कुछ महीने पहले यह घोषणा हुई थी कि दिल्ली की परिक्रमा रेलवे पर सवारी गाडियों का परिचालन बन्द किया जायेगा क्योंकि इस पर सवारियां मिलती ही नहीं हैं। सारी की सारी गाडियां लगभग खाली ही दौडती है। और वीकएण्ड पर तो बिल्कुल खाली ही होती हैं। तो तय ये हुआ था कि सप्ताह में केवल पांच दिन ही परिचालन किया जायेगा। यह व्यवस्था तीन महीने के लिये की गई थी। नतीजे निराशाजनक हुए तो रिंग रेल पर सवारी गाडी चलानी बन्द कर दी जायेंगी।
यह खबर सुनकर मेरे भी कान खडे हो गये। सोचा कि अगर एक बार यह रूट बन्द हो गया तो हमेशा के लिये बन्द हो जायेगा। हालांकि मालगाडियां चलती रहेंगी। बस तभी से मैं इस कोशिश में लग गया कि मौका मिलते ही एक चक्कर लगाकर आऊंगा। मेरा मंगलवार को साप्ताहिक अवकाश रहता है। मतलब साफ है कि मंगलवार को मैं बडी आसानी से घूम लूंगा। यह मंशा मैंने जाटदेवता संदीप पंवार से कही। बन्दा तुरन्त तैयार हो गया। मंगलवार का दिन तय हो गया।
संदीप का ऑफिस नई दिल्ली में है। तय हुआ कि सुबह सात बजे नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर मिलते हैं। वहां से मेट्रो से इंद्रप्रस्थ और फिर पांच रुपये डीटीसी को देकर सीधे सराय काले खां। निजामुद्दीन से रिंग रेल शुरू होती है। सुबह आठ बजे चलने वाली गाडी हमे पकडनी थी। मैंने सुबह छह बजे का अलार्म लगा लिया।
सात बजे फोन की घण्टी बजी- संदीप था। पूछा कि कहां तक पहुंच गया? मैंने कहा कि भाई, सात बजे ही तो पहुंचना था। अभी तो मेरा छह बजे वाला अलार्म भी नहीं बजा है। आप बेफिक्र रहो, मैं ठीक सात बजे तक नई दिल्ली पहुंच जाऊंगा। बोले कि यार क्या बोले जा रहा है। सात बज चुके हैं। मैं नई दिल्ली पहुंच चुका हूं। सुनते ही अपने होश खराब। वास्तव में सात बज चुके थे। बोल दिया कि आप तुरन्त निजामुद्दीन पहुंचो, मैं भी वहीं आ रहा हूं। तब तक टिकट ले लेना।
एक घण्टे में शाहदरा से निजामुद्दीन पहुंचना आसान नहीं है। फिर भी मैं पांच मिनट रहते पहुंच गया। सन्दीप ने टिकट नहीं लिया था। सोचा कि एक घण्टे में आना नामुमकिन है। बेकार में ही टिकट के पैसे खर्च होंगे। मेरे जाते ही टिकट लिया गया और जैसे ही हम प्लेटफार्म पर पहुंचे, गाडी चल पडी।
जब 1982 में एशियाड खेल हुए थे, तब दिल्ली परिक्रमा रेल की स्थापना हुई थी। तब यह जीवन रेखा बन चुकी थी। लेकिन समय बदला, और यह पिछडती चली गई। आज इसका इस्तेमाल मालगाडियों को दिल्ली के आरपास पहुंचाने के लिये बाइपास लाइन के रूप में हो रहा है। इस पर बडा स्टेशन है- दिल्ली सफदरजंग। इसके अलावा सभी स्टेशन हाल्ट हैं। एक-एक किलोमीटर में बने हुए हैं।
गाडी शकूरबस्ती पहुंची। यहां इसका आठ मिनट का ठहराव है। यहां से ड्राइवर और गार्ड की सीटों की अदला-बदली होती है और गाडी वापस नई दिल्ली की ओर चल पडती है। यही पर मैंने भी कुछ ताजगी और ‘सुकून’ वाला काम किया। यहां से गाडी सवारियों से पूरी तरह भर चुकी थी।
आखिरकार नई दिल्ली पहुंचने पर यात्रा समाप्त की। हालांकि गाडी निजामुद्दीन तक जाती है। नई दिल्ली के बाद शिवाजी ब्रिज, तिलक ब्रिज, प्रगति मैदान के बाद हजरत निजामुद्दीन आता है। रिंग रेल पर यात्रा कर ली है। कौन जाने कब बन्द हो जाये।
अच्छी जानकारी है भाई लगे रहो ...!
ReplyDelete......भाई लगे रहो
ReplyDeleteनीरज भाई
दिल्ली का रेलतन्त्र परिचालन की दृष्टि से बहुत सशक्त है, वाणिज्यिक औचित्य तो ढूढ़ना ही होगा.
ReplyDeleteमुझे लगता है पिछले जन्म मे तुमने जरूर बिना टिकेट यात्रा की होगी जो इस बार रेलवे वालों को दे रहे हो तभी तो रेल का नाम सुन कर कान खडे होते हैं। अच्छी जानकारी। शुभकामनायें।
ReplyDeleteअच्छा किया समय रहते यात्रा करली | अब कभी ये सेवा बंद भी हो जाये तो यह यात्रा यादगार बन जाएगी |
ReplyDeleteबहुत सुंदर, मुझे भी लगता हे कि पिछले जन्म का कोई ना कोई रिशता हे इस रेलवे से तुम्हारा, जो सारे रुट तुम्हारे दिमाग मे सएट हे, अरे इतना पता तो इन रेलवे वालो को भी नही होगा... धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत मेहनत काम होता होगा आपके लिए एक पोस्ट लिखना :)
ReplyDeleteलगे रहो।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeletewah pyare wah.....badiya.....Gadar jaankari...or haan dilli me kaun se metro station par pae jate ho....?
ReplyDeleteकसम से भाई, क्या दीवानगी है आपकी..:)
ReplyDeleteदिल्ली-दर्शन बहुत बढ़िया रहा!
ReplyDeleteयह शर्ट ज़िंदाबाद ! इसके भाग्य से ही आप इतना घूम लेते हो नीरज !
ReplyDeleteएक बार निजामुद्धिन से हमने भी इस ट्रेन में सफर किया था --जय हो जाट देवता और जाट पुत्तर की ...