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नवरात्र ख़त्म हो गए हैं। इन दिनों जम्मू स्थित वैष्णों देवी हो या हिमाचल वाली ज्वाला देवी आदि, सभी के दरबार में भयानक भीड़ रहती है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी 'शक्ति' के दर्शन कराएँगे जो सुगम होने के साथ-साथ दुर्गम भी है। सुगम तो इसलिए कि मंदिर तक जाने के लिए करीब-करीब एक किलोमीटर चलना पड़ता है और दुर्गम इसलिए कि इतना सुगम होने के बावजूद भी लोग-बाग़ वहां नहीं जाते। यह उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में है। और समुद्र तल से लगभग 2500 मीटर की ऊंचाई पर। जाडों में यहाँ बरफ भी पड़ती है।
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पिछली पोस्ट में जब मैं देवप्रयाग गया था, तो पता चला कि चन्द्रबदनी देवी यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है। अगर आप अभी तक देवप्रयाग नहीं गए हैं तो सलाह मानिए और फटाफट पहुँचिये। सुबह-सुबह संगम में स्नान करके सीधे तहसील के पास पहुँच जाओ और यहीं खड़े होकर हिण्डोलाखाल जाने वाली बस या जीप की प्रतीक्षा करो। अगर अपना वाहन लेकर आये हो तो सीधे हिण्डोलाखाल निकल जाओ और मेरी प्रतीक्षा करो। मैं अभी बस से आ रहा हूँ। देवप्रयाग से हिण्डोलाखाल तक महड, कांडीखाल जैसे करीब दर्जनभर गाँव पड़ते हैं। इन गांवों को हम लोग गढ़वाली गाँव कहते हैं। समुद्र तल से ऊंचाई भी लगातार बढती जाती है।
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हिण्डोलाखाल- ऊंचाई 1472 मीटर। गाँव कम क़स्बा ज्यादा लगता है। इसी सड़क पर और आगे जाएँ तो करीब आठ किलोमीटर पर एक और गाँव पड़ता है- जामणीखाल (ऊंचाई 1530 मीटर)। जामणीखाल से यह सड़क आगे जखणीधार और टिहरी चली जाती है लेकिन एक और सड़क निकलती है जो चन्द्रबदनी जाती है। यहाँ से चन्द्रबदनी आठ किलोमीटर है। इसमें से शुरूआती सात किलोमीटर तो मोटर मार्ग है और बाकी एक किलोमीटर है पैदल मार्ग। हम तो जामणीखाल से ही पैदल निकल पड़े थे। एक बाबाजी ने जामणीखाल से ही इशारा करके बता दिया था कि वो जो सबसे ऊंची चोटी दिख रही है, उसी पर मंदिर है। तुम तो जवान बालक हो, घंटे भर में ही पहुँच जाओगे।
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पहाड़ पर जंगल में चलते हुए सबसे ज्यादा डर होता है- रास्ता भटकने का। लेकिन अगर लक्ष्य चोटी हो और वो दिख भी रही हो तो कोई दिक्कत नहीं होती। इसीलिए हम बार-बार सड़क को छोड़कर कोई 'शोर्ट' रास्ता ढूंढते और थोडी देर चढ़ने के बाद फिर वही सड़क मिल जाती। अभी कुछ ही दिन पहले देवप्रयाग क्षेत्र में नरभक्षी 'बाघ' (पहाड़ पर तेंदुए को भी बाघ ही कहते हैं) का आतंक था। प्रशासन से अनुमति पाकर ग्रामीणों ने पांच बाघों को मार भी दिया था। इतना जानने के बाद भी हम इस अनजाने पहाडी जंगल में 'शोर्ट' रास्ते से चलते जा रहे थे। एक बार तो हम कंटीली झाडियों में इतनी बुरी तरह फंस गए थे कि वहां से निकलने के लिए हमें सांप की तरह रेंगकर झाडियों के नीचे से निकलना पड़ा था।
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आगे एक तिराहे पर बोर्ड लगा था- झल्ड। यानी तीसरा रास्ता नीचे झल्ड गाँव में जाता है। एक गाँव और मिला - नैखरी (1831 मीटर)। यहाँ से एक कंक्रीट की बनी 'पगडण्डी' ऊपर जाती है। एक विकट चढाई चढ़ने के बाद हम पहुंचे उस जगह पर जहाँ से आगे गाडियां नहीं जा सकतीं। यानी मंदिर से एक किलोमीटर पहले।
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इस जगह पर देवी सती का धड गिरा था। यहाँ से हिमालय की बर्फीली पहाडियां भी दिखती हैं, जिनमे गंगोत्री शिखर प्रमुख है। उस दिन धुंध छाई हुई थी, इसलिए बर्फ नहीं दिखी। और हाँ, नवरात्र होने के बावजूद भी भीड़ नाम की कोई चीज नहीं। इक्का-दुक्का लोग ही आ रहे थे, जो स्थानीय निवासी थे।
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अब ये भी बताऊँ कि हमने कितने का प्रसाद लिया, कितनी देर रुके, क्या-क्या किया? मंदिर देखना तो एक बहाना था गढ़वाल की इन वादियों में, इन छोटे-छोटे गांवों में घूमने का। असली देवता तो ये पर्वत हैं। इन पर छाई हरियाली ही देवी है। वापस आते हुए एक 'अम्मा' मिलीं जो झल्ड से जामणीखाल ही जा रहीं थीं। कितनी ममतामयी बातें थीं उनकी! उनके दो लडकियां हैं, दोनों की शादी हो चुकी है, लड़का नहीं है। बोली कि मेरी बहन के दो लड़के हैं, दोनों ही बिलकुल तुम्हारे जैसे हैं। तुम्हे देखकर मुझे वे याद आ गए।
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अम्मा ने बताया कि हमारे पहाड़ के लोग 'बाहरी' लोगों की बहुत इज्जत करते हैं। तुम किसी भी गाँव में चले जाओ, तुम्हे खाने-पीने, उठने-बैठने व सोने की कोई दिक्कत नहीं होने देंगे। हमारे यहाँ गढ़वाली भाषा बोली जाती है जिसे तुम लोग नहीं समझ पाओगे। अगली बार जब भी इधर आओ, तो देवप्रयाग में मत रुकना बल्कि झल्ड चले आना। यहाँ भी ना आओ तो किसी भी गाँव में चले जाना, हर जगह तुम्हे एक सा ही व्यवहार मिलेगा। अम्मा से बात करके सचिन बहुत प्रभावित हुआ। बोला कि कितनी इज्जत करते हैं ये लोग हमारी। और हम, अपने यहाँ कितनी आसानी से इनकी मजाक व बेइज्जती कर देते हैं।
(चल अकेला, चल अकेला। यह है सचिन)
(प्यास लग गई, चलो पानी पी लें।)
(चल चला चल। वो जो दूर धुंधली सी चोटी दिख रही है, वही जाना है।)
(नीचे वाला रास्ता झल्ड गाँव जाता है, जबकि ऊपर वाला चन्द्रबदनी)
(वीर तुम बढे चलो)
(यह है नैखरी गाँव। दूर सबसे ऊँची चोटी चन्द्रबदनी ही है।)
(बाबाजी, जरा रास्ता बता देना। आओ, बेटा, तुम्हे छोड़ दूँ।)
(बस, थोड़ा सा और चलना है। सो लूँ।)
(जय मां चन्द्रबदनी।)
(देख नजारे कुदरत के)
(अरे भाई, कंजूसों के सामने हाथ फैला रहे हो? तो चलो, तुम्हारे फोटू खींच लूँ। अब खुश।)
(चाउमीन)
(आ, अब लौट चलें।)
(यह है झल्ड गाँव। वापसी में हमने नैखरी से ही एक पगडण्डी पकड़ ली थी। संयोग से हम जंगल में भटके नहीं और झल्ड पहुँच गए।)
देवप्रयाग चन्द्रबदनी यात्रा श्रंखला
1. देवप्रयाग- गंगा शुरू होती है जहां से
2. चन्द्रबदनी- एक दुर्गम शक्तिपीठ
गज़ब घुमक्कड़ी है भई..कित्ता चल लेते हो, हम तो देख कर ही दंग हैं. मजा आ गया.
ReplyDeleteअरे चाऊ -मीन मिल रहा है ,फिर भी लोग न जाते ? ये तो कलजुग है भाई !
ReplyDeleteरही बात पहाडियों का मज़ाक बनाने की , अरे भाई इसीलिये तो उन्हें ऊत-परदेस
से अलग होने का फैसला लेना पड़ा . असभ्य व्यवहार कोई पसंद नहीं करता मेरे भाई !
To aap Uttarakhand aa dhamke...swagat hai !sambhav ho to Chopta dist.Chamoli aur Narayan Ashram Dist.Pithoragarh awashya dekhen.Chopta,Garhwal ke husn ki inteha hai aur Narayan Ashram jahan aur jis tarah tab bana tha aaj bhi hairat men dalta hai
ReplyDeletenaturica par suniyeकविता -mix
नीरज जी,
ReplyDeleteकाफी अच्छी सैर करवाई है चन्द्रबदनी की.
घुमते रहो... घुम्मक्कडी जिंदाबाद!!!
चित्रों के साथ मेरे उत्तराखण्ड का यात्रा वृत्तान्त
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रहा।
बधाई!
फोटू तै बहोत सुथरे सैं
ReplyDelete14 अगस्त को देवप्रयाग, पौडी और खिर्सू गया था, पहले यह चिट्ठी पहुंचा देते तो मैं भी दर्शन कर आता
प्रणाम
बेस्ट मुसाफिर का अवार्ड तो ले ही लो..
ReplyDeleteजै माता दी।तो आजकल तीर्थयात्रा पर हो।मान गये गुरू,ज़िंदगी हो तो ऐसी रोज़ नई सुबह,रोज़ नई जगह्।यंहा तो सड़ रहे हैं एक ही जगह पड़े-पड़े।मस्त पोस्ट,सुन्दर चित्र्।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट। सुन्दर तस्वीरों के साथ। अम्मा की बातें मन को अच्छी लगी। गाँव में एक घर के ऊपर लगा डीस एंटीना देखकर भी खुशी हुई कि चलो गाँव अनछुए रहे नही दुनिया से।
ReplyDeleteतो फोटो खिंचा कर खुश हो गया वो या फिर रुपया देना पड़ा उस बहुरूपिये को भाई?? सोये क्यूँ ??फिर १ घंटे का सफ़र १.५ घंटे में तय किया होगा ??..:))subtitle bhee मजेदार रहे...
ReplyDeleteभाई कुछ काम धंधा भी करते हो कि नहीं....या कि यूँ ही आवारागर्दी में जिन्दगी बीत रही है:)
ReplyDeleteमुसफ़िरि अच्छी लगी,हिन्दि टाइपिन्ग थेएक से नही आटी है सीख रह हु और ब्लोगिन्ग मे नया हू
ReplyDeletevery interesting blog, mazaa aa gayaa bhaai . u r just fabulous traveller and a good guide.
ReplyDeleteattaboy
अंकल आप जबरदस्त घुमक्कड़ हो , मै बड़ा होकर आप जैसा ही घुमक्कड़ बनूंगा, फिलहाल आपके द्वारा ही घूमता हु. अगर आप कॉर्बेट पार्क गए हो तो वहां के बारे में बताओ
ReplyDeletei remember my childhood..when i visited the chandrabadni devi...
ReplyDeleteaaj ye dekhkar yaadein taaja ho gayi...
I have read many of your "sansmaran". Amazing. especially the photographs are very lively. these photographs inspire me to start the journey immediately to these places. Thanks for all this
ReplyDeletenamaskar.devprayag jana hai,aapaka blog padha,bahut bhaya. chanrabadanimata ke bareme swami vivekanandji ke gurubandhu avadheshanandjine likhi pustakme padha tha.ab agale hapte jayenge,delhi aaye hai ,ja sakate hai.
ReplyDeleteYe chowmin kaha mili
ReplyDeletemera gaon chanderbadni ke pass hi hai :-)
ReplyDeleteअति सुंदर
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