छब्बीस जनवरी मतलब वो दिन जब हम स्कूल तो जाते थे, लेकिन बिना बस्ते के और बिना तख्ती के। हमें पता होता था कि आज स्कूल में मिठाई मिलेगी। मिठाई क्या, सभी बच्चों को गिनती के पाँच पाँच बतासे मिलते थे। अब उनमे से एक दो तो हम ऐसे ही खा जाते थे, दो तीन बतासे बचाकर माँ को भी देने पड़ते थे।
हम दोनों भाईयों में होड़ लगी होती थी कि कौन ज्यादा बतासे बचाए। इसके लिए हम दूसरे स्कूलों को भी नही छोड़ते थे। हमारे इस प्राईमरी स्कूल के बगल में ही है इंदिरा स्कूल। मतलब इंदिरा गाँधी जूनियर हाई स्कूल। जो रुतबा कानपुर में ग्रीन पार्क का है, कोलकाता में ईडेन गार्डन का है, मुंबई में वानखेडे स्टेडियम का है, और दिल्ली में फिरोज़ शाह कोटला का है; वही बल्कि उससे भी ज्यादा रुतबा हमारे गाँव में इंदिरा स्कूल के एक बीघे के मैदान का है। सुबह नौ दस बजे से दोपहर बाद दो तीन बजे तक तो स्कूल चलता था। स्कूल बंद हुआ नही, गाँव के अन्य बच्चों से लेकर शादीशुदाओं तक का जमघट लग जाता था।
हाँ तो, अपने प्राईमरी स्कूल से निकलकर हम जा पहुँचते थे इंदिरा स्कूल मे। यहाँ से बतासों को जेब में भरकर निकल पड़ते थे गाँव के अन्य स्कूलों की और। तब तक बड़ा स्कूल तो बंद हो चुका होता था। लेकिन उससे लगकर ही था- धारा पब्लिक स्कूल। अब तो इसका नाम बदलकर विशाल माडर्न स्कूल हो गया है। ये प्राइवेट पब्लिक स्कूल वाले बड़े ही दुष्ट इंसान लगते थे। अपनी पब्लिसिटी बढाने के लिए एक तो दो तीन बजे तक नाच गाना और भाषण बाजी करते रहते थे, दूसरे हम प्राईमरी के बच्चों को घुसने भी नही देते थे।
फ़िर हम अगल बगल से दीवार कूद फांदकर घुस भी जाते थे तो वहां बैठे बैठे ऊंघते रहते थे। कब इनकी भाषण बाजी ख़त्म हो और कब हमें मिठाई मिले। और वे मिठाई भी क्या देते थे, लड्डुओं का चूरा। इतना कि एक लड्डू दो तीन बच्चों के काम आ जाए।
कभी कभी हम प्राईमरी के बच्चे गाँव में रैली भी निकालते थे। "भारत माता की जय" और भी दुनिया भर के जयकारे लगाते हुए। इस रैली का रास्ता होता था- स्कूल से नेपाल मास्टर का घर, झाब्बर प्रधान का घर और फ़िर मेन रोड पर। यहाँ से बुद्धू की दूकान के सामने से होते हुए सीधे चर्मकारों के मोहल्ले में एंट्री। इस मोहल्ले में बड़ के पेड़ के नीचे थोड़ी देर बाद रुककर फ़िर चल पड़ते थे। अब पहुँचते थे गाँव के दूसरी तरफ़ शिव मन्दिर पर। यहाँ पर भी एक प्राईमरी स्कूल है। यहाँ पहुंचकर रैली ख़त्म होती थी। कब सभी बच्चे अपने अपने घरों को निकल जाते थे, पता ही नही चलता था।
तो भई, ऐसे मनती थी अपनी छब्बीस जनवरी। फ़िर बड़े होते चले गए, "समझदार" होते चले गए। किसी दूसरे स्कूल में जाते हुए भी शर्म सी आने लगी।
और हाँ, अब अंत में। सभी को छब्बीस जनवरी और गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ।
गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteयार तैं तो घणा मौलिक लिखै सै. बस इस तरियां ही लिखदा रह. म्हारी २६ जनवरी भी कुछ इसी तरियां मन्या करती थी. जिवंता रह.
रामराम.
आपको भी गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteआपको भी गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबढ़िया याद दिलाई.
ReplyDeleteआपको गणतंत्र दिवस की शुभकमानाऐं.
Aap ko bhi GANTANTRA DIWAS ki shubhkaamnaye.
ReplyDeleteजाने क्यूँ बीते हुए पल बताशे से मीठे लगते हैं? जी करता है बस इस मीठास में समा जाऊँ।
ReplyDeleteगणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आपको भी।
चलिये, हम कल के लिये बताशे ढूंढ़ते हैं!
ReplyDeleteनीरज जी, आपको भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये,
ReplyDeleteआपने तो मुझे मेरे बचपन की याद दिला दी, सच कहूँ तो मेरा भी मन दूसरी स्कूलों में जाने का करता था पर शर्म के कारण जा नही पाता था, अभी सोच रहा हु कि काश मैं भी ऐसा करता तो आज मेरी यादें भी कुछ ऐसी ही होती!
खो गया हूँ बचपन में,
कोई लौटा दे मुझे वो प्यारे प्यारे दिन,
वो रेत का किल्ला और वोह प्यारी झिलमिल,
दिलीप कुमार गौड़
गांधीधाम
जूनियर RS
ReplyDeleteन बताशे खाए होते न इस तरह उनकी मीठास ज़हन में बसी होती:))
आपके लेखन में आपकी सादगी,सरलता और सहजता
देखकर मन अति प्रसन्न हो जाता है
Amazing !!!
आप को भी गणतंत्र दिवस की बहुत बधाई !!
कोई लौटा दे मेरे बीते हुये दिन......
ReplyDeleteरोचक रहे संस्मरण ! हमारे भी कुछ मिलते जुलते ही हैं !
ReplyDeleteगणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !
गणतंत्र दिवस की आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं
ReplyDeletehttp://mohanbaghola.blogspot.com/2009/01/blog-post.html
इस लिंक पर पढें गणतंत्र दिवस पर विशेष मेरे मन की बात नामक पोस्ट और मेरा उत्साहवर्धन करें
स्कूली रैली की खूब याद दिलाई आपने. धन्यवाद् और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteIm nepali,but i like tooo.great writer.
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