27 नवम्बर 2015
ट्रेन नम्बर 51190... इलाहाबाद से आती है और इटारसी तक जाती है। इलाहाबाद से यह गाडी शाम सात बजे चलती है और अगली सुबह 06:10 बजे जबलपुर आ जाती है। मैंने पांच बजे का अलार्म लगा लिया था। अलार्म बजा और मैं उठ भी गया। देखा कि अभी ट्रेन कटनी ही पहुंची है यानी एक घण्टा लेट चल रही है तो फिर से छह बजे का अलार्म लगाकर सो गया। फिर छह बजे उठा, ट्रेन सिहोरा रोड के आसपास थी। अब मुझे भी और लेट होने की आवश्यकता नहीं थी। नहाकर डोरमेट्री छोड दी। बाहर इलेक्ट्रॉनिक सूचना-पट्ट बता रहा था कि यह ट्रेन प्लेटफार्म नम्बर एक पर आयेगी। मैंने टिकट लिया और प्लेटफार्म एक पर कटनी साइड में आखिर में बैठ गया।
अब देखिये क्या हुआ? तो जी, स्टेशन का नजारा कुछ ऐसा था कि लखनऊ-यशवन्तपुर एक्सप्रेस प्लेटफार्म एक पर थी, प्लेटफार्म दो पर सोमनाथ एक्सप्रेस थी और चार पर रीवा पैसेंजर। सोमनाथ कुछ ही देर पहले जबलपुर आई थी। यह ट्रेन चूंकि यहीं तक आती है, तो इसे प्लेटफार्म 2 से हटाकर साइडिंग में ले गये। प्लेटफार्म 2 खाली हुआ तो इस पर भोपाल-इटारसी विन्ध्याचल एक्सप्रेस आ गई। वैसे तो भोपाल से इटारसी लगभग 100 किमी है, लेकिन यह ट्रेन भोपाल से चलकर बीना, कटनी और जबलपुर का चक्कर लगाकर इटारसी पहुंचती है और 700 किमी से ज्यादा की दूरी तय करती है। इसमें दो मालडिब्बे भी थे। इन मालडिब्बों को इससे हटाकर कहीं और पहुंचा दिया। 07:18 बजे विन्ध्याचल एक्सप्रेस चली गई।
ठीक इसी समय अमरावती-जबलपुर एक्सप्रेस और कटरा-जबलपुर एक्सप्रेस के आने की उद्घोषणा होने लगी। अमरावती एक्सप्रेस इटारसी की तरफ से आयेगी और कटरा एक्सप्रेस कटनी की तरफ से। दस मिनट तक उद्घोषणा होती रही। आखिरकार 07:28 बजे कटरा एक्सप्रेस प्लेटफार्म 3 पर आई। 07:33 बजे प्लेटफार्म 4 से रीवा पैसेंजर प्रस्थान कर गई। 07:39 बजे अमरावती एक्सप्रेस प्लेटफार्म 2 पर आई। इस पर हजरत निजामुद्दीन-जबलपुर-अमरावती लिखा था, तो जाहिर है कि यही डिब्बे निजामुद्दीन भी जाते हैं। लेकिन अभी यह ट्रेन निजामुद्दीन नहीं जायेगी। सुबह का समय है और अभी तो इसे वाशिंग लाइन पर ले जायेंगे। शाम को यह निजामुद्दीन जायेगी।
प्लेटफार्म 1 अभी खाली पडा था और मेरी इटारसी वाली पैसेंजर जबलपुर से पिछले स्टेशन आधारतल पर खडी थी। उम्मीद होने लगी कि अब वो ट्रेन आयेगी लेकिन 07:40 बजे इस उम्मीद पर पानी फिर गया। लखनऊ से जबलपुर आने वाली चित्रकूट एक्सप्रेस के प्लेटफार्म 4 पर आने की उद्घोषणा होने लगी। चित्रकूट एक्सप्रेस कटनी की तरफ से आयेगी और आधारतल में वह मेरी पैसेंजर से आगे निकल जायेगी। वैसे तो पश्चिम मध्य रेलवे इस तरह की लेटलतीफी नहीं करता लेकिन अगर आज ऐसा हो रहा है तो जरूर कोई ऐसी बात है जो हमें नहीं पता। बडी आसानी से पैसेंजर को प्लेटफार्म एक पर लाकर चित्रकूट को चार पर लिया जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो जरूर कुछ खास बात है। चलिये, दूसरी ट्रेनें जबलपुर आ-जा रही हैं, उन्हें ही देखकर आनन्द मनाते हैं।
07:47 बजे चित्रकूट एक्सप्रेस प्लेटफार्म 4 पर आई। इसमें पूर्व-मध्य रेलवे के बरौनी-लखनऊ मेल के डिब्बे लगे थे। इसके आने के बाद पैसेंजर के आने की उम्मीद जगी लेकिन 07:53 पर उद्घोषणा होने लगी कि निजामुद्दीन से जबलपुर आने वाली सम्पर्क क्रान्ति एक्सप्रेस प्लेटफार्म 6 पर आयेगी। यह ट्रेन भी कटनी की तरफ से आती है, इसलिये पैसेंजर को आधारतल में अभी और रुकना पडेगा। सम्पर्क क्रान्ति अभी आई भी नहीं थी कि प्लेटफार्म एक पर श्रीधाम एक्सप्रेस के आने की उद्घोषणा होने लगी। श्रीधाम इटारसी की तरफ से आती है। श्रीधाम चूंकि जबलपुर तक ही है, इसलिये पहले यह ट्रेन जबलपुर आयेगी, फिर खाली होगी, फिर इसे हटाकर साइडिंग में ले जाया जायेगा, तब यह प्लेटफार्म खाली होगा और तभी मेरी पैसेंजर के आने की सम्भावना बनेगी। इसका मतलब अगले आधे घण्टे तक पैसेंजर नहीं आ रही।
सम्पर्क क्रान्ति और श्रीधाम के आने की उद्घोषणा होती रही। अचानक निजामुद्दीन-जबलपुर एक्सप्रेस के प्लेटफार्म 5 पर आने की उद्घोषणा भी होने लगी। अब एक बार जबलपुर स्टेशन का नजारा देखिये- प्लेटफार्म 1 पर श्रीधाम आयेगी, 2 पर अमरावती एक्सप्रेस खडी है, 3 पर कटरा एक्सप्रेस, 4 पर चित्रकूट, 5 पर निजामुद्दीन एक्सप्रेस आयेगी और 6 पर सम्पर्क क्रान्ति। यानी सभी प्लेटफार्म फुल हो गये। कमाल की बात ये है कि ये सभी ट्रेनें जबलपुर तक ही हैं। ये ट्रेनें आगे नहीं जायेंगीं। इन सभी को बाद में साइडिंग में ले जाया जायेगा।
आप बोर हो गये होंगे। चलिये, जल्दी जल्दी समय बिताते हैं। 09:58 बजे 1 पर दरभंगा से लोकमान्य तिलक जाने वाली पवन एक्सप्रेस आई। पवन एक्सप्रेस का नजारा ही शानदार था। किसी भी टॉयलेट में शीशा नहीं था और प्रत्येक टॉयलेट से तीन-तीन, चार-चार लोग बाहर झांक रहे थे। बिहारी ट्रेनों का यही हाल होता है। दस-दस रुपये में पूरी-सब्जी मिल रही थी। टॉयलेट वालों में भी वहीं बैठे-बैठे अपना पेट भरा। बेचारे पूरी रात से उसी में बैठे हैं। मैं सोच रहा हूं कि टॉयलेट पर तो उन्होंने कब्जा कर लिया। किसी को टट्टी लगी हो, तो कैसे की होगी उसने?
आखिरकार सवा चार घण्टे की देरी से उद्घोषणा हुई कि इलाहाबाद से इटारसी जाने वाली पैसेंजर प्लेटफार्म 1 पर आ रही है। पिछले चार घण्टे में मैंने 17 ट्रेनें आती-जाती देख लीं और उनकी उद्घोषणा होने से लेकर आने तक और प्रस्थान करने तक का सारा समय नोट कर लिया। चार घण्टे कैसे कट गये, पता ही नहीं चला। 10 बजकर 25 मिनट पर इटारसी पैसेंजर ने जबलपुर स्टेशन पर प्रवेश किया। ट्रेन लगभग खाली पडी थी और जो भी यात्री इसमें थे, सभी के चेहरे देखने लायक थे। सुबह छह बजे आने वाली ट्रेन आती-आती अब आई है।
10 बजकर 46 मिनट पर यानी चार घण्टे छब्बीस मिनट की देरी से यह ट्रेन इटारसी की ओर चल पडी और मेरी आज की यात्रा भी शुरू हो गई।
जबलपुर से निकले तो बायीं ओर नैरो गेज की लाइन दिखाई दी और कुछ ही आगे हाऊबाग स्टेशन भी दिखा। अब चूंकि इस नैरो गेज को ब्रॉड गेज में बदलने का काम शुरू हो चुका है तो शायद हाऊबाग स्टेशन बन्द हो जाये क्योंकि मदन महल से उस ब्रॉड गेज लाइन को जोडा गया है। छोटी लाइन जबलपुर शहर के बीच से जाती थी, इसलिये जमीन अधिग्रहण की सुविधा के लिये बडी लाइन को शहर के बाहर से निकाला गया है। भविष्य में मदन महल स्टेशन एक जंक्शन बन जायेगा।
मदन महल से अगला स्टेशन भेडाघाट है। आप कभी जबलपुर घूमने गये होंगे तो भेडाघाट भी अवश्य गये होंगे। लेकिन भेडाघाट स्टेशन नर्मदा वाले भेडाघाट से काफी दूर है। शायद बस या ऑटो चलते होंगे। भेडाघाट से अगला स्टेशन भिटोनी है और फिर नर्मदा पार करके बिक्रमपुर। नर्मदा पर यह पहला रेल-पुल है। इसके बाद अगला रेल-पुल होशंगाबाद में है, फिर ओंकारेश्वर के पास मीटर गेज लाइन का और आखिरी पुल भरूच-अंकलेश्वर के बीच में है।
नर्मदा पार करते ही भूदृश्य में परिवर्तन हो जाता है। अभी तक समतल जमीन थी जबकि अब ऊंची-नीची जमीन है। यह सतपुडा का ही विस्तार है। सतपुडा की पहाडियां नर्मदा के दक्षिण में ही हैं। ऊंची-नीची यह जमीन ट्रेन से चलने पर अच्छी लगती है।
फिर श्रीधाम स्टेशन है। नाम से तो यह कोई धार्मिक स्थान लगता है। फिर जबलपुर-नई दिल्ली के बीच चलने वाली एक ट्रेन श्रीधाम एक्सप्रेस भी है जिसे मैं आज इटारसी से पकडूंगा। मुझे नहीं पता कि श्रीधाम का क्या धार्मिक महत्व है। लेकिन हां, यहां पहली बार बिजली के खम्भे लगे मिले। गौरतलब है कि यह लाइन अभी तक विद्युतीकृत नहीं है। जबकि 19वीं सदी में नागपुर से पहले यहां ट्रेन चल पडी थी। मुम्बई से हावडा जाने के लिये यह सबसे पहली लाइन हुआ करती थी। बाद में नागपुर और छत्तीसगढ के रास्ते रेलवे लाइन बन गई तो मुम्बई से हावडा जाने के लिये इसका महत्व कम हो गया।
फिर श्रीधाम स्टेशन है। नाम से तो यह कोई धार्मिक स्थान लगता है। फिर जबलपुर-नई दिल्ली के बीच चलने वाली एक ट्रेन श्रीधाम एक्सप्रेस भी है जिसे मैं आज इटारसी से पकडूंगा। मुझे नहीं पता कि श्रीधाम का क्या धार्मिक महत्व है। लेकिन हां, यहां पहली बार बिजली के खम्भे लगे मिले। गौरतलब है कि यह लाइन अभी तक विद्युतीकृत नहीं है। जबकि 19वीं सदी में नागपुर से पहले यहां ट्रेन चल पडी थी। मुम्बई से हावडा जाने के लिये यह सबसे पहली लाइन हुआ करती थी। बाद में नागपुर और छत्तीसगढ के रास्ते रेलवे लाइन बन गई तो मुम्बई से हावडा जाने के लिये इसका महत्व कम हो गया।
फिर करकबेल स्टेशन है, फिर बेलखेडा और फिर शेर नदी पार करके घाट पिण्डरई स्टेशन। ये क्या नाम हुआ? शेर नदी? नर्मदा में शेर जाकर मिलती है। जरूर कोई न कोई कहानी होगी इसकी भी।
नरसिंहपुर में मुम्बई-हावडा मेल मिली। इसका अभी नाम ले रहे थे और नरसिंहपुर में यह मिल भी गई। इस लाइन की सबसे पुरानी ट्रेन है यह। मुम्बई से हावडा की सभी ट्रेनें नागपुर के रास्ते जाती हैं जबकि यही इकलौती ट्रेन है जो सबसे प्राचीन मार्ग पर चलती है इलाहाबाद के रास्ते।
नरसिंहपुर के बाद करेली, करपगांव और बोहनी स्टेशन हैं। बोहनी के बाद सक्कर नदी है। यह भी नर्मदा में मिलती है। सक्कर पार करके ट्रेन 10 मिनट के लिये रुकी और फिर है गाडरवारा। आप अगर ओशो को जानते हैं तो गाडरवारा का नाम भी सुना होगा। यह उनका जन्मस्थान है। या फ़िर शायद ननिहाल है। देखना पडेगा।
गाडरवारा में स्टेशन पर भारी भीड थी। ट्रेन रुकी तो कोई नही चढा। असल में इसके पीछे ही जबलपुर-सोमनाथ एक्सप्रेस आ रही है। ये सभी उसी ट्रेन के यात्री हैं। किसी को भोपाल जाना है, किसी को उज्जैन; तो वह ट्रेन सभी को ले जायेगी।
एक पुलिसवाला भी सपरिवार इसी ट्रेन में यात्रा कर रहा था। उन्हें सोनतलाई तक जाना था। पुलिसवाला वर्दी में था, मोटा पेट। मासूम सी सूरत। या फिर परिवार साथ होने के कारण सूरत मासूम लग रही थी अन्यथा पुलिसवाले मासूम नहीं होते। कितने अच्छे लगते हैं पुलिसवाले, जब ये निष्कपट भाव से हंसते हैं। पुलिसवालों, हंसना भी सीखो। कसम से, बहुत अच्छे लगते हो।
गाडरवारा के बाद सालीचौका रोड, जुन्हेटा और फिर बनखेडी है। बनखेडी में वाराणसी जाने वाली महानगरी आकर रुकी। प्लेटफार्म पर रुकी और चल दी। इसका यहां ठहराव नहीं है, कोई क्रॉसिंग भी नहीं; फिर भी पता नहीं क्यों रुकी? क्यों रुकी री तू महानगरी?
यहां चौलाई के लड्डू मिले - 10 रुपये के 10। मैंने 10 लड्डू ले लिये। मजा आ गया। एक बार खाकर 10 लड्डू और लिये। ऐसी चीजें फैक्ट्री की बनी हुई नहीं होतीं। स्थानीय लोग हाथों से इन्हें बनाते हैं। हममें से बहुत से लोग इन्हें ‘अन-हाईजेनिक’ बता देंगे लेकिन एक बार किसी गांव में जाकर चौलाई के लड्डू बनते देखना और खाकर देखना, खासकर छाछ के साथ। हम लोग तो छाछ में या दूध में लड्डू डालकर बडे चाव से खाते हैं। गांव और गांव की चीजें गन्दी हो सकती हैं, लेकिन ‘अन-हाईजेनिक’ नहीं होतीं।
बनखेडी में जबलपुर-सोमनाथ एक्सप्रेस हमारी ट्रेन से आगे निकल गई। इटारसी से यह ट्रेन भोपाल की तरफ चली जायेगी। काफी भीड थी।
यहां चौलाई के लड्डू मिले - 10 रुपये के 10। मैंने 10 लड्डू ले लिये। मजा आ गया। एक बार खाकर 10 लड्डू और लिये। ऐसी चीजें फैक्ट्री की बनी हुई नहीं होतीं। स्थानीय लोग हाथों से इन्हें बनाते हैं। हममें से बहुत से लोग इन्हें ‘अन-हाईजेनिक’ बता देंगे लेकिन एक बार किसी गांव में जाकर चौलाई के लड्डू बनते देखना और खाकर देखना, खासकर छाछ के साथ। हम लोग तो छाछ में या दूध में लड्डू डालकर बडे चाव से खाते हैं। गांव और गांव की चीजें गन्दी हो सकती हैं, लेकिन ‘अन-हाईजेनिक’ नहीं होतीं।
बनखेडी में जबलपुर-सोमनाथ एक्सप्रेस हमारी ट्रेन से आगे निकल गई। इटारसी से यह ट्रेन भोपाल की तरफ चली जायेगी। काफी भीड थी।
बनखेडी के बाद पिपरिया स्टेशन है। इसका नाम तो आपने खूब सुना होगा। जब पचमढी जाते हैं तो पिपरिया के रास्ते ही जाते हैं। पचमढी का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन यही है। यहां से पचमढी 50 किलोमीटर दूर है।
पिपरिया के बाद शोभापुर, सोहागपुर, गुरमखेडी और बागरा तवा स्टेशन हैं। बागरा तवा को यह नाम पास में बहती तवा नदी के कारण मिला है। तवा काफी चौडी नदी है और इसमें खूब पानी था। यह भी नर्मदा में जाकर मिल जाती है। यहां तवा नदी पर एक पुल है और उस पर सिंगल लाइन है। इसलिये बागरा तवा में हमारी ट्रेन काफी देर तक खडी रही। इटारसी की तरफ से एक मालगाडी आई, तब हमारी ट्रेन चली। इतनी व्यस्त लाइन पर जोकि धुर से धुर तक डबल बनी है, कोई सिंगल सेक्शन आ जाता है तो स्टेशन मास्टर और यातायात नियन्त्रक का काम बहुत ज्यादा बढ जाता है। यहां एक सुरंग भी है।
बागरा तवा के बाद सोनतलाई है, गुर्रा है और फिर इटारसी है। शाम पांच बजे ट्रेन इटारसी पहुंची यानी डेढ घण्टा लेट। जबलपुर से सवा चार घण्टे लेट चली थी और इटारसी तक आते-आते डेढ घण्टा लेट रह गई।
मेरी पांच दिनों से चलती आ रही पैसेंजर ट्रेन यात्रा अब समाप्त हो गई। रात साढे नौ बजे दिल्ली के लिये ट्रेन है। इतना समय इटारसी में इधर-उधर टहलने और खाने-पीने के लिये पर्याप्त था। समय से पहले ही ट्रेन आ गई लेकिन आधे घण्टे की देरी से चली। सुबह साढे आठ बजे आंख खुली, गाडी धौलपुर में खडी थी। आगरा तक पहुंचते-पहुंचते यह दो घण्टे लेट हो गई। फिर तो दिल्ली तक दो घण्टे ही लेट रही।
1. सतपुडा नैरो गेज पर आखिरी यात्रा-1
2. सतपुडा नैरो गेज पर आखिरी बार- छिन्दवाडा से नागपुर
3. सतपुडा नैरो गेज में आखिरी बार-2
4. जबलपुर से इटारसी पैसेंजर ट्रेन यात्रा
मैं एेसे ही एक पोस्ट को पढ़ना चाहता था. मुम्बई जाते हुए ये स्टेशन देखें हैं और सोचा करता था. धन्यवाद मित्र !
ReplyDeleteधन्यवाद तिवारी जी...
Deleteओशो रजनीश का जन्म तो भोपाल के पास रायसेन के गाँव कुच्चवाड़ा ने हुवा था।
ReplyDelete7 वर्ष की उम्र मे उनके नाना नानी के निधन के बाद वे अपने मातापिता के पास गाडरवाड़ा आ गये थे।
धन्यवाद सुमित भाई...
Deleteएक बार मैंने भी इटारसी से इलाहबाद तक इस ट्रेन से यात्रा की है.मजबूरी में करनी पड़ी.तब ये जबलपुर तक 4 घंटे लेट हो गयी थी.लेकिन इलाहबाद टाइम पर पहुँच गयी..
ReplyDeleteहाँ जी, ऐसा होता है....
DeleteNicely Written Neeraj............ANURAG SHARMA ,LUCKNOW
ReplyDeleteधन्यवाद अनुराग जी...
Deleteनीरज जी का एक और कारनामा
ReplyDeleteधन्यवाद गुप्ता जी...
Deleteस्टेशन पर 4 घंटे बैठकर लोकल ट्रेन का इंतजार करना वाकई हिम्मत का काम है और अगर किसी की नीरज भाई की तरह ट्रेन में दिलचस्पी हुई तो वो तो पूरा दिन भी स्टेशन पर बैठकर बिता सकता है ! स्टेशन के नाम वाकई लाजवाब है गुर्रा ! मुझे ये पंक्ति मस्त लगी, चलिये, दूसरी ट्रेनें जबलपुर आ-जा रही हैं, उन्हें ही देखकर आनन्द मनाते हैं ।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रदीप भाई...
Deletebahut hi accha !.. neraj !!..
ReplyDeleteलिखने का अंदाज़ हमेशा की तरह दिलकश।
ReplyDeletebadiya likha h...
ReplyDeleteis baar photos kam hai par acche hain...
अगली बार जबलपुर या कटनी आएं या यहां से गुजरें तो बताइयेगा । आपसे मिलना चाहूँगा प्लीज ।
ReplyDelete08966932123
Bhut badiya
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