13 अगस्त 2009, अगले दिन जन्माष्टमी थी। मैं उस दिन भोपाल के पास भीमबैठका में था। ताऊ का फोन आया। बोले कि भाई, हम नासिक जा रहे हैं, कल शाम को यहाँ से निकलेंगे। तू दोपहर तक इंदौर आ जा, मिल लेंगे। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं भोपाल में हूँ, बोले तो एक काम कर, आज रात को उज्जैन पहुँच जा। सुबह चार बजे महाकाल मंदिर में भस्म आरती होती है। उसे जरुर देखना। इसके अलावा वहां तेरे लायक कुछ भी नहीं है। फिर सीधे इंदौर आ जाना।
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ताऊ की बात हमने तुरन्त मानी। रात ग्यारह वाली पैसेंजर पकड़ी, टीटी की 'कृपा' से सोते हुए गए। ढाई बजे ही उज्जैन पहुँच गए। साढे तीन बजे तक नहा-धोकर चार बजे महाकाल मंदिर पहुँच गए। पहुँचते ही प्रसाद वालों ने पचास रूपये का प्रसाद जबरदस्ती 'गले' में बाँध दिया। जन्माष्टमी होने की वजह से काफी लम्बी लाइन लगी थी। अन्दर गर्भगृह में भस्म आरती की तैयारी चल रही थी। बाहर जगह-जगह टीवी स्क्रीन पर आरती का लाइव प्रसारण चल रहा था।
इसे वैसे तो महाकालेश्वर मंदिर कहते हैं। यह शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। शिप्रा नदी पास से ही बहती है। सुबह चार बजे यहाँ भस्म आरती होती है। इसमें प्रयुक्त होने वाली भस्म कोई साधारण चीज नहीं होती, बल्कि ताज़ी चिता की राख होती है। महाकाल की कृपा से नगरी में रोजाना कोई ना कोई मर ही जाता है। ताऊ बताते हैं कि अगर कई चिता हों, तो केवल उसी चिता की राख ली जायेगी, जिस पर शंकर जी रात को तांडव करते हैं। राख पर उनके पैरों के निशान होते हैं।
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मैं पौराणिक कथा नहीं सुनाऊंगा। लेकिन इतना तय है कि यह मंदिर हजारों साल पुराना है। जैन व बौद्ध ग्रंथों में भी इसका उल्लेख है। उज्जयिनी के महान राजाओं में विक्रमादित्य व राजा भोज का नाम आता है। विक्रमादित्य ने तो विक्रम संवत का आरम्भ कराया था जो कि आज तक चल रहा है। उन्ही के नाम पर ही सिंहासन बत्तीसी व बेताल पच्चीसी की कथाएं प्रसिद्द हैं। बेताल पच्चीसी पढने के लिए नरेश जी के ब्लॉग यह भी खूब रही की इस पोस्ट से शुरू करें। विक्रम व भोज इस मंदिर में पूजा करते थे।
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बाद में मुसलमान शासन काल में इस मंदिर को तबाह कर दिया गया। बिलकुल खण्डहर बना दिया गया। वाकई उन धर्मान्ध शासकों ने कभी संस्कृति व धरोहर के लिए कुछ नहीं किया। उनका जोर केवल मकबरें व मस्जिदों तक ही रहा। चलो खैर, समय बदला, उनका राज भी ख़त्म हो गया। फिर पूरे मालवा पर मराठों का शासन हो गया। मराठों ने इस मंदिर का दोबारा उद्धार कराया। आज यह काफी बड़े भाग में फैला है।
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ये तो हुई महाकाल मंदिर की जानकारी, जो मैंने जुटाई। अब मैं बताता हूँ, मैंने किस तरह आरती में भाग लिया। चार बजे जब मैं पहुंचा तो जन्माष्टमी की वजह से कम से कम सौ-डेढ़ सौ मीटर लम्बी लाइन लगी थी। साफ़ सुथरे फर्श पर सभी पालथी मारे बैठे थे। मैं भी बैठ गया और टीवी स्क्रीन पर देखने लगा। रात को साढे ग्यारह बजे सोया था और ढाई बजे ही उठ गया था। इसलिए नींद आ रही थी। बैठते ही तुंरत टुल्ल। मेरे जैसे लगभग सभी थे। करीब साढे पांच बजे सभी उठे और जयकारा बोलने लगे। मतलब कि आरती ख़त्म। वो तो भला हो ताऊ का, उन्होंने बाद में मुझे लाइव कमेंट्री सुना दी थी तो थोडी बहुत जानकारी भी हो गयी। फिर भी इस बात का संतोष है कि मैं भस्म आरती में शामिल तो हुआ।
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यहाँ से निकलकर ध्यान आया कि अरे हाँ, यह तो कुम्भ नगरी है। चलो, शिप्रा नदी को भी देखकर आते हैं। राम घाट की तरफ चला गया। यहीं से एक किताब ली- "उज्जयिनी तीर्थ महात्म्य"। इसमें पेज- 19 पर लिखा है- 'शिप्रा नदी गंगा से भी बढ़कर है।' शिप्रा को गंगा से बढ़कर बताना अपने मुहं मियां मिट्ठू बनना ही है। बस, यहीं पर मूड खराब हो गया। फिर उज्जैन में कुछ नहीं देखा। तुंरत स्टेशन पहुंचा। अवंतिका एक्सप्रेस से ग्यारह बजे तक इंदौर पहुँच गया।
अगला भाग: इंदौर में ब्लॉगर ताऊ से मुलाकात
मध्य प्रदेश मालवा यात्रा श्रंखला
1. भीमबैठका- मानव का आरम्भिक विकास स्थल
2. महाकाल की नगरी है उज्जैन
3. इन्दौर में ब्लॉगर ताऊ से मुलाकात
4. ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
5. सिद्धनाथ बारहद्वारी
6. कालाकुण्ड - पातालपानी
चलो, ताऊ की मेहमानदारी का किस्सा सुनाने वाला कोई तो मिला. :)
ReplyDeleteआपकी यात्रा से हम भी दर्शन करके धन्य हो गये।
ReplyDeleteआभार!
महाकालेश्वर मंदिर में भस्म की आरती रोमांच पैदा करने वाली है. चिता पर शंकरजी के पैरों के निशान.... जय भोले शंकर!!! बहुत ही बढिया जगह घूम आये नीरज जी इस बार. आगे का वृतांत भी जल्दी सुनाईयेगा.
ReplyDeleteहमेशा की तरह दिलचस्प और रोचक यात्रा व्रूतांत पर
ReplyDeleteभाई ये ताऊ कौन है? लगता है आप किसी गलत ताऊ के चाल्हे चढ गये? ताऊ तो खुद ताऊ से नही मिलता.
रामराम.
अच्छा हुआ रात में आपको गायें, सूअर और कुत्ते नहीं दिखाई दिये, वरना हमारे उज्जैन की इज्जत उतर जाती… :) :)
ReplyDeleteसुंदर चित्र सहित सुंदर विवरण पढने को मिला .. बहुत अच्छी पोस्ट !!
ReplyDeleteआपके साथ घूमने का जो आनंद है वो और किसी के साथ कहाँ...??? बहुत नयनाभिराम चित्र और रोचक वर्णन....
ReplyDeleteनीरज
अमा यार ये मूड भी ना अजीब है जब देखो खराब हो जाता है। कमाल तो देखिए मूड खराब में भी इतनी चीजें याद रख ली :) खैर अच्छी पोस्ट पर हमने आज चोरी नही की।
ReplyDeleteताऊ जी, ऐसा है कि वो गलत हो या सही हो, इसे तो वो ही जाने. मेरे साथ तो कुछ भी गलत नहीं हुआ, अब मैं कैसे कह दूं कि वो गलत ताऊ था. क्या आपको उस ताऊ से जलन हो रही है?
ReplyDeleteसुरेश जी,
ये जानवर तो हर शहर में दिख जाते हैं, इसलिए इनको देखना अपना टाइम ही खराब करना है. मैं किसी शहर की बुराई देखने नहीं जाता. मेरी इस पोस्ट में इसी की कमी थी जो आपने पूरी कर दी है, धन्यवाद.
वाह आपका गंगा प्रेम देख आनंद आ गया! सोते हुए ही सही 'भस्म आरती' में शामिल तो हो गए.
ReplyDeleteमहाकाल की भस्मारती में शामिल होने का आनंद ही कुछ और है, ताजे फ़ोटो देखकर अच्छा लगा, "जय महाकाल"।
ReplyDelete"जय महाकाल"। This is the culmination of ur Kaanvad yatra !
ReplyDeleteदेखो भाई तुमने कांवड़ यात्रा की और हम जैसे पापियों को शिव शम्भू का नाम लेने को ब्लॉग के माध्यम से प्रेरित किया ,सो अपनी इस यात्रा को इस का प्रसाद मानो , मानो न मानो किन्तु सच !
ReplyDeleteउज्जैन मे पोस्ट ग्रेजुएशन के दौरान दो साल बिताये है 25 साल पहले तब की याद करा दी आपने । वो गोपाल मन्दिर की जन्माष्टमी और सवारी महकाल की फ्रीगंज की शामे और न जाने क्या क्या । लग रहा है उज्जैन पर कुछ लिख ही दूँ ।
ReplyDeletenice description aisa laga mano hum khud apke sath ghum rahe hain... thanks again
ReplyDeletefor reader if want to read more religious travel article u can visit www.aachman.com
jo photo aap nee daala hai bhasm aarti ke liye line kaa uss ko dekh kar vishwas nahi hota ki aap nee bhasm aarti dekhi hai, kyun ki bhasm aarti ke liye to sirf dhoti mai jaaya jaata hai, aur entry ke liye ek din pahle pass banwana padta hai...
ReplyDeleteश्रीराम.............
ReplyDeleteनीरज भाई श्री महाकाल नागरी उजॆन में काल्वैराव मंदिर ,जंतर मंतर ,घड-कालिका मंदिर ये भी देखणे लायक हैं.
शुभ -यात्रा ............मुकुंद -धुळे-MH -18