इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें।
...
...
अभी तक आपने पढ़ा कि मैं अकेला ही सोलन जा पहुंचा। यहाँ से आगे करोल के जंगलों में एक कॉलेज का ग्रुप मिल गया। और मैं भी उस ग्रुप का हिस्सा बन गया। फिर हम जंगल में भटक गए लेकिन फिर भी दो घंटे बाद करोल के टिब्बे पर पहुँच ही गए। अब पढिये आगे:-
टिब्बा यानी पहाड़ की चोटी पर छोटा सा समतल भाग। मेरे अंदाज से इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 2500 मीटर से ज्यादा ही होगी। पेडों पर बरफ के निशान स्पष्ट दिख रहे थे। यानी कि शिमला में बरफ पड़े या ना पड़े यहाँ जरूर पड़ती है। इसके आस पास इसके बराबर की चोटी नहीं है। इस कारण हवा पूरे जोश से बह रही थी - पेडों व झाडियों के बीच से सीटी बजाते हुए।
यहाँ चोटी पर एक छोटा सा मंदिर है। दो-तीन मूर्तियाँ रखी हुई हैं और बीच में हवन कुण्ड है। बगल में एक धर्मशाला भी है। इसमें दो कमरे हैं। एक में ताला लगा हुआ है। नीची छत और बिना खिड़की की धर्मशाला है यह। बर्फ़बारी में भी थोडी देर आग जला लेने पर रात भर के लिए पर्याप्त गर्मी मिल सकती है। धर्मशाला के पीछे कंक्रीट की एक टंकी है। इसमें पीने के लिए पानी भरा रहता है। लेकिन मुझे अभी तक समझ नहीं आया कि यह टंकी भरती कैसे है। पहाड़ की चोटी पर प्राकृतिक पानी की कमी रहती है क्योंकि यह नीचे चला जाता है। ना ही यहाँ बिजली की व्यवस्था है इसलिए बोरिंग की भी सम्भावना नहीं है। हो सकता है कि नीचे से ही पाइप लाइन हो। लेकिन हमें पूरे रास्ते में कहीं भी पाइप नहीं दिखा और पहाड़ पर जंगल में भूमिगत लाइन नहीं होती।
...
धर्मशाला की छत एक बेहतरीन व्यू पॉइंट है। यहाँ से पूरा सोलन शहर, दूसरी और शिमला, चायल, कसौली की मंकी हिल, चुरधार चोटी और जब्बरहट्टी हवाई पट्टी स्पष्ट दिख रही थी। शिमला की तरफ देखें तो अपर शिमला के पर्वत व किन्नौर की बर्फीली चोटियाँ भी दिख रही थीं। चूंकि मैं एक कॉलेज ग्रुप के साथ था तो मौज मस्ती तो होनी ही थी। सभी ने अपने अपने बैग खोले तो खाने की चीजें निकल पड़ीं। खा-पीकर मुलायम धूप में अन्त्याक्षरी खेलने लगे। यह नरम साफ धूप ही हमें ऊर्जा दे रही थी नहीं तो कभी के कुल्फी बन जाते।
...
तीन बजे यहाँ से नीचे उतरना शुरू किया। इस बार हमने पगडण्डी नहीं छोड़ी और घंटे भर में एक ऐसी जगह पर पहुँच गए जहाँ पर एक मंदिर था। मंदिर के बराबर में एक घर बना हुआ था। बरामदे में फर्श पर मिर्चें सूख रही थीं। सामने गायों के लिए एक कमरा भी था। कुछ दूरी पर दो कुत्ते भी बंधे थे लेकिन वे भौंके नहीं। इसके अलावा चारों और जंगल ही जंगल। यहीं पर वन विभाग का बोर्ड भी लगा था-"जंगल में बिना अनुमति के जाना मना है। अनुमति लेने के लिए कंडाघाट वन विभाग से संपर्क करें।" एक आश्चर्य और था कि उस समय वहां कोई भी नहीं था - ना तो मंदिर में, ना ही घर में।
...
यह मंदिर था तो छोटा सा ही लेकिन बेहद खूबसूरत। मैं खुद को अर्धनास्तिक मानता हूँ इसलिए बाहर ही रहा। तभी एक आस्तिक जो मंदिर में गया था, खबर लाया कि मंदिर के पीछे एक गुफा है। यह खबर सभी के लिए महत्वपूर्ण थी। तुंरत ही मंदिर के पीछे पहुंचे। देखा कि चट्टानों के नीचे एक गुफा है। आखिर हम इसी गुफा को देखने के लिए ही तो सुबह से जंगल में भटक रहे थे।
...
अन्दर घुसे। कुछ दूर तक तो नीचे उतरने के लिए सीढियां व रेलिंग थी। फिर कुछ नहीं। गुफा को ज्यादा से ज्यादा देखने के लिए हमने और अन्दर जाने का मन बना लिया। यहाँ घुप्प अँधेरा भी था। मोबाइल की टोर्चें जलाई गयीं। लेकिन यह भी अपर्याप्त थी। अन्दर पानी के रिसाव के कारण नमी व फिसलन थी। रिसाव से गुफा की चट्टानों पर अजीब-अजीब आकृतियाँ बन गयी हैं। कैमरे के फ्लैश से गुफा क्षण भर के लिए दिख जाती जो धरातल के गर्भ में ही जाती दिखती।
...
इस गुफा को पांडव गुफा कहते हैं। किंवदंती है कि वनवास काल में पांडव यहाँ आये थे। यह गुफा यहाँ से चलकर कालका-पंचकुला के आसपास कहीं निकलती है। पांडव इसका उपयोग रहने व आने-जाने में करते थे। इसे हिमालय क्षेत्र की सबसे लम्बी गुफा भी माना जाता है। हम कम से कम पचास मीटर तक अन्दर घुस गए थे। अँधेरा व फिसलन होने के कारण और ज्यादा अन्दर नहीं गए।
...
इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य था - गुफा देखना। अब तो फटाफट सोलन पहुंचना था। सोलन पहुंचकर सभी ने मुझे भावविभोर होकर विदाई दी - फिर कभी दोबारा आने का वचन लेकर।
...
अब एक सलाह शिमला जाने वालों के लिए। तुम लोग हफ्तों शिमला के होटलों में बिता देते हो। इस बार करोल में भी एक दिन बिताकर देखना। लेकिन अपनी गंदगी व प्लास्टिक फैलाने की आदत से बाज आकर। जब हम वापस आये थे तो हमारे साथ दो बैग ऐसे थे जिनमे प्लास्टिक का कूड़ा भरा हुआ था - बोतलें व चिप्स के पैकेट। सभी को कम से कम अपनी गंदगी तो वापस लानी ही चाहिए।
(धर्मशाला की छत पर)
.
(टिब्बे पर बना मन्दिर)
.
(वो जो सामने चोटी पर कुछ सफ़ेद सा दिख रहा है, जानते हैं की वो क्या है? वो है चायल के पास एक मन्दिर)
.
(सामने पहाडी पर फैला सोलन शहर)
.
(पांडव गुफा के पास लगा वन विभाग का बोर्ड)
.
(इसके बारे में भी कुछ लिखना है?)
.
(देखा है भारत में ऐसा मन्दिर? इसी मन्दिर के पीछे गुफा है।)
.
(गुफा का प्रवेश द्वार)
.
(गुफा में कुछ दूर तक तो रेलिंग है)
.
(गुफा का अंदरूनी भाग)
.
(मोबाइल की टॉर्च से गुफा देखता हुआ। दिख रहा है ना?)
.
(सभी फोटो कैमरे के फ्लैश से खींचे गए हैं। एकदम घुप्प अँधेरा था।)
.
(जगह-जगह नुकीली चट्टानें भी निकली हुई हैं।)
.
(पानी के रिसाव से अजीब अजीब आकृतियाँ बन गई हैं।)
.
(पानी की ताकत। चट्टानों पर स्थाई निशान छोड़ दिए हैं।)
.
करोल टिब्बा यात्रा श्रंखला
1. करोल के जंगलों में
2. करोल टिब्बा और पांडव गुफा
बढ़िया चित्रों के साथ ज्ञानवर्धक संस्मरण।
ReplyDeleteगुफा के चित्र शानदार और रोमांचित करने वाले हैं.
ReplyDeleteअच्छा घुमा लाये हमको भी हसीन वादियों मे।
ReplyDeleteजिंदाबाद नीरज जी आप न बताते तो हम इस विषय में कोरे ही रह जाते...बहुत कमाल के चित्र और यात्रा वर्णन...आप की जय हो...
ReplyDeleteनीरज
वाह भाई घुमक्कडी जिंदाबाद, वाकई काबिले तारिफ़ चित्र और विवरण.
ReplyDeleteरामराम.
A place worth visiting indeed! nice travelogue .
ReplyDeleteनीरज भैया सोलन की आपकी रिपोर्टिंग मुझे सोलन की तरफ जाने के लिए खींच रही है , पर पापा की छुट्टी की प्रॉब्लम है , मुझे सोलन के इस पहलु के बारे में पता नहीं था . वैसे मेरे फोटो ब्लॉग पर कमेन्ट जाने लगा है , सेटिंग में ही दिक्कत थी , नया ब्लॉगर हूँ ना इसलिए बहुत चीजे पता नहीं है , वैसे आपने बता कर अच्छा किया . अब कमेन्ट जाने लगा है मैंने खुद दो कमेन्ट किये है .
ReplyDeleteघुमक्कडी जिंदाबाद.
नीरज भैया जिंदाबाद
बहुत भी बढ़िया संस्मरण , आपकी यात्रायें देख देख के ही मैं कही जाने का मानस बनाता हूँ .. ऐसे यात्रा वृतांत सभी का मार्ग प्रशस्त करते हैं ... कभी इश्वर ने चाहा तो आपके साथ एक यात्रा जरुर करूँगा ... https://www.facebook.com/Khiladi28
ReplyDeletepawan
ReplyDeletebahut badhiya post bhai
ReplyDeleteसही बात है, कोई भी जगह प्लास्टिक एवम किसी भी खाद्य पदार्थ को नहीं फेकना चाहिए
ReplyDeleteAap ki lekhan shaili ji saralta hi aap k lekhan ki vishesta h. Dhayvad
ReplyDeleteघुम्मकडी जिन्दाबाद
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा सफ़र लगा , ये trek कितने किलोमीटर होगा ?
ReplyDelete