अपनी बेरोजगारी के दिनों में एक बार कुरुक्षेत्र जाना हुआ। सन 2007 के दिसम्बर महीने की छः तारीख को। मेरे साथ रोहित भी था। वापसी में कुरुक्षेत्र से गाजियाबाद जाना था। हमें कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से ट्रेन मिली अमृतसर-दादर एक्सप्रेस (गाड़ी नंबर- 1058) । नई दिल्ली से दूसरी ट्रेन बदलनी थी।
अब एक तो जाडे के दिन, दूसरा शाम का समय। हमें जनरल डिब्बे में घुसने की तो दूर, लटकने तक की भी जगह नहीं मिली। मजबूरी में ना चाहते हुए भी शयनयान डिब्बे में जा घुसे। जब तक सूरज नहीं छिपा, तब तक हम खिड़की पर ही बैठे रहे। पानीपत के बाद दिन छिपने पर ठण्ड बढ़ने के कारण हमने खिड़की बंद कर ली। हमारे साथ और भी हमारे जैसे ही कई यात्री बैठे हुए थे।
तभी अचानक तीन आदमी आए, बड़ा ही हुडदंग मचाते हुए। उनके साथ दो पुलिस वाले भी थे। मैं ये नहीं देख पाया कि वे रेलवे पुलिस के थे या हरियाणा पुलिस के। आते ही उन्होंने सभी से अमरीश पुरी वाले स्टाइल में टिकट मांगे। सभी के पास टिकट थे, मगर थे जनरल। जाहिर सी बात थी कि जनरल टिकट होना ही हम पर जुर्माने के लिए काफ़ी था।
एक यात्री ने जुर्माने के पैसे देने से मना कर दिया। बस उन पाँचों ने उसकी जो पिटाई की, उसे देखकर हमारा मन ये हुआ कि खिड़की खोल कर कूद जायें। क्योंकि हमारे दोनों के पास भी तीन सौ रूपये से ज्यादा ना थे। फ़िर उनमे से एक हमारे पास आया, बोला कि टिकट दिखाओ। देख कर बोला कि अब जुरमाना निकालो। हमने पूछा कि भाई कितने रूपये दें। बोला कि दोनों के तो लगेंगे पाँच-पाँच सौ रूपये, लेकिन चलो तुम दोनों ही मिलकर पाँच सौ रूपये दे दो। हमने उसे अपनी पूरी व्यथा सुनाई लेकिन उस कमीने पर (कुत्ता कमीना अब तक भी मुझसे गाली खा रहा है) कोई असर नहीं हुआ।
मैंने जेब से सौ रूपये का नोट निकालकर कहा कि भाई, हमें गाजियाबाद पहुंचकर आगे जाने के लिए बस पकड़नी है। बोला कि आगे कहाँ जाना है। हमने कहा- मेरठ। बोला कि मैं भी गाजियाबाद का ही हूँ, तुम तो मेरे पड़ोसी ही निकले। चलो, पचास रूपये और निकालो और अन्दर जाकर किसी खाली पड़ी सीट पर बैठ जाओ। अब हम तो वैसे भी उनसे पिण्ड छुडाना चाहते थे। रोहित ने उसे पचास रूपये दे दिए।
जैसे ही हम अन्दर जाने लगे, उसके अन्य साथी उस पर चिल्लाने लगे कि यार, तूने उन्हें सस्ते में ही छोड़ दिया। खैर, हम दोनों एक बर्थ पर जा लेटे, और फ़िर नई दिल्ली आने पर ही वहां से हिले।
तो मेरा आपसे ये पूछना है कि आपकी नजर में क्या ये तीनों असली टीटी थे। (दो तो पुलिस वाले थे, पुलिस वालों को तो वैसे भी कुत्ता कहा जाता है, जिधर पैसे दिखे, उधर जा पहुंचे।) मेरी नजर में वे लोग टीटी नहीं थे। उनकी संख्या व उग्र तेवर को देखकर किसी ने विरोध भी नहीं किया। इसके बाद भी कई बार मुझ पर बेहद मामूली सी गलती होने पर भारी भरकम जुरमाना लगा। भारी भरकम इसलिए कि ये लोग पैसे भी ले लेते हैं, ऊपर से बेइज्जती भी ख़राब करते हैं। फ़िर दो तीन घंटे तक मूड ख़राब रहता है। उन्हें मन ही मन में बुरी बुरी गालियाँ देता हूँ।
यह पोस्ट दिलीप गौड़ की टिप्पणी के जवाब में है। उन्होंने शक जाहिर किया था कि मेरी एक पोस्ट में टीटी की पिटाई मनगढ़ंत है। जब मेरे साथ दो तीन दोस्त होते हैं, हमारे पास वैध टिकट होता है और हम सही डिब्बे में होते हैं तो मैं टीटी को उसका आईकार्ड देखकर ही टिकट दिखाता हूँ। ज्यादातर मामलों में टीटी आईकार्ड दिखा देता है। कुछ मामलों में आईकार्ड दिखाने के बजाय टीटी मेरा टिकट चेक किए बिना ही चला जाता है। उस दिन टीटी अकेला था और हमसे बेफालतू में मगजमारी कर रहा था। बस, ले लिया हमने उसे लपेटे में।
मुझ पर रेल में जुर्माने तो और भी लगे हैं। करूंगा आपके साथ किसी दिन शेयर।
जुर्माना कथा पसंद आई भाई ...
ReplyDeleteसफ़र में बहुत कुछ होता है और बहुत याद रहती है. मज़ा आ गया आपका अनुभव सुनकर.
ReplyDeleteभाई मुसाफिर्! जुर्माना भरने का घणा तगडा इक्सपीरियन्स दिखै .सफर करदे-करदे ही लगै यो 'मुसाफिर' नाम पड गया.
ReplyDeleteइब यो चाहे थारी आत्मकथा थी, या के जुर्माना कथा, पर थी बढिया..........
रेलगाड़ी से यात्रा कई मजेदार अनुभवों की गवाह बनती है, इसका अपना अलग ही मजा है। अच्छी लग रही है आपकी जुरमाना कथा।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने...अच्छा लगा आपका अनुभव सुन कर
ReplyDeleteAchha kissa raha
ReplyDeleteus se bhi achha hai ki tujhe jurmana dena para.........ha ha ha ha
ये तो घणा ही जुल्म हो गया मुसाफिर भाई। पर कोई बात नही। इबके दुबारा मिले तो मजा चखाना देना। शक्ल तो पहचान ली होगी। अगर नही तो कोई बात नही ये नही तो और कोई सही।
ReplyDeleteखैर अनुभव रोचक था। अलगे अनुभव का इंतजार रहेगा।
अरे भाई तैं क्यु इनतैं उलझ रह्या सै? ये टीटी नामकै गिण्डक घणै खतरनाक हौवैं सै. एक बै ताऊ की भी घणी ऐसी तैसी कर दी तब तैं भाई मन्नै तो रेल म्ह बैठण तैं ही तौबा करली. और कदी मजबूरी म्ह बिअठना भी पडै तो इनतैं तो दूर की ही रामरमी राख्या करूं सूं.
ReplyDeleteरामराम.
abe ku apne or meri ejjat ke pul bandh raha hai par kuch bhi kho tujhe ye baat aaj hi yaad hai ........ i like this story ur friend ROHIT CHAUDHAYR dauraliya....................
ReplyDeleteआपकी पोस्ट से असली और नकली TT की quality भी जानने को मिल रही है. अक्सर ये लोग भी अपनी रेंज के शिकार को भांप कर ही हमला किया करते हैं.
ReplyDeleteरेल यात्रा में अनुभवों की विविधता भरी हुई है -- अच्छे भी बुरे भी !! मेरा अनुमान है कि अच्छे अनुभवों का प्रतिशत अधिक रहा है मेरी यात्राओं में.
ReplyDeleteलिखते रहो, क्योंकि यात्रा-विवरण बहुत अच्छा लिखते हो !!
सस्नेह -- शास्त्री
Suprabhat!
ReplyDeleteAapne apne blog me mujhe jagah dekar sammanit kiya, usse meri najar me aapki ijjat or rutba aur badh gayi hain,,
Haa ek baat aur jo aap mujhe bahut acchi lagi ki aap apne tippanikaaron ke har vichar ka saharsh uttar dete ho, bahut accha BLOG likhte ho aap aise hi hum blog mitron ko hansne ke do pal muhaiya karwate rahoge to sabhi ko bahut accha lagega..
Can we make friends....
Waiting till you reply...
Dilip Gour
Gandhidham (Gujarat)
maja agya neeraj bhai
ReplyDeleteid dikha dete
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