अब तक मैंने 25000 किलोमीटर की रेल यात्रा पूरी कर ली है। पहली बार जब मैं रेल में अप्रैल 2005 में बैठा था, उस समय मैंने ये बात तो सोची भी नहीं थी। प्रमाण के तौर पर शुरूआती पाँच छः यात्राओं को छोड़कर और कुछ बेटिकट यात्राओं को छोड़कर मेरे पास सभी टिकट सुरक्षित रखे हैं। आओ शुरू करते हैं कुछ सांख्यिकीय तथ्यों से:
अभी तक कुल मिलाकर छोटी बड़ी 210 यात्राएं की हैं। जिनमे से 109 बार पैसेंजर ट्रेनों से 7562 किलोमीटर, मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों से 80 यात्राओं में 10428 किलोमीटर, और सुपर फास्ट ट्रेनों से 21 यात्राओं में 7031 किलोमीटर का सफर। सबसे लम्बी यात्रा रही 1660 किलोमीटर की दो बार, जब दक्षिण एक्सप्रेस से निजामुद्दीन से सिकंदराबाद गया था और आन्ध्र प्रदेश संपर्क क्रांति एक्सप्रेस से वापस आया था। सबसे छोटी यात्रा रही 4 किलोमीटर की जब मेरठ सिटी से मेरठ छावनी गया था।
जहाँ 2005 में तीन यात्राओं में 912 किलोमीटर की दूरी तय की, वहीँ 2006 में 11 यात्राओं में 686 किलोमीटर, 2007 में 59 यात्राओं में 6032 किलोमीटर और 2008 में 137 यात्राओं में 17391 किलोमीटर की दूरी तय की।
इस दौरान 11 राज्यों के दर्शन किए। ये हैं- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश और बिहार। इसके साथ चंडीगढ़ भी शामिल कर लो तो और अच्छा रहेगा।
अब तक आठ बार रिजर्वेशन कराया है और दस बार बेटिकट यात्रा की है। लेकिन कभी भी बेटिकट यात्रा करते हुए पकड़ा नहीं गया हूँ। ज्यादातर बार पैसेंजर का टिकट लेकर एक्सप्रेस में चलने पर पकड़ा गया हूँ। एक बार एक्सप्रेस का टिकट लेकर सुपर फास्ट में जा रहा था, तब भी सौ रूपये जुरमाना देना पड़ा था। वैसे अब तक 6612 रूपये के टिकट खरीद चुका हूँ।
मुझे सबसे ज्यादा झेलने वाली एक्सप्रेस ट्रेन है- संगम एक्सप्रेस। इसमे 5 बार में 2225 किलोमीटर की दूरी तय की है मैंने। इसी तरह पैसेंजर ट्रेन है- दिल्ली ऋषिकेश पैसेंजर (गाड़ी नंबर 371/372), इसमे 12 बार में 1451 किलोमीटर की यात्रा की है।
अब तक मैंने 33 रातें रेलों में गुजारी हैं। इनमे कुछ तो सफर करते हुए, और कुछ ट्रेन के इन्तजार में स्टेशन पर। चलती ट्रेन में सोने का मजा ही अलग होता है। ऐसा मजा बस में कहाँ? वैसे अब तक मैं उत्तर प्रदेश के 34, हरियाणा के 18, मध्य प्रदेश के 11, दिल्ली के 9, उत्तराखंड के 7, आन्ध्र प्रदेश के 6, पंजाब के 6, महाराष्ट्र के 5, राजस्थान के 2, बिहार के 2 और चंडीगढ़ के एकमात्र जिले से गुजर चुका हूँ। इनमे से उत्तराखंड के टिहरी और अल्मोडा जिलों में रेल लाइन नहीं है।
ठीक है तो, अपनी यादगार रेल यात्राओं के साथ जल्दी ही आ रहा हूँ। अब इजाजत दीजिये।
इतने रोचक आंकड़े --- आगे भी इंतज़ार रहेगा। आइडिया बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteवाह जी वाह, आशा है अपने अनुभव भी बाटेंगे हमारे साथ. एक बात कहूं, बिना टिकट यात्रा करते आप अभी तक पकड़े नहीं गए हैं,पर आगे से ऐसा न करें तो अच्छा होगा.
ReplyDeleteबहुत तगड़ा लेखा जोखा है .:) इन्तजार रहेगा अगली यात्राओं का
ReplyDeleteघुमक्कड़ जाट की घुमक्कडी देख कर तो हम दंग ही रह गए। ऊपर से ये हिसाब देख कर गाँव के बनियों की याद आ गई। फिर तो नीरज जी आपके पास अनुभवो की कमी नही होगी। और हमें उन अनुभवों का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteभाई तेरे को तो परणाम करणे के सिवा और के किया जा सकै है? हिसाब किताब तो घणा चोखा लगाया सै. पर एक बत समझ म्ह नही आई कि तू कह रया सै कि
ReplyDelete["प्रमाण के तौर पर शुरूआती पाँच छः यात्राओं को छोड़कर और कुछ बेटिकट यात्राओं को छोड़कर मेरे पास सभी टिकट सुरक्षित रखे हैं। ]
तो इब ये बता अक तू टेशन तैं बाहर किस तरियां निकल्या ?
०
@ताऊ,
ReplyDeleteताऊ पहली बात तो ये है कि चेकिंग ही बहुत कम होती है. टेसन (स्टेशन) पर अगर कभी कोई चेकर खडा भी हो तो उसको टिकट दिखाकर मैं उससे वापस मांग लेता हूँ. वो दे देता है.
bouth he aacha post kiyaa hai aappne yaar keep it up
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आपने रेल यात्राओं का लेखा जोखा रखा है...लेकिन भोपाल में एक सज्जन हैं जिन्होंने अपनी पैदल यात्राओं का लेखाजोखा रखा है की वे अब तक कुल कितने किलोमीटर चल चुके हैं....अगर सब्जी लेने भी जाना हो तो वे किलोमीटर नापकर लिख लेते हैं! वैसे किसी रेलवे के टी.टी. ई. का लेखा जोखा लिया जाए तो वह कैसा होगा?
ReplyDelete25 हजारी होने और साफगोई की बधाई.
ReplyDeleteबस अब औसत और प्रतिशत भी निकाल लेते तो सांख्यिकी पूरी हो जाती. बढ़िया लगा जानकार.
ReplyDeleteबडे छुपे रुश्तम हो यार आंकडे भी जोड रखे हैं पूरा लेखा जोखा है अब लालू यादव को बताना ही पडेगा तुम्हारे बारे में
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteApka yaha lekha jokha achha laga.
ReplyDelete25000 किलोमीटर की यात्रा और वो भी मात्र तीन सालों में. सचमुच ये काम किसी मुसाफिर का ही हो सकता है.
ReplyDeleteभाई नीरज जी, मात्र तीन वर्षों में पचीस हज़ार किलोमीटर की यात्रा आपने की! बहुत दिलेरी का काम है भाई. और सबसे बढ़िया और रोचक लगे आपके आंकडे और उन्हें रखने का तरीका. मेरा मानना है कि ये अपन आप में एक उपलब्धि है.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़कर पता चला कि आप ख़ुद को मुसाफिर जाट क्यों कहते हैं. बहुत बढ़िया लगी आपकी ये पोस्ट.
ए भाई,
ReplyDeleteबाकि तो सब घंणाई चोखा है, पर पहले ताऊ जी की बात का जवाब दे।
बहुत लम्बी यात्राएँ की आपने तो - बधाई
ReplyDeleteलावण्या
पल्लवी जी, टी टी पगला जायेगा अपना हिसाब जोड़ते-जोड़ते.. ही ही ही... :D
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