Skip to main content

अजी अब तो हम भी दिल्ली वाले हो गए

हाँ जी, बिलकुल सही कह रहा हूँ। अब हम हरिद्वार वाले नहीं रहे, दिल्ली वाले हो गए हैं। आज के बाद अपनी समस्त गतिविधियाँ दिल्ली से ही संचालित होंगी। इब आप सोच रहे होंगे कि मुसाफिर को क्या हो गया? कल तक हरिद्वार हरिद्वार करने वाला अब दिल्ली के गुणगान कर रहा है।
चलो बता ही देता हूँ। दिल्ली मेट्रो में जूनियर इंजिनियर (JE) बन गया हूँ। अगस्त 2008 में रोजगार समाचार में छपा कि दिल्ली मेट्रो को बाईस मैकेनिकल जेई की जरुरत है। बाईस में से केवल ग्यारह सीटें ही अनारक्षित थी। हमने भी तीन सौ रूपये का बैंक ड्राफ्ट लगाकर फॉर्म भर दिया। दुनिया वालों ने खूब कहा कि भाई, केवल ग्यारह सीटें ही तो हैं, तू तीन सौ रूपये बर्बाद मत कर। एक से एक बढ़कर पढाकू परीक्षार्थी आएंगे, तू तो कहीं भी नहीं टिकेगा। लेकिन धुन के पक्के इंसान ने फॉर्म भर ही दिया।

अगस्त से सितम्बर, अक्टूबर और नवम्बर भी गुजर गया। अब तक इसे ब्लोगिंग की लत पड़ चुकी थी। भूल गया कि कभी फॉर्म भी भरा था। तभी घर पर एक लैटर आया मेट्रो वालों का। कहने लगे कि भाई, तू लिखित परीक्षा दे आ। रोहिणी के किसी पब्लिक स्कूल में सेंटर पड़ा था। जब यह बन्दा लिखित परीक्षा देने स्कूल में गया, तो वहां उपस्थित भीड़ को देखते ही होश उड़ गए। उनमे तीन तो मेरी क्लास के टोपर भी थे। ज्यादातर टाई वाई बांधकर आये थे। सभी नहाये धोये और दाढ़ी मूछ सफाचट। और मै? पूरी रात ट्रेन में गुजारी थी। हरिद्वार से मसूरी एक्सप्रेस पकड़ी थी। दिल्ली आकर मुहं धोया। सिर पर टोपा रखा और चले आये।
फिर दिसम्बर के लास्ट में रिजल्ट भी आ गया। इंटरव्यू देने वालों में मेरा भी रोल नंबर था। एक सौ चालीस बन्दों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था। इंटरव्यू लेने वाले तीन थे। घबराहट तो खैर सभी को होती है। लेकिन मन को तसल्ली देने के लिए मैं ये सोच लेता हूँ कि इंटरव्यू लेने वालों को कुछ नहीं पता। हमें ही सब कुछ पता होता है।
मुझसे पूछा कि "कहाँ के रहने वाले हो?"
"जी, मेरठ।"
"मेरठ तो शायद दिल्ली के पास ही पड़ता है ना?"
"हाँ जी, यूपी में है। दिल्ली से साठ किलोमीटर दूर।"
"तो ये बताओ कि मेरठ क्यों फेमस है?"
"जी, 1857 की क्रान्ति के कारण।"
"और?"
"और क्या? खाने में मेरठ का गुड और गज्जक, इंडस्ट्री में कैंची और स्पोर्ट्स आइटम तथा पर्यटन में हस्तिनापुर।"
इसके बाद थोडा बहुत कंपनी के बारे में कि क्या प्रोडक्ट है, तुम क्या करते हो? वगैरा वगैरा।
पंद्रह दिन बाद ही इसका भी रिजल्ट आ गया। पप्पू ने इंटरव्यू में भी बाजी मार ली। अब कहने लगे कि 21 जनवरी को आ जाओ। तुम्हारा मेडिकल लेंगे। लेकिन 21 को उन्होंने मेरी फाइल ही गुम कर दी। और कह दिया कि अब तुम 27 को आना। तो 21 तारीख को दोपहर को ही सुशील जी छौक्कर के यहाँ जा पहुँच। पहुंचा क्या, वे ही मुझे कश्मीरी गेट से उठाकर ले गए थे।
वहां दोपहर को एक बजे 'ब्रेकफास्ट' हुआ। दो ढाई बजे लंच। शाम तक दोनों आमने सामने बैठे बात ही करते रहे। दोनों नहीं तीनों। उनकी छोटी से प्यारी बच्ची नैना पूरे दिन हमारे पास से नहीं हटी। सच कहूं तो मुझे नैना ने बहुत प्रभावित किया। माँ बाप की पूरी आज्ञाकारिणी। मेरे लिए खाना भी वही लेकर आई थी। और उम्र? शायद दो साल।
खैर, 27 जनवरी को फिर जा पहुंचे। 30 तारीख तक घोषित हो चुका था कि मुसाफिर जी दिल्ली मेट्रो की सेवा करने के लिए पूरी तरह काबिल हैं। और होते होते 6 फ़रवरी को जॉइनिंग भी हो गयी। 9 फ़रवरी से शास्त्री पार्क ट्रेनिंग स्कूल में ट्रेनिंग भी शुरू हो जायेगी।
और अब हरिद्वार वाली कंपनी के बारे में। मेडिकल होने से पहले मैंने उन्हें बताया था कि मेरी दादीजी बहुत बीमार हैं। दो दिन बाद वे चल बसी। मेडिकल सफल होते ही मन में आया कि अगर अब कंपनी में ना जाऊं तो मेरी जनवरी की सेलरी रोक ली जायेगी। क्या करें, ऐसे मौकों पर मरे हुओ को मारना पड़ता है। तो फ़रवरी में चार दिन फिर ड्यूटी की। मेनेजर से एक हजार रूपये भी ले लिए। और अब जनवरी की सेलरी भी खाते में आ गयी है।

Comments

  1. ढ़ेरों बधाईयां, शुभकामनाएं, आपको और आपके सारे परिवार को।
    इसी तरह जिंदगी में तरक्की करते रहें।

    ReplyDelete
  2. बहुत बहुत बधाई .. सुशील जी जैसे नेक इंसान आपके साथ है तो नो चिंता नो वरी :) दिल्ली में स्वागत है आपका

    ReplyDelete
  3. अरे वाह बधाई। नौकरी मिली वह भी अपनी योग्यता के बल बूते पर। इस पर एक और बधाई।

    ReplyDelete
  4. जाट भाई.. "दिल्ली मेट्रो में आपका स्वागत है!!"

    बहुत अच्छी खबर.. आपको ढे़र सारी बधाई..

    स्वागत आपका राजधानी में..

    ReplyDelete
  5. बहुत बधाई मित्र! ब्लॉगिंग ने लगता है आपकी बौद्धिक धार मजबूत की और कुछ कम्पीटीटिव फायदा दिलाया। नहीं?

    ReplyDelete
  6. बधाई.. चलो इतना और तै हो गया कि नौकरियां मिलने में सभी जगह धाँधली नहीं होती.

    ReplyDelete
  7. भाई मैं तो तन्नै फ़ोन पर ही बधाई दे चुका इब आडै और लेले और मन लगाकर काम करिये.
    और छोक्कर जी घणी बधाई और उनका आभार तन्नै झेलने के लिये.

    इब राजधानी का ब्लागरां नै भगवान बचावै.

    रामराम.

    ReplyDelete
  8. Neerej ji badhai to maine phone pe de di thi aur aapne traet dene ka ashwasan bhi phone pe hi diye tha....

    par ek baar aur khub badhai...

    ReplyDelete
  9. बधाई हो भैया .... स्वागत है आपका

    ReplyDelete
  10. अरे...अब जब दिल्लीवासी होने जा रहे हो तब हमें पता चल रहा है कि तुसी हरद्वारीलाल हो...हरद्वार से हमारा रिश्ता पता है या नहीं ?

    ReplyDelete
  11. दिल्ली मैट्रो में आपका स्वागत है!

    मुसाफिर भाई, कभी हमें भी सेवा का मौका दें. हम भी शास्त्री पार्क के बहुत नज़दीक रहते हैं

    ReplyDelete
  12. नई नौकरी की बहुत बहुत बधाई !!!!

    ReplyDelete
  13. बधाई जी बधाई...

    ReplyDelete
  14. नमस्कार नीरज जी!
    मैं अपनी शादी के बारे में बात करने के लिए घर चला गया था जिसके कारण इस खुशी के मौके पर आपको शुभकामना नही दे सका! चलो देर से ही सही आपको ढेरों शुभकामनायें!
    आपने मुझे ये खुशखबरी ब्लॉग के जरिये दी लेकिन फ़ोन पर देते तो इस नाचीज को बहुत अच्छा लगता! क्या हैं कि इससे मुझे जो अभी परायेपन का अहसास हो रहा हैं वो नहीं होता! चलो कभी मेट्रो में आपके साथ सफर तो कर सकेंगे!
    आप माने या ना माने लेकिन......
    आपका अपना!
    दिलीप गौड़
    गांधीधाम!

    ReplyDelete
  15. रोहिणी हम्‍म..; मन्‍नै कै दी थी सकूलआले ने कि भई बालक अपणी हिंदी का ही बिलागर है जरा धियाण रखिए...

    ईब दिल्‍ली आ ही गए हो तो जम जाओ... और जे कोई दिक्‍कत हो तो हमें याद कर लीओ।

    शास्‍त्रीपार्क के लिहाज से उस्‍मानपुर ते लेकर खजूरी भजनपुरा तक का इलाका सूट करेगा... कोई तोप इलाका त न है पर तेरी-मेरी प्रोफाइल के लिहाज से ठीक है हमने तीस साल काड्डे हैं वहॉं... मजे की जगह है।

    ReplyDelete
  16. चलिए मंदी को भी मात दे दी आपने. बहुत-बहुत बधाई हो. अब तो फ़िर मेट्रो में ही मुलाकात होगी. ट्रेनिंग के दौरान ब्लोगिंग के लिए भी समय निकालते रहिएगा. पुनः बधाई और शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  17. bohot-bohot badhai aapko neeraj bhai :-) wish k aap jeevan mein aise hi safalta paate rahe :-)

    ReplyDelete
  18. Delhi mein aapka swagat hai.naukari ki badhai ho,Aap coti umar mein bhi accha likh rahe ho...

    ReplyDelete
  19. बहुत बहुत बधाई हो । कभी दिल्ली आना हुवा तो आपसे एक बार जरूर मुलाकात करेंगें ।

    ReplyDelete
  20. ढे़र सारी बधाई..

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

दिल्ली से गैरसैंण और गर्जिया देवी मन्दिर

   सितम्बर का महीना घुमक्कडी के लिहाज से सर्वोत्तम महीना होता है। आप हिमालय की ऊंचाईयों पर ट्रैकिंग करो या कहीं और जाओ; आपको सबकुछ ठीक ही मिलेगा। न मानसून का डर और न बर्फबारी का डर। कई दिनों पहले ही इसकी योजना बन गई कि बाइक से पांगी, लाहौल, स्पीति का चक्कर लगाकर आयेंगे। फिर ट्रैकिंग का मन किया तो मणिमहेश परिक्रमा और वहां से सुखडाली पास और फिर जालसू पास पार करके बैजनाथ आकर दिल्ली की बस पकड लेंगे। आखिरकार ट्रेकिंग का ही फाइनल हो गया और बैजनाथ से दिल्ली की हिमाचल परिवहन की वोल्वो बस में सीट भी आरक्षित कर दी।    लेकिन उस यात्रा में एक समस्या ये आ गई कि परिक्रमा के दौरान हमें टेंट की जरुरत पडेगी क्योंकि मणिमहेश का यात्रा सीजन समाप्त हो चुका था। हम टेंट नहीं ले जाना चाहते थे। फिर कार्यक्रम बदलने लगा और बदलते-बदलते यहां तक पहुंच गया कि बाइक से चलते हैं और मणिमहेश की सीधे मार्ग से यात्रा करके पांगी और फिर रोहतांग से वापस आ जायेंगे। कभी विचार उठता कि मणिमहेश को अगले साल के लिये छोड देते हैं और इस बार पहले बाइक से पांगी चलते हैं, फिर लाहौल में नीलकण्ठ महादेव की ट्रैकिंग करेंग...

लद्दाख साइकिल यात्रा का आगाज़

दृश्य एक: ‘‘हेलो, यू आर फ्रॉम?” “दिल्ली।” “व्हेयर आर यू गोइंग?” “लद्दाख।” “ओ माई गॉड़! बाइ साइकिल?” “मैं बहुत अच्छी हिंदी बोल सकता हूँ। अगर आप भी हिंदी में बोल सकते हैं तो मुझसे हिन्दी में बात कीजिये। अगर आप हिंदी नहीं बोल सकते तो क्षमा कीजिये, मैं आपकी भाषा नहीं समझ सकता।” यह रोहतांग घूमने जा रहे कुछ आश्चर्यचकित पर्यटकों से बातचीत का अंश है। दृश्य दो: “भाई, रुकना जरा। हमें बड़े जोर की प्यास लगी है। यहाँ बर्फ़ तो बहुत है, लेकिन पानी नहीं है। अपनी परेशानी तो देखी जाये लेकिन बच्चों की परेशानी नहीं देखी जाती। तुम्हारे पास अगर पानी हो तो प्लीज़ दे दो। बस, एक-एक घूँट ही पीयेंगे।” “हाँ, मेरे पास एक बोतल पानी है। आप पूरी बोतल खाली कर दो। एक घूँट का कोई चक्कर नहीं है। आगे मुझे नीचे ही उतरना है, बहुत पानी मिलेगा रास्ते में। दस मिनट बाद ही दोबारा भर लूँगा।” यह रोहतांग पर बर्फ़ में मस्ती कर रहे एक बड़े-से परिवार से बातचीत के अंश हैं।