जब मैं गुडगाँव में रहता था तो मुझसे दिल्ली के एक दोस्त ने पूछा कि यार, ये जो गुड होता है ये कौन से पेड़ पर लगता है? मैंने कहा कि इस पेड़ का नाम है गन्ना। तो बोला कि गन्ने पर किस तरह से लगता है? डालियों पर लटकता है या गुठली के रूप में होता है या फिर तने में या जड़ में होता है। मैंने कहा कि यह गन्ने की डालियों पर प्लास्टिक की बड़ी बड़ी पन्नियों में इस तरह पैक होता है जैसे कि बड़ी सी टॉफी। लोगबाग इसे पन्नियों में से बाहर निकाल लेते हैं और पन्नियों को दुबारा टांग देते हैं। उसके मुहं से एक ही शब्द निकला- आश्चर्यजनक।
असल में गुड ना तो पन्नियों में होता है और ना ही गन्ने पर लटकता है। इसे बनाया जाता है कोल्हू पर। कोल्हू से गन्ने का रस निकाला जाता है। फिर इसे बड़े बड़े कडाहों में गर्म किया जाता है। साथ ही इसमें "सुकलाई" नामक पौधे का रस भी मिलाया जाता है। इससे गन्ने के रस में मिली हुई अशुद्धियाँ झाग के रूप में बाहर आ जाती हैं। अशुद्धियों में धूल मिटटी, गन्ने के नन्हे नन्हे टुकड़े, खराब गन्ने का रस और कीडों के मृत शरीर होते हैं। आजकल सुकलाई के स्थान पर केमिकलों का प्रयोग भी होता है। फिर इसमें थोडा सा सोडा व अन्य जरूरी चीजें मिलायी जाती हैं। अब इस मिश्रण को कडाहों से उडेलकर फैला देते हैं।
सूखने पर इसे खुरपी से तोड़ते हैं। यह रवेदार डली के रूप में टूटता चला जाता है। इस प्रकार के गुड को "खुरपा फाड़" भी कहते हैं। हमारे आस पास दुकानों में, ठेलियों पर जो गुड बिकता है वो खुरपा फाड़ ही होता है।
कभी कभी रस के मिश्रण को छोटे छोटे बर्तनों में भर देते हैं। या थोडा सा नरम होते ही कपडे में भी बाँध देते हैं। सूखने पर यह चौकोर आकार में आ जाता है। इसका वजन लगभग ढाई किलो रखा जाता है। इसलिए "ढैया" भी कहते हैं।
ताजा बना गुड हल्का गरम व काफी नरम होता है। यह खाने में बड़ा ही स्वादिष्ट लगता है। शहरों में तो ठंडा व कठोर गुड ही पहुँच पाता है। जबकि गांवों में लोगबाग जब भी लेते हैं, कोल्हू से ताजा गुड ही लेते हैं। बाहर का तो मुझे पता नहीं, लेकिन मेरठ के आस पास तकरीबन हर गाँव में कोल्हू हैं। हमारे गाँव में भी तीन कोल्हू हैं। गुड निर्माण अब तो लघु उद्योग का रूप ले चुका है।
कोल्हू वालों को सबसे बड़ी चुनौती मिलती है शुगर मिलों से। इन्हें अपना गन्ना खरीदने का रेट भी शुगर मिलों के आस पास ही रखना पड़ता है। आजकल यह रेट डेढ़ सौ रूपये कुंतल के करीब है। इसी कारण गुड भी महंगा होता जा रहा है। जहाँ पिछले साल गांवों में गुड दस रूपये किलो था, वहीं इस साल पंद्रह रूपये किलो तक पहुँच गया है। शहरों में क्या रेट हैं, मुझे नहीं पता।
अब बात करते हैं मेरठ के गुड की। एक बार गुडगाँव में हमारे मकान मालिक ने कहा कि यार, तुम मेरठ के रहने वाले हो। किसी दिन हमें गुड खिला दो। मैंने पूछा कि बोलो कितना गुड लाऊँ? तो बोले कि बस दो किलो ले आना। मैंने उन्हें लाकर दिया तकरीबन दो धडी गुड। यानी करीब दस किलो। गांवों में गुड सीधे धडी में ही तोला जाता है। उन्होंने कहा कि इतना गुड तो हमसे साल भर में भी ख़त्म नहीं होगा। मैंने कहा कि चिंता मत करो, यह कभी खराब भी नहीं होगा।
फरवरी में कोल्हू वाले शक्कर भी बनानी शुरू कर देते हैं। गुड में और शक्कर में फर्क बस इतना है कि शक्कर में ज्यादा मात्रा में सोडा डाला जाता है। इससे सूखने पर यह भुरभुरा हो जाता है। और आसानी से चूरा बन जाता है।
हम लोग अपनी दिनचर्या में गुड का जमकर प्रयोग करते हैं। चीनी को तो भूल ही जाते हैं। चाय भी गुड की बनाते हैं। रोटी भी गुड से ही खा लेते हैं। पेट की सफाई तो गुड करता ही है। कई तरह की मिठाइयां भी गुड से ही बना डालते हैं। कोल्हू वालों से कहकर "अपना गुड" भी बनवाया जाता है। जिसमे सूखे मेवे, किशमिश, काजू, बादाम, मूंगफली वगैरा डाल देते हैं। इस गुड के तो कहने ही क्या???
वैसे गुड को अंग्रेजी में क्या कहते है?
क्या ऐसा भी कोई हो सकता है जिसे यह न मालुम हो कि गुड गन्ने से (भी) बनता है. अंग्रेजी में एक शब्द है "जेग्गरी". बहुत सुंदर जानकारी. आभार. वैसे ताड़, खजूर आदि से भी गुड बनता है जो महंगा बिकता है. स्वाद भी भिन्न होता है.
ReplyDeleteबहुत बढिया जानकारी. भाई आजकल कोल्हापुर मे मेवे मिश्रि वाला गुड भी मिलता है.
ReplyDeleteरामराम.
वेरी गुड !
ReplyDeleteकिसान भाइयो गुड बोया करो :)
यहाँ ( अमरीका मेँ ) गुड का अँग्रेजी नाम या तो जैग्गरी / Jaggery अथवा Brown Suger / ब्राउन शुगर कहलाता है --
ReplyDelete( not to be mistaken with that another brown suger,which is also drugs )
अमरीका मेँ तरल ,
गुड जैसे पदार्थ को
Molasses / मोलासीज़ भी
कहते हैँ
और कुकी या मीठे बिस्कुट या अखरोट की पाई मेँ वही डाला जाता है
और क्या किसी ऐसी दुकान या विक्रेता का पता आप बता सकते हैँ जो बिना केमिकल वाला
शुध्ध गुड बेचता हो ?
और क्या उसे विदेश मेँ प्राप्त किया जा सके ऐसी कोई व्यवस्था भी है क्या ?
गुजराती भोजन मेँ अकसर गुड का इस्तेमाल होता है ..
मेरठ का सूखे मेवा पडा गुड अवश्य बहुत ही स्वादिष्ट होगा
जानकारी के लिये आभार आपका
-- लावण्या
Sardiyo mai gur khane ka maza hi kuchh aur hota hai.....
ReplyDeleteचिट्ठा पढकर मुझे बचपन की मीठी रोटी याद आ गई। बचपन में माँ आटे में गुड़ का चूरा डालकर मीठी रोटी बना कर देती थी।
ReplyDeleteलावण्या जी गुड़ डाली हुई गुजराती दाल हमने भी खाई, बहुत स्वादिष्ट होती है।
आपका मित्र गुड़ के बारे में नहीं जानता था, आश्चर्यजनक !
ReplyDeleteगुड़ का जायका बहुत देर तक जबान पर चिपका रहता है, आपकी इस पोस्ट का भी ।
बहुत अच्छी जानकारी दी....इस लेख से आपके दोस्त जैसे लोगों का ज्ञान बढेगा.....वैसे गुड का अलग स्वाद होता है ....गुड से बने कुछ व्यंजन और पकवान चीनी से अलग स्वाद रखते हैं।
ReplyDeleteवाह कभी हमें भी खिलाये ..:) मक्के बाजरे की रोटी के साथ गुड खाने का अलग ही मजा है .अच्छी जानकारी मिली
ReplyDeleteजो लोग गुड़ खानें के आदि होते है उन के मुँह में गुड़ का नाम लेते ही पानी आ जाता है।रोटी के साथ गुड़ खा कर देखिए बहुत स्वादी लगता है।जानकारी के लिए आभार।
ReplyDeleteलगने लगा है कि एक बार खुद से गुड़ बना कर देखूँ..सिखा तो आपने दिया ही है. :)
ReplyDeleteसबसे पहले गुड़ सी मीठी एक विनती ! वसंतपंचमी जाते ही यह आँखों को कष्ट देता पीला रंग हटा दीजिए। इसके रहते ब्लॉग पढ़ना बहुत कष्टकर होता है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबचपन में गुड़ बनते भी देखा है और ताजा बना खाया भी है। गुजरात में एक काफी तरल गुड़ भी मिलता है।
घुघूती बासूती
भाई जिस गुड को पढ़ के मुहं में इतनी मीठास तेरण लाग री है उसे खा कर क्या हाल होगा जे बता? इब मेरठ जाना ही पड़ेगा गुड खाने...यहाँ मुंबई के गुड पे तो मख्खी भी ना बैठती....
ReplyDeleteनीरज
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ReplyDeleteपन्द्रह रुपये में भी बुरा नहीं है। कैसे मंगाया जाये?
ReplyDeleteकमाल है हम मेरठ उतनी बार जाते हैं छुट्टी पर लेकिन हम ही को नही मालूम, गुड़ का तो नही मालूम लेकिन वहाँ की गजक जरूर प्रसिद्ध हैं।
ReplyDeleteबहुत सही..मैं ने यहाँ कई प्रदेशों का गुड खाया है- कोल्हापूर ,केरल ,--कहाँ कहाँ का गुड नहीं मिलता यहाँ-
ReplyDelete-बस--मेरठ का नहीं मिलता--जो स्वाद मेरठ के गुड में है वो कहीं के गुड में नहीं---dusra पंजाब के सौंफ और मसाले वाला गुड भी सवादिष्ट होता है.
ख़ास कर मेरठ के खेतों में कोल्हू पर ताजे बनते गुड का जो स्वाद होता है-इतना स्वादिष्ट!क्या बताएं...कभी मौका मिले तो जरुर खाएं-- -अब पता नहीं...वहां खेतों में कोल्हू चलते भी हैं या नहीं???
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteक्या बात हैं, तभी तो में सोच रहा था कि ये आदमी इतनी मीठी मीठी बातें कैसे कर लेता हैं! आज पता चला कि सब कुछ आपके गुड का कमाल हैं! चलो अच्छा हैं मै तो सोच रहा था कि बस गन्ने के रस कि निकल कर, सुखा कर उस रस का गुड के रूप में प्रयोग किया जाता हैं!
जानकारी बहुत अच्छी लगी,
अगले ब्लॉग दिन में अपने यहाँ के सुंदर सुंदर वातावरण कि तस्वीरें जरुर जरुर प्रकाशित करना! वोह तस्वीरें मुझे बहुत रोमांचित करती हैं, और हाँ डोनु के पहुंचाते ही मुझे मिस कॉल कर देना, कल रात को पारा बहुत गरम हो गया था मेम साब का! बड़ी मुश्किल से पटाया था!
चलो बाकी फ़ोन पर!
दिलीप गौड़
गांधीधाम!
शुक्रिया बढ़िया जानकारी रही
ReplyDeleteवैसे कोई फर्क नही पड़ता गुड खाओ या जैग्गरी
हिन्दी मैं खाओ या इंग्लिश मैं
दोनों ही मीठे हैं :)
आपकी इस गुड़ भरी मीठी पोस्ट का जायका काफी देर तक जुबान पर ताजा रहा।
ReplyDeletemuh me paani aa gaya
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट पढकर तो जीभ चट्कारे लेने लग गयी है ।
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