दिल्ली से मुंबई गए हो कभी? ट्रेन से। मथुरा तक तो ठीक है। फिर दो रास्ते हो जाते हैं- एक तो जाता है झाँसी, भोपाल, भुसावल होते हुए; दूसरा जाता है कोटा, रतलाम, वडोदरा होते हुए। अच्छा, ये और बताओ कि कौन सी ट्रेन से गए थे? चलो, कोई सी भी हो, मुझे क्या, लेकिन सुपरफास्ट ही होगी। पैसेंजर तो बिलकुल भी नहीं होगी।
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आज हम इसी रूट पर मथुरा से रतलाम जायेंगे पैसेंजर ट्रेन से। सुबह साढे पांच बजे ट्रेन नंबर 256 (मथुरा-रतलाम पैसेंजर) चलती है। रानीकुण्ड रारह स्टेशन के बाद यह राजस्थान के भरतपुर जिले में प्रवेश करती है। जिले में क्या, धौरमुई जघीना के बाद भरतपुर पहुँच भी जाती है। यहाँ तक तो सभी सवारियां सोते हुए आती हैं, लेकिन भरतपुर में रुकने से पहले ही राजस्थानी सवारियां घुसती हैं -"उठो, भई, उठो। तुम्हारा रिजर्वेशन नहीं है। नवाब बनकर सो रहे हो।"
भरतपुर से चलकर वातावरण में गर्मी भी बढ़ने लगती है और ट्रेन में भीड़ भी। कहीं-कहीं इधर-उधर अरावली के टीले भी दिख जाते हैं। रास्ते में एक स्टेशन पड़ता है- केलादेवी। किसी को मालूम हो तो इस 'देवी' के बारे में बताना। बयाना भी भरतपुर जिले में ही है। यहाँ पर आगरा से आने वाली लाइन भी मिल जाती है। फतेहसिंह पुरा के बाद करौली जिला शुरू हो जाता है। हिंडौन सिटी भी करौली में ही है। फिर एक स्टेशन पड़ता है- श्री महाबीर जी। यह शायद जैनियों का तीर्थ है।
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इसके बाद सवाई माधोपुर शुरू हो जाता है। जिले में घुसते ही दूर पहाडियों की श्रंखला दिखाई देने लगती है। गंगापुर सिटी के बाद चौथा स्टेशन है- मलारना। यहाँ से बनास नदी बहती है। नदी के किनारे ही किसी महल के खंडहर से दिखते हैं। यहाँ पर नदी पथरीली जमीन में गहराई तक कटाव कर चुकी है, इसलिए खंडहर से नदी तक उतरने के लिए सीढियां भी बनी हैं। किसी को अगर जानकारी हो तो इसके बारे में भी बताना।
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फिर आता है- रणथम्भौर। इसी नाम से राजस्थान की शान व बाघों की शरणस्थली रणथम्भौर राष्ट्रीय पार्क भी है। बाएँ तरफ के इलाके में दूर तक फैली पहाडियों पर राष्ट्रीय पार्क स्थित है। इसके बाद है सवाई माधोपुर जंक्शन। यहाँ से एक लाइन जयपुर चली जाती है। रवांजना डूंगर, आमली व इंद्रगढ़ सुमेरगंज मण्डी तीन लगातार स्टेशन हैं और तीनों ही अलग-अलग जिलों में हैं क्रमशः सवाई माधोपुर, टोंक व बूंदी। यहाँ तक पहाडियां बिलकुल ख़त्म हो जाती हैं और दूर दूर तक खेत ही खेत दिखते हैं। यह सिलसिला कोटा तक चलता है। कोटा चम्बल नदी के किनारे बसा है। यहाँ चम्बल बेहद गहरी घाटी बनाकर बहती है।
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कोटा से दो लाइनें और निकलती हैं- एक तो जाती है गुना होते हुए बीना और दूसरी जाती है चित्तौड़गढ़ होते हुए उदयपुर। कोटा से निकलकर फिर पहाड़ शुरू हो जाते हैं। इन्ही पहाडों में जगह-जगह पिकनिक स्पॉट हैं जैसे अलनियां। और दरा में तो अभ्यारण्य भी है। रामगंज मण्डी से आगे झालावाड रोड है जहाँ से झालावाड शहर जाने का रास्ता है।
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फिर आता है भवानी मण्डी जो कि एक अलग तरह का स्टेशन है। आधा प्लेटफार्म तो राजस्थान में है और आधा प्लेटफार्म है मध्य प्रदेश में। है कोई ऐसा स्टेशन जहाँ पर ट्रेन रुके तो कुछ डिब्बे एक राज्य में हों और बाकी दूसरे राज्य में? यह इलाका संतरे के बागों के लिए भी प्रसिद्द है।
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शाम होते-होते शामगढ़ पहुँच जाते हैं। यह मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में है। आगे तो मध्य प्रदेश ही है लेकिन नाथूखेडी, चौमहला व तलावली के बहाने फिर राजस्थान आ जाता है। दो घंटे बाद पहुँचते हैं नागदा। यहाँ से उज्जैन- इंदौर के लिए लाइन जाती है। नागदा से रतलाम है ही कितना दूर? रतलाम से सीधे जाएँ तो वडोदरा जा पहुंचेंगे। एक लाइन मंदसौर, नीमच होते हुए चित्तौड़गढ़ तथा और भी आगे अजमेर पहुँच जाती है। पहले यह मीटर गेज थी जो अब बदलकर ब्रॉड गेज हो चुकी है। इसी तरह एक लाइन इंदौर होते हुए खंडवा व आगे अकोला, पूर्णा चली जाती है। यह अभी भी मीटर गेज है। पातालपानी व कालाकुण्ड और ओमकारेश्वर रोड भी इसी लाइन पर ही हैं।
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अच्छा जी, रतलाम तक आते-आते रात हो गयी है, नौ बज गए हैं। नींद आ रही है। सोता हूँ। किसी दिन किसी और लाइन के बारे में बताऊंगा। मन ना भरा हो तो ये लो एलबम लाया हूँ, फोटो देख लो।
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(भरतपुर रेलवे स्टेशन)
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(इस जगह के बारे में बताना)
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(एक सूखी नदी)
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(ये ट्रेन की प्रतीक्षा नहीं कर रहे हैं, बल्कि ट्रेन से उतरे हैं)
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(रणथम्भौर रेलवे स्टेशन और पीछे राष्ट्रीय पार्क)
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(रणथम्भौर राष्ट्रीय पार्क की पहाडियां)
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(कोटा में चम्बल नदी)
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(कोटा के बाद का भू-दृश्य। एकदम बंजर और पथरीला)
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(नमक-मिर्च लगाकर खीरे बेचता एक 'ताऊ')
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(दरा अभ्यारण्य से गुजरते हुए, जिला कोटा)
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(यह है भवानी मण्डी। आधा प्लेटफार्म तो मध्य प्रदेश में है...)
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(...और आधा राजस्थान में)
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(नागदा रेलवे स्टेशन। यहाँ से उज्जैन और इंदौर के लिए ट्रेनें जाती हैं। कुछ ट्रेनें भोपाल भी जाती हैं।)
बढ़िया रहा आपका यात्रा संस्मरण।
ReplyDeleteबधाई!
भवानी मंडी में ये बोर्ड हमने कई बार देखा है, दिल्ली जाते समय पर कभी फ़ोटो खींचकर लगाने की नहीं सोची चलो आपने लगा दिया बहुत बढ़िया काम किया। यात्रा संस्मरण अच्छा लगा।
ReplyDeleteभवानी मण्डी। आधा प्लेटफार्म तो मध्य प्रदेश में है...और आधा राजस्थान. ये नई जानकारी मिली. आभार महाराज!!
ReplyDeleteमुसाफिर जी,
ReplyDeleteइस रूट पर मैं बचपन में एक बार भुसावल तक गया था. मेरे जीवन का सबसे बुरा अनुभव था वो रेल यात्रा का. ट्रेन तो कोई सुपरफास्ट ही थी लेकिन मैं जनरल बोगी में ही गया था भुसावल तक. लकडी के फट्टों वाली सीट पर बैठा था. फिर कभी बताऊँगा.
आप केला देवी के बारे में पूछ रहे थे. मैंने इस मंदिर के बारे में सुना है. करौली के राजा भोमपालजी द्वारा इस मंदिर का निर्माण सन 1600 में करवाया था. कहा जाता है कि केला देवी, जो दुर्गा का अवतार मानी जाती हैं, ने राजा भोमपालजी को दर्शन देकर मंदिर निर्माण के लिये आदेश दिया था. यहाँ चैत के नवरात्रों में बहुत बडा मेला लगता है. यह मेला उत्तर भारत का सबसे बडा मेला माना जाता है. हर साल यहाँ साठ लाख से ज्यादा भक्तगण दर्शन करने आते हैं.
केला देवी स्टेशन का नाम इस मंदिर के कारण ही पडा है.
मैं शायद अगले महीने भरतपुर जा रहा हूँ. देवी माँ की ईक्छा हुई तो दर्शन करके आऊँगा और सारी जानकारी पोस्ट करूँगा.
वैसे काफी रोचक जानकारी दी है इस बार खासकर भवानी मण्डी स्टेशन के बारे में.
सुंदर जानकारी सुंदर तरीका। कोटा हो कर निकल भी गए। हमें पता ही नहीं। पहले बताते तो कोटा जं. की फोटो के साथ हमारी फोटो भी इस पोस्ट में जुड़ी होती।
ReplyDeleteआप चाहे पैसेंजर ट्रेन से यात्रा करें या राजधानी से आपके साथ यात्रा का जो मजा आता है वो और कहीं आनाही आता....एक साधारण से रूट को आपकी लेखनी असाधारण बना देती है...
ReplyDeleteकेला देवी जो करौली के पास है दरअसल डाकुओं की देवी है...कहा जाता है की छोटा बड़ा कोई डाकू हो इसके दर्शन करने जरूर आता है और इस मंदिर के पास बहती नदी में स्नान कर धन्य होता है...
श्री महावीर जी दिगंबर जैन अनुयायियों का बहुत बड़ा तीर्थ स्थल है...हर दिगंबर जैन अनुयायी को इसके दर्शन की हमेशा लालसा रहती है...
नीरज
bahut hi badhiya jankari
Deleteअजी आपने इतना सुन्दर चित्रण किया है कि लगा मैं भी इस रूट पर घूम आया हूं
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार करें
पूरा घूम लिया आज आपके साथ .. अच्छी पोस्ट !!
ReplyDeleteअब यहाँ कब हो आये ?? तुम भी ना हवा के संग -संग कहाँ पहुँच जाते हो....चित्र भरपूर होने से यात्रा वर्णन शानदार बन पड़ता है !!
ReplyDeleteKeep going n keep writing !!
प्रयास जी,
ReplyDeleteआपने केला देवी के बारे में काफी जानकारी दी है. हमारी तरफ से तो आज्ञा है बस देवी की आज्ञा और ले लो और वहां से वापस आकर हमें भी दर्शन कराओ.
और हाँ, भुसावल इस लाइन पर नहीं पड़ता है. वो भोपाल वाली लाइन पर है. जनरल डिब्बे में तो हर ट्रेन में ऐसा ही होता है.
दिनेश जी,
सबसे पहले तो माफ़ी चाहूँगा कि मैंने बताया नहीं. और उस दिन यह ट्रेन कोटा में तीन घंटे तक खड़ी रही थी. पहले बता देता तो अच्छे से मुलाकात हो जाती. फिर कभी जाऊँगा तो बता दूंगा.
नीरज गोस्वामी जी,
हमारे नाम के आगे कृपया राजधानी ट्रेन को मत जोडो. हम बेराजधानी में ही सुकून महसूस करते हैं. केला देवी और महाबीर जी के बारे में अच्छी जानकारी दी है. धन्यवाद.
Karauli(near Kela Devi) has a very famous Krisna Temple also . I once stayed there overnight . It is still looked after by the Royal Family of former Raja of the area. The deities in this MADAN MOHAN TEMPLE are originally from Vrindavan.
ReplyDeleteभवानी मंडी स्तेशन के बारे मे सुना था आज देखा पहली बार ? भानपुरा तक गया हूँ । लेकिन आपके साथ यात्रा मे मज़ा आगया
ReplyDeleteआधे प्लेटफार्म वाली जानकारी बहुत नई मिली,
ReplyDeleteधन्यवाद नीरज !
मुसाफिर जी,
ReplyDelete...दिल्ली से मुंबई गए हो कभी? ट्रेन से। मथुरा तक तो ठीक है। फिर दो रास्ते हो जाते हैं- एक तो जाता है झाँसी, भोपाल, भुसावल होते हुए;
मैं इस वाले रूट (भुसावल) के बारे में कह रहा था.
नीरज जी काफी अच्छा यात्रा वृत्तान्त है. कैला देवी माता के बारे में बता दूँ . यह जो स्टेशन है इसका नाम भले ही माता के नाम पर पड़ा हो लेकिन कैला देवी का मंदिर करौली जिले में है जहाँ दूर दूर तक ट्रेन नहीं है. निकट तम स्टेशन हिंडौनसिटी या गंगापुरसिटी स्टेशन है, जहाँ से बस लेकर जाना होगा. लेकिन आगरा और आस पास के इलाकों में और चम्बल बीहड़ों में इस देवी की काफी मान्यता है और यहाँ हिंदू नव वर्ष (चैत्र मास) में भव्य मेला लगता है. स्टेशन का मंदिर से कोई सम्बन्ध नहीं है. ठीक इसी प्रकार रास्ते में जो रणथम्भौर स्टेशन पड़ा था उसका भी रणथम्भौर राष्ट्रीय पार्क से कोई लेना देना नहीं क्यूंकि राष्ट्रीय पार्क का रास्ता सवाई माधोपुर के अंदर से है.
ReplyDeleteमलारना स्टेशन के आगे बनास नदी के जो घाट आपने देखे वहाँ वो अवशेष पुराने छोटे किले के हैं और नीचे तक सीढियां घाट पर नहाने एवं पानी लेने के लिए गयी हुई हैं. महाराजा मानसिंह के समय से ही जयपुर राजपरिवार के लड़का सवाई माधोपुर जयपुर लाइन पर एक स्टेशन है इसरदा , वहाँ से गोद जाता रहा है, इसलिए सवाई माधोपुर की इज्जत है और उसे जिला बनाया गया. यही कारण है की सवाई माधोपुर के आस पास छोटे जागीरदारों के ऐसे छोटे किले काफी देखने को मिलते हैं.
karauli ke yaduvanshi/yadav/jadaun rajputo ki kuldevi hai kaila mata.jiska nirman karauli ke raja chandrasen pal yadav aajkal jadaun ne karwaya tha kaila devi ko karauli wali mata bhi kaha jata hai
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