बात उन दिनों की है जब दिल्ली में राष्ट्रमण्डल खेल हुआ करते थे। हालांकि इस घटना को काफी दिन बीत चुके हैं लेकिन अपने जेहन में अभी भी ताजा हैं। टीवी पर उदघाटन समारोह देखकर ही सोच लिया कि समय मिलते ही सभी गेम टीवी पर जरूर देखूंगा।
तभी एक-दो दिन बाद नितिन का फोन आया। बोला कि कैमरा चाहिये। क्यों? गेम के टिकट ले रखे हैं- गेम देखने जाना है। हां, यह नितिन अपना एक दोस्त है। दिल्ली की शान कही जानी वाली मेट्रो में नौकरी करता है। तीस हजारी स्टेशन पर स्टेशन नियन्त्रक है।
नितिन गेम देखने जा रहा है। इधर भी दिमाग ने सोचना शुरू किया कि यार, पहली बार दिल्ली में ये गेम हो रहे हैं। अगली बार पता नहीं कि हो या ना हो। बोल दिया कि मैं भी चलूंगा। बोला कि तेरा टिकट नहीं है। मैंने कहा कि कुछ भी कर, कैसे भी कर। मुझे जाना है। बोला कि बिल्कुल भी नहीं हो सकता।
ठीक है, मैं कमेरा (camera) भी नहीं दूंगा। बोला कि यार कैमरा दे दे। तेरा जुगाड हो जायेगा। और आखिरकार हो गया।
अगले दिन दोपहर बाद पहुंचे जोहड कटोरा स्टेडियम। सॉरी, तालकटोरा स्टेडियम। मुक्केबाजी देखने। उस दिन मनोज कुमार और सुरंजय के लीग मैच हुए थे। दोनों ने बडी आसानी से अपने-अपने मैच जीते थे।
खेल खत्म होने पर मैंने पूछा कि कल का कहां का टिकट है। बोला कि यही का, मुक्केबाजी का। अरे यार, कहीं और का नहीं ले सकता था? मुक्केबाजी मेरा शौक है। ठीक है, कल कोई मेडल भी नहीं है मुक्केबाजी में, सभी लीग मैच हैं। मैं नहीं आऊंगा।
उसके बाद गये कुश्ती देखने- के.डी. जाधव कुश्ती स्टेडियम में।
यहां कुश्ती में भारत को स्वर्ण मिला। नाम याद नहीं कि किसने जीता था। मौके पर हरियाणा के मुख्यमन्त्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी भी थे। हुड्डा ने ही विजेताओं को पदक दिये। 200 रुपये का टिकट था- वसूल हो गये।
अगले दिन का टिकट था- निशानेबाजी का- तुगलकाबाद में। मैं नहीं गया। नितिन के साथ छोटे भाई आशू को भेज दिया। वहां फोटू खींचना मना था। फिर भी नितिन और दूसरों ने कई फोटू खींच डाले।
अगले दिन मैं भी गया। ऐथलेटिक्स देखने इंदिरा गांधी स्टेडियम में।
यहां भारत को ढेरों पदक मिले। चक्का फेंक में तो महिलाओं ने तीनों पदक सफाचट कर डाले।
कुल मिलाकर मेरा 1600 रुपये का खर्चा आया। लेकिन यादें जेहन में भर गयी हैं। अब पता नहीं दिल्ली में गेम हों ना हों, कब हों। कम से कम हम सबसे कह तो सकते हैं कि मैने भी गेम देखे थे।
(यह पोस्ट मन से नहीं लिखी गयी है। इसीलिये गेम खत्म होने के इतने दिन बाद आयी है।)
घुमक्कडी जिन्दाबाद
ये बात तो बिल्कुल सही है..जब भी मौका मिले ऐसे प्रोग्राम देखने से चूकना नही चाहिए...सच में फिर कब हो पता नही..इसे देखने का आनंद ही अलग है..बढ़िया चर्चा..धन्यवाद
ReplyDeleteहाथ जोड़ने पैर पकड़ने पर पोस्ट लिख दी, यो के कम सै:)
ReplyDeleteआपके साथ हमने भी खेल देख लिये।
ReplyDeleteअच्छा किया जो पोस्ट लिख दिया भाई...
ReplyDeleteफोटोज सब मस्त हैं :)
बिलकुल पता चल रहा है की पोस्ट मन से नहीं लिखी गयी है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तस्वीरें तुम्हारा तो सही जुगाड हो गया। बधाई दोनो को।
ReplyDeleteबढ़िया , मैंने भी देखे थे हॉकी और रग्बी के मुकाबले
ReplyDeleteARE WAH...
ReplyDeletePURANI YADEN .......
MAJAA AA GYA NEERAJ BHAI....
इसमें हाथ पैर जोड़ने की क्या गल है ? पर कुछ लोग होते ही ऐसे हैं यार . ये समझ लो की मेरी मुक्तेश्वर वाली पोस्ट का भी यही हाल है चूंकि दोस्त का फरमान था की भाई पीते हुए फोटो नहीं छापनी !
ReplyDeleteभाई गेम देख लिए ना...अब किसी का गेम बजा दे...:-)
ReplyDeleteनीरज