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डायरी के पन्ने-25

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। इनसे आपकी धार्मिक और सामाजिक भावनाएं आहत हो सकती हैं। कृपया अपने विवेक से पढें।

1. दो धर्म... एक ही समय उत्पन्न हुए... एक ही स्थान से। एक पश्चिम में फैलता चला गया, एक पूर्व में। दोनों की विचारधाराएं समान। एक ईश्वर को मानने वाले, मूर्ति-पूजा न करने वाले। कट्टर। दोनों ने तत्कालीन स्थापित धर्मों को नुकसान पहुंचाया, कुचला, मारामारी की और अपना वजूद बढाते चले गये।
आज... दो हजार साल बाद... दोनों में फर्क साफ दिखता है। एक बहुत आगे निकल गया है और दूसरा आज भी वही दो हजार साल पुरानी जिन्दगी जी रहा है। दोनों धर्मों के पचास से भी ज्यादा देश हैं। एक ने देशों की सीमाएं तोड दी हैं और वसुधैव कुटुम्बकम को पुनर्जीवित करने की सफल कोशिश कर रहा है, दूसरा रोज नई-नई सीमाएं बनाता जा रहा है। एक ही देश के अन्दर कई देश बन चुके हैं और सभी एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं।


2. कभी कभी एक बात सोचता हूं। एक गरीब बच्चा है। उसका बाप भी गरीब ही था। बच्चा मेहनत करता है, अच्छा पढता है और अच्छी नौकरी प्राप्त कर लेता है। घर में पैसे आने शुरू हो जाते हैं। गरीबी समाप्त हो जाती है। बच्चा फिर भी नहीं रुकता। वो अपना कोई बिजनेस शुरू कर लेता है और बढिया अमीर बन जाता है। इसमें क्या बुराई है? सभी इसी कोशिश में पूरी जिन्दगी लगे रहते हैं, कुछ सफल हो जाते हैं, कुछ नहीं हो पाते। जो नहीं हो पाते, वे सफल लोगों की आलोचना शुरू कर देते हैं। दूसरे गरीबों का उदाहरण देकर उनके पैसे और अमीरी को कोसते रहते हैं। यही बात मुझे अच्छी नहीं लगती।
अपनी आमदनी के हिसाब से मैं बीस-तीस हजार खर्च कर दूं, कोई बीस-तीस लाख खर्च करता है तो बीस-तीस करोड खर्च करने वाले भी हैं। आमदनी है तो खर्च भी करेंगे। और आमदनी कोई रातोंरात ही नहीं हो जाती। मेहनत करनी पडती है, दिमाग लगाना पडता है, श्रम करना पडता है, समय लगाना पडता है, बलिदान करना पडता है, बहुत कुछ खोना पडता है; तब जाकर हजार की, लाख की, करोड की आमदनी होती है। तो जो अकर्मण्य हैं, जिन्होंने मेहनत नहीं की, बलिदान नहीं किया; वे इनकी आमदनी को देख-देखकर, इनके खर्चे को देखकर विलाप करने लगते हैं।
कोई धोनी झारखण्ड जैसे उजाड प्रदेश में पैदा होता है, मेहनत करता है और एक दिन कामयाबी के शिखर पर पहुंच जाता है। लेकिन जैसे ही वो शिखर पर पहुंच जाता है, उसकी आलोचना होने लगती है। कोई दूसरा अच्छा पढ-लिखकर एक फैक्टरी खोल लेता है, कारोबार बढने लगता है। वो करोडपति हो जाता है, पैसा बढता ही जाता है। फिर उसकी आलोचना शुरू होने लगती है- गरीबों के खून पसीने का पैसा। हालांकि सभी लोग उसके जैसा बनने की ही ख्वाहिश रखते हैं। लेकिन उसके जैसे नहीं बन सके तो उसकी आलोचना शुरू कर देते हैं। कम से कम मन को कुछ सुकून तो पहुंचता है।

3. एक पुस्तक पढ रहा था। इसमें एक उदाहरण दिया गया था कि कोपरनिकस ने पहली बार पता लगाया कि पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है। उससे पहले यही मान्यता थी कि सूरज पृथ्वी का चक्कर लगाता है। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि कोपरनिकस ने कैसे माना कि पृथ्वी चक्कर लगाती है और सूरज स्थिर है? उसके बाद विज्ञान और विकसित होता चला गया। सभी कोपरनिकस का ही समर्थन करते चले गये। लेकिन ये कैसे पता चलता है कि चक्कर सूरज नहीं लगा रहा है, पृथ्वी लगा रही है।
ब्रह्माण्ड अनन्त है। अनन्त इसकी लम्बाई है, अनन्त चौडाई है और अनन्त ही ऊंचाई-गहराई है। इसमें करोडों-अरबों-खरबों जो भी पिण्ड हैं, ग्रह हैं, उपग्रह है, आकाशगंगाएं हैं; सभी गतिमान हैं। विज्ञान तो यह भी मानता है कि जिस तरह पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है, उसी तरह सूरज भी किसी की परिक्रमा कर रहा है। लेकिन ये सब कैसे पता चला? पृथ्वी इतनी गति से गतिमान है, सूरज इतनी गति से गतिमान है। यह सब पता कैसे चला? इसे कैसे मापा जा सकता है?
किसी भी वस्तु की गति असल में सापेक्ष होती है। समझना इस बात को। कोई भी गतिमान वस्तु है, उसे हमेशा दूसरी वस्तु के सापेक्ष देखा जाता है। कोई गाडी पचास की स्पीड से चल रही है, हम खडे हैं, तो हमें वह पचास की स्पीड से जाती दिखेगी। अगर हम तीस की स्पीड से उसी की दिशा में चल रहे हैं, तो वह पचास की रफ्तार से दौडती गाडी हमें बीस की स्पीड से चलती दिखेगी। स्पीड उतनी ही है लेकिन हमारी स्थिति बदलने मात्र से उसकी स्पीड कम-फालतू लगने लगती है।
अब ब्रह्माण्ड में चलते हैं। यहां हर चीज गतिमान है, कोई कम स्पीड से चल रही है, कोई ज्यादा स्पीड से। हमने कहा पृथ्वी इतनी स्पीड से चल रही है तो अवश्य कोई सापेक्ष बिन्दु माना होगा। वह बिन्दु काल्पनिक भी हो सकता है और वास्तविक भी। जब पहली बार कभी गणना कर रहे होंगे तो उस बिन्दु को स्थिर मानना पडेगा अन्यथा गणना सटीक नहीं आयेगी। पहली बार स्थिर मानना पडेगा। जब एक बार किसी पिण्ड की जैसे कि पृथ्वी की गति पता चल गई तो उसके सापेक्ष दूसरे पिण्डों की गति भी पता की जा सकती है। लेकिन पहली बार आपको कोई स्थिर बिन्दु मानना ही पडेगा।
लेकिन इस ब्रह्माण्ड में हर पिण्ड गतिमान है। कोई भी स्थिर नहीं है, तो आप किसे स्थिर मानोगे? कोई काल्पनिक बिन्दु हो सकता है लेकिन त्रिआयामी अनन्त तक फैले ब्रह्माण्ड में आप कैसे निर्धारित करोगे कि वह काल्पनिक बिन्दु भी स्थिर है?
पहली बार जब पृथ्वी की गति मापी गई होगी तो सूरज को स्थिर मानते हुए मापी गई होगी। इसके आधार पर ब्रह्माण्ड में किसी भी पिण्ड की गति मापी जा सकती है। लेकिन बाद में पता चला कि सूरज भी गतिमान है। जब सूरज को स्थिर मानते हुए पृथ्वी की गति की गणना कर रहे थे, तो किसी को भी नहीं पता था कि सूरज भी गतिमान है और वो गणना अशुद्ध है। बाद में उस अशुद्ध गणना से ही सभी आकाशीय पिण्डों की गति निर्धारित कर दी गई। यह भी अशुद्ध ही होगी, गलत ही होगी।
हो सकता है कि कोई पिण्ड वास्तव में स्थिर हो। हो सकता है कि पृथ्वी ही स्थिर हो और सूरज, मंगल, तारे सब इसकी परिक्रमा कर रहे हों। हो सकता है कि मंगल या बृस्पति स्थिर हों और पृथ्वी, सूरज सब उसकी परिक्रमा कर रहे हों। कैसे आप निर्धारित करोगे कि कोई पिण्ड गतिमान नहीं है?

4. धीरज ने बताया कि वो आज उत्तम नगर गया था किसी कोचिंग संस्थान में कोचिंग के बारे में पता करने। वहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराते हैं। गौरतलब है कि धीरज ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में तीन वर्षीय डिप्लोमा कर रखा है। उसके बाद दो साल तक मेरठ में ही कोचिंग ली। अब दिल्ली मेरे साथ रह रहा है तो अब उसे दिल्ली की भी कोचिंग चाहिये। फीस थी पन्द्रह हजार रुपये और तीन महीने।
मैंने चूंकि कभी कोई कोचिंग नहीं ली इसलिये मुझे कोचिंग से चिढ सी है। उसने पहले ही दो साल तक कोचिंग ले रखी है, कुछ नहीं हुआ। अब क्या घण्टा होगा? उसकी स्कूल दिनों से ही समस्या रही है कि वो आसान विषयों को पूरे पूरे दिन महीनों तक पढ सकता है लेकिन कठिन विषयों की तरफ देखता तक नहीं। उसकी यही आदत अब मुसीबत बन चुकी है। उसके लिये दो विषय कठिन हैं- अंग्रेजी और सामान्य ज्ञान। किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में ये दोनों विषय अहम होते हैं। तकनीकी विषय जैसे कि मैकेनिकल या इलेक्ट्रिकल हम पहले ही कॉलेज में तीन साल तक पढ चुके होते हैं, इसलिये इनकी कोचिंग की जरुरत नहीं होती। उसे मैकेनिकल रास आ गई थी, इसलिये यह उसके लिये आसान विषय था। आसान था इसलिये मेरठ में उसने दो साल तक मैकेनिकल की ही कोचिंग ली। अंग्रेजी व सामान्य ज्ञान और भी कठिन होते चले गये। हर प्रतियोगिता में वह यहीं पर मार खा जाता था।
अब जब उसकी आंख खुली, वह कठिन विषयों की जरुरत महसूस करने लगा तो कोचिंग की तरफ भागा। चूंकि पन्द्रह हजार की बात थी, इसलिये मुझसे बताना जरूरी था। मैंने कहा- तू तीन घण्टे रोज वहां दिया करेगा और एक-डेढ घण्टा रोज का आने-जाने का। कुल हुए चार घण्टे। मैं अंग्रेजी में अच्छा हूं और सामान्य ज्ञान में तो निःसन्देह शानदार ही हूं। तू अगर मुझे दो घण्टे भी दिया करेगा तो तू सबकुछ सीख जायेगा। फिर भी अगर तेरा मन चाहता हो कि कोचिंग में ही ज्यादा सीखने को मिलेगा, तो चला जा। निर्णय तेरा।
जाहिर है वह मुझे घर की मुर्गी साबित नहीं करना चाहेगा, उसने मुझसे पढने की स्वीकृति दे दी। शुरूआत मैंने अंग्रेजी से की। वह अंग्रेजी में इतना कमजोर है कि मैं उसे सौ में से पांच नम्बर ही दूंगा। हिज्जे मिला-मिलाकर वह अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों को पढ सकता है। और चूंकि बारहवीं के बाद तीन वर्षीय डिप्लोमा लिया है तो अंग्रेजी के वाक्य-विन्यास की भी थोडी-बहुत जानकारी है। अब जरूरी था उसका शब्दकोश बढाना। शब्दकोश बढता है अंग्रेजी साहित्य पढने से। लेकिन एक समस्या और भी थी। उसे शब्दों का अर्थ तो पता चल ही जायेगा, लेकिन यह नहीं पता चलेगा कि इन शब्दों को मिलाकर क्या वाक्य बनेगा। लम्बे वाक्यों को छोडिये, वह छोटे वाक्यों का अर्थ भी नहीं जान सकता। एक उदाहरण- I am going. इसमें उसे तीनों शब्दों के अर्थ पता हैं। तो पूरा वाक्य वह कुछ भी बना सकता है- मैं जा रहा हूं या मैं जाऊंगा या मैं गया।
इसके लिये व्याकरण सीखनी पडेगी। उधर मैं भी अंग्रेजी में उतना परफेक्ट नहीं हूं कि प्रत्येक बात उसे समझा सकूं। इसलिये पहले ही बता दिया कि जो तूने अभी तक अंग्रेजी सीखी है, वो थी स्कूली अंग्रेजी। उसमें एक-एक चीज का बारीकी से ध्यान रखना पडता है। अब जो अंग्रेजी तुझे सीखनी है, वो बिल्कुल अलग होगी। उसमें ज्यादा बाध्यताएं नहीं आयेंगी। ज्यादा नियमों को नहीं सीखना। बस कुछ मोटे-मोटे नियम हैं, वे सीख लेने से काम चल जायेगा। जैसे कि will और shall का प्रयोग। स्कूली अंग्रेजी में नियम है कि I और we के साथ shall लगेगा जबकि अन्य सभी के साथ will. लेकिन अब तू अगर सभी के साथ will ही लगायेगा, तो कोई नहीं पूछेगा और न ही टोकेगा। आई विल ये, आई विल वो। और इतनी मोटी किताब है उसकी ग्रामर की, उसमें हजारों-लाखों वाक्य लिखे हैं उदाहरण के तौर पर। मैंने उसे इन वाक्यों का अर्थ बताने को कह दिया। वाक्य पढता जा, अर्थ बताता जा। इससे शब्दकोश भी मजबूत होगा।
यह सब दो दिन तो चला, उसके बाद बन्द हो गया। मेरी आदत नहीं है कि उसे हमेशा टोकूं। उसे जरुरत होगी, पूछ लेगा; नहीं पूछेगा, नुकसान उठायेगा। अब वह स्वाध्याय कर रहा है। दूसरे कमरे में बैठकर अंग्रेजी के वाक्य पढता जाता है और स्वयं ही उनके अर्थ बोलता जाता है- I will go माने मैं गया था।

5. दीवाली पर अच्छा-खासा बोनस आया। मोटरसाइकिल ले ली- बजाज की डिस्कवर, 150 सीसी की। असल में कई दिन पहले होमवर्क शुरू कर दिया था। मित्रों से पूछता कि केवल एक मोटरसाइकिल बताओ जो मुझे लेनी चाहिये तो प्रत्येक मित्र एक की बजाय पांच बताता। आखिरकार तय किया कि 150 सीसी तक की मोटरसाइकिल पर्याप्त होगी। इससे ज्यादा लेने का बजट भी नहीं था। कई मित्रों ने बुलेट भी लेने की सलाह दी लेकिन यह मुझे नहीं लेनी थी। कई दिन बडा दिमाग खराब रहा। पल्सर पसन्द आई लेकिन यह बजट से बाहर थी। आखिरकार उस दिन शाम चार बजे सहकर्मी विपिन से चर्चा चल रही थी तो उन्होंने नई लांच हुई डिस्कवर का सुझाव दिया। इससे पहले कि वे कोई दूसरा नाम लेते, हम दोनों ही दिलशाद गार्डन बजाज के शोरूम पर पहुंचे और बन्द होते-होते शोरूम को कुछ मिनट बन्द होने से रुकवाकर क्रेडिट कार्ड से भुगतान करके मोटरसाइकिल उठा लाये। उस समय मेरे पास आवश्यक डॉक्यूमेंट भी नहीं थे, अगले दिन जाकर दिये।
पहली बार मोटरसाइकिल चलाई। वही साइकिल वाली आदत बनी रही। साइकिल में दोनों हैण्डल पर ब्रेक होते हैं तो जब भी ब्रेक लगाने होते, मैं दोनों हैण्डल के ‘ब्रेक’ दबा देता। मोटरसाइकिल रुक जाती और बन्द भी नहीं होती। इसी तरह एक बार जब स्पीड काफी कम थी... वही साइकिल वाली आदत... पीछे वाला यानी बायें हाथ वाला ‘ब्रेक’ दबा दिया। भला मोटरसाइकिल क्यों रुकती और सामने दीवार में जा भिडी। बडी देर तक सोचता रहा कि यह रुकी क्यों नहीं? बाद में ध्यान आया कि यह तो क्लच था। इसी तरह एक बार आगे वाला ‘ब्रेक’ दबा दिया तो इंजन बन्द हो गया। साइकिल की आदत जाती जाती जायेगी।
पिताजी नाराज हो गये। वे चाहते थे कि मैं 100 सीसी की पैशन लूं। उनके भतीजे के पास पैशन ही है, तो उनकी नजर में यही बाइक दुनिया की सर्वश्रेष्ठ बाइक है। मैंने सर्वश्रेष्ठ नहीं ली, इसलिये नाराज हुए। बाद में जब उन्होंने टेस्ट ड्राइव ली तो खुश हो गये। इसी तरह एक और बेहद नजदीकी मित्र को जब बताया कि बाइक ली है, उसने पूछा कौन सी? मैंने मजाक में कहा- थण्डरबर्ड। उसने तुरन्त मुझे लताड दिया- ये क्यों ले ली? तुझे डेढ सौ सीसी की पल्सर लेने को कहा था। मैंने पूछा- पल्सर में ऐसी क्या बात है? बोला- पल्सर में ताकत ज्यादा है।
कई साल पहले जब पहली बार पहाडों पर पैदल चला था तो वो नीलकण्ठ यात्रा थी। पहली ट्रेकिंग नीलकण्ठ की की। उसके बाद जब साइकिल ली तो संयोगवश पहली साइकिल यात्रा भी नीलकण्ठ की ही थी। अब जब मोटरसाइकिल ले ली तो इसे क्यों नीलकण्ठ से वंचित रखा जाये? पहली मोटरसाइकिल यात्रा भी नीलकण्ठ की ही होगी। वैसे भी नीलकण्ठ हमारी कुरुभूमि का आराध्य देव रहा है।
लेकिन मैं चाहता हूं कि इस यात्रा में मेरे साथ कोई और भी रहे। हालांकि पिताजी बिल्कुल तैयार बैठे हैं लेकिन मैं स्वयं ही मोटरसाइकिल चलाना चाहता हूं और अभी इतना आत्मविश्वास नहीं आया है कि पीछे किसी को बैठाकर चला सकूं। इसलिये पिताजी को नहीं ले जा सकता। फेसबुक पर सूचना प्रसारित की। लगा कि थोडी ही देर में कई मित्र तैयार हो जायेंगे, लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ।
सचिन जांगडा तैयार है। हम एक बार पहले साथ घूम चुके हैं लेकिन उसकी सबसे बडी कमी है कि वह हमेशा आफत मचाता है। वो आपको पूरे दिन डण्डा किये रखेगा कि यहां से जल्दी चलो। अगले पडाव पर आराम कर लेना, बैठ लेना लेकिन अगले पडाव पर पहुंचने से पहले फिर से डण्डा। मुझे किसी भी तरह की आफत पसन्द नहीं। प्रस्थान 17 नवम्बर की सुबह होगा और दिल्ली वापसी 21 नवम्बर की दोपहर तक होगी। इस दौरान नीलकण्ठ के अलावा चकराता या खिर्सू भी जाने की योजना है। शायद इसे एक सप्ताह बढा भी दूं- प्रस्थान 24 नवम्बर को और वापसी 28 को।

6. पिछली बार एक स्टेशन का फोटो दिखाया था। वो स्टेशन था एनकेजे हाल्ट। निश्चित ही यह न्यू कटनी जंक्शन है। लगभग सभी मित्रों ने बिल्कुल ठीक उत्तर दिया। लेकिन जिस वजह से मैंने फोटो दिखाया था, वो वजह कहीं खो गई। वो वजह थी इस नाम पर चर्चा करना। स्टेशन तो है न्यू कटनी जंक्शन और यहां लिखा है एनकेजे हाल्ट। रेलवे की मामूली सी जानकारी रखने वाला भी समझता है कि हाल्ट का अर्थ बिल्कुल गया-गुजरा स्टेशन होता है। बल्कि हाल्ट वास्तव में स्टेशन ही नहीं होते। यह स्टेशनों की सबसे आखिर वाली कैटेगरी होती है जहां कुछ चुनिन्दा लोकल ट्रेनें ही रुकती हैं। ज्यादातर क्या लगभग सभी हाल्टों पर रेलवे का कोई कर्मचारी तैनात नहीं होता। टिकट देने का काम भी ठेके पर दे दिया जाता है। यहां ड्राइवर ट्रेन को बस अपनी याददाश्त के आधार पर ही रोकता है। कोई सिग्नल नहीं होता। जब उसे लगता है सवारियां चढ गईं, तो वह ट्रेन को आगे बढा देता है। कुछ हाल्टों पर टिकट वितरण का काम ट्रेन का गार्ड करता है। इसके विपरीत जंक्शन सम्मानित और उच्च वरीयता प्राप्त स्टेशन होते हैं। जंक्शन का अर्थ ही है जहां से कई दिशाओं में लाइनें जाती हैं। फिर न्यू कटनी जंक्शन को एनकेजे हाल्ट क्यों लिखा गया है? बताते हैं कि न्यू कटनी पर भारत का सबसे बडा लोको शेड भी है। यही बात मुख्य चर्चा की थी। मैंने टिप्पणी में इशारा भी किया था लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। सभी चाहते थे कि जल्द से जल्द ठीक उत्तर बता दें ताकि उनका नाम अगली बार मोटे काले अक्षरों में लिखा जाये। किसी का नाम नहीं लिखूंगा और भविष्य में यह रेल पहेली भी बन्द।

7. अब थोडी चर्चा फोटोग्राफी की भी कर ली जाये। पहली बात, मेरे पास पॉइंट एंड शूट कैमरा है, डीएसएलआर कैमरा नहीं है। पिछले छह सालों से घुमक्कडी कर रहा हूं, तो जाहिर है कि इतने ही समय से फोटो भी खींच रहा हूं। आप मेरे प्रारम्भिक दिनों के और आज के फोटो देखकर अन्तर साफ देख सकते हैं। लेकिन यह अन्तर अचानक ही नहीं आ गया। अनुभव से आया है। भविष्य में और ज्यादा अनुभव होता जायेगा, तो और बेहतरीन फोटो देखने को मिलेंगे। ये तो हुई अनुभव की बात। अनुभव अपनी जगह है लेकिन कैमरे की भी अहमियत है। जितना बेहतरीन कैमरा, उतने ही बेहतरीन फोटो।
फोटो मुख्यतः दो तरह के होते हैं- एक जानकारी वाले और दूसरे विशेष। सारी फोटोग्राफी इन्हीं दो भागों में बंट जाती है। विशेष फोटोग्राफी को अच्छा माना जाता है। हम कहीं घूमने जाते हैं, शटर दबाते ही रहते हैं। हजारों फोटो खींचकर लौट आते हैं। ये फोटो इसलिये खींचे जाते हैं कि मित्रों को उस स्थान की जानकारी दे सकें या भविष्य के लिये यादें संजो कर रख सकें। इनमें ज्यादा से ज्यादा जानकारी भरने की कोशिश की जाती है। दूसरे होते हैं विशेष फोटो। हालांकि यह नाम मेरा ही दिया हुआ है, आप भी अपनी तरफ से कुछ भी नाम दे सकते हैं। इनमें उस स्थान की जानकारी देने की कोशिश नहीं की जाती। बल्कि कुछ अलग सा दिखाने की कोशिश होती है। यह कोई फूल हो सकता है, मैक्रो मोड में कोई कीडा हो सकता है, सूर्योदय-सूर्यास्त के दृश्य हो सकते हैं या कुछ भी हो सकता है; लेकिन बस ऐसे ही शटर नहीं दबाये जाते। हो सकता है कि फोटोग्राफर ने हजारों फोटो खींच लिये हों लेकिन वह अपने किसी भी फोटो से सन्तुष्ट न हो। सबकी अपनी-अपनी समझ होती है।
मैं फोटोग्राफी की तकनीकी बातें नहीं जानता। लेकिन ये जरूर जानता हूं कि मुझे फ्रेम में क्या लेना है। इसमें आपकी अपनी समझ तो होती ही है, कैमरा भी मुख्य किरदार अदा करता है। जब मैंने सबसे पहले कैमरा लिया तो यही सोचा था कि बडे शानदार फोटो खीचूंगा लेकिन पहली ही यात्रा में सब हवा निकल गई। मैं फोटो खींच तो रहा था लेकिन किसी भी फोटो से सन्तुष्ट नहीं था। सोचता था कि दूसरे लोग इतने गजब के फोटो खींचते हैं, वे कौन सी चक्की का आटा खाते हैं? गजब के फोटो खींचने की कोशिश करता लेकिन एक तो अनुभव नहीं था, फिर कैमरा भी ऐसा ही था, कोई भी ढंग का फोटो नहीं आया। ब्लॉग पर फोटो लगाये तो सुझाव मिलने शुरू हुए।
कैमरा बदला, कुछ और ज्यादा ताकत हाथ में आई। फोटूओं में परिवर्तन आना शुरू हुआ। तब से अब तक लगातार परिवर्तन जारी है। इधर देखता हूं कि बहुत सारे मित्र अभी भी उसी तरह के फोटो खींचते हैं, जैसे मैं बहुत पहले खींचता था। उन्हें काफी समय से देखता आ रहा हूं लेकिन उनकी फोटोग्राफी में कोई फर्क नहीं दिख रहा। यह देखकर दुख होता है। कईयों के नाम अभी भी ले सकता हूं लेकिन वे बुरा मान जायेंगे। कई तो फोटो खींचते खींचते बुजुर्ग हो चुके हैं। कई घूमते कम हैं, क्लिक ज्यादा करते हैं। मैं चाहता हूं कि उनकी फोटोग्राफी सुधरे।
कई बार किसी शानदार दृश्य का फोटो इसलिये नहीं ले पाता कि बीच में बिजली के तार आ जाते हैं। अगर तारों को ही फोकस करना हो तो ठीक, नहीं तो फ्रेम में तार आने मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं। चलती ट्रेन से, बस से भी फोटो लेने मुझे पसन्द नहीं। मजबूरी होती है जब मैं ऐसे फोटो लेता हूं। कोई प्राकृतिक दृश्य भले ही शूट करने से चूक जाये लेकिन क्वालिटी से समझौता नहीं करता।
अपनी फोटोग्राफी बेहतरीन करने का सबसे अच्छा तरीका है कि अच्छे फोटोग्राफरों के फोटो का अध्ययन करें। वे आपको क्यों अच्छे लगे, ये जानने की कोशिश करें। आप भी ऐसे फोटो खींच सकते हैं, यह सोच लें और ऐसा करने की कोशिशें शुरू कर दें। फेसबुक पर बहुत सारे मित्र ऐसा कर रहे हैं- रंगों का दंगा है, विधान चन्द्र है, विपिन गौड है; और भी बहुत सारे हैं। कुछ फोटो शेयरिंग साइटें भी हैं।
इस बार एक योजना बनाई है। वो ये कि मित्र मुझे अपने खींचे कुछ चुनिन्दा फोटो भेजेंगे, अगली डायरी में उन पर चर्चा करूंगा। केवल चर्चा, उनकी समीक्षा नहीं। वे मोबाइल से खींचे हों, कैमरे से खींचे हों; कोई फर्क नहीं पडता। हालांकि सबके देखने का नजरिया अलग-अलग होता है लेकिन मैं बस इतना ही बताऊंगा कि मैं उनमें क्या देखना चाहता था और क्या नहीं। आशा है दूसरे पाठक भी ऐसा करेंगे। लेकिन कुछ शर्तें हैं:
फोटो आपका स्वयं का खींचा हुआ हो। आप किसी दूसरे का फोटो नहीं लगायेंगे। कोशिश करें कि यह आपका फैमिली या पर्सनल फोटो न हो। वैसे तो फोटो भेजने की कोई सीमा नहीं है लेकिन आप न्यूनतम फोटो ही भेजें। मैं जानता हूं कि ऐसे भी कई मित्र हैं जो अपनी किसी यात्रा की पूरी एलबम भेज देंगे। उन्हें मैं देखूंगा तक नहीं। अच्छा होगा कि आप उस फोटो को खींचने की परिस्थिति का भी थोडा सा जिक्र करें। आपने क्या सोचकर वो फोटो लिया, क्या परिस्थिति थी, क्या समस्या थी आदि? लेकिन यह भी बहुत कम शब्दों में। फोटो का साइज कम करके भेजें- 250 केबी से कम। इससे आपको कम डाटा अपलोड करना पडेगा, मुझे कम डाटा डाउनलोड करना पडेगा और मैं साइज कम करने से बच जाऊंगा।
फोटो केवल neerajjaatji@gmail.com पर ही भेजें। फेसबुक पर या किसी अन्य जगह प्राप्त फोटो पर कोई गौर नहीं की जायेगी। चलिये, देखते हैं यह प्रयोग कितना आगे बढ पाता है।

डायरी के पन्ने-24 | डायरी के पन्ने-26




Comments

  1. मोटरसाईकल लेने के लिए बधाई, मिठाई कहां है,
    सर जी फोटो को Resize करने पर उसकी Quality कुछ कम सी हो जाती है, पर कम करना मजबूरी है नही तो पेज खूलने मे समय लगता है,यह बात आपसे ही जानी है भाई...

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    1. बिल्कुल त्यागी जी, आप ठीक कह रहे हो। पेज जल्दी खुले, इसलिये फोटो का साइज कम करना होता है।

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  2. Dear नीरज भाई, आपकी इस डायरी में ब्रह्माण्ड से लेकर धर्म में आये वैमनस्य एवम इंग्लिश में आती GRAMER की समस्या या फोटोग्राफी
    की तकनीक आदि के बारे में विचार जान कर तथा इन सबके बारे में गहन विचार शब्दों के द्वारा वयक्त करने पर आपको अभिनन्दन तथा नई मोटरसाइकिल की हार्दिक बधाई. लेकिन कोई भी साथी साथ चलने को तेयार नहीं है जानकर आश्चर्यजनक दुःख भी हुआ . बंधुवर में आपके साथ इस यात्रा में निशचित ही चलता लेकिन मेरी मोटर साइकिल TVS आपचे २००९ की खरीदी हुई हें जो कि पहाढ़ पर जाने की पोजीशन में
    नहीं हें यदि आप चाहे तो में अपनी कार VEGAIN R में साथ चलने को हेमेशा तेयार हू परन्तु उस पोजीशन में आपकी मोटर साइकिल से नीलकंठ भगवान के दर्शन का सपना अधुरा रह जाएगा. फिर भी आगे कभी प्रोग्राम बने तो जर्रूर सूचित करना.

    आपका धन्यवाद

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    1. जी सक्सेना जी, आप ठीक कह रहे हैं कि मैं अभी वैगन-आर से नहीं जा सकता। मोटरसाइकिल का उद्घाटन करना चाहता हूं। अगली बार कोई कार्यक्रम बनेगा तो जरूर सूचित करूंगा।

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  3. oye!!! Dekhna kanhi dheeraj naraj na ho jaye

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  4. Neeraj bhai m apka fan hu PR apne mujhe fb PR block kr diya m apki hr post padhta hu

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    1. सैफी साहब, ब्लॉक किया, ये तो मुझे नहीं पता। हो सकता है कि आपने कई बार मुझे अपनी किसी पोस्ट में टैग किया हो या कैण्डी क्रश की रिक्वेस्ट भेजी हो। ऐसे कई मित्र ब्लॉक हैं। अभी आपको ‘आजाद’ करता हूं। लेकिन कृपया कभी भी अवांछित रूप से टैग न करें।

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  5. डायरी के पन्ने-25 पढ़ कर अच्छा लगा।धर्म/कर्म/अर्थ/समाज/ब्रह्मांड/पर्यटन/घर गृहस्थी / फोटोग्राफी इत्यादि विषयों पर बेबाक चर्चा किया/यह आप के दूरदर्शिता, समझदारी और अनुभव का प्रतीक है।

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  6. नीरज जी, नई बाइक बहुत-बहुत मुबारक
    एक बात कहना चाहता हूँ की इतनी लम्बी यात्रा और वो भी चढाई पर, नई बाइक के इंजन के लिए बेहतर है की वो कम से कम 500 किलोमीटर चल चुकी हो और उसके बाद उसकी सर्विस कराकर यात्रा पर जाएँ तो बेहतर होगा

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    1. अहमद साहब, आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। बाइक 500 किलोमीटर चल चुकी है, एक महीना हो चुका है और इसकी पहली सर्विस भी हो चुकी है। अब तो परमानेंट लाइसेंस भी बन गया है।

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    2. क्या बात है, अब आऐगा मज़ा

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  7. धीरज के साथ -साथ हमें भी G.K.👀

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  8. आपकी डायरी पढ़ी अच्छा लगा ! आपने मुझे फोटोग्राफर माना और ब्लॉग पर जिकर किया शुक्रिया !!

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  9. अति उत्तम पोस्ट

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  10. Neerajji New bike k liye congrats, but I think (it's my persnel view) aapko tvs apache leni thi, it's pick-up is mindblowing. Waise Discover v thik bike h.

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    1. गुप्ता जी, ये बाइक लेनी थी, वो बाइक लेनी थी; मैंने बहुत सुन लिया। अभी भी यह सब सुनकर खीझ होती है।

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  11. new bike mubark ho/ nilknt yatra shubh ho

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब