18 अगस्त 2015 आज है 20 सितम्बर यानी यात्रा किये हुए एक महीना हो चुका है। अमूमन मैं इतना समय वृत्तान्त लिखने में नहीं लगाता हूं। मैं यथाशीघ्र लिखने की कोशिश करता हूं ताकि लेखन में ताजगी बनी रहे। वृत्तान्त जितनी देर से लिखेंगे, उतना ही यह ‘समाचार’ होने लगता है। इसका कारण था कि वापस आते ही अण्डमान की तैयारियां करने लगा। फिर लद्दाख वृत्तान्त भी बचा हुआ था। अण्डमान तो नहीं जा पाये लेकिन फिर कुछ समय वहां न जाने का गम मनाने में निकल गया। अभी परसों ही चम्बा की तरफ निकलना है, उसमें ध्यान लगा हुआ है। न लिखने के कारण ब्लॉग पर ट्रैफिक कम होने लगा है। बडी अजीब स्थिति है- जब चार दिन वृत्तान्त न लिखूं और मित्रगण कहें कि बहुत दिन हो गये लिखे हुए तो मित्रों को गरियाता हूं कि पता है कितना समय लगता है लिखने में। तुमने तो चार सेकण्ड लगाये और शिकायत कर दी। इस बार किसी मित्र ने शिकायत नहीं की तो भी गरियाने का मन कर रहा है- भाईयों, भूल तो नहीं गये मुझे?
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग