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कश्मीर रेलवे

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सात जनवरी 2014 की दोपहर बाद तीन बजे थे जब मैं बनिहाल रेलवे स्टेशन जाने वाले मोड पर बस से उतरा। मेरे साथ कुछ यात्री और भी थे जो ट्रेन से श्रीनगर जाना चाहते थे। राष्ट्रीय राजमार्ग से स्टेशन करीब दो सौ मीटर दूर है और सामने दिखाई देता है। ऊधमपुर से यहां आने में पांच घण्टे लग गये थे। वैसे तो आज की योजनानुसार दो बजे वाली ट्रेन पकडनी थी लेकिन रास्ते में मिलने वाले जामों ने सारी योजना ध्वस्त कर दी। अब अगली ट्रेन पांच बजे है यानी दो घण्टे मुझे बनिहाल स्टेशन पर ही बिताने पडेंगे।
मुझे नये नये रूटों पर पैसेंजर ट्रेनों में यात्रा करने का शौक है। पिछले साल जब लद्दाख से श्रीनगर आया था तो तब भी इस लाइन पर यात्रा करने का समय था लेकिन इच्छा थी कि यहां केवल तभी यात्रा करूंगा जब बर्फ पडी हो अर्थात सर्दियों में। भारत में यही एकमात्र ब्रॉडगेज लाइन है जो बर्फीले इलाकों से गुजरती है। इसी वजह से तब जून में इस लाइन पर यात्रा नहीं की। अब जबकि लगातार कश्मीर में बर्फबारी की खबरें आ रही थीं, जम्मू-श्रीनगर मार्ग भी बर्फ के कारण कई दिनों तक बन्द हो गया था। तभी मनदीप वहां गया हवाई मार्ग से। मुझे लग रहा था कि बर्फ के कारण रेल भी बन्द हो जाती होगी। मनदीप से इस बारे में पता करने को कहा। वो ठहरा इन चीजों से दूर भागने वाला। पता नहीं उसने पता किया या नहीं लेकिन उसने मना कर दिया कि आजकल ट्रेन भी बन्द है।
तीन चार दिन पहले ही सन्दीप भाई भी कश्मीर गये। मैंने उनसे पता किया तो उन्होंने बताया कि ट्रेन चल रही है। जब ज्यादा बर्फबारी होती है, तभी बन्द होती है अन्यथा चलती रहती है। कल जब मैं दिल्ली से निकल चुका था तो उन्होंने बताया कि वे उस ट्रेन में यात्रा करके आ चुके हैं। अब मुझे कोई शक नहीं रहा। मेरी निगाह कई दिनों से श्रीनगर के मौसम पर लगी थी। आठ तारीख को वहां बर्फबारी की आशंका दर्शाई गई थी। उससे पहले साफ मौसम की भविष्यवाणी की गई थी। इससे मुझे पूरा यकीन था कि भले ही आठ तारीख को बर्फ पडे लेकिन उस दिन ट्रेन बन्द नहीं होने वाली। बर्फ कभी भी एकदम से इतनी नहीं पडती कि सबकुछ बन्द हो जाये। हां, अगर आठ को भारी बर्फबारी होती रही तो नौ को ट्रेन बन्द हो सकती है। इस तरह मैं आज और कल के लिये ट्रेन की तरफ से निश्चिन्त था।
स्टेशन के बाहर खाने पीने की कई दुकानें हैं। जम्मू व ऊधमपुर जाने के लिये सूमो व बसें भी खडी थीं। मौसम अत्यधिक ठण्डा था। सामने पीर पंजाल की पहाडियों पर काफी बर्फ दिख रही थी। पहाडियों पर ही क्यों? यहां जहां मैं खडा हूं, काफी बर्फ है। हवा चल रही है, शरीर के आरपार हो रही है।
स्टेशन के अन्दर प्रवेश किया। टिकट के लिये लम्बी लाइन लगी थी लेकिन अभी टिकट नहीं दिये जा रहे थे। ट्रेन आने में डेढ घण्टा बाकी था। प्लेटफार्म पर प्रवेश करने से पहले एक द्वार था जहां एक सुरक्षाकर्मी खडा था, हालांकि कोई स्कैनिंग मशीन नहीं थी। मैं प्लेटफार्म पर गया, ठण्डी हवा जोर से चल रही थी। जल्दी जल्दी में कुछ फोटो खींचे और पुनः टिकट वाले इलाके में आ गया। यहां काफी भीड थी, जगह बन्द थी इसलिये कुछ गर्मी भी थी।
यह ट्रेन बारामूला तक जाती है और तीन घण्टे लगाती है। एक घण्टा अनन्तनाग का और दो घण्टे श्रीनगर के। श्रीनगर पहुंचते पहुंचते सात बज जायेंगे और काफी अन्धेरा हो जायेगा। काफी देर तक इसी उधेडबुन में लगा रहा कि आज श्रीनगर जाऊं या बारामूला। जब भी कोई नई रेलवे लाइन बनती है तो स्टेशन शहर के भीतर नहीं बल्कि बाहर काफी दूर बनते हैं। श्रीनगर का स्टेशन भी ऐसा ही है और बारामूला का भी। पता नहीं स्टेशन के आसपास कहीं ठहरने की जगह मिलेगी भी या नहीं। आखिरकार पता नहीं क्या सोचकर बडगाम का टिकट ले लिया, श्रीनगर से अगला स्टेशन।
खैर, ट्रेन आई। हीटिंग डिब्बे देखकर मैं हैरान रह गया। एकबारगी तो लगा कि कहीं इसमें कुछ डिब्बे प्रथम श्रेणी के तो नहीं होते। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। सभी डिब्बे द्वितीय श्रेणी के ही हैं। अन्दर घुसा, खिडकी के पास वाली एक सीट कब्जा ली। अन्दर हीटर चल रहा था इसलिये बाहर के मुकाबले राहत थी। यह एक डीएमयू ट्रेन थी।
श्रीनगर उतर गया। सबसे पहले स्टेशन मास्टर के यहां गया। वह फोन पर लगा हुआ था। फोन पर बात करते करते ही उसने वह बारामूला वाली ट्रेन रवाना कर दी। वह लहजे से पूर्वी उत्तर प्रदेश का लग रहा था। तसल्ली से बात करने के बाद उसने मुझसे आने का कारण पूछा। मैंने विश्रामालय में कमरे के बारे में पूछा। उसने टालने वाले अन्दाज में मना कर दिया। उसका यह अन्दाज मुझे अच्छा नहीं लगा। उसकी जगह किसी कश्मीरी को होना चाहिये था।
वैसे तो यहां पास में ही पर्यटन कार्यालय भी है लेकिन रात होने की वजह से मुझे पता नहीं चला। श्रीनगर जाने वाली एक बस खडी थी लेकिन मुझे यकीन था कि आसपास रुकने का कुछ अवश्य होगा। मैं मुख्य सडक की तरफ चल दिया जो स्टेशन से करीब आधा किलोमीटर दूर है। सडक पर पुरानी बर्फ जमी हुई थी जिससे बचना पड रहा था नहीं तो फिसल जाता।
बाईपास के पास एक आदमी मिला। उसे अपनी समस्या बताई। उसने सोच विचारकर कहा कि आप बायें मुडकर नौगांव चले जाओ, वहां एक होटल है। अगर होटल में जगह नहीं मिली तो वहां से आपको लालचौक जाने के लिये बस मिल जायेगी। मैं नौगांव की तरफ चल पडा जो यहां से करीब दो किलोमीटर दूर है।
नौगांव में ज्यादातर दुकानें बन्द थीं। एक जगह होटल के बारे में पूछा तो उन्होंने उस एकमात्र होटल के बारे में बता दिया। मैं आज स्टेशन के पास ही रुकना चाहता था ताकि सुबह साढे आठ बजे वाली बारामूला की ट्रेन पकड सकूं। आखिर कल ही मुझे शाम तक ऊधमपुर भी तो लौटना है। खैर, होटल में पहुंचा। बडा और आलीशान होटल था। एक बिहारी कर्मचारी मिला। वो मैनेजर के पास ले गया। मैनेजर कश्मीरी था, कम उम्र का लडका ही था। सबसे सस्ता कमरा बताया आठ सौ का। मैंने तुरन्त नकार दिया- पांच सौ दूंगा। बोला कि नहीं। मैंने कहा कि कोई बात नहीं, मैं लालचौक चला जाता हूं, वहां मुझे मेरे बजट में आसानी से कमरा मिल जायेगा। तभी बिहारी ने मैनेजर को समझाया कि साहब, बेचारा दिल्ली से आया है, इस रात को कहां जायेगा। देख लो अगर हो जाये तो। मैनेजर ने मुझे रिसेप्शन में बैठने को कह दिया। बिहारी ने मुझसे कहा कि आप बेफिक्र रहो, आप हमारे इधर के आदमी हो, आपको इतनी रात में और इतनी ठण्ड में बाहर कैसे छोड सकते हैं? मुझे बिहारी का व्यवहार बहुत अच्छा लगा।
खाना खाकर सोने चल दिया। बिस्तर पर लेटा तो लगा जैसे बर्फ की सिल्लियों पर लेट रहा हूं। रजाई ओढ ली। सबकुछ अत्यधिक ठण्डा। कुछ देर बाद जब गर्मी आने लगी तो मैंने करवट ले ली। तभी तकिये के पास बेडशीट के नीचे कुछ महसूस हुआ। लगा जैसे कोई प्लास्टिक की चीज रखी है। इसे और टटोलकर देखा तो इससे एक तार भी निकला हुआ था। मुझे कोई शक नहीं रहा कि यह माइक है जो आवाजें रिकार्ड करने के लिये लगाया गया है। आखिर यह कश्मीर है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दा है। आतंकवादियों और अलगाववादियों की मर्जी के बिना होटल नहीं चल सकते। यहां जासूसी काफी मायने रखती है। खैर, जिज्ञासा हुई तो बेडशीट हटाकर ‘माइक’ को देखा। तार का एक सिरा बिस्तर के पाये के पास गया था, दूसरा सिरा तकिये के नीचे था। दूसरे सिरे को खींचकर ‘माइक’ देखना चाहा तो लगा जैसे माइक को बेडशीट में स्थायी रूप से सिल रखा है। तभी इसके ऊपर लगे लेबल पर निगाह गई- इलेक्ट्रॉनिक ब्लैंकेट।
धत्त तेरे की, तो यह बिजली से गर्म होने वाला कम्बल है। मैंने नेट पर इसके परिचालन की जानकारी ली तो पता चला कि कुछ साल पहले जो कम्बल आते थे उनमें कम सुरक्षा के कारण आग लगने का खतरा होता था लेकिन आजकल के कम्बलों में ऐसा नहीं होता। फिर भी मैंने इसका प्रयोग नहीं किया। रजाई में पर्याप्त गर्मी आ चुकी थी।
सुबह जल्दी उठना पडा। आठ बजे तक मैं स्टेशन पहुंच चुका था। पौने नौ बजे दोनों दिशाओं में जाने वाली ट्रेनें आती हैं, इसलिये काफी भीड थी। मैंने बारामूला का टिकट ले लिया। प्लेटफार्म पर गया। यहां तीन प्लेटफार्म हैं। बनिहाल की ट्रेन तीन नम्बर पर आयेगी और बारामूला की एक नम्बर पर। मैं फुट ओवर ब्रिज पर जाकर खडा हो गया। दूर से आती ट्रेन का अच्छा फोटो आया।
श्रीनगर से अगला स्टेशन बडगाम है। बडगाम में ट्रेनों का डिपो भी है जहां रात को सभी ट्रेनें जाकर खडी हो जाती हैं। वहीं रख-रखाव होता है और साफ-सफाई भी। एक घण्टे में बारामूला पहुंच गया। यहां से आगे पहाड दिखने लगे थे।
बारामूला से बनिहाल का टिकट लिया। यही ट्रेन दस मिनट बाद बनिहाल जायेगी। बारामूला से बनिहाल के बीच स्टेशन हैं- बारामूला, सोपुर, हामरे, पट्टन, मजहोम, बडगाम, श्रीनगर, पामपुर, काकपोर, अवन्तीपुरा, पंजगोम, बिजबिआडा, अनंतनाग, सदुरा, काजीगुंड, हिलर शाह आबाद और बनिहाल। हिलर शाह आबाद और बनिहाल के बीच में वो प्रसिद्ध सुरंग भी है। भारतीय रेलवे की सबसे लम्बी अर्थात 11 किलोमीटर की सुरंग।
‘भारतीय रेलवे की सबसे लम्बी सुरंग’ और ‘भारत की सबसे लम्बी रेल सुरंग’- इन दोनों बातों में बडा अन्तर है। यह सुरंग भारत की सबसे लम्बी रेल सुरंग नहीं है। वो तो दिल्ली में है। जी हां, भारत की सबसे लम्बी रेल सुरंग दिल्ली में है। दिल्ली मेट्रो की येलो लाइन पर जीटीबी नगर से साकेत तक लगभग 25 किलोमीटर की सुरंग देश की सबसे लम्बी रेल सुरंग है। दूसरी बात, जो उपलब्धि अभी बनिहाल सुरंग को हासिल हुई है, वह ज्यादा दिन नहीं चलने वाली। मणिपुर में एक महा-सुरंग बन रही है। जिरीबाम-इम्फाल रेल लाइन का काम चल रहा है। बताते हैं कि वह सुरंग 39 किलोमीटर लम्बी होगी।
एक और मजेदार बात। भारत का सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन घूम है जो दार्जीलिंग हिमालयन लाइन पर है। वह लाइन नैरो गेज है। अब बात करते हैं भारत के सबसे ऊंचे ब्रॉड गेज रेलवे स्टेशन की। कश्मीर में ट्रेन चलने से पहले यह उपलब्धि ओडिशा के शिमिलिगुडा स्टेशन (996.2 मीटर) के पास थी। शिमिलिगुडा विशाखापट्नम-किरन्दुल लाइन पर है। उसके बाद कश्मीर में रेलवे नेटवर्क के चालू होने पर इसका हकदार काजीगुंड बन गया। काजीगुंड की ऊंचाई 1722.165 मीटर है। अब यह तथ्य फिर बदल गया है। आज के समय में भारत का सबसे ऊंचा ब्रॉड गेज रेलवे स्टेशन हिलर शाह आबाद है जिसकी ऊंचाई 1753.922 मीटर है। बनिहाल स्टेशन 1705.928 मीटर की ऊंचाई पर है। जिस तरह आज भी शिमिलिगुडा स्टेशन पर एक सूचना-पट्ट है उसी तरह अब एक सूचना-पट्ट हिलर शाह आबाद पर भी लगा देना चाहिये।
यात्रा करते समय मैंने फेसबुक पर एक अपडेट कर दिया- “हे भगवान! इसमें तो हीटर लगा है। 135 किलोमीटर की दूरी 30 रुपये में।” कुछ टिप्पणियां ऐसी आईं जिन्हें पढकर मैं हैरान रह गया। एक ‘सदैव राष्ट्रवादी’ नामक महाशय ने लिखा- “फ्री का चन्दन, घिस मेरे नन्दन। कश्मीर को बीस तीस हजार करोड का सालाना पैकेज हम भारतीयों की तरफ से खैरात में मिलता है, तब भी वो वफादार नहीं होते।”
पहली बात तो यही है कि इन कथित राष्ट्रवादी साहब ने कश्मीर और भारत के बीच स्पष्ट रेखा खींच दी है- ...कश्मीर को... हम भारतीय। फिर शिकायत भी कर रहे हैं कि कश्मीरी वफादार नहीं होते। अगर भारत के राष्ट्रवादी लोग ही ऐसा विभाजन करेंगे तो कश्मीरियों से शिकायत क्यों? कश्मीर एक ऐसी जगह है जहां दुनिया के कई देश मिलकर खेल खेल रहे हैं। प्रत्यक्षतः पाकिस्तान वहां जहर बो रहा है, परोक्षतः दूसरे देश भी हैं जिनका इस जहर में हाथ है। जो प्रत्यक्ष दिख रहा है, उसका सामना तो किया जा सकता है। अदृश्य का सामना कैसे हो? भारत इसी मुश्किल का सामना कर रहा है। कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाये रखने के लिये वहां बीस तीस हजार करोड का पैकेज जाता है।
हां, पुनः कह रहा हूं कि भारत कश्मीर पर इतना खर्च इसलिये करता है ताकि वह भारत का हिस्सा बना रहे। वफादारी दूसरी चीज है। देश के गद्दार तो दिल्ली में भी रहते हैं। और कौन कहता है कि कश्मीरी भारत से प्रेम नहीं करते? हो सकता है कि वे सामान्य बोलचाल में शेष भारत को इण्डिया कह देते हों। आखिर हम भी तो पूर्वोत्तर को अपने देश का हिस्सा नहीं मानते। पूर्वोत्तर के लोगों को देखते ही चीनी व चाइनीज कहा जाना आम बात है। हमें पहले अपने गिरेबान में झांकना होगा। दूसरों को अपना बनायेंगे तो वे भी हमें अपना मानेंगे।
जब मैं बारामूला से बनिहाल आ रहा था तो मेरे बगल में एक कश्मीरी युवक बैठा था। वह फोन पर अपनी प्रेमिका से बात कर रहा था। इसका पता मुझे तब चला जब उसने आखिर में कई बार लव-यू, लव-यू कहा और चुम्बन भी लिया। ट्रेन में एक सिंघाडे बेचने वाले से उसने सिंघाडे लिये और स्वयं से पहले मुझे खाने को दिये। मैंने एक बार मना किया, फिर एक सिंघाडा ले लिया। बातचीत शुरू हो गई। वह बारामूला से आगे किसी गांव का रहने वाला था। अच्छा पढा-लिखा था और अपना कुछ बिजनेस करता था। बिजनेस के सिलसिले में अवन्तीपुरा जा रहा था। मैंने बातों का रुख इसी दिशा में मोड दिया जो अभी लिखी हैं- मैंने अक्सर सुना है कि कश्मीरी शेष भारत को इण्डिया और हमें इण्डियन कहते हैं। क्या वे खुद इण्डियन नहीं हैं?
उसने कहा कि ये सब बीती बातें हो चुकी हैं। हालांकि अब भी कुछ लोग ऐसा कहते हैं। और मुझे भी बडी हंसी आती है जब वे इण्डिया कहते हैं। मैं उन्हें समझाता भी हूं कि हम स्वयं इण्डियन हैं तो अपने दूसरे भाई-बन्धुओं को इण्डियन कहना अच्छा नहीं लगता। लेकिन अब हवा बदल रही है।
बातें चलती रहीं, मुश्ताक नाम था उसका- कश्मीर ने बीते बीस सालों में बहुत कुछ खोया है। वो सामने देखो। वो सरदारजी कश्मीरी हैं, कश्मीरी सरदार, कश्मीरी सिख। उन्होंने फिरन पहन रखी है। हमारी संस्कृति यही थी और आज भी है। पाकिस्तान ने सारा कबाडा कर दिया यहां। हिन्दुओं को भगा दिया। यहां तक कि हमारे चरारे-शरीफ को भी नहीं बख्शा। हमारी खुद की मां-बहनों को भी नहीं बख्शा। अपनी वासना की पूर्ति के लिये वे हमारी बहनों से अस्थायी निकाह करते थे। हप्ते दस दिन तक भोगते थे, फिर तलाक देकर दूसरी के साथ निकाह कर लेते थे। पाकिस्तान में होता होगा ऐसा, कश्मीर में नहीं होता। उन्हें कश्मीर से कोई मतलब नहीं था। उनके साथ कश्मीर के गुण्डे और आवारा लडके मिल गये। वो काला दौर था कश्मीर का।
अब हवा बदल रही है। अवाम कभी ऐसा नहीं चाहता। सब सियासत है। अवाम न सुरक्षाबलों पर बम फेंकता है और न पत्थर। सब सियासत है। हमारी हुकूमत अगर ठान ले तो क्या नहीं हो सकता? कश्मीर का आकर्षण ही ऐसा है कि इतना बदनाम होने के बावजूद भी टूरिस्ट यहां आते हैं। उन टूरिस्टों से कश्मीर चल रहा है। तीन साल पहले जो यहां भयानक दंगे हुए, उनसे भी हमारा बहुत नुकसान हुआ। हमारा तो बिजनेस है, हमें भी खाने के लाले पड गये थे। बेचारे कम आमदनी वालों का क्या हुआ होगा?
आप आज भी किसी भी कश्मीरी घर में चले जाओ, आपको भरपूर इज्जत मिलेगी। कश्मीर ऐसे ही जन्नत नहीं कहा जाता, यह वाकई में जन्नत है। जन्नत किसी पहाड या दरिया से नहीं बनती, अवाम के दिलों से बनती है। कश्मीरी अवाम आज भी वही है। अब हवा बदल रही है।
उसकी बातों ने वाकई मुझे सोचने को मजबूर कर दिया- कुछ गलतफहमियां इधर भी हैं और कुछ उधर भी। कुछ शिकायतें इधर भी हैं और कुछ उधर भी। दोनों तरफ की बर्फ पिघलेगी, तभी हवा बदलेगी।
और...बर्फ पिघल रही है।




श्रीनगर रेलवे स्टेशन


श्रीनगर रेलवे स्टेशन





यह एक कूडेदान है।






काजीगुंड स्टेशन


हिलर शाह आबाद

हिलर शाह आबाद भारत का सबसे ऊंचा ब्रॉड गेज स्टेशन है।








अगला भाग: कश्मीर से दिल्ली

कश्मीर रेलवे
1. दिल्ली से कश्मीर
2. कश्मीर रेलवे
3. कश्मीर से दिल्ली




Comments

  1. बहुत खूब, लेकिन बर्फ़ देख कर ही ठंड लग रही है।

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  2. यह पोस्ट आज तक लिखी गई आपकी सभी पोस्ट्स से खूबसूरत पोस्ट है। और खूबसूरती का कारण फोटोज नहीं हैं।

    प्रणाम

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  3. Very good post.Heart touching.I completely agree with Anter Sohil.

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  4. बेहतरीन पोस्ट …बेहद जानकारीपरक, धन्य्वाद .

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  5. नीरज, बहुत अच्छा लिखते हो ..लिखते रहो......सब कुछ पढ़ना बहुत रोचक लगा ..तस्वीरें भी बहुत बढ़िया लगीं।
    लगे रहो........शुभकामनाएं।

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  6. बहुत सुंदर लिखा भी है और फोटू भी ----कश्मीर को एक अलग ही नजरिये से देखा

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  7. बिलकुल सही कहा नीरज, एक आम कश्मीरी हमेशा टूरिस्ट को भगवन की तरह पूजता है. अलगाववाद सिर्फ कुछ मुठी भर लोगों की दें है...

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  8. नीरज भाई आपने कम्बल वाला वाक्या बहुत बढिया लिखा पहले तो आपका दिमाग जासूस वाला बना ओर अगले ही पल कहानी कुछ ओर निकल पडी,आतंकवादियो पर शक जा रहा था निकला हिटर वाला कम्बल.
    ओर दूसरी बात आपकी इस पोस्ट मे रेल मे जो कश्मीरी से बात हुई जिससे यह मैसेज जाता है की वहां की आवाम भी शान्ति चाहती है वे अपने आपको भी हिन्दुस्तानी कहलाना चाहते हे पर कुछ लोग गलत करते है जिससे वहा सभी बदनाम होते है कश्मीरी बदनाम होता है वो बाते आपने बिल्कुल सही लिखी हैहै.

    बहुत अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढकर .

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  9. बहुत खूबसूरत पोस्‍ट।।

    ज़जमेंटल न होना अच्‍छे घुमक्‍कड़ की प्रमुख विशेषता है जो इस पोस्‍ट में खूब दिखती है।

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  10. बेहतरीन खूबसूरत फोटो , दिल करता है देखते रहो ....

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  11. अलगाववाद का एक अजब अजूबा खड़ा कर दिया है हमने।

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  12. कश्मीर रेलवे जब उधमपुर तक जुड़ जायेगी, तब इस यात्रा का अपना आनन्द होगा।

    इस मार्ग पर बिना बर्फ़ के भी हरियाली देखने में बहुत कुछ हासिल होगा।

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  13. फोटो हमेशा की तरह मस्त
    अब आगे चलें...

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  14. आप का ब्लॉग और फोटो दोनों बहुत मस्त है

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  15. bahut badhiya post.......jo sabko kashmir-wasiyo k nazariye se bhi parichit karati hai.........

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  16. अभी सिर्फ फोटो देखें है भाई ।
    गज़ब
    इच्छा और बलवती हो गई स्वर्ग में हो कर आने की ।

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  17. अभी सिर्फ फोटो देखें है भाई ।
    गज़ब
    इच्छा और बलवती हो गई स्वर्ग में हो कर आने की ।

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ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब