13 मार्च 2016
आज रविवार था। मुझे मुम्बई लोकल के अधिकतम स्टेशन बोर्डों के फोटो लेने थे। यह काम आसान तो नहीं है लेकिन रविवार को भीड अपेक्षाकृत कम होने के कारण सुविधा रहती है। सुबह चार बजे ही देहरादून एक्सप्रेस बान्द्रा टर्मिनस पहुंच गई। पहला फोटो बान्द्रा टर्मिनस के बोर्ड का ले लिया। यह स्टेशन मेन लाइन से थोडा हटकर है। कोई लोकल भी इस स्टेशन पर नहीं आती, ठीक लोकमान्य टर्मिनस की तरह। इस स्टेशन का फोटो लेने के बाद अब मेन लाइन का ही काम बच गया। नहा-धोकर एक किलोमीटर दूर मेन लाइन वाले बान्द्रा स्टेशन पहुंचा और विरार वाली लोकल पकड ली।
साढे पांच बजे थे और अभी उजाला भी नहीं हुआ था। इसलिये डेढ घण्टा विरार में ही बैठे रहना पडा। सात बजे मोर्चा सम्भाल लिया और अन्धेरी तक जाने वाली एक धीमी लोकल पकड ली।
मुम्बई में दो रेलवे जोन की लाइनें हैं- पश्चिम रेलवे और मध्य रेलवे। पश्चिम रेलवे की लाइन चर्चगेट से मुम्बई सेंट्रल होते हुए विरार तक जाती है। यही लाइन आगे सूरत, वडोदरा और अहमदाबाद भी जाती है। इसे वेस्टर्न लाइन भी कहते हैं। इसमें कोई ब्रांच लाइन नहीं है। समुद्र के साथ साथ है और कोई ब्रांच लाइन न होने के कारण इसमें भयंकर भीड रहती है। रविवार को सुबह सात-आठ बजे भी खूब भीड थी।
मुम्बई में रेलवे का विस्तार बडी तेजी से हुआ। भारत की पहली ट्रेन तो आज के मध्य रेलवे के सीएसटी और ठाणे के बीच 1853 में चली थी। इसके 14 साल बाद ही भारत की पहली उपनगरीय ट्रेन आज के पश्चिम रेलवे के कोलाबा और विरार के बीच 1867 में चल पडी। उपनगरीय ट्रेन चलने का सीधा अर्थ है कि खूब यात्री इसमें यात्रा करते होंगे। आज कोलाबा स्टेशन अस्तित्व में नहीं है। यह चर्चगेट के भी दक्षिण में था और पश्चिम रेलवे (तत्कालीन बी.बी.एंड सी.आई.) का सबसे दक्षिणी स्टेशन था। अब चर्चगेट सबसे दक्षिणी स्टेशन है। अब चर्चगेट के दक्षिण में न कोई रेलवे लाइन है और न ही स्टेशन।
अन्धेरी से मैंने चर्चगेट जाने वाली धीमी लोकल पकडी और फोटो खींचता हुआ चर्चगेट जा उतरा। खूब चौकसी और सावधानी से काम किया लेकिन कांदीवली का फोटो छूट गया। असल में पश्चिम लोकल के ज्यादातर स्टेशनों पर वो पीला बोर्ड नहीं है। इसकी बजाय प्लेटफार्म पर लगे छोटे-छोटे बोर्डों से काम चलाना पडा। कुछ फोटो भीड और लोकल के एकदम स्पीड पकड लेने की वजह से खराब और धुंधले भी आये हैं। दोबारा आना पडेगा।
चर्चगेट से वापसी की लोकल पकडी और माहिम जंक्शन उतर गया। यहां से सीएसटी की लोकल पकड ली। अब मैं मध्य रेलवे की लाइन पर था। मुम्बई लोकल के नेटवर्क में मध्य रेलवे की दो लाइनें हैं। एक तो मेन लाइन है ही, जो कल्याण में दो दिशाओं में विभक्त हो जाती है- कसारा और करजत। और दूसरी लाइन है हार्बर लाइन जो सीएसटी से पनवेल तक जाती है। इन दो लाइनों के अलावा कुछ ब्रांच लाइनें भी हैं- माहिम-वडाला रोड, वसई रोड-दीवा, ठाणे-पनवेल और करजत-खोपोली। इनमें से वसई रोड-दीवा लाइन पर मैंने पहले ही यात्रा कर रखी थी, इसलिये अब उधर जाने की कोई जरुरत नहीं थी।
माहिम से सीएसटी आकर कल्याण वाली धीमी लोकल पकड ली। रास्ते में घाटकोपर में विनोद गुप्ता मिल गये। बारह बज चुके थे और मुझे लोकल में यात्रा करते हुए पांच घण्टे से ज्यादा हो गये थे। तेज भागती लोकल में इस तरह स्टेशन बोर्ड के फोटो लेने के लिये सीट पर नहीं बैठा जा सकता। खिडकी पर खडे रहना पडता है और लगातार कैलकुलेशन भी करनी पडती है। कैमरे की स्पीड और ट्रेन की स्पीड में सामंजस्य बिठाना पडता है ताकि क्लिक करने के बाद केवल बोर्ड का फोटो ही कैमरे में आये। बीच में कोई खम्बा या अन्य अवरोध का भी ध्यान रखना होता है। लोकल रुकती है और भाग लेती है, रुकती है और भाग लेती है। तन और मन दोनों थक गये।
विनोद को अपने बच्चों को मेट्रो में छोडना था। घाटकोपर से पश्चिम रेलवे के अन्धेरी और आगे वरसोवा तक मेट्रो चलती है। विनोद जल्द ही उन्हें छोडकर आ गये और मुझे स्टेशन से बाहर ले गये। एक शानदार रेस्टोरेंट में खाना खिलाया। पौन घण्टा लगा। मुझे लगा कि दिन की सीमित रोशनी का कितना बडा हिस्सा बेकार चला गया। इसमें मैं बहुत सारे फोटो खींच सकता था। लेकिन हकीकत यह भी है कि मैं बहुत थका हुआ था। इस बहाने पेट भी भर गया और आराम भी हो गया। धन्यवाद विनोद भाई।
अब आगे की यात्रा में विनोद भी साथ हो लिये। उन्होंने एक बडी प्यारी बात कही- ‘नीरज भाई, इच्छा तो मेरी भी है कि आपको यहां घुमाऊं, वहां घुमाऊं। आप रोज-रोज तो मुम्बई आते नहीं हो। लेकिन मैं आपके कार्यक्रम में बाधा नहीं बनना चाहता। आपने पहले ही अपना कार्यक्रम सेट कर रखा है, आप उसी के अनुसार चलिये। मैं केवल आपके साथ रहूंगा।’ वास्तव में यह सुनकर जी खुश हो गया और विनोद के प्रति सम्मान भी बढ गया। अक्सर हम किसी शहर में जाते हैं तो वहां के मित्र लोग हमें घेर लेते हैं और इधर-उधर ले चलने की जिद करने लगते हैं। इससे न केवल हमारा अपना कार्यक्रम बिगडता है बल्कि शारीरिक-मानसिक थकान भी हो जाती है। अगर साथ न चलें तो ये मित्र धिक्कारने भी लगते हैं कि आप यहां आये हो और आपने फलां चीज नहीं देखी तो आपका यहां आना बेकार है। इससे होता ये है कि अपने कार्यक्रम की सूचना देने में भी डर लगने लगता है। पता नहीं किस शहर में कौन मित्र अपनी वातानुकूलित कार लेकर आ जाये और हमें शहर दिखाने की जिद करने लगे?
अब आगे की यात्रा में विनोद भी साथ हो लिये। उन्होंने एक बडी प्यारी बात कही- ‘नीरज भाई, इच्छा तो मेरी भी है कि आपको यहां घुमाऊं, वहां घुमाऊं। आप रोज-रोज तो मुम्बई आते नहीं हो। लेकिन मैं आपके कार्यक्रम में बाधा नहीं बनना चाहता। आपने पहले ही अपना कार्यक्रम सेट कर रखा है, आप उसी के अनुसार चलिये। मैं केवल आपके साथ रहूंगा।’ वास्तव में यह सुनकर जी खुश हो गया और विनोद के प्रति सम्मान भी बढ गया। अक्सर हम किसी शहर में जाते हैं तो वहां के मित्र लोग हमें घेर लेते हैं और इधर-उधर ले चलने की जिद करने लगते हैं। इससे न केवल हमारा अपना कार्यक्रम बिगडता है बल्कि शारीरिक-मानसिक थकान भी हो जाती है। अगर साथ न चलें तो ये मित्र धिक्कारने भी लगते हैं कि आप यहां आये हो और आपने फलां चीज नहीं देखी तो आपका यहां आना बेकार है। इससे होता ये है कि अपने कार्यक्रम की सूचना देने में भी डर लगने लगता है। पता नहीं किस शहर में कौन मित्र अपनी वातानुकूलित कार लेकर आ जाये और हमें शहर दिखाने की जिद करने लगे?
सीएसटी से कसारा जाने वाली सारी लोकल फास्ट लोकल होती हैं। ये कल्याण तक गिने-चुने स्टेशनों पर ही रुकती हैं लेकिन कल्याण से कसारा तक सभी स्टेशनों पर रुकती हैं। हमने घाटकोपर से कल्याण जाने के लिये धीमी लोकल पकडी और कुछ ही देर में कल्याण पहुंच गये। मैं ट्रेन से उतरकर कल्याण के बोर्ड का फोटो खींचने लगा और उधर कसारा वाली लोकल रवाना हो गई। अगली लोकल पूरे एक घण्टे बाद आई। वैसे तो हमारे पास करजत की तरफ भी जाने का विकल्प था लेकिन मैंने कार्यक्रम में फेरबदल करना उचित नहीं समझा।
साढे चार बजे यही ट्रेन वापस सीएसटी के लिये चल दी। वैसे तो मुम्बई लोकल में रविवार को कई लाइनों पर ब्लॉक रहता है। रेलवे वाले मरम्मत करते हैं। आज भी कुछ स्थानों पर ब्लॉक था लेकिन ट्रेनों पर इसका ज्यादा असर नहीं पडा। कई बार तो ब्लॉक के कारण ऐसी स्थिति भी बन जाती है कि रविवार को लोकल घण्टों लेट हो जाती हैं और रद्द भी हो जाती हैं। इसके लिये रेलवे को रात में मरम्मत का कार्य करना चाहिये, ठीक दिल्ली मेट्रो की तरह। न आम जनता को परेशानी होगी और न ही ट्रेनें लेट होंगी।
विनोद भाई घाटकोपर उतर गये। उनके भाई की इधर ही कहीं कोई दुकान है। विनोद को भी दुकान पर नियमित बैठना पडता है। इन्होंने बताया कि आज खूब डांट पडेगी। विनोद चले गये, मैं सीएसटी पहुंच गया। दिन छिपने लगा था। अभी भी हार्बर वाली लाइन और कल्याण-करजत-खोपोली लाइन बच गई। इसके लिये फिर से पूरा एक दिन इधर लगाना पडेगा।
वापस वडोदरा जाने के लिये मेरा आरक्षण गुजरात मेल में था जो मुम्बई सेंट्रल से रात दस बजे चलेगी। अभी सात बजे थे और मैं सीएसटी पर था। थकान से चूर। एक खाली प्लेटफार्म पर खाली बेंच पर लेट गया और थकान उतारने लगा। यहीं लेटे-लेटे मैंने एक सेल्फी ली और फेसबुक पर पोस्ट कर दिया, यह लिखते हुए- ‘आज पूरे दिन मुम्बई में रहा - लोकल स्टेशनों के फोटो खींचने के लिए। सुबह बांद्रा टर्मिनस उतरकर पहले विरार गया। फिर चर्चगेट, फिर माहिम, सीएसटी और फिर गया सुदूर कसारा। वापस फिर मुम्बई आया। एक तो थोड़ी-थोड़ी दूर स्टेशन, फिर भागमभाग करती लोकल और ऊपर से भीड़... थका दिया इस मुम्बई ने... बहुत बुरी तरह... एक पैर में तो छाला भी पड़ गया। सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक खिड़की पर खड़ा ही रहना पड़ा।... वो तो भला हो विनोद गुप्ता जी का जो घाटकोपर में मिले और जबरदस्ती स्टेशन से बाहर निकालकर भोजन करा लाये। इस बहाने आधे घंटे का आराम भी मिल गया। नही तो पता नही यह पोस्ट लिखने लायक भी बचता या नही। पता नही मुम्बई वाले कैसे गुजारा करते हैं?... फ़िलहाल मुम्बई सेन्ट्रल पर पड़ा हूँ। रात 10 बजे की ट्रेन है।’
दो घण्टे यहीं पडा रहा। नौ बजे उठकर पहले परेल गया, फिर सीढी चढकर एलफिंस्टन रोड और फिर मुम्बई सेंट्रल। थोडा सा नहाया और वडा पाव लेकर जब अपनी ट्रेन की तरफ जा रहा था तो एक मित्र मिल गये- नवीन कुमार राजहंस। इन्होंने बताया- ‘मैंने आपका स्टेटस पढा तो दौडा दौडा यहां मुम्बई सेंट्रल आया। आपने जो फोटो लगाया था, पूरे स्टेशन पर उस लोकेशन को ढूंढता रहा लेकिन वो लोकेशन कहीं नहीं मिली।’ मैंने कहा- ‘वो लोकेशन तो सीएसटी पर है। मैंने गलती कर दी कि मुम्बई सेंट्रल लिख दिया और आपको इतना परेशान होना पडा।’ नवीन जी जिस कम्पनी में मैनेजर हैं, वो कम्पनी रेलवे के लिये काम करती है। इसलिये नवीन जी को भी मुम्बई में विभिन्न स्टेशनों पर जाकर काम करना होता है। ट्रेन चलने ही वाली थी, इसलिये ज्यादा देर बातचीत नहीं हो सकी। चलते समय उन्होंने मुझे एक गणेश प्रतिमा और एक डायरी दी। शायद मिठाई का डिब्बा भी। बैग में बिल्कुल भी जगह नहीं थी। कल मिथिलेश जी के दिये हुए सेब और नमकीन से बैग फुल पैक हो गया था।
लेकिन गणेश जी और सरस्वती जी के लिये जगह की कमी थोडे ही पडती है?
अगला भाग: वडोदरा-कठाणा और भादरण-नडियाद रेल यात्रा
1. बिलीमोरा से वघई नैरोगेज रेलयात्रा
2. कोसम्बा से उमरपाडा नैरोगेज ट्रेन यात्रा
3. अंकलेश्वर-राजपीपला और भरूच-दहेज ट्रेन यात्रा
4. जम्बूसर-प्रतापनगर नैरोगेज यात्रा और रेल संग्रहालय
5. मियागाम करजन से मोटी कोरल और मालसर
6. मियागाम करजन - डभोई - चांदोद - छोटा उदेपुर - वडोदरा
7. मुम्बई लोकल ट्रेन यात्रा
8. वडोदरा-कठाणा और भादरण-नडियाद रेल यात्रा
9. खम्भात-आणंद-गोधरा पैसेंजर ट्रेन यात्रा
पोस्ट तो ठीक है किन्तु फोटो सामान्य लगे क्योकि शायद बहुत सारे फोटो खराब हो जाने के कारण इन्हे पोस्ट नहीं किए । आप की थकावट वाली फोटो विदेशियों जैसी लग रही है। शरीर अस्त व्यस्त और मन पस्त ।
ReplyDeleteमुम्बई में मैंने ज्यादा फोटो नहीं लिये। फोकस स्टेशन बोर्ड के फोटो पर ही सारा फोकस था।
Deleteजानकारी तो हमेशा की तरह बहुत बढ़िया और ज्ञानोपयोगी ! विनोद भाई से मुलाकात भी बढ़िया रही ! दो बात करनी है ! स्टेशन का नाम मस्जिद ही है ? दिल्ली में भी शायद मस्जिद मोंठ करके कोई जगह है ! दूसरी बात कि अगर कोई मुझे पूछे कि कौनसी फोटो सबसे बढ़िया लगी तो कहूंगा आखिरी वाली !
ReplyDeleteयोगी जी, दिल्ली का तो नहीं पता लेकिन मुम्बई वाले इस स्टेशन का नाम मस्जिद ही है।
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद।
नीरज भाई यादे ताजा हो गई आप से मिलन
ReplyDeleteआप ने मुझे लेख में शामिल किया उसके लिए धन्यवाद
आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद विनोद जी...
Deleteमस्जिद बन्दर कहा जाता है।
DeleteWaah Waah...rochak varnan...karjat Khopoli ka plan banao to pehle se soochna dena main koshish karunga ki us wakt Khopoli men rahun...Barishon men Karjat Khopoli train ka aanand hi kuchh aur hai aur Karjat Lonavla ka route to uff yu maa hai...photo khiinchte hath thak jayenge lekin man nahin bharega...sachchi
ReplyDeleteजी सर, पहले ही सूचना दे दूंगा। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
DeletePrayag (allahabad) अमावस्या के नहान पर माघ मेले में आइये (हर ६ साल बाद अर्ध कुम्भ, हर १२ साल बाद कुम्भ, हर साल माघ मेला) लाखो लोगो की भीड़..... पुण्य के साथ साथ घुमक्कड़ी को भी नया आयाम दीजिये.....
ReplyDeleteऐसे स्नेहिल मित्रों का सान्निध्य जो थकान को भी सुकून दे - आपकी यात्राओं में अक्सर ही हम भी मन ही मन शामिल हो जाते हैं औरये फ़ोटो वास्तविकता का आभास देने लगते हैं .
ReplyDeleteकुछ बाकी रह गया है घूमना? अगर वीडियो बनाते तो अबतक हिंदूस्तान का सबसे बड़ा ट्रैवल वीडियो बन जाता। कमाल की एनर्जी है यार
ReplyDeletebambai meri jan !...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDelete