सावन आ गया है। कांवड़ यात्रा शुरू हो चुकी है। राजस्थानी कांवडिये तो हरिद्वार से जल लेकर मेरठ पार करके दिल्ली को भी पार कर रहे हैं। दिल्ली वाले कांवडिये हरिद्वार पहुँच चुके हैं या पहुँचने ही वाले हैं। गाजियाबाद व मेरठ व आस पास वाले भी एक दो दिन में पहुँच रहे हैं। कांवडियों की बढती तादाद के मद्देनजर प्रशासन भी चौकस है। हरिद्वार से मेरठ तक तो नेशनल हाईवे बंद हो गया है। दो दिन बाद मेरठ-दिल्ली रोड भी बंद हो जायेगी।
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ऐसी परिस्थिति में व्यवस्था बनाये रखने की सारी जिम्मेदारी कांवडियों की ही हो जाती है। तो मैं यहाँ पर कुछ बातें लिख रहा हूँ, अगर किसी कांवडिये ने पढ़ ली और इन पर अमल करने की कसम खा ली तो उसे कांवड़ लाने के बराबर ही पुण्य मिलेगा।
- तुम जब कांवड़ लाते हो, तो उस समय भगवन शंकर का प्रतिरूप होते हो, इसीलिए तुम्हे 'भोले' कहा जाता है। तो कोई भी ऐसा काम मत करो जिससे भोले की प्रतिष्ठा व मान-मर्यादा को ठेस पहुंचे।
- कभी भी कांवड़ लाते समय किसी से तेज चलने की या गंतव्य तक पहले पहुँचने की प्रतियोगिता मत करो।
- कांवड़ वैसे तो नंगे पैर ही लायी जानी चाहिए, लेकिन चप्पल व जूते पहनना भी कोई बुरी बात नहीं है।
- इस दौरान साबुन व तेल का प्रयोग बिलकुल वर्जित है।
- गंगा जी में कुछ भी मत डालो, यहाँ तक कि पुरानी टूटी हुई कांवड़ भी नहीं। पुरानी कांवडों को उन दुकानदारों को दे देना चाहिए जो नई कांवड़ बनाते हैं। इससे गंगा जी भी प्रदूषित नहीं होगी और कांवड़ की खपच्चियों का दोबारा उपयोग भी हो जाता है।
- कांवड़ ही सबसे पवित्र चीज है, इसकी पवित्रता बरकरार रखनी चाहिए। इस पर कोई भी कपडा सूखने जैसे कि निकर, तौलिया नहीं डालना चाहिए। नहाने के बाद निकर को सिर पर रख लो, तौलिये को लपेट लो, थोडी देर में अपने आप सूख जायेंगे।
- रास्ते में लोग-बाग भण्डारे करते हैं, पानी-शरबत पिलाते हैं, फल व मिठाई बांटते हैं, फ्री चिकित्सा करते हैं; कभी सोचा है कि क्यों करते हैं ये सब? पुण्य कमाने के लिए। कांवड़ लाकर कांवडियों को जो पुण्य मिलता है उसमे से ही इन्हें भी मिलता रहता है। इस तरह कांवडियों का पुण्य कम होता जाता है। अपना पुण्य कम ना हो, इसके लिए निम्न काम करें : भण्डारे में खाएं तो दान पात्र में दान जरूर करें, कहीं अगर फल व मिठाई मिलते हैं तो आगे कहीं बच्चों को दे दें, या गरीबों को दे दें।
- कभी भी नशा ना करें। भांग का प्रयोग भी ना करें।
- कभी भी आगे वाले 'भोले' से आगे निकलने के लिए साइड ना मांगें। पूरी सड़क है, खुद ही थोडा साइड में होकर आगे निकल जाएँ।
- चाहे कुछ भी हो, सड़क के किनारे शौच ना करें। कुछ बेवकूफ कांवडिये रात को सड़क के किनारे ही बैठ जाते हैं।
- चूंकि लम्बी दूरी तय करनी होती है, तो रोजाना अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही चलें। साधारणतया प्रतिदिन चालीस किलोमीटर से ज्यादा ना चलें।
- गर्मी का मौसम है तो ऐसे में डीहाइड्रेशन होने की पूरी सम्भावना रहती है। तो चाहे प्यास लगे या न लगे, थोडी थोडी देर में पानी जरुर पीते रहें।
- सोकर उठने के बाद व शौच के बाद कांवड़ उठाने से पहले नहाना जरुरी होता है।
और अंत में,
मंगलौर से खतौली होते हुए मुरादनगर तक गंगनहर के किनारे-किनारे कांवड़ यात्रा मार्ग अब बेहतरीन हो चुका है। इसलिए इस मार्ग का अधिक से अधिक उपयोग करें। मंगलौर रुड़की से 10 किलोमीटर व हरिद्वार से 40 किलोमीटर की दूरी पर है। इस मार्ग से सफ़र करने पर हाईवे के मुकाबले 20 किलोमीटर कम पड़ता है। इस पर हरियाली व छाया भी ज्यादा है। यह नहर पूरे रास्ते दाहिने रहती है यानी पश्चिम की ओर। तो पछुवा हवा यानी लू जब चलती है तो पानी के संपर्क में आकर ठंडी हो जाती है तो लू भी नहीं लगती।
बस, अभी तो मेरे दिमाग में कांवडियों के लिए इतनी ही बातें आई हैं, आपके दिमाग में कुछ आ रहा हो तो बता दें।
जी बहुत अच्छा !
ReplyDeleteऐसे ही करेंगे जब कांवड़ लेने जाएंगे !
इस पोस्ट का प्रिंट आऊट लेकर, काँवडियों को बाँट पाते तो अच्छा रहता.
ReplyDeletegood, all the best! Have a safe journey ! Jai Bhole, Jai Bharat !
ReplyDeleteजय भोले.
ReplyDeleteइस पोस्ट का तो पोस्टर बनवाकर सारे रास्ते में लगवाना चाहिए
ReplyDeleteजय भोले की।
ReplyDeleteबम बम भोले!!! यात्रा मंगलमय हो!!!!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा सन्देश दिया है,
ReplyDeleteबम बम भोले!!!
जय भोलेनाथ.
ReplyDeleteरामराम.
In sujhavon ke ishtehaar chapva kar bantvaiye bhi jane chahiye. Aapki safal aur mangalmay yatra ki shubhkaamnayein.
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