचा। वडताल स्वामीनारायण जाने वाली ट्रेन भरूच से आ चुकी थी। मेन लाइन पर आणंद से अगला स्टेशन कणजरी बोरीयावी जंक्शन है, जहां से वडताल की लाइन अलग हो जाती है। यह लाइन विद्युतीकृत नहीं है और ट्रेन यहां 15 किलोमीटर प्रति घण्टे की स्पीड से चलती है। 6 किलोमीटर की दूरी तय करने में 25 मिनट लग जाते हैं। गाडी बिल्कुल खाली थी, एकाध ही कोई यात्री बैठा होगा। 1929 में यह वडताल वाली लाइन खुली थी। यहां स्वामीनारायण जी का कोई बडा तीर्थ है, जिसके लिये यह ट्रेन चलती है। लेकिन रफ्तार बढनी बहुत जरूरी है। पश्चिम रेलवे को मैं देश की सबसे विकसित रेलवे में से एक मानता हूं, लेकिन अगर यहां ब्रॉड गेज ट्रेनें ऐसी स्पीड पर चलेंगी, तो यह खराब बात है।
वडताल में इंजन इधर से उधर लगाया गया और ट्रेन वापस आणंद के लिये चल दी। अब यह वडताल-आणंद पैसेंजर बनकर चल रही है। चार-पांच घण्टे आणंद में खडी रहेगी, दैनिक देखभाल होगी और फिर वडताल आ जायेगी और भरूच पैसेंजर बनकर भरूच चली जायेगी। यह इस ट्रेन का दिनभर का कार्यक्रम रहता है।
वडताल में इंजन इधर से उधर लगाया गया और ट्रेन वापस आणंद के लिये चल दी। अब यह वडताल-आणंद पैसेंजर बनकर चल रही है। चार-पांच घण्टे आणंद में खडी रहेगी, दैनिक देखभाल होगी और फिर वडताल आ जायेगी और भरूच पैसेंजर बनकर भरूच चली जायेगी। यह इस ट्रेन का दिनभर का कार्यक्रम रहता है।
साढे ग्यारह बजे आणंद पहुंच गया। अब दो बजे गोधरा की ट्रेन है। यानी ढाई घण्टे यहीं आणंद में रहना था। लेकिन विमलेश जी ने यहां एक कार्यक्रम बना रखा था- मुझे अमूल डेयरी में घुमाने का। धर्मेन्द्र जी को यह जिम्मेदारी सौंपी और आखिरकार अमूल डेयरी के ही एक मैनेजर मुझे लेने स्टेशन आ गये। स्टेशन से थोडी दूर अमूल का प्लांट है। आणंद अमूल के कारण ही प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध विज्ञानी डॉ. वर्गीज कुरियन ने यहां डेयरी उद्योग की शुरूआत की थी।
जिस समय हम वहां पहुंचे, लंच का समय था और लंच के बाद भारतीय सेना के अधिकारियों की विजिट थी, इसलिये मुझे डेयरी घूमने का कम समय मिला। मैनेजर साहब ने इसके लिये खेद भी जताया। ज़ाहिर था कि सेना के अधिकारी आयेंगे, तो इसमें अमूल के उच्चाधिकारी और मैनेजर भी शामिल होंगे। इसलिये पन्द्रह मिनट में ही मेरी अमूल विजिट सम्पन्न हो गई। सारा कार्य ऑटोमेटिक है और कहीं भी दूध न खुली हवा के सम्पर्क में आता है और न ही इंसानी हाथों के सम्पर्क में। दोबारा उधर जाना हुआ तो फुरसत से डेयरी देखूंगा।
जिस समय हम वहां पहुंचे, लंच का समय था और लंच के बाद भारतीय सेना के अधिकारियों की विजिट थी, इसलिये मुझे डेयरी घूमने का कम समय मिला। मैनेजर साहब ने इसके लिये खेद भी जताया। ज़ाहिर था कि सेना के अधिकारी आयेंगे, तो इसमें अमूल के उच्चाधिकारी और मैनेजर भी शामिल होंगे। इसलिये पन्द्रह मिनट में ही मेरी अमूल विजिट सम्पन्न हो गई। सारा कार्य ऑटोमेटिक है और कहीं भी दूध न खुली हवा के सम्पर्क में आता है और न ही इंसानी हाथों के सम्पर्क में। दोबारा उधर जाना हुआ तो फुरसत से डेयरी देखूंगा।
वापस स्टेशन पर आ गया। लंच करके धर्मेन्द्र जी के ऑफिस में जा बैठा।
दोपहर 2 बजे आणंद से गोधरा की ट्रेन चलती है। पौने दो बजे जब मैं ट्रेन के पास पहुंचा तो देखा कि गार्ड साहब फोन पर किसी से बात कर रहे हैं। मुझे सुनाई दिया- सर, अभी तक वे नहीं आये हैं। मैं समझ गया कि दूसरी तरफ विमलेश जी ही होंगे। मैंने तुरन्त गार्ड से कहा- आ गया। तुरन्त गार्ड से फोन पर कहा- आ गये।
आणंद जंक्शन के बाद सदानापुरा, भालेज, ओड, उमरेठ, डाकोर, ठासरा, अंगाडी, सेवालिया, टिम्बा रोड, टुवा, वावडी खुर्द और गोधरा जंक्शन हैं। ओड (OD) ओडिशा के ईब (IB) के साथ देश का सबसे छोटे नाम वाला स्टेशन भी है। वैसे एक स्टेशन मध्य प्रदेश में बीना-गुना लाइन पर ‘ओर’ भी है, लेकिन इसकी स्पेलिंग ‘ORR' है, अन्यथा यह भी सबसे छोटे नाम वाला स्टेशन होता।
डाकोर में रणछोडजी का बडा विशाल मन्दिर है। इस बार तो ट्रेन से बाहर कहीं नहीं जाना था, अगली बार इधर आना हुआ तो मन्दिर भी देखूंगा। सेवालिया के बाद माही नदी है, जिसका लोहे का पुल काफी लम्बा है। माही के उस तरफ टिम्बा रोड है। एक जमाने में टिम्बा रोड स्टेशन एक जंक्शन हुआ करता था। यहां से नैरोगेज की लाइन समलाया होते हुए डभोई तक जाती थी। लेकिन अब टिम्बा रोड से डभोई तक की यह लाइन बन्द है।
आणंद, वडोदरा और गोधरा एक त्रिभुज बनाते हैं। तीनों लाइनें विद्युतीकृत हैं। आणंद से गोधरा लाइन पर केवल कुछ पैसेंजर ट्रेनें ही चलती हैं, हालांकि मालगाडियों का यातायात काफी है। कुछ लम्बी दूरी की एक्सप्रेस व सुपरफास्ट ट्रेनें आणंद से पहले वडोदरा जाती हैं, फिर इंजन बदला जाता है और फिर गोधरा की तरफ जाती हैं। इन ट्रेनों का रूट अगर आणंद से सीधे गोधरा ही कर दिया जाये तो बडा फायदा होगा। एक तो पहले से ही बेहद व्यस्त वडोदरा स्टेशन पर बोझ कम होगा। व्यस्त स्टेशनों पर इंजन इधर से उधर लगाना भी काफी ट्रैफिक बढा देता है। आणंद में इंजन की बदली नहीं करनी पडेगी। कम से कम गुजरात सम्पर्क क्रान्ति और सोमनाथ एक्सप्रेस, साबरमती एक्सप्रेस आदि ट्रेनों को सीधे आणंद-गोधरा लाइन से भेजा ही जा सकता है।
दोपहर 2 बजे आणंद से गोधरा की ट्रेन चलती है। पौने दो बजे जब मैं ट्रेन के पास पहुंचा तो देखा कि गार्ड साहब फोन पर किसी से बात कर रहे हैं। मुझे सुनाई दिया- सर, अभी तक वे नहीं आये हैं। मैं समझ गया कि दूसरी तरफ विमलेश जी ही होंगे। मैंने तुरन्त गार्ड से कहा- आ गया। तुरन्त गार्ड से फोन पर कहा- आ गये।
आणंद जंक्शन के बाद सदानापुरा, भालेज, ओड, उमरेठ, डाकोर, ठासरा, अंगाडी, सेवालिया, टिम्बा रोड, टुवा, वावडी खुर्द और गोधरा जंक्शन हैं। ओड (OD) ओडिशा के ईब (IB) के साथ देश का सबसे छोटे नाम वाला स्टेशन भी है। वैसे एक स्टेशन मध्य प्रदेश में बीना-गुना लाइन पर ‘ओर’ भी है, लेकिन इसकी स्पेलिंग ‘ORR' है, अन्यथा यह भी सबसे छोटे नाम वाला स्टेशन होता।
डाकोर में रणछोडजी का बडा विशाल मन्दिर है। इस बार तो ट्रेन से बाहर कहीं नहीं जाना था, अगली बार इधर आना हुआ तो मन्दिर भी देखूंगा। सेवालिया के बाद माही नदी है, जिसका लोहे का पुल काफी लम्बा है। माही के उस तरफ टिम्बा रोड है। एक जमाने में टिम्बा रोड स्टेशन एक जंक्शन हुआ करता था। यहां से नैरोगेज की लाइन समलाया होते हुए डभोई तक जाती थी। लेकिन अब टिम्बा रोड से डभोई तक की यह लाइन बन्द है।
आणंद, वडोदरा और गोधरा एक त्रिभुज बनाते हैं। तीनों लाइनें विद्युतीकृत हैं। आणंद से गोधरा लाइन पर केवल कुछ पैसेंजर ट्रेनें ही चलती हैं, हालांकि मालगाडियों का यातायात काफी है। कुछ लम्बी दूरी की एक्सप्रेस व सुपरफास्ट ट्रेनें आणंद से पहले वडोदरा जाती हैं, फिर इंजन बदला जाता है और फिर गोधरा की तरफ जाती हैं। इन ट्रेनों का रूट अगर आणंद से सीधे गोधरा ही कर दिया जाये तो बडा फायदा होगा। एक तो पहले से ही बेहद व्यस्त वडोदरा स्टेशन पर बोझ कम होगा। व्यस्त स्टेशनों पर इंजन इधर से उधर लगाना भी काफी ट्रैफिक बढा देता है। आणंद में इंजन की बदली नहीं करनी पडेगी। कम से कम गुजरात सम्पर्क क्रान्ति और सोमनाथ एक्सप्रेस, साबरमती एक्सप्रेस आदि ट्रेनों को सीधे आणंद-गोधरा लाइन से भेजा ही जा सकता है।
माही पुल |
माही नदी |
नर्मदा नहर |
गोधरा से वडोदरा जाने वाली लाइन |
गोधरा में प्रवेश |
गोधरा में मैकेनिकल सुपरवाइजर आ मिले। यहां गार्ड साहब से भी काफी बातें हुईं। मेरी इच्छा गोधरा काण्ड के उन डिब्बों को भी देखने की थी। लेकिन बिना विशेष अनुमति के न उन डिब्बों में प्रवेश कर सकता था और न फोटो ही खींच सकता था। वे डिब्बे पिछले 14 सालों से वहीं खडे हैं। मैं बहुत कुछ पूछने वाला था लेकिन गार्ड साहब ने कहा- “जिस साबरमती एक्सप्रेस में यह हादसा हुआ, उसका गार्ड मैं ही था।”
यह सुनते ही मेरी बोलती एकदम बन्द हो गई। जो प्रश्न और जिज्ञासाएं मन में थे, सब समाप्त हो गये और मैं स्वयं को उस ट्रेन का गार्ड महसूस करने लगा। ट्रेन गोधरा से चली और हजारों की भीड ने इसे घेर लिया और मैं सबसे पीछे के डिब्बे में खडा हुआ सब देखता रहा। आग लगा दी गई, चीख-पुकार मचती रही, ट्रेन के डिब्बे खाक होते रहे, लोग जलते रहे, मरते रहे और मैं कुछ नहीं कर सका। इतना हृदय-विदारक दृश्य था कि मुझे भागने की भी सुध न रही कि ये लोग कहीं मुझे ही न मार दें।
“उस ट्रेन का गार्ड मैं ही था” यह सुनने के बाद मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा। उनसे सैंकडों बार पूछा गया होगा, उन्होंने सैंकडों बार बताया होगा कि उस रात क्या-क्या हुआ। वे एक चश्मदीद थे। मैं नहीं चाहता था कि वे एक बार और उस आपबीती को बतायें। बात काट दी- “वडोदरा वाली मेमू कितने बजे आयेगी?”
गार्ड साहब तो अपने रनिंग रूम में चले गये, मैं सुपरवाइजर साहब के पास बैठा रहा। प्लेटफार्म 2 और 3 पर आखिर में एक कोने में बने छोटे से कमरे में खाने और पीने के इतने सामान आ गये कि मैं नहीं खा सका। यह इस यात्रा की मेरी आखिरी खातिरदारी थी। वडोदरा जाकर मुझे निजामुद्दीन की गरीब रथ पकड लेनी है। गरीब रथ हालांकि गोधरा से ही गुजरती है लेकिन रुकती नहीं है। दाहोद रुकती है लेकिन वडोदरा से पकडना ज्यादा सुविधाजनक था।
छह बजे मेमू आई और डेढ घण्टे में इसने वडोदरा उतार दिया। दो घण्टे बाद साढे नौ बजे गरीब रथ आ गई। पहले से ही आरक्षण था। ट्रेन दिल्ली की तरफ चल दी और मेरी यह गुजरात ट्रेन यात्रा समाप्त हो गई।
यह सुनते ही मेरी बोलती एकदम बन्द हो गई। जो प्रश्न और जिज्ञासाएं मन में थे, सब समाप्त हो गये और मैं स्वयं को उस ट्रेन का गार्ड महसूस करने लगा। ट्रेन गोधरा से चली और हजारों की भीड ने इसे घेर लिया और मैं सबसे पीछे के डिब्बे में खडा हुआ सब देखता रहा। आग लगा दी गई, चीख-पुकार मचती रही, ट्रेन के डिब्बे खाक होते रहे, लोग जलते रहे, मरते रहे और मैं कुछ नहीं कर सका। इतना हृदय-विदारक दृश्य था कि मुझे भागने की भी सुध न रही कि ये लोग कहीं मुझे ही न मार दें।
“उस ट्रेन का गार्ड मैं ही था” यह सुनने के बाद मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा। उनसे सैंकडों बार पूछा गया होगा, उन्होंने सैंकडों बार बताया होगा कि उस रात क्या-क्या हुआ। वे एक चश्मदीद थे। मैं नहीं चाहता था कि वे एक बार और उस आपबीती को बतायें। बात काट दी- “वडोदरा वाली मेमू कितने बजे आयेगी?”
गार्ड साहब तो अपने रनिंग रूम में चले गये, मैं सुपरवाइजर साहब के पास बैठा रहा। प्लेटफार्म 2 और 3 पर आखिर में एक कोने में बने छोटे से कमरे में खाने और पीने के इतने सामान आ गये कि मैं नहीं खा सका। यह इस यात्रा की मेरी आखिरी खातिरदारी थी। वडोदरा जाकर मुझे निजामुद्दीन की गरीब रथ पकड लेनी है। गरीब रथ हालांकि गोधरा से ही गुजरती है लेकिन रुकती नहीं है। दाहोद रुकती है लेकिन वडोदरा से पकडना ज्यादा सुविधाजनक था।
छह बजे मेमू आई और डेढ घण्टे में इसने वडोदरा उतार दिया। दो घण्टे बाद साढे नौ बजे गरीब रथ आ गई। पहले से ही आरक्षण था। ट्रेन दिल्ली की तरफ चल दी और मेरी यह गुजरात ट्रेन यात्रा समाप्त हो गई।
1. बिलीमोरा से वघई नैरोगेज रेलयात्रा
2. कोसम्बा से उमरपाडा नैरोगेज ट्रेन यात्रा
3. अंकलेश्वर-राजपीपला और भरूच-दहेज ट्रेन यात्रा
4. जम्बूसर-प्रतापनगर नैरोगेज यात्रा और रेल संग्रहालय
5. मियागाम करजन से मोटी कोरल और मालसर
6. मियागाम करजन - डभोई - चांदोद - छोटा उदेपुर - वडोदरा
7. मुम्बई लोकल ट्रेन यात्रा
8. वडोदरा-कठाणा और भादरण-नडियाद रेल यात्रा
9. खम्भात-आणंद-गोधरा पैसेंजर ट्रेन यात्रा
आप के गोधरा पहुँचने पर गार्ड श्री सोलंकी जी आप की बहुत ही बड़ाई कर रहे थे और मुझसे यह भी बोले की सर जी मैंने आप के नीरज जी को रेलवे प्लैटफ़ार्म पर आप के दूसरे स्टाफ को सकुशल हैंड ओवर कर दिया हूँ। धन्यवाद के सिवा मै और क्या कहता। आप की यात्रा सकुशल पूरी हुई। मै भी चैन की सांस लिया और आप जब घर पहुँच कर मुझे मैसेज किए तब मुझे बहुत सकून और खुशी हुई ।
ReplyDelete“उस ट्रेन का गार्ड मैं ही था” यह सुनने के बाद मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा। उनसे सैंकडों बार पूछा गया होगा, उन्होंने सैंकडों बार बताया होगा कि उस रात क्या-क्या हुआ। वे एक चश्मदीद थे। मैं नहीं चाहता था कि वे एक बार और उस आपबीती को बतायें। बात काट दी- “वडोदरा वाली मेमू कितने बजे आयेगी?” इसका दर्द एक सहृदय व्यक्ति ही महसूस कर सकता है. आपने बिलकुल सही निर्णय लिया. आपकी जगह कोई और तो शायद यह सुन उसके मन में लड्डू फूटते...
ReplyDeleteभविष्य में जब फिर कभी यहाँ का प्रोग्राम बनाइएगा तब अमूल डेरी;साबरमती का कोच;डाकोर और सरदार पटेल जी का जन्मस्थान करमसद और उनका संग्रहालय देखने का प्रोग्राम रखियेगा।
ReplyDeleteNeeraj bhai namskar
ReplyDeleteye phle hi pata kese karte hai ki pletfarm konsi or aayega..
भीड के कारण मैं एक खिडकी पर खडा रहूंगा। प्लेटफार्म दूसरी तरफ आयेगा तो उसका फोटो छूट जायेगा। इसलिये बेहतर है कि अभी सभी प्लेटफार्मों की लोकेशन नोट करता चलूं, ताकि वापसी में समय रहते खिडकी बदल सकूं।
नीरज भाई आजकल ब्लॉग से छुट्टी ले ली है क्या?
ReplyDeleteकाफी दिनों से कोई नया पोस्ट नही आया। आजकल कोई नई यात्रा नही कर रहे हो क्या?
जानकारी भरा लेख
ReplyDeleteखम्भात-आणंद-गोधरा पैसेंजर ट्रेन यात्रा का सुन्दर चित्रण ...आपको जन्मदिन kee बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाये!
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