दहेज वैसे तो एक औद्योगिक क्षेत्र है, बन्दरगाह भी है लेकिन है बिल्कुल उजाड सा। यहां हाल ही में विकास शुरू हुआ है, इसलिये काम होता-होता ही होगा। वैसे भी पूरे देश के औद्योगिक क्षेत्र एक जैसे ही दिखते हैं।
मेन चौराहे पर एक-डेढ घण्टे खडा रहा, तब जम्बूसर की बस आई। यहां चौराहे पर कुछ दुकानें थीं, जहां बेहद स्वादिष्ट पकौडियां मिल रही थीं। अक्सर स्वादिष्ट भोजन दूर-दराज के इन इलाकों में मिल जाता है। वो भी बहुत सस्ते में।
साढे ग्यारह बजे मैं जम्बूसर पहुंच गया। सुबह जल्दी उठा था, दो घण्टे की नींद बस में पूरी कर ली। वैसे तो मार्च का महीना था लेकिन जम्बूसर में काफी गर्मी थी। स्टेशन के पास ही एक होटल था, इसमें 90 रुपये की एक गुजराती थाली मिली। इसके साथ छाछ का गिलास ले लिया। इसे खाने के बाद रात में डिनर की भी आवश्यकता नहीं पडी। ट्रेन आने में अभी दो घण्टे बाकी थे, इसलिये स्टेशन पर ही एक बेंच पर जाकर सो गया।
जम्बूसर में लंच |
एक जमाना था जब जम्बूसर एक व्यस्त जंक्शन रहा करता था। यहां से प्रतापनगर अर्थात वडोदरा, भरूच और कावी की ट्रेनें चला करती थीं। अंग्रेजी जमाने की बिल्डिंग है जिसमें स्टेशन मास्टर का कार्यालय और सुरक्षा बलों के कार्यालय आदि हुआ करते थे। लेकिन भरूच-कावी लाइन बन्द हो जाने के बाद इसकी शक्ल बदल गई। अब यहां रेलवे का कोई भी स्टाफ नहीं होता। ट्रेन आयेगी, तो उसका गार्ड ही टिकट बांटेगा।
यहां एक पत्थर लगा है जिसपर प्रतापनगर से जम्बूसर तक रेलवे लाइन चालू होने की तारीखें लिखी हैं। प्रतापनगर स्टेशन को पहले गोयागेट कहते थे। गोयागेट से विश्वामित्री तक नैरोगेज लाइन 24 जनवरी 1881 को आरम्भ हुई थी। फिर इसका विस्तार होता गया और विश्वामित्री-पादरा खण्ड 01 जुलाई 1897 को, पादरा-मोभा खण्ड 10 जुलाई 1903 को, मोभा-मासर खण्ड 01 नवम्बर 1904 को और मासर-जम्बूसर खण्ड 01 मई 1917 को चालू हुए। यानी 50 किलोमीटर के इस सम्पूर्ण खण्ड को बनाने में 36 साल लग गये। हालांकि यह लाइन बरोडा स्टेट ने बनवाई थी, लेकिन समतल भूभाग में 50 किलोमीटर के लिये नैरोगेज लाइन बिछाने का यह बहुत लम्बा समय है।
हम बिना वजह ही प्रोजेक्ट लेट हो जाने के कारण वर्तमान समय को दोष देते हैं।
जम्बूसर स्टेशन अब भले ही खण्डहर सरीखा हो गया हो लेकिन इस पूरी यात्रा में मुझे यही स्थान सबसे ज्यादा पसन्द आया। कसम से, मैं अपनी ज्यादा अभिव्यक्ति तो नहीं व्यक्त कर सकता लेकिन ये जो दो घण्टे यहां बिताये, सबसे सुकून भरे थे। कोई कर्मचारी न होने के कारण साफ सफाई तो नहीं थी लेकिन जो भी गन्दगी थी, सब प्राकृतिक थी - कबूतरों की बीट, सूखे पत्ते, धूल। कंक्रीट की चार बेंचें थीं जिनमें पीछे कमर लगाने वाला हिस्सा भी कंक्रीट का ही था। मैं इनमें सबसे सुथरी बेंच पर लेट गया। सामने वाली बेंच पर एक आलू बेचने वाला आदमी लेटा था। बेंच पर जो कमर लगाने वाला हिस्सा था, वो असल में उसके ऊपर लेटा था। यह एक पतली सी जगह थी और नींद में वह नीचे भी गिर सकता था। उसका आलू का ठेला उस तरफ खडा था। दोपहर का समय था और स्टेशन पर छांव भी मिल रही थी और हवा भी अच्छी चल रही थी। वह अपने ठेले की रखवाली की गरज से वहां गलत जगह पर लेटा था। जाहिर है कि उसे नींद आयेगी।
जब दो तीन बार उसे झटके लग चुके, उसे समझ आया कि इस दीवार पर लेटे रहना अब बसकी नहीं, तो वह नीचे उतर गया और बेंच पर लेट गया। साथ ही थोडी दूर कुछ काम करते एक बूढे को इशारा कर दिया कि उसके ठेले की रखवाली करता रहे। फिर तो थोडी ही देर में वह गहन निद्रालोक में चला गया।
इसका मतलब है कि नींद का मारा मैं अकेला ही नमूना नहीं हूं। मेरे भी उस्ताद हैं दुनिया में।
जम्बूसर रेलवे स्टेशन |
एक बजे प्रतापनगर से ट्रेन आ गई लेकिन यह दो बजे के बाद ही चलेगी। मेरी आंख खुल गई थी लेकिन आधा-पौना घण्टा और सो लेने के लिये मैं पडा रहा। वाकई जोरदार नींद आ रही थी और मैं ट्रेन की समय-सारणी को कोस रहा था कि इसे भी अभी ही आना था, थोडा और लेट कर देते तो क्या बिगड जाता इनका? आखिर प्रतापनगर जाकर इन्हें अपने घर ही तो जाना है।
विमलेश जी ने इस ट्रेन के गार्ड को भी मेरे बारे में बता दिया था। मैं गार्ड से सीधा तो नहीं मिला। पौने दो बजे जब मैं उठकर चला तो गार्ड और ड्राइवरों ने स्टेशन का एक कमरा खोल लिया था और वे वहां आराम कर रहे थे। गेटमैन यात्रियों को टिकट बांट रहा था। मैंने भी टिकट ले लिया। जब टिकट ले चुका तो गार्ड की निगाह मुझ पर पडी। वे पहचान गये और उन्होंने मुझसे टिकट न लेने को कहा- आपके बारे में सर ने बताया, तो आप तो स्टाफ के आदमी हो गये। आपको तो जरुरत ही नहीं है टिकट लेने की। मैंने कहा- टिकट जरूरी है।
बाकी ट्रेनों की तरह यह भी बिल्कुल खाली पडी थी। इतनी खाली कि जब ट्रेन चली तो इस पूरे डिब्बे में मैं अकेला यात्री था। हालांकि बाद में कुछ यात्री अवश्य आ गये।
ट्रेन प्रतापनगर की तरफ मुड रही है। यह सीधी लाइन कावी जाती है जो आजकल बन्द है। |
इस मार्ग के सभी स्टेशन हैं- जम्बूसर जंक्शन, जम्बूसर रोड, अणखी, मासर रोड, कुराल, मोभा रोड, भोज पादरा, रणु पीपरी, लतिपुरा, पादरा, भाईली, अटलादरा, विश्वामित्री और प्रतापनगर।
यहां भी वन-ट्रेन-ओनली सिस्टम है यानी एक बार प्रतापनगर से कोई ट्रेन चल पडी तो जब तक यह ट्रेन वापस नहीं आ जाती, तब तक कोई दूसरी ट्रेन नहीं भेजी जायेगी। रास्ते में कोई सिग्नल नहीं है। फाटक जरूर हैं, जिन्हें बन्द करने और खोलने के लिये गेटमैन ट्रेन में ही यात्रा करता है। हालांकि जम्बूसर में और विश्वामित्री के आसपास के व्यस्त फाटकों के लिये स्थायी गेटमैन नियुक्त है। पूरे दिन में ट्रेन दो चक्कर लगाती है। और हां, गार्ड टिकट बांटता है।
वडोदरा नगर में प्रवेश |
विश्वामित्री- नीचे छोटी लाइन और इसके ऊपर बडी लाइन का स्टेशन |
विश्वामित्री में इस छोटी लाइन के ऊपर से वडोदरा-मुम्बई लाइन गुजरती है और ऊपर ही बडी लाइन का विश्वामित्री स्टेशन भी है। छोटी लाइन और बडी लाइन का इस तरह का क्रॉसिंग देश में कई जगह है, हालांकि अब ज्यादातर छोटी लाइनों को बडा बना दिया है। और एक प्लेटफार्म के ऊपर से या नीचे से कोई दूसरी लाइन गिनी चुनी जगहों पर ही है। एक तो हाथरस में है- हाथरस रोड और हाथरस जंक्शन और मुम्बई में भी है कोपर स्टेशन। और कहां है? फिलहाल ध्यान नहीं पड रहा। ध्यान आयेगा तो बताऊंगा।
प्रतापनगर उतरा तो निखिलेश मिल गये। ये विमलेश जी के लडके हैं। गौरतलब है कि विमलेश जी का परिवार वडोदरा में ही रहता है तो उन्होंने निखिलेश को भेज दिया। शाम का समय था और दिन ढलने लगा था। स्टेशन के पास ही रेलवे हेरीटेज संग्रहालय है। संग्रहालय बन्द होने ही वाला था लेकिन विमलेश जी जिन्दाबाद।
प्रतापनगर उतरा तो निखिलेश मिल गये। ये विमलेश जी के लडके हैं। गौरतलब है कि विमलेश जी का परिवार वडोदरा में ही रहता है तो उन्होंने निखिलेश को भेज दिया। शाम का समय था और दिन ढलने लगा था। स्टेशन के पास ही रेलवे हेरीटेज संग्रहालय है। संग्रहालय बन्द होने ही वाला था लेकिन विमलेश जी जिन्दाबाद।
समय कम था इसलिये जल्दी जल्दी में संग्रहालय देखा। वडोदरा डिवीजन ने इसे बनाने में बडी मेहनत कर रखी है। पुराने तथ्यों और चित्रों को संभालकर रखा हुआ है और अच्छे तरीके से प्रदर्शित कर रखा है। और करें भी क्यों न? इसके पास विश्व की सबसे पहली नैरोगेज ट्रेन चलाने का रिकार्ड जो है। 8 अप्रैल 1873 को मियागाम करजन से डभोई तक पहली नैरोगेज की ट्रेन चलाई गई थी। यह बरोडा रियासत की अपनी रेल कम्पनी थी - गायकवाड बरोडा स्टेट रेलवे। इसने वडोदरा के चारों तरफ नैरोगेज लाइनों का जाल बिछा दिया था। शुरू में बैलों से भी ट्रेनें चलाई गईं लेकिन बाद में बैलों का स्थान भाप इंजनों ने ले लिया। गायकवाड बरोडा स्टेट रेलवे का विलय आजादी के बाद बी.बी.एण्ड सी.आई. में कर दिया। बडी लाइन यानी गुजरात को मुम्बई से जोडने वाली लाइन बी.बी.एण्ड सी.आई. की थी। इन्हें बाद में पश्चिम रेलवे नाम दिया गया। वर्तमान में गायकवाड बरोडा रेलवे की बहुत सारी लाइनें बन्द हो गई हैं, वडोदरा से छोटा उदेपुर का गेज परिवर्तन हो गया है और कुछ अभी भी चल रही हैं। बाकी इनके ऐतिहासिक परिदृश्य के बारे में फिर कभी विस्तार से चर्चा करूंगा।
यह है इस इलाके में पहले रेलवे लाइनों का जाल |
नैरोगेज का एक टैंक यान |
संग्रहालय से निकलकर निखिलेश मुझे रेलवे स्टाफ कॉलेज ले गया। इसकी मुख्य इमारत बडी ही भव्य है। देखने से ही पता चल जाता है कि इसे महाराजा बरोडा और अंग्रेजों ने मिलकर बडी जी-जान से बनाया। वैसे तो वडोदरा पर्यटन की दृष्टि से कुछ खास नहीं है लेकिन अगर आपके पास थोडा समय हो, तो रेलवे स्टाफ कॉलेज जरूर देखें। यहां रेलवे और भारत सरकार के ग्रुप ए और ग्रुप बी यानी बडे-बडे अफसरों की ट्रेनिंग होती है। वैसे अब इसका नाम नेशनल एकेडमी ऑफ इण्डियन रेलवेज कर दिया गया है।
बाद में विमलेश जी ने यह कहकर मेरे होश उडा दिये कि अगर वे भावनगर की बजाय वडोदरा में होते तो स्टाफ कॉलेज में मेरा एक लेक्चर कराते। अब यह होश उडाने वाली बात ही है। जिसे यह भी नहीं पता कि माइक में बोला किधर से जाता है और पकडा किधर से; उसे रेलवे के अधिकारियों के सामने माइक पकडाकर खडा कर दिया जाता।
बाद में विमलेश जी ने यह कहकर मेरे होश उडा दिये कि अगर वे भावनगर की बजाय वडोदरा में होते तो स्टाफ कॉलेज में मेरा एक लेक्चर कराते। अब यह होश उडाने वाली बात ही है। जिसे यह भी नहीं पता कि माइक में बोला किधर से जाता है और पकडा किधर से; उसे रेलवे के अधिकारियों के सामने माइक पकडाकर खडा कर दिया जाता।
वडोदरा स्टेशन पर लग्जरी ट्रेन डेक्कन ओडिसी |
आज मेरी वडोदरा स्टेशन पर रिटायरिंग रूम में बुकिंग थी। निखिलेश मुझे स्टेशन छोड गया और विमलेश जी के कहे अनुसार ढेर सारा खाना और फल भी पकडा आया।
अगला भाग: मियागाम करजन से मोटी कोरल और मालसर
1. बिलीमोरा से वघई नैरोगेज रेलयात्रा
2. कोसम्बा से उमरपाडा नैरोगेज ट्रेन यात्रा
3. अंकलेश्वर-राजपीपला और भरूच-दहेज ट्रेन यात्रा
4. जम्बूसर-प्रतापनगर नैरोगेज यात्रा और रेल संग्रहालय
5. मियागाम करजन से मोटी कोरल और मालसर
6. मियागाम करजन - डभोई - चांदोद - छोटा उदेपुर - वडोदरा
7. मुम्बई लोकल ट्रेन यात्रा
8. वडोदरा-कठाणा और भादरण-नडियाद रेल यात्रा
9. खम्भात-आणंद-गोधरा पैसेंजर ट्रेन यात्रा
शानदार,गज़ब,अनोखा और काबिले तारीफ पोस्ट। सभी फोटो का क्या कहना,अच्छे या खूबसूरत फोटो का ढ़ेर लगा दिया । स्वादिष्ट भोजन खाने से फोटो भी शानदार आए है ।
ReplyDeleteekdam shandar photo bhai
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति ।
ReplyDeleteMaja aa gaya
ReplyDeleteआप की यात्राओं की दृष्यपूर्णता और वर्णन इतने संपूर्ण होते हैं कि पढ़ कर ही बहुत कुछ अनुभव का हिस्सा बन जाता है.
ReplyDeleteमजा आ गया भाई ! ऐसी ऐतिहासिक यात्रा आपके माध्यम से संभव हो सकी !धन्यवाद
ReplyDeleteनीरज भाई , आजकल आपके लेखन मे स्वाद आने लगा है अच्छा वाला।
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट | कुछ समय बाद बड़ोदरा जाना है पर समझ नहीं आ रहा था की वहाँ करेंगे क्या , आपने समस्या सुलझा दी |
jambusar gandiji ke dandi yatra ka ek padav tha .... historial place
ReplyDelete...
...
..
good
शानदार फोटो शानदार प्रस्तुति ।
ReplyDeleteI am from Jambusar.........Thanks Brother
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