Skip to main content

सिद्धनाथ बारहद्वारी

सिद्धनाथ बारहद्वारी ओमकारेश्वर के पास ही है। परिक्रमा पथ में पड़ता है यह। आज ज्यादा लिखने का मूड नहीं है, इसलिए चित्र देख लो।
यह राजा मान्धाता के खंडहर महल में स्थित है। पूरी पहाडी पर महल फैला था। लेकिन समय की चाल देखिये। आज महल की एक-एक ईंटें इधर-उधर पड़ी हैं। लेकिन इन पर भी जबरदस्त कलाकारी देखने को मिलती है। जब मैं वहां पहुँचा तो एक चौकीदार बैठा था। मैंने उससे पूछा तो उसने इस खंडहरी का कारण मुस्लिम आक्रमण बताया। चलो खैर, कुछ भी हो, एक भरा-पूरा इतिहास यहाँ बिखरा पडा है।
(ये हाथी देख रहे हैं ना आप? ये डेढ़ मीटर से भी ज्यादा ऊंचे हैं। एक बेहतरीन कला)
(देखते जाओ)

(यहाँ की छत भी उड़ चुकी है, केवल जर्जर स्तम्भ ही रह गए हैं।)

(मन्दिर का समूचा व्यू, पीछे नर्मदा दिख रही है)

(हाँ, ये है इसी के पास चाँद-सूरज द्वार)

(सब कुछ बिखरा पडा है टूटी फूटी हालत में)

(स्तंभों पर कलाकारी)

(कलाकारी तो शानदार है, लेकिन बहुत ही जर्जर हालत में है)

(ये कौन सा द्वार है, मेरे याद नहीं है।)

(ये है बारहद्वारी से काफ़ी दूरी पर बाँध की दिशा में)

अगला भाग: कालाकुंड़ - पातालपानी

मध्य प्रदेश मालवा यात्रा श्रंखला
1. भीमबैठका- मानव का आरम्भिक विकास स्थल
2. महाकाल की नगरी है उज्जैन
3. इन्दौर में ब्लॉगर ताऊ से मुलाकात
4. ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
5. सिद्धनाथ बारहद्वारी
6. कालाकुण्ड - पातालपानी

Comments

  1. A majority of our cultural heritage was destroyed like this by Islamic-invaders. If no lesson is learnt from history, it repeats itself.

    ReplyDelete
  2. आभार इन चित्रों के माध्यम से दर्शन करवाने का.

    ReplyDelete
  3. वाह वाह.. चित्रों से ही सब कुछ समझा दिया आपने.. हैपी ब्लॉगिंग

    ReplyDelete
  4. बहुत बढिया भाई, अच्छी जगह घूम लिये आपके सौजन्य से.

    रामराम.

    ReplyDelete
  5. इस सांस्कृतिक महत्व की जानकारी के लिए आभार।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

    ReplyDelete
  6. बहुत ही नयनाभिराम चित्र हैं सारे के सारे...ये नयी जगह है जो हमने अपनी यात्रा के दौरान नहीं देखी...धन्यवाद आपका...
    नीरज

    ReplyDelete
  7. पोस्ट से बढ़कर चित्रकारी है।
    बधाई!

    ReplyDelete
  8. सबसे पहले इस इतिहास को हमें दिखाने के लिए शुक्रिया। अच्छी तस्वीरें है। हो सके तो हमें भेज देना जी। हमारा नेट दिक्कत कर रहा है। चोरी करने में दिक्कत है।

    ReplyDelete
  9. ठीक है भाई ..चित्र ही देख कर संतोष कर लेतें हैं....:)

    वैसे हर चित्र कुछ कहता है .....अपने आप में सम्पूर्ण !!

    सचित्र सुन्दर जानकारी का शुक्रिया !!

    ReplyDelete
  10. यह जगह मुझे बहुत पसंद है . ओम्कारेश्वर टापू की परिक्रमा करते हुए यहाँ से ओम्कारेश्वर बाँध भी दिखता है

    ReplyDelete
  11. यह जगह मुझे बहुत पसंद है . ओम्कारेश्वर टापू की परिक्रमा करते हुए यहाँ से ओम्कारेश्वर बाँध भी दिखता है

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

डायरी के पन्ने-32

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। इस बार डायरी के पन्ने नहीं छपने वाले थे लेकिन महीने के अन्त में एक ऐसा घटनाक्रम घटा कि कुछ स्पष्टीकरण देने के लिये मुझे ये लिखने पड रहे हैं। पिछले साल जून में मैंने एक पोस्ट लिखी थी और फिर तीन महीने तक लिखना बन्द कर दिया। फिर अक्टूबर में लिखना शुरू किया। तब से लेकर मार्च तक पूरे छह महीने प्रति सप्ताह तीन पोस्ट के औसत से लिखता रहा। मेरी पोस्टें अमूमन लम्बी होती हैं, काफी ज्यादा पढने का मैटीरियल होता है और चित्र भी काफी होते हैं। एक पोस्ट को तैयार करने में औसतन चार घण्टे लगते हैं। सप्ताह में तीन पोस्ट... लगातार छह महीने तक। ढेर सारा ट्रैफिक, ढेर सारी वाहवाहियां। इस दौरान विवाह भी हुआ, वो भी दो बार। आप पढते हैं, आपको आनन्द आता है। लेकिन एक लेखक ही जानता है कि लम्बे समय तक नियमित ऐसा करने से क्या होता है। थकान होने लगती है। वाहवाहियां अच्छी नहीं लगतीं। रुक जाने को मन करता है, विश्राम करने को मन करता है। इस बारे में मैंने अपने फेसबुक पेज पर लिखा भी था कि विश्राम करने की इच्छा हो रही है। लगभग सभी मित्रों ने इस बात का समर्थन किया था।

स्टेशन से बस अड्डा कितना दूर है?

आज बात करते हैं कि विभिन्न शहरों में रेलवे स्टेशन और मुख्य बस अड्डे आपस में कितना कितना दूर हैं? आने जाने के साधन कौन कौन से हैं? वगैरा वगैरा। शुरू करते हैं भारत की राजधानी से ही। दिल्ली:- दिल्ली में तीन मुख्य बस अड्डे हैं यानी ISBT- महाराणा प्रताप (कश्मीरी गेट), आनंद विहार और सराय काले खां। कश्मीरी गेट पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास है। आनंद विहार में रेलवे स्टेशन भी है लेकिन यहाँ पर एक्सप्रेस ट्रेनें नहीं रुकतीं। हालाँकि अब तो आनंद विहार रेलवे स्टेशन को टर्मिनल बनाया जा चुका है। मेट्रो भी पहुँच चुकी है। सराय काले खां बस अड्डे के बराबर में ही है हज़रत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन। गाजियाबाद: - रेलवे स्टेशन से बस अड्डा तीन चार किलोमीटर दूर है। ऑटो वाले पांच रूपये लेते हैं।

चित्रकोट जलप्रपात- अथाह जलराशि

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । चित्रधारा से निकले तो सीधे चित्रकोट जाकर ही रुके। जगदलपुर से ही हम इन्द्रावती नदी के लगभग समान्तर चले आ रहे थे। चित्रकोट से करीब दो तीन किलोमीटर पहले से यह नदी दिखने भी लगती है। मानसून का शुरूआती चरण होने के बावजूद भी इसमें खूब पानी था। इस जलप्रपात को भारत का नियाग्रा भी कहा जाता है। और वास्तव में है भी ऐसा ही। प्रामाणिक आंकडे तो मुझे नहीं पता लेकिन मानसून में इसकी चौडाई बहुत ज्यादा बढ जाती है। अभी मानसून ढंग से शुरू भी नहीं हुआ था और इसकी चौडाई और जलराशि देख-देखकर आंखें फटी जा रही थीं। हालांकि पानी बिल्कुल गन्दला था- बारिश के कारण। मोटरसाइकिल एक तरफ खडी की। सामने ही छत्तीसगढ पर्यटन का विश्रामगृह था। विश्रामगृह के ज्यादातर कमरों की खिडकियों से यह विशाल जलराशि करीब सौ फीट की ऊंचाई से नीचे गिरती दिखती है। मोटरसाइकिल खडी करके हम प्रपात के पास चले गये। जितना पास जाते, उतने ही रोंगटे खडे होने लगते। कभी नहीं सोचा था कि इतना पानी भी कहीं गिर सकता है। जहां हम खडे थे, कुछ दिन बाद पानी यहां तक भी आ जायेगा और प्रपात की चौडाई और भी बढ ...