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जनवरी में स्पीति: किब्बर भ्रमण


1. Sumit in Spiti8 जनवरी 2016
बारह बजे के आसपास जब किब्बर में प्रवेश किया तो बर्फबारी बन्द हो चुकी थी, लेकिन अब तक तकरीबन डेढ-दो इंच बर्फ पड चुकी थी। स्पीति में इतनी बर्फ पडने का अर्थ है कि सबकुछ सफेद हो गया। मौसम साफ हो गया। इससे दूर-दूर तक स्पीति की सफेदी दिखने लगी। गजब का नजारा था।
किब्बर लगभग 4200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसे दुनिया का सबसे ऊंचा गांव माना जाता है। हालांकि लद्दाख में एकाध गांव इससे भी ऊंचा मिल जायेगा, लेकिन फिर भी यह सबसे ऊंचे गांवों में से तो है ही। यहां पहला कदम रखते ही एक सूचना लिखी दिखी - “आमतौर पर यह परांग ला दर्रा (18800 फीट) माह जून से सितम्बर के बीच खुला रहता है। फिर भी जाने से पहले इसकी सूचना प्रशासन काजा से जरूर लें (दूरभाष संख्या 1906-222202) तथा खास कर 15 सितम्बर के पश्चात दर्रे को पार करने की कोशिश घातक हो सकती है। यदि आप स्थानीय प्रदर्शक को साथ लें तो यह आपकी सुरक्षा के लिये उचित होगा।”

2. Kibber to Tso Moriri Parang La Trek
2. परांग ला जाने की सूचना

गौरतलब है कि परांग ला दर्रा स्पीति और लद्दाख के बीच में स्थित है। यह तकरीबन पांच-छह दिनों का ट्रैक है और आप स्पीति से सीधे लद्दाख की सुप्रसिद्ध शो मोरीरी झील पर जा पहुंचते हैं। इस ट्रैक में शुरू के दो दिन ठीक चढाई है, उसके बाद चार दिन तक या तो नीचे उतरना है या फिर समतल में चलना है। कुल मिलाकर बेहद शानदार नजारों वाला ट्रैक है यह। चूंकि पहले शो मोरीरी जाने के लिये परमिट लगता था, इसलिये इस ट्रैक पर जाने का भी परमिट बनवाना पडता था। अब शो मोरीरी जाने का परमिट लद्दाख ने समाप्त कर दिया है, लेकिन स्पीति ने अभी भी इसे बरकरार रखा है। फिर परांग ला से तिब्बत सीमा ज्यादा दूर भी नहीं है।
चलिये, परांग ला ट्रैक की योजना बनाते हैं। चूंकि ट्रैक स्पीति से शुरू होकर लद्दाख में समाप्त होगा, तो अपने वाहन से स्पीति यानी किब्बर पहुंचना ठीक नहीं होगा। सार्वजनिक यातायात का ही सहारा लेना पडेगा। दिल्ली से दो दिन लगेंगे किब्बर पहुंचने में। फिर कम से कम एक दिन एक्लीमेटाइजेशन और कुछ तैयारियों- राशन आदि- के लिये भी चाहिये। दो दिन परांग ला तक पहुंचने के और उसके बाद कम से कम तीन दिन शो मोरीरी पहुंचने के। कुल दिन हुए 8, लेकिन अभी भी काम खत्म नहीं हुआ है। शो मोरीरी से सप्ताह में एक ही दिन बस चलती है, इसलिये डेबरिंग पहुंचना काफी मुश्किल होगा। या तो तीन दिन का ट्रैक करके शो मोरीरी से शो कार और फिर डेबरिंग पहुंचो या फिर शो मोरीरी से लिफ्ट मांगकर काम चलाओ। डेबरिंग से दो दिन मनाली पहुंचने के लगेंगे। यानी कम से कम 12-13 दिनों का काम है। परांग ला पर ज्यादा बर्फ मिलने की उम्मीद नहीं है, फिर भी सुरक्षित रखते हुए इसे अप्रैल से अक्टूबर तक किया जा सकता है। मानसून का समय सर्वोत्तम है, क्योंकि स्पीति और लद्दाख में मानसून का कोई प्रभाव नहीं होता।

3. Kibber in Winters
3. किब्बर गाँव





किब्बर में हमारा पहला काम था रुकने का ठिकाना ढूंढना। ड्राइवर और सुमित ने यह काम सम्भाला और सफल भी हुए। यह होमस्टे ही था- सरकोंग होमस्टे। घर में केवल मकान मालिक ही था, नाम था दोरजे (दोरजे का फोन नम्बर 9418411532 है)। होमस्टे में रुकने की सुमित की इच्छा पूरी होने जा रही थी। इन्होंने कई कमरे बना रखे हैं। भूतल पर भी और प्रथम तल पर भी। हमारे अलावा रुकने वाला कोई नहीं था, इसलिये हमने भूतल वाला कमरा चुना ताकि ठण्ड से बचे रहें। घर अच्छा बना हुआ है। मार्बल के फर्श पर बर्फ पड जाने से भयंकर फिसलन हो गई थी, जिसे तौलिया और एक-दो बोरियां बिछाकर कम किया गया।
रुकने का पक्का होते ही आज और कल की योजना अपने-आप बन गई। पहले योजना थी कि आज किब्बर देखेंगे और कल धनकर जायेंगे। लेकिन अब धनकर नहीं जाना है। यह ड्राइवर को बता दिया। हमारे धनकर न जाने से वह थोडा निराश भी था। उसका निराश होना लाजिमी है। कल शाम तक हमें काजा पहुंचना है, हम पहुंच ही जायेंगे। इसलिये ड्राइवर को कह दिया कि कल हमें लेने मत आना। अगर आवश्यकता हुई तो उसे फोन करके बुला लेंगे।
बर्फबारी बन्द हो गई थी। तापमान माइनस छह डिग्री था। पानी का एकमात्र स्रोत पाइप था। लगातार बहते रहने से पाइप में पानी जमता नहीं और यही पूरे किब्बर के प्रत्येक प्राणी की प्यास बुझाता है। कहीं ऊपर से भूमिगत पानी निकलता है जो सर्दियों में भी जमता नहीं और उसे ही पाइप के माध्यम से गांव में लाया जाता है। लोग यहीं अपने पशुओं को लाकर पानी पिला रहे थे और भरकर भी ले जा रहे थे। याकों पर भी और सबसे ज्यादा गधों पर।
दोरजे एक मृदुभाषी व्यक्ति हैं। मैंने सबसे पहले उनसे परांग-ला ट्रैक के बारे में जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि वे भी इस ट्रैक को करवाते हैं और खच्चरों और स्थानीय लोगों का प्रबन्ध कर देते हैं। मुझे अकेले जाने की सम्भावनाओं के बारे में जानना था तो उन्होंने बताया कि अकेले भी जाया जा सकता है लेकिन राशन और टैंट-स्लीपिंग बैग साथ ले जाना पडेगा। काजा से परमिट आसानी से बन जाता है और बहुत से लोग आते-जाते मिलते हैं।

4. Kibber in Winters
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5. Kibber in Winters
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6. पानी ढोया जा रहा है.

7. Kibber in Winters
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8. आँगन से बर्फ हटाते दोरजे साहब

9. Kibber in Winters
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10. Kibber in Winters
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चाय पीने के बाद बारी थी किब्बर के आसपास घूमने की। किब्बर हिम तेंदुए के कारण प्रसिद्ध है। इसी कारण से किब्बर के आसपास का इलाका वाइल्ड लाइफ सेंचुरी भी है। सेंचुरी का यह अर्थ नहीं है कि यहां घना जंगल होगा और उसमें जाने के लिये आपको सफारी और हाथी आदि का इंतजाम करना होगा। बल्कि पूरे स्पीति की तरह यह भी बिल्कुल वनस्पति-विहीन इलाका है और आप बिना रोक-टोक के कहीं भी आ-जा सकते हैं। जाहिर है कि यह आना-जाना पैदल ही होगा। हालांकि किब्बर से थोडा आगे एक गांव है, फिलहाल नाम ध्यान से उतर गया। हां, याद आ गया- चीचम। चीचम और किब्बर के बीच में एक नदी है जो बहुत गहरी घाटी बनाकर बहती है जिससे इधर से उधर जाना बेहद मुश्किल है। कल जब हम लोसर गये थे तो रास्ते में एक तिराहा मिला था। वहां से तीसरी सडक चीचम तक गई थी। अब इस नदी पर पुल बनाने का काम चल रहा है। पुल बन जायेगा तो लाहौल से आने पर यानी कुंजुम और लोसर की तरफ से आने पर और किब्बर जाने के लिये आपको काजा तक जाने की जरुरत नहीं पडेगी। अगर आप गूगल मैप पर देखेंगे तो लोसर से सीधे किब्बर तक यह सडक पूरी बनी दिखाई गई है। सडक तो पूरी बनी है लेकिन वो पुल अभी नहीं बना है, इसलिये लोसर से सीधे किब्बर जाने की कोशिश करना बेकार है। अगर आप भी लोसर से इसी सडक से सीधे किब्बर जाना चाहते हैं तो लोसर में यह जरूर पक्का कर लें कि वो पुल बन गया है या नहीं।
किब्बर से इस पुल की दूरी करीब दो किलोमीटर है। पक्की सडक बनी है। हम इसी पर चल दिये। अब बर्फबारी तो नहीं हो रही थी लेकिन सुबह और रात बर्फबारी होने के कारण सबकुछ सफेद हो गया था। हिमालय पार यानी लाहौल-स्पीति और लद्दाख की यही खासियत है कि थोडी सी बर्फबारी होने पर भी सबकुछ सफेद हो जाता है। बडा अच्छा लगता है। दूर-दूर तक प्रत्येक चीज सफेदी से ढक जाती है। हालांकि दो इंच ही बर्फबारी हुई थी जो धूप निकलने पर पिघलती जायेगी। लेकिन फिलहाल यह पिघली नहीं थी और सुन्दरता में चार से भी ज्यादा चांद लगे थे।
जल्दी ही हम पुल के पास पहुंच गये। सडक पर भी बर्फ थी और अनछुई बर्फ पर चलने में बडा आनन्द आ रहा था। कुछ ही देर पहले एक गाडी पुल की तरफ गई थी और अभी तक वापस नहीं लौटी थी। बर्फ से यह पता चल रहा था। हम पुल पर पहुंचे तो देखा कि कुछ गाडियां वहां खडी थीं। सामने वाले गांव में यानी चीचम में सामान पहुंचाने के लिये ये लोग यहां आये थे। सस्पेंशन पुल का काम चल रहा था और दोनों किनारों पर पिलर खडे करके तार भी खींच दिये थे। अब बस इन तारों पर सडक रख देने का ही काम बाकी था। सबकुछ ठीक चलता रहा तो इसी सीजन में यह पुल बन जायेगा। इसी के बराबर में थोडा नीचे एक तारपुल भी है जो काफी पहले से काम में लाया जा रहा है। इसमें इधर से उधर दो तार बंधे होते हैं। एक छोटी सी तारगाडी बंधी होती है। इसमें बैठकर और दूसरे तार की मदद से इधर से उधर जाया जाता है। हम भी इसका लुत्फ उठाने का विचार कर रहे थे लेकिन क्रान्तिक तापमान ने रोक लिया।
नदी घाटी यहां बहुत गहरी है। साथ ही दुर्गम भी। हालांकि नीचे एक सडक भी दिख रही थी। यह मेरे लिये आश्चर्य की बात थी। सुमित ने कहा कि वो पगडण्डी है लेकिन मुझे यह सडक ही लगती रही। ऐसे दुर्गम में ही हिम तेंदुआ मिलता है। हमने एक जगह बैठकर खूब देखा, यहां तक कि कैमरे को जूम करके भी देखा लेकिन कोई नहीं दिखा।

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15. किब्बर वैसे तो हिम तेन्दुए के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यहाँ गधे सबसे ज्यादा हैं. आप भी किब्बर जाओगे, तो आपको गधों पर फोकस करना ही पड़ेगा. सुमित भी गधों के पीछे पड़ा रहा. 

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17. Chicham Village near Kibber
17. सामने नीचे दिखता चीचम गाँव 

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29. Kibber in Winters
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कुछ देर यहां बैठकर वापस किब्बर की ओर चल दिये। अब तक धूप भी निकल गई थी और बर्फ पिघलने लगी थी। पहाड श्वेताम्बर से दिगम्बर होने लगे थे।
घर पर पहुंचे तो देखा कि एक आदमी और दोरजे साहब हमारे कमरे में खडे होकर कुछ बातचीत कर रहे थे। वो आदमी शक्ल से नीचे का लग रहा था यानी शिमला-कांगडा की तरफ का। मेरी छठीं इन्द्री ने कहा कि कुछ तो गडबड है। मैंने सोचा कि वो कोई सरकारी आदमी होगा। हम यहां रुके थे तो दोरजे ने हमारी कहीं भी लिखा-पढी नहीं की थी। इन दूरस्थ स्थानों में ऐसा होना आम है। कहीं वो आदमी दोरजे को परेशान करने तो नहीं आया? वे हालांकि हमारे कमरे थे, फिर भी हम वापस आकर कमरे में न जाकर ऊपर छत पर चले गये। वहां से आती-जाती भेडें, गधे, अपनी छतों से बर्फ हटाते लोग; यानी बाहर काफी व्यस्तता दिख रही थी।
जब वो आदमी चला गया तो हम नीचे उतरे और दोरजे साहब से पहला ही प्रश्न पूछा- वो कौन था? दोरजे ने मुस्कराते हुए कहा- स्कूल का प्रिंसिपल था। आओ, अन्दर आओ। आपको सारी बात बताता हूं। हम अन्दर गये। दोरजे के अपने कमरे में। इसमें बीचोंबीच चूल्हा जल रहा था और काफी गर्म था। चाय पीते हुए उन्होंने जो बताया, वो इस प्रकार था-
किब्बर के स्कूल के लिये कुछ समय पहले शिक्षकों की भर्ती निकली थी। न्यूनतम योग्यता थी बीएड में 50 प्रतिशत अंक। साथ ही एसटी यानी जनजातीय उम्मीदवारों को 5 प्रतिशत की छूट भी थी। स्पीति में सभी लोग एसटी हैं। पास के गांव की एक महिला के 45 प्रतिशत अंक थे, तो उसने आवेदन कर दिया। दोरजे की पत्नी के 43 प्रतिशत अंक थे, लेकिन फिर भी इन्होंने भी आवेदन कर दिया। नियुक्ति देने का अधिकार काजा एसडीएम के पास था तो निर्धारित दिन पर ये दोनों, स्कूल का प्रिंसिपल और गांव का प्रधान काजा पहुंचे। जाहिर था कि दोरजे की पत्नी को नियुक्ति नहीं मिली। उस दिन एसडीएम ने उस दूसरी महिला को नियुक्ति-पत्र दे दिया।
दोरजे जंगल विभाग में है और इनकी पोस्टिंग किब्बर में ही है। आजकल इनका काम सर्दियों के मद्देनजर हर परिवार को जलाऊ लकडी मुहैया कराने का है। तो इन्हें पता चला कि जिन लोगों ने 1993 से पहले (पक्का मुझे याद नहीं) बीएड किया है, उन्हें भी 5 प्रतिशत की अतिरिक्त छूट दी जायेगी। ऐसा इस भर्ती की सूचना में तो नहीं लिखा था लेकिन हिमाचल का कोई पुराना नियम था। इनका कोई जानकार शिमला में है। इन्होंने उससे इसके बारे में पता करने को कहा। अगले ही दिन उसने दोरजे के पास फैक्स भेज दिया। दोरजे की पत्नी फैक्स लेकर एसडीएम के पास गईं। अब इनके लिये न्यूनतम योग्यता 40 प्रतिशत हो गई। जबकि उस दूसरी महिला ने 1993 के बाद बीएड किया था, इसलिये उनकी योग्यता 45 प्रतिशत ही रही। श्रीमति दोरजे के अंक न्यूनतम योग्यता से 3 प्रतिशत अधिक थे, और उस महिला के अंक न्यूनतम योग्यता के बराबर ही थे। एसडीएम ने बात सुनी और उस महिला का नियुक्ति-पत्र रद्द कर दिया और श्रीमति दोरजे को नियुक्ति-पत्र दे दिया। जिस दिन एसडीएम ने नियुक्ति-पत्र इन्हें दिया, उस दिन काजा में किब्बर का प्रधान नहीं था। नियुक्ति के समय प्रधान के हस्ताक्षर की भी जरुरत होती है।
अब जब ये लोग हस्ताक्षर कराने प्रधान के पास पहुंचे, तो उसने मना कर दिया। उसकी जानकारी में अभी भी नियुक्ति उस दूसरी महिला को ही दी जानी थी। प्रधान को प्रिंसिपल ने भी समझाया लेकिन वो नहीं माना। फिर दोरजे सरकारी विभाग में है, होमस्टे बना रखा है जो बहुत अच्छा चलता है, तो प्रधान को जलन भी है। उसने हस्ताक्षर नहीं किये। इसी मामले में बातचीत करने प्रिंसिपल दोरजे के घर आया था।
अब दोरजे ने मुझसे पूछा- आप दिल्ली वाले हो। बताओ, हमें क्या करना चाहिये। मैंने पूरे मामले को समझा। मुझे व्यक्तिगत रूप से दो चीजें अच्छी नहीं लगीं- पहली, दूसरी महिला के 45 प्रतिशत अंक थे और श्रीमति दोरजे के 43 प्रतिशत। इसके बाद भी श्रीमति दोरजे ज्यादा योग्य हैं। और दूसरी बात कि उस दूसरी महिला को नियुक्ति-पत्र दिया जा चुका था अर्थात नियुक्ति की बात खत्म हो चुकी थी। लेकिन फिर भी उसका नियुक्ति-पत्र रद्द कर दिया गया। उस महिला और उसके परिवार पर कैसी बीत रही होगी?
लेकिन एसडीएम ने भी कुछ गलत नहीं किया। सबकुछ नियमों के अन्तर्गत ही हुआ। दोरजे के पास एसडीएम के हस्ताक्षर वाला नियुक्ति-पत्र था जिसे इन्होंने प्रिंसिपल के पास जमा करा दिया था। इस नियुक्ति-पत्र के आधार पर प्रिंसिपल ने श्रीमति दोरजे को एक पत्र लिखा कि आप अपना मेडिकल सर्टिफिकेट भी प्रस्तुत करें जिसे ये अगले ही दिन काजा जाकर बनवा लाये और जमा कर दिया। प्रिंसिपल का पत्र और मेडिकल की एक प्रति दोरजे के पास थी। अब नियुक्ति में प्रधान के हस्ताक्षर की जरुरत थी। प्रधान हस्ताक्षर नहीं कर रहा था। काफी-सोच विचार के बाद मैंने सुझाव दिया- आप दो-तीन बार प्रधान से बात कर चुके हो लेकिन वो नहीं मान रहा। प्रिंसिपल आपको प्रधान से सुलह करने को कह रहा है, ठीक बात है। कल रविवार है, आप चाहो तो प्रधान से बात कर लो या मत करो। लेकिन सोमवार को एक पत्र प्रिंसिपल को लिखो कि हमने नियुक्ति की सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं। एसडीएम का पत्र और मेडिकल आपके पास जमा हो चुका है। आप हमें नियुक्ति दीजिये। प्रिंसिपल प्रधान के हस्ताक्षर के बिना नियुक्ति नहीं देगा, इस बात को प्रिंसिपल से लिखवा कर ले लो। या तो प्रिंसिपल स्वयं जाकर प्रधान को मनायेगा, या फिर जो भी होगा, आप उससे लिखवा लेना। इसके बाद सीधे काजा पहुंचो और बाकी आप जानते ही हैं कि वहां क्या करना है।
इस सलाह को सुनकर दोरजे बडे खुश हुए। कहने लगे कि यह बात तो हमारे दिमाग में आई ही नहीं। दिल्ली वाले पूरा देश चलाते हैं, आपने बिल्कुल सही सलाह दी है। इसमें प्रधान की गलती है और इसका उसे नुकसान होगा। वो एसडीएम के पत्र को चुनौती दे रहा है। फिर मैंने और सुमित ने अंग्रेजी में एक पत्र भी लिखा जिसे दोरजे सोमवार को प्रिंसिपल के सामने प्रस्तुत करेंगे। इस पत्र की अंग्रेजी सुमित ने बताई और लिखा मैंने। सुमित तो डाक्टर है। अगर वो प्रिंसिपल के नाम पत्र लिख देता, तो प्रिंसिपल देखते ही कहता कि मेडिकल स्टोर पर जाओ। दोरजे बेचारे मेडिकल स्टोर पर जाते और स्टोर वाला इन्हें दवाईयां भी दे देता।
बाद में पता चला कि प्रधान अपनी जिद पर अडा रहा। प्रिंसिपल ने इन्हें लिखकर दे दिया कि प्रधान के हस्ताक्षर के बिना नियुक्ति नहीं दी जा सकती। इसके बाद का पता नहीं।
हमें वैसे तो किसी की निजी जिन्दगी में नहीं झांकना चाहिये, लेकिन इस तरह की जो झलक मिल जाती हैं, वे यादगार होती हैं। प्रत्येक आदमी इसी तरह किसी न किसी मामले में उलझा रहता है, लेकिन हम जैसे बाहर वालों को कोई क्यों बतायेगा? हम तो ऊपर से उनके हंसते हुए चेहरे ही देखकर लौट आते हैं। अन्दर जो द्वन्द्व मचा होता है, उसकी हमें भनक तक नहीं लगती। यह शायद मेरे यात्रा जीवन का पहला अनुभव था कि किसी की नितान्त निजी जिन्दगी के बारे में जानने को मिला। इसके लिये मैं दोरजे को धन्यवाद दूंगा।
रात में जो खाना मिला, वो बेहतरीन खाना था। फिर ग्यारह बजे तक दोरजे दम्पत्ति से बातें करते रहे और अपने कमरे में आकर सो गये। सुमित को होमस्टे का अनुभव हो गया। होटल और होमस्टे में क्या फर्क होता है, वो धीरे धीरे समझने लगा।

30. Kibber in Winters
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34. Kibber in Winters
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अगला भाग: जनवरी में स्पीति: किब्बर में हिम-तेंदुए की खोज

1. जनवरी में स्पीति- दिल्ली से रीकांग पीओ
2. जनवरी में स्पीति - रीकांग पीओ से काजा
3. जनवरी में स्पीति - बर्फीला लोसर
4. जनवरी मे स्पीति: की गोम्पा
5. जनवरी में स्पीति: किब्बर भ्रमण
6. जनवरी में स्पीति: किब्बर में हिम-तेंदुए की खोज
7. जनवरी में स्पीति: काजा से दिल्ली वापस




Comments

  1. जैसे ही किब्बर में गाड़ी ने प्रवेश किया,वहाँ भयंकर सन्नाटा था,बिल्कुल लोसर की तरह,उस वक़्त दोपहर के 12 बजे होंगे,फिर भी लग रहा था जैसे उस गांव का सवेरा अभी नहीं हुवा है।
    ऐसे में मुझे होमस्टे मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी,लेकिन जब कोई इच्छा बलवती होती है तो,कुदरत भी बहादुरो का ही साथ देती है, तो मेरे मन की भी हो ही गई।

    किब्बर की खूबसूरती को निहारते हुवे चिचम गांव कि और भ्रमण पर जाना बहुत ही यादगार था,चारो और सुनसान, वीरान पहाड़,पूरा बर्फीला मंजर,और हम दौ सरफिरे।
    गये तो थे,हिमतेंदुवा देखने,न मिला तो गधे पर ही फोकस करते रहे,नीरज भाई ने तो एक वीडियो ही बना डाला,जोकि उस दिन का सबसे मनोरंजक वीडियो था।

    होमस्टे वापसी पर दोरजे जी की व्यथा कहानी शुरू हुई,जोकि रात के 11 बजे तक अनवरत जारी रही,कम से कम 4 घंटे।
    शुरुवात मे तो में भी साथ देता रहा,लेकिन फिरकुछ ही देर मे एक ही एक बात से बोर हो गया,लेकिन नीरज भाई ने सब कुछ ध्यान से सुना और सुझाव भी देते रहे,उनके कारण मुझे आराम मिलता रहा,और में दोरजे जी की छोटी सी वाचाल बच्ची से बतियाता रहा।
    नीरज भाई के एक वाक्य ने कि-मेडम जी कि नोकरी तो लगी पड़ी है। आप चिंता मत करो।
    ने दोरजे परिवार को काफी हिम्मत और उम्मीद दी।

    हम दोनों सर्द रात में चूल्हे के पास बेठकर दोरजे परिवार के साथ होमस्टे का असली मजा ले रहे थे,क्योकि काजा के होमस्टे में तो महिलाओं की सत्ता थी,इस कारण आजादी महसूस नहीं हो रही थी,और फिर किब्बर में खातिरदारी भी बढ़िया हो रही थी

    इतना आराम था वहाँ, फिर भी मेरी रात की नींद अच्छी नहीं रही,पहला कारण तो था कि इतनी उँचाई वाले स्थान पर रात बिताने का पहला अनुभव था और दूसरा कारण था कि, जब रात में फ़्रेश होने कमरे से बहार जाने लगा तो रात के 12 बजे होंगे,वाशरूम तक पंहुचा भी नहीं था कि, कमरे से एक तेज आवाज आई,-भाई देखना रात को यहाँ हिमतेंदुवा भी आ जाता है।
    उस वक़्त तो बहादुरी दिखा दी,और काम निपटा के वापस कमरे में आ गया।
    लेकिन इन भाई साहब ने वाकई में डरा तो दिया था।
    क्योकि भले ही नीरज भाई डराने का प्रयास कर रहे थे,लेकिन ऐसा हो भी सकता था।

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    1. ऐसी बातों से बोर नहीं होते भाई, उसकी व्यथा कहानी में अलग ही रस था, जो घुमक्कड़ी में दुर्लभ है. किसी की नितांत निजी बातें वास्तव में दुर्लभ ही होती हैं. तेंदुए का प्रकरण अगली पोस्ट में आयेगा.

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  2. हर फोटो विशेष है।
    फिर भी किब्बर की फोटोग्राफी के नजरिये से फोटो क्र.27
    नेचुरल फोटोग्राफी में फोटो क्र. 09
    मनोरंजन के हिसाब से फोटो क्र.30
    पसंद आये।
    बाकि फोटो क्र.31 निजी तौर पर स्पीति यात्रा का सबसे पसन्दीदा फोटो है।

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  3. नीरज भाई अब आपको क्षेत्रवार यात्रा वृत्तांत प्रकाशित करने का प्लान बनाना चाहिए. मेरे हिसाब से आपके पास मैटर(content) बहुत है.बस थोड़ा सरल सुग्राह्य और व्यवस्थित लेखन की ज़रुरत है.पब्लिशर मिलने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए.

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    1. धन्यवाद सर, इस बारे में विचार करूँगा.

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  4. परांग ला दर्रे के बारे में जानकारियां ज्ञानवर्धक लगी।
    फोटोज ने सर्दियों में किब्बर की खुबसूरती को चार चांद लगा दिये।

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  5. हर फ़ोटो बेहतरीन है

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  6. शानदार फ़ोटो,जानदार यात्रा और लेख। कौनसा अच्छा है कौनसा कम अच्छा ये निर्णय लेने में असमर्थ हैं नीरज भाई।

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    1. कोई बात नहीं सर जी... आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  7. नमस्ते नीरज भाई
    एक और नया ट्रैक। ये अच्छा है। हर ट्रैक का अलग ही मजा होता है। पोस्ट बहुत अच्छी है। फोटो अच्छे आए हैं पर एक जैसे ही लग रहे हैं शायद बर्फ के कारण ।काफी समय से मै आप के साथ किसी ट्रैक या बाइक यात्रा पर जाना चाहरहा हूँ, पता नहीं वो समय कब आएगा । अभी काफी उलझा हुआ हूँ । शीघ्र मुलाकात होगी, शायद अभी सही समय नहीं आया है।

    एक पाठक :-)

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  8. फोटो नं0 28 मुझे सबसे अधिक बढ़िया लगा। वैसे नीरज जी होम स्टे का Rent कितना था।

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    1. धन्यवाद अहमद साहब... उसका एक कमरे का किराया 500 रूपये था... खाना अलग.

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  9. 13,16,17,19 ,31,33 Awesame photography

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  10. धन्यवाद तिवारी जी...

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  11. धन्यवाद नीरज भाई विस्तृत जानकारी देने के लिए 👏👏
    वैसे जितना मजा आपको लिखने में नहीं आया होगा उससे ज्यादा मजा हम पढ़ने में आया👍👍👍

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इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब