14 मार्च 2016, सोमवार
गुजरात मेल सुबह पांच बजे वडोदरा पहुंच गई और मैं यहीं उतर गया। वैसे इस ट्रेन में मेरा आरक्षण आणंद तक था। आणंद तक आरक्षण कराने का मकसद इतना था ताकि वहां डोरमेट्री में बिस्तर बुक कर सकूं। ऑनलाइन बुकिंग कराते समय पीएनआर नम्बर की आवश्यकता जो पडती है। आज मुझे रात को आणंद रुकना है।
सुबह पांच बजे वडोदरा पहुंच गया और विमलेश जी का फोन आ गया। मेरी इस आठ-दिनी यात्रा को वे भावनगर में होते हुए भी सोते और जगते लगातार देख रहे थे। सारा कार्यक्रम उन्हें मालूम था और वे मेरे परेशान होने से पहले ही सूचित कर देते थे कि अब मुझे क्या करना है। अब उन्होंने कहा कि अधिकारी विश्राम गृह में जाओ। वहां उन्होंने केयर-टेकर से पहले ही पता कर रखा था कि एक कमरा खाली है और उसे यह भी बता रखा था कि सवा चार बजे मेरी ट्रेन वडोदरा आ जायेगी। बेचारा केयर-टेकर सुबह चार बजे से ही जगा हुआ था। ट्रेन वडोदरा पौन घण्टा विलम्ब से पहुंची, केयर-टेकर मेरा इंतजार करते-करते सोता भी रहा और सोते-सोते इंतजार भी करता रहा। यह एक घण्टा उसके लिये बडा मुश्किल कटा होगा। नींद की चरम अवस्था होती है इस समय।
लेकिन विमलेश जी की नींद की चरम अवस्था पता नहीं किस समय होती है?
नींद मुझे भी आ रही थी। आखिर मैं भी चार बजे से जगा हुआ था। वातानुकूलित कमरा था। नहाने के बाद कम्बल ओढकर जो सोया, साढे आठ बजे विमलेश जी का फोन आने के बाद ही उठा। उन्होंने जब बताया कि मुख्य प्लेटफार्म के बिल्कुल आख़िर में उत्तर दिशा में साइड में एक प्लेटफार्म है (शायद प्लेटफार्म नम्बर एक वही है), वहां से ट्रेन मिलेगी तो होश उड गये। अभी मुझे नहाना भी था, टिकट भी लेना था, नाश्ता भी करना था और एक किलोमीटर के लगभग ट्रेन खडी थी। तो जब सारे काम करके ट्रेन तक पहुंचा तो नौ बजकर पांच मिनट हो गये थे। पांच मिनट बाद ट्रेन चल देगी। गार्ड साहब पहले ही मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे। ट्रेन में बिल्कुल भी भीड नहीं थी।
वडोदरा से बीस किलोमीटर दूर वासद जंक्शन है। यहीं से कठाणा की लाइन अलग हो जाती है। इस ब्रॉडगेज लाइन पर दिनभर में दो ही ट्रेनें चलती हैं, दोनों पैसेंजर हैं। इसकी कहानी बडी ही रोचक है।
भले ही आरम्भ में अलग-अलग कम्पनियां रेलवे लाइन बिछाती थीं और अपनी ट्रेनें चलाती थीं लेकिन इसकी अनुमति भारत सरकार ही देती थी। भारत सरकार अर्थात ब्रिटिश सरकार। लेकिन 1908 में बरोडा राज्य को यह विशेषाधिकार मिल गया कि राज्य अपनी मर्जी से अपने इलाके में कहीं भी रेलवे लाइन बिछा सकता है। उधर बरोडा से बम्बई, अहमदाबाद और दिल्ली की मेन लाइनें बी.बी.एंड सी.आई. की थी। बी.बी.एंड सी.आई. सरकार के अधीन काम करती थी। अब जब बरोडा को अपनी मर्जी से रेलवे लाइन बिछाने की अनुमति मिल गई तो उसने पेटलाद से वसो तक नैरोगेज बनाना शुरू कर दिया। पेटलाद, आणंद-खम्भात लाइन पर स्थित है। खम्भात इलाके में यही एकमात्र लाइन थी, इसलिये इससे खूब राजस्व मिल रहा था।
1912 में जब बरोडा दरबार ने पेटलाद के दक्षिण में भादरण तक नैरोगेज बनाने की घोषणा की तो मुम्बई राज्य ने इसमें रोडा अटकाने की कोशिश की। बरोडा-अहमदाबाद लाइन बी.बी.एंड सी.आई. की थी, यानी एक तरह से सरकार की थी। इसी पर वासद स्टेशन है। तो मुम्बई ने भारत सरकार को वासद-कठाणा लाइन का प्रस्ताव भेजा जिसे स्वीकृति मिल गई। उधर बरोडा को अपनी पेटलाद-भादरण लाइन के लिये किसी तरह की स्वीकृति की जरुरत ही नहीं थी। मुम्बई की वासद-कठाणा लाइन और बरोडा की पेटलाद-भादरण लाइन बोचासन में एक दूसरे को काटती हैं। दोनों ने एक-दूसरे में अपने सींग फंसा लिये। नतीजा हुआ कि ये दोनों लाइनें और पहले से अच्छा राजस्व देने वाली आणंद-खम्भात लाइन सब घाटे में चलने लगीं। आणंद-खम्भात लाइन का इस क्षेत्र में एकक्षत्र राज था, इसलिये अच्छी कमाई हो रही थी। अब दो लाइनें और बन गईं तो यात्री भी बंट गये और माल ढुलाई भी। बाद में बरोडा दरबार ने पेटलाद-वसो लाइन को पीज तक बढाया और आखिर में नडियाद तक। वर्तमान में इसे नडियाद-भादरण लाइन कहते हैं। यह अभी भी नैरोगेज है।
वासद जंक्शन से चलकर भेटासी, आंकलाव, डावोल, बोरसद, बोचासन जंक्शन, वीरसद और कठाणा स्टेशन आते हैं। किसी जमाने में वीरसद और कठाणा के बीच में रास स्टेशन भी हुआ करता था लेकिन अब उसके अवशेष भी नज़र नहीं आते। बोचासन के स्टेशन मास्टर के पास मेरी यात्रा की सूचना पहुंच चुकी थी। हम मिले और कुछ समय बाद जब भादरण से नैरोगेज की ट्रेन से मैं बोचासन आऊंगा तो यहां वे मेरे लिये भोजन की व्यवस्था भी कर देंगे। इधर कुछ भी खाने को नहीं मिलता। ट्रेनें धीरे-धीरे चलती हैं, इसलिये भूख लगने लगती है।
भले ही आरम्भ में अलग-अलग कम्पनियां रेलवे लाइन बिछाती थीं और अपनी ट्रेनें चलाती थीं लेकिन इसकी अनुमति भारत सरकार ही देती थी। भारत सरकार अर्थात ब्रिटिश सरकार। लेकिन 1908 में बरोडा राज्य को यह विशेषाधिकार मिल गया कि राज्य अपनी मर्जी से अपने इलाके में कहीं भी रेलवे लाइन बिछा सकता है। उधर बरोडा से बम्बई, अहमदाबाद और दिल्ली की मेन लाइनें बी.बी.एंड सी.आई. की थी। बी.बी.एंड सी.आई. सरकार के अधीन काम करती थी। अब जब बरोडा को अपनी मर्जी से रेलवे लाइन बिछाने की अनुमति मिल गई तो उसने पेटलाद से वसो तक नैरोगेज बनाना शुरू कर दिया। पेटलाद, आणंद-खम्भात लाइन पर स्थित है। खम्भात इलाके में यही एकमात्र लाइन थी, इसलिये इससे खूब राजस्व मिल रहा था।
1912 में जब बरोडा दरबार ने पेटलाद के दक्षिण में भादरण तक नैरोगेज बनाने की घोषणा की तो मुम्बई राज्य ने इसमें रोडा अटकाने की कोशिश की। बरोडा-अहमदाबाद लाइन बी.बी.एंड सी.आई. की थी, यानी एक तरह से सरकार की थी। इसी पर वासद स्टेशन है। तो मुम्बई ने भारत सरकार को वासद-कठाणा लाइन का प्रस्ताव भेजा जिसे स्वीकृति मिल गई। उधर बरोडा को अपनी पेटलाद-भादरण लाइन के लिये किसी तरह की स्वीकृति की जरुरत ही नहीं थी। मुम्बई की वासद-कठाणा लाइन और बरोडा की पेटलाद-भादरण लाइन बोचासन में एक दूसरे को काटती हैं। दोनों ने एक-दूसरे में अपने सींग फंसा लिये। नतीजा हुआ कि ये दोनों लाइनें और पहले से अच्छा राजस्व देने वाली आणंद-खम्भात लाइन सब घाटे में चलने लगीं। आणंद-खम्भात लाइन का इस क्षेत्र में एकक्षत्र राज था, इसलिये अच्छी कमाई हो रही थी। अब दो लाइनें और बन गईं तो यात्री भी बंट गये और माल ढुलाई भी। बाद में बरोडा दरबार ने पेटलाद-वसो लाइन को पीज तक बढाया और आखिर में नडियाद तक। वर्तमान में इसे नडियाद-भादरण लाइन कहते हैं। यह अभी भी नैरोगेज है।
वासद जंक्शन से चलकर भेटासी, आंकलाव, डावोल, बोरसद, बोचासन जंक्शन, वीरसद और कठाणा स्टेशन आते हैं। किसी जमाने में वीरसद और कठाणा के बीच में रास स्टेशन भी हुआ करता था लेकिन अब उसके अवशेष भी नज़र नहीं आते। बोचासन के स्टेशन मास्टर के पास मेरी यात्रा की सूचना पहुंच चुकी थी। हम मिले और कुछ समय बाद जब भादरण से नैरोगेज की ट्रेन से मैं बोचासन आऊंगा तो यहां वे मेरे लिये भोजन की व्यवस्था भी कर देंगे। इधर कुछ भी खाने को नहीं मिलता। ट्रेनें धीरे-धीरे चलती हैं, इसलिये भूख लगने लगती है।
बोचासन में ब्रॉडगेज और नैरोगेज का क्रॉसिंग |
कठाणा से भी 8-9 किलोमीटर आगे धुवारण है। यहां माही नदी खम्भात की खाडी में मिलती है। ऋषिराज जी ने अपनी पुस्तक ‘अतुल्य भारत की खोज’ में भी धुवारण का जिक्र किया है। यहां एक पावर प्लांट था जिसके लिये कठाणा से धुवारण तक रेलवे लाइन बिछाई गई थी। अब वह पावर प्लांट बन्द हो गया है तो रेलवे लाइन भी बन्द हो गई। इसलिये किसी जमाने में ट्रेनें धुवारण तक जाया करती थीं, अब कठाणा तक ही आती हैं। सुनने में आया है कि वो पावर प्लांट अब दोबारा चालू होगा। इसलिये फिर से धुवारण तक ट्रेन पहुंचने की सम्भावना दिखाई दे रही है।
ट्रेन के कठाणा पहुंचने का समय 11:55 है लेकिन यह दस मिनट पहले ही पहुंच गई। अब मुझे भादरण से 14:10 बजे चलने वाली नैरोगेज की ट्रेन पकडनी थी। दो घण्टे से ज्यादा का समय मेरे पास था और मुझे कठाणा से भादरण की लगभग 20 किलोमीटर की दूरी सडक मार्ग से तय करनी थी। कठाणा स्टेशन से थोडा पहले रेलवे लाइन कठाना-बोरसद रोड को पार करती है। इसी दौरान मैंने देख लिया था कि सडक पर ठीक-ठाक ट्रैफिक था और थ्री-व्हीलर भी खडे थे। मैंने सोच लिया था कि स्टेशन से थोडा पैदल चलकर इस रोड पर पहुंचूंगा और थ्री-व्हीलर पकडकर या तो बोरसद चला जाऊंगा या फिर इस सडक पर नैरोगेज के फाटक पर उतर जाऊंगा। फाटक से भादरण तीन किलोमीटर दूर है, आसानी से जा सकता हूं।
विमलेश जी ने यहां भी स्टेशन मास्टर को मेरे बारे में बता रखा था और यह भी कह रखा था कि किसी भी तरह मुझे दो बजे से पहले भादरण पहुंचाने की व्यवस्था करें। यह गुजरात का एकदम सुदूर इलाका है। एक तरफ खम्भात की खाडी है। आसपास कोई शहर भी नहीं है कि यातायात के साधन आसानी से मिल जायें। इसलिये दो घण्टे में भादरण पहुंचने में सन्देह भी था। लेकिन स्टेशन मास्टर ने सारा सन्देह दूर कर दिया। एक मोटरसाइकिल का इंतजाम हो गया और मुझे पांच-छह किलोमीटर दूर दहेवान छोड दिया। यहां से भादरण के लिये सीधा थ्री-व्हीलर मिल गया। इसने सवारियों के चक्कर में गांवों में थोडा अतिरिक्त चक्कर जरूर लगाया लेकिन मैं डेढ बजे तक भादरण पहुंच गया। इसकी सूचना तुरन्त विमलेश जी को दे दी। उन्होंने भी सुकून की सांस ली।
ट्रेन के कठाणा पहुंचने का समय 11:55 है लेकिन यह दस मिनट पहले ही पहुंच गई। अब मुझे भादरण से 14:10 बजे चलने वाली नैरोगेज की ट्रेन पकडनी थी। दो घण्टे से ज्यादा का समय मेरे पास था और मुझे कठाणा से भादरण की लगभग 20 किलोमीटर की दूरी सडक मार्ग से तय करनी थी। कठाणा स्टेशन से थोडा पहले रेलवे लाइन कठाना-बोरसद रोड को पार करती है। इसी दौरान मैंने देख लिया था कि सडक पर ठीक-ठाक ट्रैफिक था और थ्री-व्हीलर भी खडे थे। मैंने सोच लिया था कि स्टेशन से थोडा पैदल चलकर इस रोड पर पहुंचूंगा और थ्री-व्हीलर पकडकर या तो बोरसद चला जाऊंगा या फिर इस सडक पर नैरोगेज के फाटक पर उतर जाऊंगा। फाटक से भादरण तीन किलोमीटर दूर है, आसानी से जा सकता हूं।
विमलेश जी ने यहां भी स्टेशन मास्टर को मेरे बारे में बता रखा था और यह भी कह रखा था कि किसी भी तरह मुझे दो बजे से पहले भादरण पहुंचाने की व्यवस्था करें। यह गुजरात का एकदम सुदूर इलाका है। एक तरफ खम्भात की खाडी है। आसपास कोई शहर भी नहीं है कि यातायात के साधन आसानी से मिल जायें। इसलिये दो घण्टे में भादरण पहुंचने में सन्देह भी था। लेकिन स्टेशन मास्टर ने सारा सन्देह दूर कर दिया। एक मोटरसाइकिल का इंतजाम हो गया और मुझे पांच-छह किलोमीटर दूर दहेवान छोड दिया। यहां से भादरण के लिये सीधा थ्री-व्हीलर मिल गया। इसने सवारियों के चक्कर में गांवों में थोडा अतिरिक्त चक्कर जरूर लगाया लेकिन मैं डेढ बजे तक भादरण पहुंच गया। इसकी सूचना तुरन्त विमलेश जी को दे दी। उन्होंने भी सुकून की सांस ली।
दो डिब्बों की नैरोगेज की ट्रेन यहां खडी हुई थी। गार्ड, ड्राइवर और गेटमैन बाहर बरगद के पेड के नीचे विश्राम कर रहे थे। 14:10 बजे ट्रेन यहां से चलेगी। भूख लग रही थी। स्टेशन के आसपास कुछ नहीं मिला। स्टेशन भी बिल्कुल उजाड है। ट्रेन चली जायेगी, तो कोई नहीं होगा यहां। रात में भूत नाचते होंगे।
दोनों डिब्बों में कुल मिलाकर 5-6 यात्री ही थे। जब मैं एक डिब्बे में बैठा हुआ था तो स्वयं गार्ड मेरे पास आया। उसके पास भी मेरी सूचना थी। सबसे साफ-सुथरा मैं ही था, इसलिये उन्होंने मुझे दूर से ही पहचान लिया।
ठीक समय पर ट्रेन चल पडी। दूर-दूर तक तम्बाखू की खेती। रास्ते में झरोला स्टेशन के अवशेष मिले। अब यहां ट्रेन नहीं रुकती। इसके बाद बोचासन जंक्शन है। स्टेशन मास्टर ने मूंग की गर्मागरम पकौडियां मंगा रखी थीं। ट्रेन में बैठकर इन्हें खाया तो पेट तृप्त हो गया।
दोनों डिब्बों में कुल मिलाकर 5-6 यात्री ही थे। जब मैं एक डिब्बे में बैठा हुआ था तो स्वयं गार्ड मेरे पास आया। उसके पास भी मेरी सूचना थी। सबसे साफ-सुथरा मैं ही था, इसलिये उन्होंने मुझे दूर से ही पहचान लिया।
ठीक समय पर ट्रेन चल पडी। दूर-दूर तक तम्बाखू की खेती। रास्ते में झरोला स्टेशन के अवशेष मिले। अब यहां ट्रेन नहीं रुकती। इसके बाद बोचासन जंक्शन है। स्टेशन मास्टर ने मूंग की गर्मागरम पकौडियां मंगा रखी थीं। ट्रेन में बैठकर इन्हें खाया तो पेट तृप्त हो गया।
भादरण स्टेशन |
तम्बाखू |
बोचासन में ब्रॉडगेज और नैरोगेज का क्रॉसिंग है- डायमण्ड क्रॉसिंग। पतली सी नैरोगेज और खूब चौडी ब्रॉडगेज का मिलन बडा अच्छा लग रहा था। इसी लाइन पर थोडा आगे पेटलाद में भी ऐसा ही क्रॉसिंग है। देश में नैरोगेज-ब्रॉडगेज का डायमण्ड क्रॉसिंग शायद ही कहीं और हो। हां, सिलीगुडी में भी है।
बोचासन स्टेशन |
बोचासन से चलकर ट्रेन सीधे पेटलाद जंक्शन ही रुकती है। दूरी 14 किलोमीटर है। लेकिन एक जमाने में इन दोनों के बीच में तीन स्टेशन और भी हुआ करते थे- धर्मज, सुन्दरणा और विश्रामपुरा। अब इनके अवशेष ही बचे हैं। फिर भी धर्मज और सुन्दरणा के बोर्ड मिल गये, जिनके अविलम्ब फोटो ले लिये। पेटलाद तक ट्रेन 20 की स्पीड से चलती है। एक जगह तो ‘फुल स्पीड’ से चलती ट्रेन को एक साइकिल वाला क्रॉस कर गया। ऐसे में कोई क्यों इसमें यात्रा करना चाहेगा? गुजरात भारत का सबसे विकसित राज्य माना जाता है। यहां अगर ऐसी ट्रेनें होंगी, तो कौन बैठेगा इनमें? एक जगह तो एक लडका अपने गांव के सामने से गुजरती ट्रेन में चढ गया और तीन-चार किलोमीटर आगे अगले गांव में उतर गया। इस लाइन को तो बन्द ही कर देना चाहिये। जब अधिकतम 10-15 किलोमीटर दूर आणंद-खम्भात लाइन है, तो कोई नडियाद जाने के लिये इसमें क्यों बैठेगा? यह सब दिखाई भी देता है। पूरी ट्रेन में कभी भी 8-10 से ज्यादा यात्री नहीं हुए।
धर्मज स्टेशन |
यह साइकिल वाला ट्रेन से आगे निकलने को बार-बार घण्टी बजा रहा था। |
बन्द हो चुका सुन्दरणा स्टेशन |
और यह है विश्रामपुरा के अवशेष |
पेटलाद जंक्शन में प्रवेश |
ट्रेन का पेटलाद में 20 मिनट का ठहराव है। इस दौरान स्टेशन स्टाफ की तरफ से चाय पिलाई गई। बरगद के पेड यहां भी बहुत हैं।
यहां से आगे चले तो विरोल, सोजीत्रा, डभोऊ, मलातज, देवा, वसो और पीज के बाद नडियाद जंक्शन हैं। इस समय डभोऊ और मलातज स्टेशन बन्द हैं। वडोदरा के उस तरफ डभोई है और इधर डभोऊ। यह बडा मजेदार लगा। लेकिन डभोऊ स्टेशन बन्द हो चुका है। मजेदार बात ये थी कि डभोऊ का स्टेशन बोर्ड एकदम साफ-सुथरा था और समुद्र तल से ऊंचाई भी स्पष्ट लिखी थी। शायद डभोई जैसा नाम होने के कारण रेलवे मेहरबान हो गया हो, या फिर हाल-फिलहाल में ही स्टेशन बन्द हुआ हो। मलातज का बोर्ड इतना खराब था कि कुछ भी नहीं पढा जा रहा था।
यहां से आगे चले तो विरोल, सोजीत्रा, डभोऊ, मलातज, देवा, वसो और पीज के बाद नडियाद जंक्शन हैं। इस समय डभोऊ और मलातज स्टेशन बन्द हैं। वडोदरा के उस तरफ डभोई है और इधर डभोऊ। यह बडा मजेदार लगा। लेकिन डभोऊ स्टेशन बन्द हो चुका है। मजेदार बात ये थी कि डभोऊ का स्टेशन बोर्ड एकदम साफ-सुथरा था और समुद्र तल से ऊंचाई भी स्पष्ट लिखी थी। शायद डभोई जैसा नाम होने के कारण रेलवे मेहरबान हो गया हो, या फिर हाल-फिलहाल में ही स्टेशन बन्द हुआ हो। मलातज का बोर्ड इतना खराब था कि कुछ भी नहीं पढा जा रहा था।
आधे घण्टे ही देरी से छह बजे नडियाद पहुंच गये। यहां भी एक सुपरवाइजर आ मिले। उन्होंने कोल्ड ड्रिंक मंगाने को चपरासी भेज दिया लेकिन उससे पहले ही मेमू आ गई। कोल्ड ड्रिंक छोड देनी पडी।
आणंद जंक्शन पहुंच गया। धर्मेन्द्र जी ने स्वागत किया। यहां डोरमेट्री में एक बिस्तर बुक था। धर्मेन्द्र जी ने बुकिंग ऑफिस में सारी लिखा-पढी करवाई। डोरमेट्री में पहुंचा तो आंखें फटी रह गईं। खूब बडा एलईडी, शानदार पेंटिंग, शानदार फर्नीचर और गजब साफ-सफाई और केवल दो ही बिस्तर। दूसरे बिस्तर की किसी की बुकिंग नहीं थी, इसलिये यह मेरा ही निजी कमरा बन गया था। अन्दर से कुण्डी लगाई और सामान की तरफ से भी बेफिक्र हो गया। खूब चौडा होकर नहाया, खूब चौडा होकर बैठा, उठा और आखिरकार सो गया।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यह कमरा केवल 100 रुपये का था। वैसे तो 100 रुपये में एक बिस्तर था, लेकिन यह इतना बडा आलीशान कमरा 100 रुपये में मेरा निजी कमरा बन गया। मैं इसका फोटो फेसबुक पर अपलोड करने से नहीं रोक पाया। कमाल की बात ये रही कि ज्यादातर मित्रों ने इस बात पर यकीन करने से इंकार कर दिया कि यह 100 रुपये में उपलब्ध था।
आणंद जंक्शन पहुंच गया। धर्मेन्द्र जी ने स्वागत किया। यहां डोरमेट्री में एक बिस्तर बुक था। धर्मेन्द्र जी ने बुकिंग ऑफिस में सारी लिखा-पढी करवाई। डोरमेट्री में पहुंचा तो आंखें फटी रह गईं। खूब बडा एलईडी, शानदार पेंटिंग, शानदार फर्नीचर और गजब साफ-सफाई और केवल दो ही बिस्तर। दूसरे बिस्तर की किसी की बुकिंग नहीं थी, इसलिये यह मेरा ही निजी कमरा बन गया था। अन्दर से कुण्डी लगाई और सामान की तरफ से भी बेफिक्र हो गया। खूब चौडा होकर नहाया, खूब चौडा होकर बैठा, उठा और आखिरकार सो गया।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यह कमरा केवल 100 रुपये का था। वैसे तो 100 रुपये में एक बिस्तर था, लेकिन यह इतना बडा आलीशान कमरा 100 रुपये में मेरा निजी कमरा बन गया। मैं इसका फोटो फेसबुक पर अपलोड करने से नहीं रोक पाया। कमाल की बात ये रही कि ज्यादातर मित्रों ने इस बात पर यकीन करने से इंकार कर दिया कि यह 100 रुपये में उपलब्ध था।
बरोडा में रेलवे के सम्पूर्ण इतिहास के बारे में जानने के लिये इसे पढें।
(http://ir.inflibnet.ac.in:8080/jspui/bitstream/10603/59850/8/08_chapter%204.pdf)
अगला भाग: खम्भात-आणंद-गोधरा पैसेंजर ट्रेन यात्रा
1. बिलीमोरा से वघई नैरोगेज रेलयात्रा
2. कोसम्बा से उमरपाडा नैरोगेज ट्रेन यात्रा
3. अंकलेश्वर-राजपीपला और भरूच-दहेज ट्रेन यात्रा
4. जम्बूसर-प्रतापनगर नैरोगेज यात्रा और रेल संग्रहालय
5. मियागाम करजन से मोटी कोरल और मालसर
6. मियागाम करजन - डभोई - चांदोद - छोटा उदेपुर - वडोदरा
7. मुम्बई लोकल ट्रेन यात्रा
8. वडोदरा-कठाणा और भादरण-नडियाद रेल यात्रा
9. खम्भात-आणंद-गोधरा पैसेंजर ट्रेन यात्रा
तो अाखिर इतने दिन बाद इस फ़ोटो का रहस्य खुला।
ReplyDeleteवैसे मैं अापकी ट्रेन यात्राओं को ज्यादा साहसिक मानता हूँ, इसके लिए जुनून चाहिए।
धन्यवाद निशान्त जी...
Deleteकमाल की यात्रा जारी है आपकी..पढ़कर मजा आ जाता है .. हाँ मेरी राय में कोई भी लाइन बंद नहीं होनी चाहिए ..उसे इस तरह विकसित करें की वो काम लायक हो जाय और लोग उसका इस्तेंमाल करें .
ReplyDeleteसही कहा संजय जी, मैं भी नहीं चाहता कि कोई लाइन बन्द हो। लेकिन यह लाइन ऐसे इलाके से होकर गुजरती है, जहां पहले ही ज्यादा की दो लाइनें हैं, और वो भी ज्यादा दूर नहीं। अब या तो इसका एलाइनमेंट ही परमानेंट बदला जाये, यानी किसी और स्थान के लिये नई लाइन बिछाई जाये या फिर इसे बन्द किया जाये। ब्रॉडगेज बनने के बाद दस सीटों वाली रेलबस भी चलेगी, तब भी खाली ही चलेगी।
Deleteशानदार और जानदार पोस्ट क्योंकि इसमे अच्छे-अच्छे बहुत सारे फोटो तो है ही साथ ही साथ इस रेल लाइन के इतिहास की बहुत गहराई और रुचिकर तरीके से दी गयी है क्योंकि ऐसी जानकारी समान्यतया उपलब्ध नहीं होती जिसे नीरज जी ने रोचक तरीके से दी है।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी...
DeleteWo plateform no 7 he neerajbhai.
ReplyDeleteधन्यवाद नवरोज़ साहब...
DeleteYeh blog vastav main logo ke liye atantya upukta jankari samate hue hain.
ReplyDeletemain 2013 tak delhi main hi rahta tha.
tab aapka blog padha hota to ekhad yatra main saath ho lene ke liye sampark awashya kata.
yeh post bhi classic lag rahi hai.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-06-2016) को "भूत, वर्तमान और भविष्य" (चर्चा अंक-2386) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
"देश में नैरोगेज-ब्रॉडगेज का डायमण्ड क्रॉसिंग शायद ही कहीं और हो। "
ReplyDeleteरतलाम में भी एक ऐसी क्रासिंग थी, जो अब गेज परिवर्तन की वजह से ब्रॉडगेज की हो गई है.
सर जी, रतलाम में नैरोगेज नहीं थी, बल्कि मीटरगेज थी। दूसरी बात कि वहां पुल था, शायद डायकण्ड क्रॉसिंग नहीं थी।
Deleteहाँ, आपने दुरुस्त फरमाया मीटरगेज था, पर डायमण्ड क्रासिंग ही था. पुल नहीं था.
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteदेश में जहां कुछ जगहों पर नैरो गेज और ब्रॉड गेज लाइन एक साथ है वहाँ नैरोगेज-ब्रॉडगेज का डायमण्ड क्रॉसिंग होने की संभावना रहती है। जैसा की नीरज जी ने बताया है सिलीगुड़ी में तो है। बालाघाट में भी थी तथा नागपुर के इतवारी में भी थी। अब है या नहीं पता नहीं ।
ReplyDelete
ReplyDeleteदो बात है मे्रे पास कहने को ! पहली ये कि मैं कभी गूगल करके ये नही देख पाता कि ये ट्रैन कहां है , कैसी है , क्यूँ है ? लेकिन अापका ब्लॉग ऐसी चीज पढ़ा देता है जो बहुत ही गंभीर अऊर अनजानी सी जानकारी देता है ! दूसरी बात ये कि अापकी ऐसी यात्राएं पढ़कर मऩ होने लग जाता है !!