एक दिन सन्दीप भाई घूमते घूमते हमारे यहां आ गये। उनका जब भी कभी लोहे के पुल से जाना होता है, वे अक्सर आ ही जाते हैं। बोले कि इस बार तू परिकल्पना द्वारा आयोजित वर्ष के सर्वश्रेष्ठ घुमक्कड के लिये टॉप तीन में पहुंच गया है। पूरी उम्मीद है कि तू ही सर्वश्रेष्ठ बनेगा।
चलो इसे थोडा विस्तार से बता देता हूं। परिकल्पना एक समूह है जो हिन्दी ब्लॉगिंग को बढावा देने के लिये पुरस्कार वितरण करता है। ज्यादा नहीं मालूम मुझे इसके बारे में लेकिन इसका साथ तस्लीम (TSALIIM- Team for Scientific Awareness on Local Issues in Indian Masses) समूह भी देता है। परिकल्पना समूह के मालिक रविन्द्र प्रभात हैं जबकि तस्लीम के डॉ जाकिर अली रजनीश। बस, अगर कोई और जिज्ञासा है इनके बारे में तो मैं नहीं बता पाऊंगा।
पिछले साल इन्होंने दिल्ली में हिन्दी भवन में पुरस्कार वितरण किया था। काफी सारी श्रेणियों में नामांकन होता है। काफी लोगों को उनके लेखन क्षेत्र के अनुसार पुरस्कृत किया जाता है। पिछले साल ही इन्होंने पुरस्कारों की शुरूआत की थी। मैं और सन्दीप दोनों उसमें भाग लेने पहुंचे थे, हालांकि हमें कुछ नहीं मिला।
पिछले साल वाला कार्यक्रम बडे विवादों में घिर गया। आयोजकों ने लोगों से अपनी एक-एक रचना जमा करने को कहा था- उनकी मेल पर। बहुत लोगों ने विभिन्न श्रेणियों में अपनी अपनी रचनाएं भेज दी। मैंने नहीं भेजी। उन्हीं रचनाओं के आधार पर पुरस्कार बांटे गये। और विवाद तब हुआ जब पुरस्कारों के नाम कुछ इस तरह रखे गये- वर्ष का सर्वश्रेष्ठ घुमक्कड, वर्ष का सर्वश्रेष्ठ व्यंगकार। इससे हंगामा बहुत मचा। केवल एक रचना के आधार पर किसी को सर्वश्रेष्ठ बना देना किसी के भी गले नहीं उतरा।
पिछले साल जिसे सर्वश्रेष्ठ घुमक्कड का पुरस्कार दिया गया, उनके ब्लॉग पर मात्र एक वही यात्रा वृत्तान्त लिखा गया था- मात्र एक पोस्ट। मैंने नाम तक नहीं सुना था उनका। तो इस तरह वो कार्यक्रम फ्लॉप हो गया।
इस बार इसमें बदलाव किये गये। लोकतान्त्रिक प्रणाली लागू की गई। लेख आमन्त्रित नहीं किये गये, बल्कि लेखक आमन्त्रित किये गये। कब आमन्त्रित किये गये, मुझे इसका पता नहीं चला। किसी ने मेरा नाम भी उसमें डाल दिया। फिर वोटिंग हुई। उनमें टॉप तीन चुने गये। मैं चूंकि दूसरे ब्लॉगों में मात्र कुछ यात्रा वृत्तान्त ही पढता हूं, इसलिये मुझे वोटिंग और तत्पश्चात चुनाव का कुछ भी पता नहीं चल सका।
सन्दीप भाई को इसका पता चल गया। उन्होंने जब मुझे इसके बारे में बताया तो मुझे एक सुखद आश्चर्य हुआ कि मेरा नाम भी इसमें है और मुझे जानकारी भी नहीं है।
दो तीन दिन बाद ही आयोजकों की मेल आ गई कि जाटराम, इस बार वर्ष का श्रेष्ठ घुमक्कड तुझे चुना गया है। लखनऊ में आयोजन है, आना हो तो बता दे। यह मेरे भारत परिक्रमा पर जाने से पहले की बात है। 27 अगस्त को लखनऊ में आयोजन होना था। मैंने स्वीकृति दे दी। सन्दीप भाई भी चलने को राजी हो गये।
पिछले साल जब मैं और अतुल पिण्डारी ग्लेशियर गये थे तो हमारे साथ हल्दीराम भी गया था। वो बाराबंकी का रहने वाला है। यदा-कदा उसका भी फोन आ जाता था कि कभी बाराबंकी आओ। इस बार लखनऊ की तैयारी होते ही मैंने उसे सूचित कर दिया कि भाई, मैं आ रहा हूं। उसने तुरन्त कहा कि अतुल को भी लेते आना। अतुल से बात की तो वो भी तैयार हो गया। नई दिल्ली से सुबह साढे छह बजे चलने वाली नीलांचल एक्सप्रेस से लखनऊ तक का आरक्षण करा लिया।
27 अगस्त को कार्यक्रम था, हमें 26 अगस्त को निकलना था। दो दिन पहले सन्दीप भाई ने मना कर दिया। अब मैं और अतुल रह गये। सन्दीप के स्थान पर संजय भास्कर ने हामी भरी लेकिन जब उन्हें पता चला कि हम एक दिन पहले जा रहे हैं तो वे साथ जाने से पीछे हट गये। तय हुआ कि 27 को लखनऊ में मिलते हैं।
25 की शाम को अतुल मेरे यहां आ गया। मेरी नाइट ड्यूटी थी। तभी एक गडबड होने से बच गई। मैंने नेट से टिकट बुक कराया था। उसका एसएमएस मोबाइल में पडा था, प्रिंट आउट नहीं निकलवाया, ना ही निकलवाने की जरुरत थी। यही सोच रखा था कि इस मैसेज से ही काम चलायेंगे।
गडबड ये हो गई कि मैं भूल गया कि कौन सी ट्रेन से जाना है। असल में भूला भी नहीं था, लेकिन कुछ भ्रम में पड गया। भ्रम हो गया कि अवध असम एक्सप्रेस से जाना है और सीधे बाराबंकी जाकर उतरेंगे। अवध असम एक्सप्रेस पुरानी दिल्ली से सुबह सात बजे चलती है और शाम पांच बजे बाराबंकी पहुंचती है। चूंकि ट्रेन सात बजे चलती है, इसलिये मैं कुछ निश्चिन्त था।
तभी दिमाग में आया कि अगर मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई तो हम तो अच्छे भले बेटिकट हो जायेंगे। मैंने अतुल को टिकट का एसएमएस भेजने का निश्चय किया। जैसे ही मैसेज पर निगाह पडी गाडी नम्बर पर जो कि 12876 था, तभी होश उड गये। 12876 एक सुपरफास्ट ट्रेन है जबकि अवध असम एक एक्सप्रेस ट्रेन है। अचानक गलती पकड में आ गई और हम सात बजे पुरानी दिल्ली पहुंचने के स्थान पर साढे छह बजे नई दिल्ली पहुंच गये।
एक बडी भयंकर ‘दुर्घटना’ होते होते बच गई। टिकट लेना पडता और साधारण डिब्बे में सफर करना पडता, हमारे लिये पूरी रात जगकर यह एक दुर्घटना ही होती।
खैर, लखनऊ पहुंचे, बाराबंकी पहुंचे, हल्दीराम के घर पहुंचे, रात को वहीं रुके, सुबह फिर वापस लखनऊ लौट आये, इमामबाडा देखा और दोपहर होने तक आयोजन स्थल तक। (इमामबाडे के फोटो अगली पोस्ट में दिखाये जायेंगे)
यहां आकर पता चला कि यह चार कार्यक्रमों का संयुक्त कार्यक्रम है। मुझे नहीं पता कि बाकी तीन कार्यक्रम कौन से थे लेकिन जो कार्यक्रम मेरे काम का था, वो सबसे आखिर में होने वाला था। हर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अलग-अलग थे, प्रस्तोता अलग-अलग थे, इनाम पुरस्कार अलग-अलग थे, बस समानता इतनी ही थी कि सभी कार्यक्रम ब्लॉगिंग से सम्बन्धित ही थे।
संजय भास्कर हमें सुबह इमामबाडे पर ही मिल गया था। पिताजी के सोटे के नीचे रहने वाला इंसान है वो। पिताजी से जब पूछा कि लखनऊ जा रहा हूं तो उन्होंने मना कर दिया। बाद में जब उन्हें पता चला कि संजय नीरज के साथ लखनऊ घूमने जा रहा है, तो वे राजी हो गये। असल में संजय को किसी और का पुरस्कार ग्रहण करना था। संजय ने अधिकतर फोटो इमामबाडे में मेरे साथ ही खिंचवाये क्योंकि पिताजी को सबूत भी दिखाने थे।
मेरी और अतुल की अच्छी बनती है। हमारी यह चौथी यात्रा थी। अतुल चूंकि ब्लॉगर नहीं है, इसलिये उसका यहां कोई काम नहीं था लेकिन मेरे एक बार कहने से ही वो चला आया। हाल में घुसते ही अपनी निगाह गई अपनी पसन्दीदा सीटों पर जो कि सबसे पीछे होती हैं, हो गये तीनों वहीं पर विराजमान। कम से कम तीन सौ ब्लॉगरों से हाल भरा सा था। सामने मंच पर छह महान विभूतियां बैठी हुई थीं। इनमें से दो को मैंने तुरन्त पहचान लिया- शिखा वार्ष्णेय और अरविन्द मिश्र। बाकी मेरे पल्ले नहीं पडे। शिखा वार्ष्णेय लंदन में रहती हैं और पिछले साल सर्वश्रेष्ठ यात्रा लेखिका चुनी गई थीं।
संजय अपने जान-पहचान वालों से मिलने चला गया। वो एक कवि है और लगभग हर ब्लॉग पर कमेण्ट जरूर करता है। इससे उसे एक छोटी सी कविता लिखने पर ही पचास सौ कमेण्ट मिल जाते हैं। अगर वो दस दिन तक कमेण्ट करना बन्द कर दे तो मैं गारण्टी से कह सकता हूं कि उसे प्राप्त होने वाले कमेण्टों में अस्सी प्रतिशत की गिरावट आ जायेगी। ब्लॉगिंग में वही बात है कि तू मेरा गुड चाट, मैं तेरा चाटूंगा।
इधर अपना हिसाब अलग है। किसी को नहीं पढता। ना ही आने वाले कमेण्टों की गिनती करता। मेरी जान पहचान के ब्लॉगर भी बहुत कम हैं। उधर संजय हर किसी के पास जाता, कहता कि मैं संजय भास्कर हूं, आप? सामने वाला अपना परिचय दे देता। हालांकि बहुत से मामलों में दोनों ने एक दूसरे का नाम तक नहीं सुना होगा।
पीछे बैठे बैठे ऊंघते ऊंघते मैंने अतुल से प्रतिज्ञा की कि मैं संजय वाला काम नहीं करूंगा। यानी किसी से नहीं कहूंगा कि मैं नीरज जाट हूं। अगर किसी ने टोक दिया कि कौन नीरज जाट, क्या लिखते हो तो स्व-इज्जत का कबाडा हो जायेगा।
आखिरकार दो बजे के आसपास – जिसका मुझे था इंतजार, वो घडी आ गई, आ गई, आ गई। खाने की घोषणा हो गई। जब तक बाकी लोग औपचारिकतावश उठते उठते भोजन कक्ष में पहुंचे, तब तक मैं और अतुल आधा पेट भर चुके थे। उसके बाद जो अफरा-तफरी मची खाने के लिये, तीन सौ लोग एक छोटे से कमरे में खुद प्लेटें उठाकर खाना खायेंगे तो किसी की शर्ट सनेगी, किसी की पैंट। हम दोनों बच गये।
बाहर निकला तो पाबला साहब ने आवाज दी- ओये जाट्टा। मिलते ही लिपट गये। हाल-चाल पूछा, अपना भी बताया। पाबला साहब भिलाई के रहने वाले हैं और ब्लॉगर बिरादरी में कोई नामुराद ही होगा जो उन्हें ना जानता हो। और वे भी सबको जानते हैं। हर कोई उनसे मिलने को आतुर रहता है। मैं पहले भी उनसे कई बार मिल चुका था, इसलिये उन्होंने देखते ही पहचान लिया।
एक घटना याद आती है। निजामुद्दीन स्टेशन से पाबला साहब को भिलाई जाने के लिये गोण्डवाना एक्सप्रेस पकडनी थी, आरक्षण था नहीं। हालांकि वे कोई छोटी मोटी चीज नहीं है। एक फोन करने की देरी थी, एक बर्थ पक्की थी। आखिर ब्लॉगर हर क्षेत्र के होते हैं। मैं और अन्तर सोहिल उनसे मिलने निजामुद्दीन पहुंचे। तब तक ट्रेन प्लेटफार्म पर नहीं आई थी, काफी भीड थी। मैंने कहा कि आप अन्तर को लेकर टीटी से बात करो, अगर कोई सीट मिल जाये तो ठीक है, तब तक मैं जनरल डिब्बे में एक सीट घेरता हूं।
भारी-भरकम शरीर के मालिक हैं पाबला साहब। छोटी मोटी दीवार पर अगर टेक लगाकर खडे हो जायें तो दीवार गिर पडेगी। खैर, ट्रेन प्लेटफार्म पर लगी, जनरल डिब्बे के अन्दर घुसने वालों में मैं पहले स्थान पर था और जाकर आपातकाल वाली सीट कब्जा ली। बराबर में अपना बैग रख लिया। बाकी सवारियों ने कहा कि बैग हटाओ तो मैंने कहा कि हम दो जने हैं, दूसरा आने ही वाला है। जब पाबला साहब आये तो उन्हें आराम से दो जनों की सीट मिल गई। वैसे उनके लिये वो भी तंग ही पडी होगी। उन्हें स्लीपर में सीट नहीं मिली।
कुछ देर बाद देखा कि एक तेईस चौबीस साल की लडकी पाबला जी का इंटरव्यू ले रही है। कुछ पूछती, वे बताते और अपनी डायरी में नोट कर लेती। तभी पाबला जी की निगाह मुझ पर पडी। उन्होंने मुझे बुलाया, बोले कि यह है नीरज जाट। घुमक्कडी का महारथी। इससे बात करो। और चले गये। लडकी ने पूछा कि तुम किस नाम से लिखते हो, तो मैंने उसे नाम बताने की बजाय यूआरएल बता दिया- neerajjaatji.blogspot.com। लडकी ने blog की बजाय जब block लिखा तो मैं समझ गया कि यह ना तो कोई ब्लॉगर है, ना ही इसकी ब्लॉगिंग में दिलचस्पी है। किसी अखबार वगैरह के लिये खबर बना रही है।
खैर, रूपचन्द्र शास्त्री जी मिले। वे खटीमा के रहने वाले हैं और मैं एक दिन उनके यहां जा चुका हूं। एक दो और लोगों से मिलकर अपनी पसन्दीदा सीट पर जाकर बैठ गया, थोडी देर की नींद भी ले ली।
आखिरकार शाम पांच साढे पांच बजे के आसपास वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉगरों को सम्मानित किया जाने लगा। जितने भी पच्चीस तीस पुरस्कार दिये जाने थे, सब दे दिये, लेकिन मेरा नाम नहीं आया। अतुल भी कान लगाये सुन रहा था, मैंने उससे पूछा कि नहीं बोला ना नाम, बोला कि नहीं। तब मैं एक आयोजक रविन्द्र प्रभात के पास गया। कहा कि नीरज जाट का नाम नहीं बोला गया। पूछा कि आप कौन, तो मैंने कहा कि मैं ही नीरज हूं। ऐसा करो कि धीरे से यहीं नीचे लाकर दे दो मुझे, मैं दोपहर से उस एक ट्रॉफी और सर्टिफिकेट का इंतजार कर रहा हूं, लेकर यहां से खिसक लूंगा। वैसे भी मुझे यहां दो-चार से ज्यादा लोग नहीं जानते। बोले कि ओके, इंतजाम करता हूं।
फिर मंच से आवाज आई कि एक नाम और रह गया था- वर्ष के श्रेष्ठ यात्रा वृत्तान्त लेखक- नीरज जाट। इधर तो तैयार थे ही। जाने से पहले अतुल को कैमरे का इस्तेमाल करना अच्छी तरह सिखाकर गया था।
पुरस्कारों से कुछ और हो या ना हो लेकिन उनसे प्रोत्साहन मिलता है।
चार पांच कैमरे और भी हवा में उठे हुए थे। मैं नीचे उतरा तो पीछे पीछे यमुनानगर के दर्शन लाल बवेजा जी आ गये। बोले कि जाटराम, तू भी था यहां। बवेजा साहब एक विज्ञान अध्यापक हैं और अपने ब्लॉग पर वैज्ञानिक गतिविधियां ही रखते हैं, खासकर वैज्ञानिक पहेलियां।
एक बार उन्होंने एक जटिल पहेली पूछी- रेलवे के बारे में थी। मेरे सामने आई तो मैंने काफी माथापच्ची की, बात रेलों की थी इसलिये माथापच्ची करनी पडी और आखिरकार उसे हल कर दिया। वो पहेली इस पोस्ट में सबसे नीचे आपके लिये भी रखी गई है, आप भी माथापच्ची करिये।
मैं शिखा वार्ष्णेय से भी मिलना चाहता था लेकिन प्रतिज्ञा थी कि किसी को अपना नाम बताकर शुरूआत नहीं करनी है। मुझे सन्देह था कि वे मुझे पहचान लेंगी। खैर, अगले दिन फेसबुक पर उनसे चैटिंग हुई, तो उन्होंने मुझे बहुत सुनाई, कि तू सामने तो आता, पहचान लेती।
यहां से सुलटकर चारबाग स्टेशन पहुंचे जहां से वाराणसी जाने के लिये ट्रेन पकडनी थी।
अतुल इमामबाडे में |
साथ में हमारे कवि महाराज संजय भास्कर |
अतुल का एक और फोटो |
पहुंच गये इनाम लेने |
पहले सत्र में मंच पर बैठी छह महान विभूतियां |
लंदन से आईं शिखा वार्ष्णेय |
पाबला जी |
पाबला जी |
जाटराम |
अतुल और नीरज |
पीछे बैठने का फायदा- ये रूपचन्द्र शास्त्री हैं। |
जाटराम को मंच पर चढने का मौका मिला। |
यह मेरा नहीं, बल्कि आप सब का पुरस्कार है। इसके असली हकदार आप हो। |
और यह रहा सर्टिफिकेट |
यह एक रेलवे ट्रैक का रेखाचित्र है।
दूरियां चित्र में लिख दी गई हैं।
इंजन दोनों तरफ चल सकता है।
करना ये है कि “वैगन क और वैगन ख की जगह बदलनी है यानी क की जगह ख और ख की जगह क रखना है और हां, इंजन भी अपनी मूल जगह पर वापस लौटना चाहिये यानी इंजन को भी B व C के बीच में खडा करना है।"
दोनों डिब्बे क और ख बिना इंजन के नहीं चलेंगे।
(उत्तर के लिये फोटो पर क्लिक करें।)
अगला भाग: बडा इमामबाडा और भूल-भुलैया, लखनऊ
(उत्तर के लिये फोटो पर क्लिक करें।)
अगला भाग: बडा इमामबाडा और भूल-भुलैया, लखनऊ
लखनऊ- बनारस यात्रा
1.वर्ष का सर्वश्रेष्ठ घुमक्कड- नीरज जाट
2.बडा इमामबाडा और भूल-भुलैया, लखनऊ
3.सारनाथ
4.बनारस के घाट
5.जरगो बांध व चुनार का किला
6.खजूरी बांध और विन्ध्याचल
congratulations ghumakkad jatjee, ghumte jao, likhte jao, dikhate aur padhete jao recognition and awards are bound to follow in due course.
ReplyDeleteआप सभी लोगों से मिलना, मेरे लिए उस आयोजन का सबसे खूबसूरत पहलु था.तुम ने न मिलकर अच्छा नहीं किया.खैर फिर मिलेंगे कहीं न कहीं यूँ ही घूमते हुए.आखिर हम घुमक्कड हैं :)
ReplyDeleteवाह बहुत बधाई, सारी झांकी लिख दी, मजा आया ।
ReplyDeleteनीरज जी बहुत बहुत बधाई हो...वन्देमातरम...
ReplyDeleteमैं तो आज भी लोहे के पुल से ही होकर आया हूँ, घर आकर तुम्हारी पोस्ट देख रहा हूँ।
ReplyDeleteइस बार भी यह आयोजन पंगों से भरपूर रहा है।
आप कहें तो बता दें..हमारा रोज का ही कार्य है...
ReplyDeleteजाट राम को मुबारकबाद ..... बहुत आछा लगा यार घुमाक्ड्डी ने कुछ फायदा कराया ... नंबर बदल लिया क्या दोस्त ... नया नंबर सेंड करो और हाँ केरल क प्रोग्राम म हमारा नाम याद रखना......
ReplyDeletevery very congrats to u Neerajji,u r the best for us.
ReplyDeleteमुबारक हो साहब !
ReplyDeleteबधाई हो भाया!!
ReplyDeletebahut bahut badhai.....
ReplyDeletecongratulation
ReplyDeleteHuge Award.
ReplyDeletea
ReplyDeleteNeeraj,
ReplyDeleteIt’s an immense tribute for your remarkable journey.
My best wishes with you for future tours and their blogs............
I trust this will continue with exploring new places which is unidentified for common people.
I wish, one day whenever you will be in Mumbai we will be meet.
Hope the day will be not far away!!!!!!!!!!!!
...... मुबारकबाद जाट राम
ReplyDeletemubaarak ho neeraj babu.......
ReplyDeleteCongratulations
ReplyDeleteबहुत सुंदर रहा यह सम्मलेन .मैने अतुल से सारा समाचार फोन पर सुना था ...यह इनाम तुम्हे ही मिलना था नीरज ..
ReplyDeletejaat ram ko badhai sabse last me
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ReplyDeleteDear Neeraj Ji
ReplyDeleteI like your unique concept of GHUMAKKARI .....
It is so pleasant and enjoyable to read your posts ..
You write from heart and with style.Read your several posts today.
Vinay