इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें । 10 नवंबर 2017 हम जब सत्तर की रफ्तार से दौड़े जा रहे थे, तो दाहिनी तरफ पुरातत्व विभाग का एक सूचना-पट्ट लगा दिखा - चराइदेव मैदाम। स्पीड़ सत्तर ही रही, लेकिन यह नाम दिमाग में घूमने लगा - पढ़ा है इस नाम को कहीं। शायद कल इंटरनेट पर पढ़ा है। शायद इसे देखने का इरादा भी किया था। बाइक रोक ली। दीप्ति से पूछा - “वो पीछे चराइदेव ही लिखा था ना?” “कहाँ? कहाँ लिखा था? क्या लिखा था?” “चराइदेव।” “मैंने ध्यान नहीं दिया।” मोबाइल निकाला। इंटरनेट चलाया - “हाँ, यह चराइदेव ही है। अहोम राजाओं की पहली राजधानी।” बाइक वापस मोड़ी और चराइदेव मैदाम वाली सड़क पर चल दिए।
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग