कुछ दिन पहले मैंने प्रतिज्ञा की थी कि जल्दी ही नीलकंठ महादेव के नज़ारे दिखाए जायेंगे। हमारे यहाँ देर तो है पर अंधेर नहीं है। इसलिए थोडी देर में आप देखोगे नीलकंठ की हिमालयी वादियों को। मैं वहां करीब महीने भर पहले 15 जुलाई को गया था। उस दिन दोपहर से पहले बारिश हुई थी इसलिए नजारों में चाँद भी लगे थे और तारे भी।
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चलो, आज फिर चलते हैं वहीं पर। सबसे पहले किसी भी तरह ऋषिकेश पहुंचेंगे। अरे यार, वही हरिद्वार वाला ऋषिकेश। हवाई जहाज से, ट्रेन से, बस से, कार से, टम्पू से; जैसा भी साधन मिले, बस पहुँच जाइए। इसके बाद राम झूला पार करके स्वर्गाश्रम। पहुँच गए? ठीक है। यहाँ से नीलकंठ की दूरी कम से कम चौदह किलोमीटर है- वो भी पैदल। दम-ख़म हो तो पैदल चले जाओ। पूरा रास्ता पक्का है लेकिन महाघनघोर जंगल भी है। दस किलोमीटर तक तो निरंतर खड़ी चढाई है। सावन को छोड़कर पूरे साल सुनसान पड़ा रहता है। बन्दर व काले मुहं-लम्बी पूंछ वाले लंगूर जगह-जगह आपका स्वागत करेंगे। ये ही यहाँ की पुलिस है। बैग व जेबों की तलाशी लेकर ही आगे जाने देते हैं।
दम-ख़म ना भी हो तो स्वर्गाश्रम के पास से ही जीपें भी मिलती हैं। आजकल तो पचास रूपये प्रति सवारी के हिसाब से लेते हैं। जीप वाला रास्ता 25-30 किलोमीटर का है। अगर चाहो तो नीलकंठ बाबा के दर्शन भी कर सकते हो। लेकिन ये तो पक्का है कि शिवजी महाराज दर्शन करने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं करेंगे। थोडा और ऊपर एक चोटी पर पार्वती मंदिर भी है। वहां जाने का रास्ता कच्चा है। ये मंदिर तो बहाने हैं लोगों को घर से बाहर निकालने के, घूमने-फिरने के। नहीं तो भगवान् कहाँ नहीं है?? कण-कण में तन-मन में भगवान् है। इन्ही मंदिरों से तो हमें घूमने का लक्ष्य और बहाना मिलता है। इसी तरह ही मस्जिद, गुरूद्वारे और चर्च भी हैं। कहते हैं कि नीलकंठ जा रहे हैं। चले गए, हरी भरी वादियों में घूमे, मन को शान्ति मिली; बाद में कह दिया कि भगवान् का चमत्कार है।
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तो जी, बरसात का मौसम चल रहा है। नीलकंठ जाना दुर्गम भी नहीं है। तो चले जाओ इस बार वहीं पर।
और हाँ, अब नज़ारे देखिये:-
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बरसात में ऋषिकेश राम झूला |
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नीलकंठ के पास का इलाका |
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एक गढ़वाली गाँव |
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नीलकंठ महादेव का मन्दिर |
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नीली पहाडियां |
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अरे रे रे रे!!! फिसल गए। नहीं जी ये फिसले नहीं हैं, ये तो ऋषिकेश से नीलकंठ तक दंडवत जा रहे हैं, जल चढाने |
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ऊपर से ऋषिकेश और गंगा का नजारा |
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लंगूर |
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इसी तरह के रास्ते हैं |
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बन्दर के मुकाबले सीधे होते हैं लंगूर |
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रात के समय राम झूला और गंगाजी |
कांवड यात्रा श्रंखला
1. कांवड़ यात्रा - भाग एक
2. कांवड़ यात्रा - भाग दो
3. बरसात में नीलकण्ठ के नजारे
आनन्दित हो उठे चित्र देख!!
ReplyDeleteI started my hill treks with Neelkanth . U should have shown us Jhil-mil Gufa as well ! very lovely pics.
ReplyDeleteबहुत शानदार तस्वीर भाई. और लंगूरों से अच्छी दोस्ती है तुम्हारी.:)
ReplyDeleteरामराम.
कुछ और तस्वीरें भी पोस्ट करो नीरज
ReplyDeleteचित्रों के साथ आपके यात्रा संस्मरण बहुत बढ़िया हैं।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर चित्र और विवरण शुक्रिया
ReplyDeleteसर जी हम भी गए थे एक बार लक्ष्मण झूला। कुछ फोटो भी खींचे थे बात शायद 1993 की है। वैसे अच्छी जगह है। काफी मजा आया पर पैर फिसल गया और मोच आ गई सारा मजा खराब कर दिया। और ज्यादा ना घूम कर वापिस आ गए। और हाँ एक दो फोटो चोरी करके ले जा रहे जी।
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर तस्वीरें !
ReplyDeleteनीरज भाई, इन्दौर जाकर ताऊ से जो मुलाकात की थी,जरा उनकी तस्वीरें भी पोस्ट करना। पता तो चले कि आखिर ताऊ का असली चेहरा कौन सा है:)
ReplyDeleteये मंदिर तो बहाने हैं लोगों को घर से बाहर निकालने के, घूमने-फिरने के। नहीं तो भगवान् कहाँ नहीं है?? कण-कण में तन-मन में भगवान् है।
ReplyDeleteबिलकुल दुरुस्त फ़रमाया आपने ..
मन चंगा तो कठौती में गंगा
ये नीलकंठ मैंने भी किया ३ वर्ष पहले ..पैदल..ट्रैक...बिंदास
वैसे तो भोले बाबा की परम भक्त हूँ लेकिन नज़ारे का भी अपना ही मज़ा था
रोचक वर्णन !!