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ज्वालामुखी देवी हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कांगड़ा से करीब दो घण्टे की दूरी पर है। दूरी मापने का मानक घण्टे इसलिए दे रहा हूँ कि यहाँ जाम ज़ूम नहीं लगता है और पहाड़ी रास्ता है, मतलब गाड़ियां ना तो रूकती हैं और ना ही तेज चाल से दौड़ पाती हैं। ज्वालामुखी एक शक्तिपीठ है जहाँ देवी सती की जीभ गिरी थी। सभी शक्तिपीठों में यह शक्तिपीठ अनोखा इसलिए माना जाता है कि यहाँ ना तो किसी मूर्ति की पूजा होती है ना ही किसी पिंडी की, बल्कि यहाँ पूजा होती है धरती के अन्दर से निकलती ज्वाला की।
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धरती के गर्भ से यहाँ नौ स्थानों पर आग की ज्वाला निकलती रहती है। इन्ही पर मंदिर बना दिया गया है और इन्ही पर प्रसाद चढ़ता है। आज के आधुनिक युग में रहने वाले हम लोगों के लिए ऐसी ज्वालायें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि पृथ्वी की अंदरूनी हलचल के कारण पूरी दुनिया में कहीं ज्वाला कहीं गरम पानी निकलता रहता है। कहीं-कहीं तो बाकायदा पावर हाऊस भी बनाए गए हैं, जिनसे बिजली उत्पादित की जाती है। लेकिन यहाँ पर यही तो चमत्कार है।
अंग्रेजी काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अन्दर से निकलती 'ऊर्जा' का इस्तेमाल किया जाए। लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे इस 'ऊर्जा' को नहीं ढूंढ पाए। अंत में उन्होंने घोषित किया कि यहाँ ज्वाला चमत्कारी रूप से ही निकलती है ना कि प्राकृतिक रूप से, नहीं तो आज यहाँ मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं और बिजली का उत्पादन होता।
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इसके बारे में एक और कथा जुडी है। अकबर ने जब इसके बारे में सुना तो उसने इस ज्वाला को किसी भी तरह बंद करने का आदेश दिया। लेकिन अनगिनत कोशिश करने पर भी वो ऐसा ना कर सका। अंत में इसकी चमत्कारी शक्ति को जानकार उसने यहाँ पर मत्था टेका और सवा मन (पचास किलो) सोने का छत्र चढ़ाया। मंदिर के पास ही गोरख डिब्बी है। कहते हैं कि यहाँ गुरु गोरखनाथ जी पधारे थे और अपने चमत्कार दिखाए थे। असल में इस जगह पर एक कुण्ड है। इसमें भरा हुआ जल लगातार उबलता रहता है और ठंडा है।
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यहाँ पहुंचे कैसे? यहाँ पहुंचना बेहद आसान है। दिल्ली, चंडीगढ़, कांगड़ा, शिमला, जालंधर से यहाँ के लिए नियमित बसें चलती हैं। वैसे तो निकटतम रेलवे स्टेशन ज्वालामुखी रोड है जो पठानकोट-जोगिन्दर नगर छोटी लाइन पर स्थित है लेकिन सुविधाजनक स्टेशन चंडीगढ़, ऊना, पठानकोट व जालंधर है। यहाँ जाने का उपयुक्त समय जाड़े का मौसम माना जा सकता है क्योंकि एक तो गर्मी नहीं रहती और दूसरे भीड़ भी कम रहती है।
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तो कब जा रहे हो?
(मन्दिर की तरफ़ जाते रास्ते पर लगी प्रसाद की दुकानें। भीड़ नहीं है ना? इस मौसम में यहाँ भीड़ नहीं होती है।)
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(ज्वाला जी बस अड्डे के सामने बना गेट। यहाँ से मन्दिर करीब आधा किलोमीटर दूर है।)
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(आधा किलोमीटर के बाद सीढियां। इन पर चढ़ते ही सामने मन्दिर दिख जाता है।)
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(ज्वालामुखी मन्दिर। अन्दर फोटो खींचना मना था इसलिए बाहर से ही देख लो। सोने का यह छत्र महाराजा रणजीत सिंह ने लगवाया था।)
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(मुख्य मन्दिर के सामने ही माता का शयन स्थल है। मुझे लगता है कि यह छत्र अकबर का छत्र है। इस पर मुग़ल कालीन सजावट साफ़ दिख रही है)
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अगला भाग: टेढ़ा मंदिर
धर्मशाला कांगडा यात्रा श्रंखला
1. धर्मशाला यात्रा
2. मैक्लोडगंज- देश में विदेश का एहसास
3. दुर्गम और रोमांचक- त्रियुण्ड
4. कांगडा का किला
5. ज्वालामुखी- एक चमत्कारी शक्तिपीठ
6. टेढा मन्दिर
चित्र और जानकारी बढ़िया रहीं।।
ReplyDeleteआभार
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ReplyDeletevery nice....Neeraj Jat ji.................... for Extra Details of Jawalaji ......Click here......... rhttp://muktidham.in/flash_animation/Jawala_devi.html
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ReplyDeleteघुमक्कड़ी जिंदाबाद
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteऔर अब मन जा कर दर्शन करने को व्याकुल हो रहा है.
नीरज भैया ज्वालामुखी देवी मंदिर मै भी २००८ अप्रैल गया था , तब तो वहां मंदिर के अन्दर भी कैमरा ले जाना मना नहीं था, मैंने फोटो भी खींची ही जो ब्लॉग पर भी है , वहा तो सिक्यूरिटी चेकिंग थी ही नहीं .
ReplyDeleteBADIA JANKARI
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