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Showing posts from April, 2014

वीरमगाम से सूरत पैसेंजर ट्रेन यात्रा

मिज़ोरम यात्रा के दौरान जब मैं और सचिन अलग अलग हुए तो अपना टैंट मैंने सचिन को दे दिया था ताकि जरुरत पडने पर काम आ सके। सचिन ने मुम्बई से आइजॉल की यात्रा वायुयान से की थी और वह वापस भी वायु मार्ग से ही जायेगा। उसके पास पहले ही फ्री लिमिट से ज्यादा सामान था इसलिये साढे तीन किलो के टैंट को मुम्बई ले जाने के लिये एक हजार रुपये मैंने सचिन को दे दिये थे। आखिर टैंट न होने से मेरा फायदा भी तो था, मुझे चम्फाई से दिल्ली तक साढे तीन किलो कम सामान ढोना पडा। अब वह टैंट दिल्ली वापस लाना था। आज के दौर में मुम्बई और दिल्ली जैसे महानगरों में सामान पहुंचाने के लिये द्रुतगामी साधन मौजूद हैं लेकिन मैंने इसे स्वयं लाने का फैसला किया। मेरा मकसद पैसेंजर ट्रेन यात्रा करना भी था। गुजरात में मैंने केवल राजकोट से ओखा और अहमदाबाद से उदयपुर मार्ग पर ही पैसेंजर यात्रा कर रखी है। इस बार अहमदाबाद को मुम्बई से जोडना था, साथ ही रतलाम को वडोदरा से भी। फाइनल कार्यक्रम इस प्रकार बना- पहले दिन वीरमगाम से सूरत, दूसरे दिन सूरत से वसई रोड और दिवा तथा तीसरे दिन वडोदरा से शामगढ।

गुवाहाटी से दिल्ली- एक भयंकर यात्रा

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । अगले दिन सुबह साढे पांच बजे ही गुवाहाटी स्टेशन पहुंच गया। यहां से छह बजे लामडिंग पैसेंजर चलती है। लामडिंग यहां से 180 किलोमीटर दूर है। आज का काम लामडिंग तक जाकर शाम तक वापस लौटना था। स्टेशन पहुंचा तो धीरे का झटका जोर से लगा। ट्रेन पांच घण्टे की देरी से रवाना होगी। इस ट्रेन को लामडिंग पहुंचने में छह घण्टे लगते हैं। कब यह लामडिंग पहुंचेगी और कब मैं वापस आऊंगा? नहीं, अब इस ट्रेन की सवारी नहीं करूंगा। सात बजे चलने वाली बंगाईगांव पैसेंजर से बंगाईगांव जाता हूं। देखा यह ट्रेन सही समय पर रवाना होगी। एक बात समझ नहीं आई। असोम में कोहरा नहीं पडता। कम से कम वे ट्रेनें तो ठीक समय पर चल सकती हैं जो असोम से बाहर नहीं जातीं। लामडिंग पैसेंजर ऐसी ही गाडी है। रात को यह ट्रेन लीडो इण्टरसिटी बनकर चलती है तो दिन में लामडिंग पैसेंजर। यानी लीडो इण्टरसिटी भी इतनी ही देर से चल रही होगी।

डायरी के पन्ने-20

मित्रों के आग्रह पर डायरी के पन्नों का प्रकाशन पुनः आरम्भ किया जा रहा है। ध्यान दें : डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। ये आपकी धार्मिक और सामाजिक भावनाओं को आहत कर सकते हैं। कृपया अपने विवेक से पढें। 1.  पप्पू ने नौकरी बदली है। पहले वह गुडगांव में कार्यरत था, अब गाजियाबाद में काम करेगा।  पप्पू कॉलेज टाइम में मेरा जूनियर था और हम करीब छह महीनों तक साथ-साथ रहे थे। मैंने जब गांव छोडा, बाहर किराये के कमरे पर रहना शुरू किया तो शुरूआत पप्पू के ही साथ हुई। उसी से मैंने खाना बनाना सीखा। तब मैं फाइनल ईयर में था। पेपर होने के बाद हम दोनों अलग हो गये। मैंने नौकरी की तो उसने बी-टेक की। बी-टेक के बाद वह गुडगांव में मामूली वेतन पर काम कर रहा था। मुझसे कम से कम पांच साल बडा है। कभी-कभार बात हो जाती थी। अब जब वह गाजियाबाद आ गया तो उसे मैं याद आया। कुछ दिन हमारे यहां से ऑफिस जाया करेगा, तब तक वहीं आसपास कोई ठिकाना ढूंढ लेगा।

मिज़ोरम से वापसी- चम्फाई से गुवाहाटी

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 29 जनवरी 2014 मिज़ोरम साइकिल यात्रा का सत्यानाश हो चुका था। अब दिल्ली वापस लौटने का फैसला कर चुका था। अगर सबकुछ ठीक-ठाक चलता तो मेरे 12 फरवरी को मिज़ोरम से कोलकाता तक फ्लाइट और उसके बाद दिल्ली तक दूरोन्तो में टिकट बुक थे। रात दोनों टिकट रद्द कर दिये। अब 1 फरवरी को पूर्वोत्तर सम्पर्क क्रान्ति में वेटिंग टिकट बुक किया। इस यात्रा का मुख्य आकर्षण बर्मा स्थित रीह-दिल झील देखना था। वहां केवल भारतीय नागरिक ही जा सकते हैं। किसी वीजा-पासपोर्ट की आवश्यकता नहीं होती। सीमा पर निर्धारित मामूली शुल्क देकर एक दिन के लिये बर्मा में घूमने का आज्ञापत्र मिल जाता है। बडा उत्साह था अपने इस पडोसी देश को देखने का। लेकिन अब मानसिकता ऐसी थी कि कहीं भी जाने का मन नहीं था। एक तरह से मैं सदमे में था।

मिज़ोरम साइकिल यात्रा- खावजॉल से चम्फाई

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 28 जनवरी 2014 सचिन ने आवाज लगाई, तब आंख खुली। रात बेहद शानदार नींद आई थी, इसलिये थोडा इधर उधर देखना पडा कि हम हैं कहां। हम खावजॉल में एक घर में थे। सचिन कभी का उठ चुका था और उसने अपना स्लीपिंग बैग बांधकर पैक भी कर लिया था। जब मैं उठा, तो घर की मालकिन ने वहीं चूल्हा रखकर एक कप चाय बनाई और मुझे दी। सचिन जब उठा था, तब उसके लिये बनाई थी। साढे सात बजे यहां से चल पडे। कुछ आगे ही एक तिराहा था जहां से सीधी सडक ईस्ट लुंगदार जा रही थी और बायें वाली सडक चम्फाई। लुंगदार वाली सडक पर एक गांव है- बाइते। हम चम्फाई से आगे बर्मा सीमा के अन्दर बनी रीह दिल झील देखकर खावबुंग जायेंगे और वहां से बाइते और फिर आगे ईस्ट लुंगदार और फिर और भी आगे।