उस दिन मैं सायंकालीन ड्यूटी पर था दोपहर बाद दो बजे से रात दस बजे तक। शाम के छह बजे थे, खान साहब अपने ऑफिस का ताला मारकर जाने की तैयारी में थे। तभी प्रशान्त का फोन आया- नीरज भाई, कश्मीर चलें? हममें हमेशा इसी तरह बिना किसी औपचारिकता के बात होती है। मैंने थोडी देर बाद बात करने को कह दिया। खान साहब जब जाने लगे तो मैंने उन्हें रोककर कहा- सर, मुझे आठ तारीख की छुट्टी लेनी है। वे ठिठक गये। ड्यूटी-पत्र खोलकर देखा, अपने रिकार्ड में मेरी छुट्टी लगा ली। मुझे छुट्टी मिलने का भरोसा तो था लेकिन इस तरीके से इतनी जल्दी नहीं।
फिर प्रशान्त को फोन किया- हां भाई, बता। बोला कि कश्मीर चलते हैं। वहां बर्फ पड रही है, रेल में घूमेंगे। वह ट्रेनों में घूमने का शौकीन है और उसे पता है कि मैं अभी तक कश्मीर रेल में नहीं घूमा हूं। इसलिये रुका हुआ हूं कि जब बर्फ पडेगी तब घूमूंगा। आखिर भारत में ऐसी लाइनें हैं ही कितनी? कालका शिमला लाइन है जहां कभी कभार ही बर्फबारी होती है। दार्जीलिंग हिमालयन रेलवे है। ये दोनों नैरो गेज हैं। जबकि कश्मीर रेल ब्रॉड गेज है। कोई भी अन्य ब्रॉड गेज लाइन बर्फबारी वाले इलाके से नहीं गुजरती।
प्रशान्त से जब बताया कि मैंने आठ तारीख की छुट्टी ले ली है, सात का अवकाश है तो उसने माथा पीट लिया- यार बीस को चलेंगे। अब इसी वजह से प्रशान्त का जाना खटाई में पड गया। आखिरकार उसने असमर्थता जता दी। मुझे अकेले ही जाना पडेगा।
यात्रा में एक सप्ताह भी नहीं बचा था। दिल्ली से जम्मू का आरक्षण नहीं मिला। बस से जाना बेकार है। अम्बाला से देखा तो वहां भी निराशा हाथ लगी। छह तारीख की मेरी नाइट ड्यूटी थी यानी छह को दिन में खाली रहूंगा, सात का साप्ताहिक अवकाश और आठ की छुट्टी। देखा जाये तो तीन दिन हाथ में थे।
वैसे तो मालवा एक्सप्रेस से जा सकता था, यह ट्रेन आजकल लगातार लेट चल रही थी। सुबह दिल्ली से चलकर शाम तक जम्मू पहुंच सकता था। फिर जम्मू में कमरा लेकर रुकना पडेगा। इसी वजह से किसी भी ट्रेन में रात्रि आरक्षण को प्रमुखता दे रहा था। दिल्ली व अम्बाला से आरक्षण नहीं मिला तो ऋषिकेश से आने वाली हेमकुण्ट एक्सप्रेस देखी, उसमें भी वेटिंग मिली। अब आखिरी वरीयता प्राप्त ट्रेन देखनी पडी जिसमें मुझे हमेशा विश्वास होता है कि कन्फर्म बर्थ मिल जायेगी- भटिण्डा-जम्मू एक्सप्रेस। इस ट्रेन ने मुझे निराश नहीं किया। आखिरकार फाइनल कार्यक्रम इस तरह बना- नई दिल्ली से लुधियाना तक शाने-पंजाब से, लुधियाना से फिरोजपुर पैसेंजर से, फिरोजपुर से जम्मू रात्रि ट्रेन से। इस बहाने लुधियाना से फिरोजपुर की लाइन पर यात्रा भी कर लूंगा। वापसी के लिये ऊधमपुर से नई दिल्ली तक सम्पर्क क्रान्ति में वेटिंग आरक्षण करा लिया, उम्मीद है कि चार्ट बनने तक कन्फर्म हो जायेगा।
शाने पंजाब एक्सप्रेस नई दिल्ली से सुबह छह चालीस पर चलती है। मैंने ऑफिस से निकलते समय एक भूल कर दी कि नेट पर इसके आज के चलने के समय पर निगाह नहीं डाली। भागा भागा जब स्टेशन पहुंचा तो देखकर निराशा हुई कि ट्रेन लगभग दो घण्टे की देरी से यानी साढे आठ बजे प्रस्थान करेगी। उत्तर भारत में कोहरे ने हर ट्रेन को अपनी चपेट में ले रखा है।
खैर, सवा आठ बजे ट्रेन प्लेटफार्म पर लगी। मैंने इसमें सेकण्ड सीटिंग में अपनी सीट आरक्षित कर रखी थी, खिडकी के पास वाली। डिब्बे में जाकर देखा तो एक सज्जन बैठे थे मेरी सीट पर, एक उनके बराबर में यानी बीच वाली पर। मैंने खिडकी वाले सज्जन से सीट छोडने को कहा तो आंख दिखाने लगे- क्या सबूत है कि तुम्हारी सीट खिडकी वाली है? जाहिर है कि अत्यधिक पढे-लिखे थे। मैंने हाथ से खिडकी की तरफ इशारा कर दिया जहां लिखा था कि किस नम्बर की सीट खिडकी वाली है। उन्हें जगह छोडनी पडी। वे अमृतसर जा रहे थे। बेचारे परेशान ही रहे होंगे। खिडकी चाहे खुली हो या बन्द हो, इसके पास बैठने का आनन्द ही अलग होता है। बाहर ठण्ड थी, कोहरा भी था, खिडकी पूरे रास्ते बन्द ही रही। कुछ भी हो, खिडकी के शीशे पर सिर टिकाकर सोया तो जा सकता है। वैसे भी मैं रात भर का जगा हुआ था।
ढाई घण्टे की देरी से यानी ढाई बजे ट्रेन लुधियाना पहुंची। यहां से एक बीस पर बजे चलने वाली फिरोजपुर पैसेंजर छूट चुकी थी। अगली ट्रेन सवा पांच बजे है। अगर सवा पांच वाली से जाऊंगा तो मेरी जम्मू वाली ट्रेन छूट जायेगी। दूसरा विकल्प है तीन बजे वाली लोहियां खास की डीएमयू पकडना। यह पांच बजे तक लोहियां खास पहुंच जायेगी। लोहियां खास फिरोजपुर से घण्टे भर की दूरी पर है। अगर लोहियां से फिरोजपुर की ट्रेन न भी मिली तो वहीं से जम्मू वाली ट्रेन पकड लूंगा। ट्रेन खाली चल रही है, मेरी आरक्षित बर्थ को जम्मू तक भी कोई खतरा नहीं है।
लोहियां खास का टिकट ले लिया। आधे घण्टे की देरी से ट्रेन आई। इसे देखते ही हैरान रह गया। मात्र तीन डिब्बे। डीएमयू ट्रेनों में अलग से इंजन नहीं लगा होता। डिब्बों के अन्दर ही इंजन फिट होता है। तीन डिब्बों को मिलाकर एक यूनिट बनाई जाती है। एक यूनिट में दोनों तरफ इंजन लगे होते हैं। ट्रेन कभी भी किसी भी दिशा में चलाई जा सकती है। मैंने इससे पहले जितनी भी डीएमयू देखी थीं, सभी कई यूनिट को मिलाकर बनी थीं। मेरठ वाली डीएमयू तो जबरदस्त लम्बी है। इस नन्हीं सी डीएमयू को देखकर हैरानी होनी ही थी। लगने लगा कि भयंकर भीड रहेगी गाडी में लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
एक यात्री ने मुझसे पूछा कि क्या यह गाडी नूरमहल जायेगी? मैंने हां कह दिया हालांकि मुझे मालूम नहीं था। मैं वहां से तुरन्त हटा, एक स्थानीय से पूछा। पता चल गया कि यह नूरमहल भी जायेगी। अगर गाडी नूरमहल नहीं जाती तो मैं उस यात्री को पुनः जाकर मना कर आता। वह एक बिहारी था जो यहां किसी के खेतों में लम्बे अरसे से काम करता आ रहा था। पिछले दिनों वह गांव चला गया था। अब जब लौटा तो अपने पडोसी को भी लेता आया।
गाडी फिल्लौर तक तो जालंधर वाली मुख्य लाइन पर चलती है। फिल्लौर के बाद इसका रूट अलग हो जाता है। रास्ते में प्रताबपुरा, बिलगा, गुमटाली, नूरमहल, सिधवां, नकोदर जंक्शन, गांधरां, मलसियां शाहकोट, मूलेवाल खैहरा, सिंधड, कंग खुर्द और लोहियां खास जंक्शन स्टेशन आते हैं। नकोदर से एक लाइन जालंधर चली जाती है। इसी तरह लोहियां खास से भी एक लाइन जालंधर जाती है और एक फिरोजपुर छावनी। ट्रेन छह बजे लोहियां पहुंची।
रात दस बजे मेरी जम्मू वाली गाडी इसी स्टेशन पर आयेगी। अभी चार घण्टे हैं। क्या इस छोटे से स्टेशन पर बैठा रहूं और मूंगफलियां चबाता रहूं? या आधे घण्टे बाद आने वाली जालंधर-फिरोजपुर डीएमयू को पकड लूं? यह डीएमयू फिरोजपुर पहुंचेगी, उसके पच्चीस मिनट बाद जम्मू वाली ट्रेन वहां से चल पडेगी। लेकिन इस योजना पर तब पानी फिर गया जब फिरोजपुर डीएमयू आधे घण्टे की देरी से आई। फिर भी साढे तीन घण्टे तक यहीं बैठे रहने से अच्छा था कि ट्रेन में ही बैठ जाऊं। मक्खू या मल्लांवाला पर उतर जाऊंगा। जम्मू ट्रेन मल्लांवाला भी रुकती है और मक्खू भी।
मैं मल्लांवाला खास उतर गया। ट्रेन से उतरे कुछ यात्रियों से यहां हलचल सी दिखाई दी। शीघ्र ही सब चले गये तो सन्नाटा पसर गया। जैसा कि छोटे स्टेशनों पर होता है प्रवेश द्वार पर ही टिकट खिडकी होती है और यहीं कुछ बेंचे भी रखी होती हैं। इसी को प्रतीक्षालय कहते हैं। मुझे आधा घण्टा प्रतीक्षा करनी पडी। ट्रेन आई तो मैं इसमें चढ लिया।
भटिण्डा-जम्मू एक्सप्रेस (ट्रेन नं 19225) एक विलक्षण ट्रेन है। भटिण्डा भी उत्तर रेलवे के अन्तर्गत आता है और जम्मू भी। इसका पूरा रूट उत्तर रेलवे में है। उत्तर रेलवे में ही शुरू होती है, यहीं खत्म होती है। किसी और रेलवे को स्पर्श भी नहीं करती। लेकिन इस ट्रेन का मालिक पश्चिम रेलवे है। पश्चिम रेलवे में अहमदाबाद डिवीजन। यानी इसका मालिक गुजरात है, चलती पंजाब में है। असल में एक और ट्रेन है अहमदाबाद-जम्मू एक्सप्रेस (गाडी सं 19223)। यह गाडी शाम को जम्मू पहुंचती है और अगली सुबह जम्मू से अहमदाबाद के लिये चल देती है। कायदे में इसे रातभर जम्मू ही खडे रहना था। जम्मू-भटिण्डा एक्सप्रेस के लिये इन्हीं डिब्बों का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी दूसरी विशेषता भी है। इसे हर 100 किलोमीटर पर अपनी दिशा बदलनी पडती है यानी इंजन इधर से हटाकर उधर लगाना पडता है। भटिण्डा से चलकर फिरोजपुर छावनी, फिर जालंधर सिटी, फिर अमृतसर और फिर पठानकोट में ऐसा होता है। कुल मिलाकर चार बार इसके लोको रिवर्सल होते हैं। भारत में यह सर्वाधिक लोको रिवर्सल होने वाली ट्रेनों में से एक है। इसे श्रीगंगानगर तक बढा देना चाहिये, भटिण्डा में भी लोको रिवर्सल हो जाया करेगा।
खैर, एक घण्टे की देरी से गाडी जम्मू पहुंची। उधर ऊधमपुर जाने के लिये सम्पर्क क्रान्ति भी घण्टे भर लेट थी। मैंने आसानी से सम्पर्क क्रान्ति पकड ली। नौ बजे ऊधमपुर पहुंच गया। ऊधमपुर से आगे के पर्वतों पर हल्की बर्फ दिख रही थी। स्टेशन के सामने ही सिटी बस खडी मिल गई। उसने बस अड्डे पहुंचा दिया। अब मुझे बनिहाल जाना था। कश्मीर रेल बनिहाल से चलती है। पांच घण्टे में पहुंच जाने की उम्मीद थी। एक मिनी बस वाला जो खाली जा रहा था, उसने बैठा लिया। तीन सौ मांगे, दो सौ में सौदा पट गया। फिर भी उसने सवारियां एकत्र करने में काफी मेहनत की। चलते समय बस की सभी बारह सीटें भर चुकी थीं। कोई रामबन जाने वाला था, कोई बनिहाल तो दो तीन यात्री श्रीनगर के भी थे।
ऊधमपुर से निकलते ही पटनी टॉप की चढाई शुरू हो जाती है। रास्ता तवी नदी के साथ साथ है। तवी पटनी टॉप के पास से निकलती है। पटनी टॉप के उस तरफ चेनाब घाटी है। हिमालय में एक नदी घाटी से दूसरी नदी घाटी में जाने का सीधा रास्ता है कि पहले चढाई चढकर जल विभाजक पार करो और फिर दूसरी तरफ उतर जाओ। पटनी टॉप तवी और चेनाब की जल विभाजक है अर्थात दर्रा है। इस दर्रे के नीचे एक सुरंग का काम चल रहा है। शीघ्र ही सुरंग बन जायेगी तो चेनाब घाटी व कश्मीर जाने वालों को पटनी टॉप चढने की जरुरत नहीं होगी।
पटनी टॉप पर बर्फ थी लेकिन सीमा सडक संगठन ने इसे रास्ते से हटाकर इसके दुष्प्रभाव को कम कर दिया था। जैसे जैसे ऊपर चढते गये, बर्फ भी बढती गई। इसी तरह जैसे जैसे उस तरफ नीचे उतरते गये, बर्फ गायब होती गई।
रामबन के पास चेनाब पार करके फिर चढाई शुरू कर दी। यह चढाई बनिहाल स्थित जवाहर सुरंग पर खत्म होगी। जवाहर सुरंग पीर पंजाल श्रंखला के नीचे बनी है। पीर पंजाब श्रंखला चेनाब और झेलम की जल विभाजक है।
जम्मू ऊधमपुर के बीच चलने वाली डीएमयू |
ऊधमपुर से दिखती बर्फ |
पटनी टॉप |
कश्मीर रेलवे
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आप दिल्ली मेट्रो में काम करते हैं लेकिन हैं आप इनसाइक्लोपीडिया भारतीय रेलवे के , वाह जी वाह .... वैसे आप सारे ऑप्शंस की जानकारी पहले से कहाँ फीड कर के रखते हैं ?
ReplyDeleteहमें तो फ़ोटो ही देख कर ठंड लग गयी।
ReplyDeleteराम राम भाई, रेलवे के तो आप पूरे ज्ञानी हो एक रेल छुट जाए तो कई विकल्प आपके पास हमेशा मौजूद रहते हे उदाहरण आज आपने दे ही दिया है,
ReplyDeleteMaaza aagya.
ReplyDeletemain aapko suggestion deta hun
ReplyDeleteAgar aapko 14609 hemkunt main Book karni ho ticket agar UMB(Ambala Se) Toh is train me RKSH Se Jammu Tawi Ki Book Karliya karliya karo With The Change of Boarding point Toh Apko Confirm Ticket Milei :-)
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ReplyDeleteगाड़ी कि यात्रा करे तो नीरज जात कि तरह वरना न न न न न करे ----
ReplyDeletesir you are awesome..
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteआगे बढ़ते हैं
Aap ek adbhut pratibha hai
ReplyDeleteनीरज भाई ट्रेनों की इतनी जानकारी कहाँ से पाते हो ।
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