आज बहुत दिन बाद लिखने बैठा हूँ। अब स्वास्थ्य ठीक है। असल में हुआ ये था कि होली की छुट्टियों में अल्मोडा की तरफ कहीं जाने का इरादा था। लेकिन ऐन टाइम पर बुखार चढ गया। बुखार से पहले नाक बही, खांसी हुई। नाक ठीक हो गयी, बुखार ठीक हो गया। खांसी अब भी है। जब भी थोडी-थोडी देर बाद याद आता है, खूं-खूं खांसना शुरू कर देता हूँ। डॉक्टर नामक प्राणी से सख्त ऐतराज है। जिस तरह जाडे के बाद गर्मी आती ही है, उसी तरह बसन्त के मौसम में ये बीमारियां भी होती ही हैं। डॉक्टर के पास जाओगे तो एक तो बुखार की वजह से खाने-पीने को मन नहीं करता, फिर वो दुनिया भर का परहेज बता देता है। मोटे-मोटे गोले दे देता है कि ये सुबह, ये दोपहर, ये शाम, ये ताजे पानी से, ये दूध से, ये चाय से, ये खाने से पहले, ये खाने के बाद, ये आधे घण्टे पहले, ये बाद में, ये उठने से पहले, ये सोने के बाद, ये एक चम्मच, कडवी हो तो दो चम्मच; और हां, सबसे पहले इंजेक्शन।
खैर, होली पर घर पहुँचा। बुखार से तपता लाल और मुस्कराता चेहरा देखते ही घरवाले समझ गये कि अगले को बुखार है। डॉक्टर के पास जाने से बचने के लिये मुस्कराने की कोशिश कर रहा है। वाकई उस समय था भी भयंकर बुखार। चल भई, डॉक्टर के यहां। पैदल मत जाना, साइकिल से मत जाना, चक्कर आ जावेंगे, गिर-गिरा पडेगा। कटडा-बुग्गी तैयार किये गये। डॉक्टर जी ने आदत से मजबूर होकर वही सुबह-दोपहर-शाम वाली गोलियां दे दीं। और अन्त में, दही-मट्ठे का परहेज बता दिया। घर वापस आये। हाण्डी में दही रखी थी, एक कटोरा भर लिया, गुड का डला ले लिया और गटर-गटर। हां, जो खुराक लेनी थी, वो भी दही से ही ले ली। अगले ही टाइम बुखार खत्म।
रात को सो गये। सुबह उठा तो महसूस हुआ कि बुखार फिर चढ गया है। पिताजी ने नब्ज टटोलकर देखी। मैने कहा कि ऐसे ही गर्म हो रहा है, बुखार नहीं है। पिताजी को वैसे भी पहचान नहीं है, मान गये। फिर मां आयीं, मां को जबरदस्त पहचान है। निन्यानवें का भी बुखार होता है, तो तुरन्त बता देती हैं। आते ही मैं खाट पर से कूद पडा, और बताया कि बुखार नहीं है; नल पर पहुंचकर बोतल भरी, जंगल चला गया।
आज दुल्हेण्डी थी। बुखार की वजह से होली खेलने का जरा भी मन नहीं था। लेकिन खेलनी पडी, नहीं तो फिर डॉक्टर के पास जाना पडता, मोटे-मोटे गोले खाने पडते। रंग-बिरंगे होकर पूरे मोहल्ले में घूमना पडा, जाने कितनी बाल्टी पानी अपने ऊपर गिरा, कई घरों के पूरी-पकवान खाये, समोसे-पकौडे खाये। खाये नहीं, खाने पडे; केवल डॉक्टर की वजह से। अच्छा हां, फिर तो बुखार ऐसा पिण्ड छुडाकर भागा कि अब अक्टूबर-नवम्बर से पहले नहीं आयेगा।
एक सन्देश- यह गर्मी-सर्दी का मौसम चल रहा है। बीमारियां होना लाजिमी है। डॉक्टर-वॉक्टर के चक्कर में ना पडें। गोली-गोले ना खायें। खुश रहने की कोशिश करें। अच्छा ना लगने पर भी ठूंस-ठूंसकर खायें, खूब टहलें, खूब घूमे, घुमक्कड बनें।
इति श्री मौसम परिवर्तनाय बुखार दूर भगाय कथा!!!!
:)) chalo bhaii ...all is welll ho gaya naa ab to. Holi bhee khel lee hmm.
ReplyDeleteswasthy ,neerogi jeewan kee mangalkamnayen !
God bless!
मौसम परिवर्तनाय बुखार दूर भगाय कथा!!!!
ReplyDelete-क्या दवा है यह भी डॉक्टर घुमक्कड़ महाराज जी की. जय हो!!
अरे भटकती आत्मा का बुखार क्या कर लेगा? जो गोली भी दही से लेता हो उससे तो बुखार दो कोस की दूरी बनाकर रखता है.:)
ReplyDeleteबहुत जोरदार.
रामराम.
ये सब तो ठीक है
ReplyDeleteआपके मोबाईल को भी बुखार था क्या होली पर
सेवा से बाहर बताता था :-)
अच्छा लगा कि अब आप स्वस्थ हैं...
ReplyDeleteखूब घुमक्कड़ी करो...
"कहीं बम फटे, ना फटे, कोई मरे, ना मरे, मैच जीते या हारे, चुनाव हों, ना हों, मुझे क्या!!! "
इसमें थोड़ा सुधार करो. आपके घूमने में तो यह चलेगा लेकिन समाज हित और देश के लिये नहीं. आपको और हमें ही तो करना है देश का नवनिर्माण.
पाबला जी,
ReplyDeleteआपका कहना सही है। मेरा घर मोबाइल के हिसाब से रोमिंग में पडता है, और मोबाइल में बैलेंस शून्य था।
भारतीय नागरिक जी,
आपका भी कहना सही है। मैने अपना प्रोफाइल बदल दिया है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
इति श्री मौसम परिवर्तनाय बुखार दूर भगाय कथा!!!!
ReplyDeleteसही है... :)
कोई बात नही भाई अब चले जाना अल्मोडा
ReplyDeleteअपना भी यही हाल है
फर्क इतना है कि आपको होली से पहले हुआ, मुझे होली के बाद
मगर खाना-पीना, काम करना और मौज-मस्ती करना मैनें भी नही छोडा
डाक्टर से तो मेरा भी 36 का आंकडा है
खैर आज कुछ आराम है
राम-राम
होली का बुखार!
ReplyDeleteरहता घण्टे चार!
आपने तो बुखार की तबियत रगड़ रगड़ कर गरम कर दी । भागेगा कैसे नहीं ।
ReplyDeleteजब बुखार एक जाट के हाथ लगेगा तो वो युही रगडा जायेगा, आप ने बिलकुल सही लिखा, अब हम तो गये काम से लेकिन मेरे पिता जी ओर दादा भी बुखार को ऎसे ही भगाते थे, ओर बुखार कई महिनो तक पास नही फ़टकता था, जीयो शेर, बहुत अच्छा लिखा
ReplyDeleteBukhaar ki to.... ! Good , now move on!
ReplyDeleteबुखार भगाने के जो मन्त्र आपने दिए हैं उनसे मरीज़ भले ही ठीक न हो डाक्टर की दुकाने जरूर बंद हो जाएँगी... बहुत रोचक पोस्ट...आप ठीक हो गए जान कर ख़ुशी हुई...अब आगे किधर निकलने का इरादा है...
ReplyDeleteनीरज
नीरज प्यारे, बुखार ठीक होने पर बधाई और दूसरी बधाई अपना प्रोफ़ाईल बदलने के लिये। सच में इस बात पर मैं भी तुम्हें कहने वाला था, अच्छा लगा कि दूसरों की सही सलाह का तुमने मान रखा। और हां, होली पर फ़ोन हमने भी मिलाया था, मिला नहीं। कहानी अब पता चली, रोमिंग वाली।
ReplyDeleteबहुतों के लिए एक उदाहरण छोड़ रहे हो नीरज, हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteमुसाफिर जी,
ReplyDeleteखूब ईलाज किया बुखार का.
...बुखार ऐसा पिण्ड छुडाकर भागा कि अब अक्टूबर-नवम्बर से पहले नहीं आयेगा।
अक्टूबर-नवम्बर मैं भी काहे कू बुलावै इस बुखार है. लट्ठ दै इसमें...
प्रयास
ha thik kaha jab bhukaar aata hai toh wahi cheeze khane ka man katra hai jiske liye docter mana karta hai..............toh koi kaise thik hu......
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