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डायरी के पन्ने-27

नोट: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं।

1. आज की चर्चा आरम्भ करते हैं गूगल मैप मेकर से। पिछली बार आपको बताया था कि गूगल मैप को कोई भी एडिट कर सकता है- मैं भी और आप भी। कुछ लोग अपने को बडा भयंकर जानकार समझते हैं। जिन्होंने कभी सोचा तक नहीं कि गूगल मैप को एडिट कैसे किया जाता है, वे एडिटर को दस बातें समझा सकते हैं। मुझे भी कुछ लोगों ने इसी तरह की बातें बताईं। मसलन आप गूगल को सुझाव भेजोगे कि यह रास्ता या यह गांव इस स्थान पर स्थित है। गूगल अपनी टीम को उस स्थान पर देखने भेजेगा कि वाकई वो रास्ता या गांव वहां है या नहीं। जब गूगल की टीम उस स्थान का सर्वे कर लेगी, तब आपका सुझाव गूगल मैप में प्रकाशित होना शुरू हो जायेगा। यह केवल अफवाह है। ऐसा कुछ नहीं है।

गूगल मैप के दो संस्करण हैं- एक पुराना और एक नया। पता नहीं आपके कम्प्यूटर में कौन सा संस्करण दिखता है। मेरे लैपटॉप में नया वर्जन दिखता है तो ऑफिस वाले में पुराना। पुराने वर्जन को जब आप खोलोगे तो नीचे दाहिने कोने में एक लिंक मिलेगा- edit in map maker. इस पर क्लिक करेंगे तो मैप मेकर आपके सामने खुल जायेगा। अगर आपने गूगल पर पहले से ही लॉगिन नहीं कर रखा है तो अब आपको लॉगिन करना पडेगा। लॉगिन करते ही आप गूगल मैप में कुछ भी एडिट करने को स्वतन्त्र हो। जी हां, कुछ भी।
अगर आपको edit in map maker नहीं मिला है तो इस लिंक पर क्लिक करके आप सीधे मैप मेकर पर जा सकते हैं।
गूगल मैप बहुत ही भरोसेमन्द और उपयोगी चीज है। कोई भी इसमें बदलाव कर सकता है तो यह बन्दर के हाथ में उस्तरा पकडाने के बराबर होगा। लेकिन गूगल इतना मूर्ख नहीं है कि किसी भी बदलाव को एकदम स्वीकार कर ले। जब आप पहली बार कुछ बदलाव करोगे तो आपका बदलाव तुरन्त नहीं दिखेगा बल्कि इसे रिव्यू में डाल दिया जायेगा। दूसरे एडिटर जो इस स्थान के बारे में जानते हैं, वे इस परिवर्तन से समहत होंगे, तभी आपका बदलाव गूगल मैप पर दिखने लगेगा। मेरे सामने भी बहुत से रिव्यू आते हैं, आपके सामने भी आयेंगे।
आपके बदलाव अगर ठीक होते जायेंगे तो आपकी विश्वसनीयता भी बढती जायेगी और आपको और ज्यादा अधिकार मिलते जायेंगे। फिर एक समय ऐसा आयेगा कि आपको कोई गांव स्थापित करने या सडक बनाने के लिये किसी रिव्यू की जरुरत नहीं होगी। इधर आप कोई चीज मैप मेकर में अपडेट करोगे, उधर वह गूगल मैप में दिखने लगेगी।
अब मैं इसी दौर में पहुंच चुका हूं। चूंकि मेरे बदलावों को अब किसी रिव्यू की जरुरत नहीं होती इसलिये मैं कुछ भी कर सकता हूं। चाहूं तो गंगोत्री से सीधे चालीस-पचास किलोमीटर की सडक बनाकर बद्रीनाथ को जोड दूं या केदारनाथ को जोड दूं। अब यह मेरी ईमानदारी है कि मैं गलत एडिट न करूं। गूगल मैप पर बहुत से स्थान व बहुत सी सडकें अभी भी गलत हैं। ये सब ऐसे ही लोगों द्वारा अपडेट की गई हैं। आपसे भी गुजारिश है कि आप कभी भी गलत अपडेट न करें। गूगल मैप सबके लिये उतना ही उपयोगी है, जितना आपके लिये। किसी भी यात्रा की प्लानिंग गूगल मैप के बिना नहीं हो सकती। जो जगह आपने देख रखी है, जिसके बारे में आपको पक्का पता है, केवल वही जगह अपडेट करें और केवल उसी जगह का रिव्यू दें। इसी तरह कोई जगह या सडक गलत है तो उसे डिलीट भी किया जा सकता है।
मोबाइल व जीपीएस उपकरणों से जीपीएस की सहायता से किसी सडक व स्थान का एकदम सटीक नक्शा बनाया जाता है। इससे यह नक्शा आपके मोबाइल या जीपीएस डिवाइस में सेव हो जाता है। इससे KMZ फाइल बनती है। इस फाइल को भी गूगल मैप मेकर पर अपलोड किया जा सकता है और सटीक रास्ता बनाया जा सकता है। मैंने कभी ऐसा नहीं किया है, तो इसकी मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है।
ताजा अपडेट: पिछले सप्ताह मैंने बीकानेर से फलोदी तक रेलयात्रा की थी। गूगल मैप पर यह रेलमार्ग पूरा नहीं बना था और काफी कुछ गलत भी बना था। मैंने पहले तो गलत लाइनों को हटाना शुरू किया, फिर वर्तमान लाइन बनानी शुरू की। लेकिन गूगल महाराज ने मुझे अभी इतने अधिकार नहीं दिये हैं कि मैं कितने भी अपडेट बिना रिव्यू के करता रहूं। फलतः कुछ अपडेटों के बाद मेरे अपडेट रिव्यू में जाने लगे। कोई दूसरा उसका सकारात्मक रिव्यू देगा, तभी वह गूगल मैप पर दिखेगा। लेकिन एक मूर्ख ने मेरे एक अपडेट पर नकारात्मक रिव्यू दे दिया। सैटेलाइट में रेगिस्तान के बीच रेलवे लाइन स्पष्ट दिख रही थी, फिर भी अन्धे को वह नहीं दिखी और कह दिया कि यहां ऐसा कुछ नहीं है। हालांकि मैंने दोबारा कोशिश की, सफल भी हो गया लेकिन गूगल मैप में मेरी विश्वसनीयता कम हो गई। पहले मेरे दस-बारह तक अपडेट बिना रिव्यू के छप जाते थे, अब हरेक अपडेट रिव्यू में जाने लगा। दूसरा कोई उस पर सकारात्मक रिव्यू देगा, तभी अपडेट होगा।

2. अक्सर मित्र पूछते हैं कि ब्लॉग कैसे बनाया जाता है। वास्तव में ब्लॉग बनाना बहुत आसान है। यह बिल्कुल फ्री होता है। इसके लिये आपको अलग से कुछ भी खर्च नहीं करना होता। मैंने अभी तक बहुत सारे मित्रों को ब्लॉग बनाना सिखाया है। उनमें से कुछ बुलन्दियों पर पहुंच गये हैं, कुछ ने ब्लॉग बनाकर उसके बाद कुछ लिखा ही नहीं। अगर आप वास्तव में ब्लॉगिंग में आगे बढना चाहते हैं तो ब्लॉग बनाये, अन्यथा अपना और दूसरों का समय नष्ट करने से क्या फायदा?
ब्लॉगिंग के दो मुख्य प्लेटफार्म हैं- ब्लॉगर और वर्डप्रेस। मेरा यह ब्लॉग ब्लॉगर पर है। हालांकि वर्डप्रेस पर भी एक ब्लॉग है लेकिन वहां मेरी गतिविधि नहीं के बराबर है, इसलिये मेरे लिये यह कहना मुश्किल है कि ब्लॉगर और वर्डप्रेस में कौन उत्तम है। आप http://blogger.com और http://wordpress.com पर क्लिक करके किसी भी प्लेटफार्म पर जाकर ब्लॉगिंग शुरू कर सकते हैं।
ब्लॉगर गूगल की सेवा है। इसके लिये आपको गूगल खाते की आवश्यकता होगी। एक बार आप http://blogger.com पर जाओगे, और अगर वास्तव में लिखना चाहते हैं तो आपको एक-एक स्टेप बताने की आवश्यकता नहीं है। फिर भी अगर किसी तकनीकी सहायता की जरुरत हो तो जरूर पूछें। ब्लॉगिंग मुबारक हो।

3. लगभग दो साल पहले मेरे एक मित्र को हमारे गांव हमारे घर पर आना था। वे दिल्ली से मेरठ स्थित गांव के लिये प्रस्थान कर गये। गूगल मैप की लैटीट्यूड सुविधा का इस्तेमाल किया। मैं मोबाइल में गूगल मैप खोलकर गांव में अपने घर के बाहर खुले में खडा हो गया ताकि जीपीएस ठीक काम करे। उधर उनके मोबाइल में भी लैटीट्यूड चालू था। इससे मुझे उनकी लोकेशन पता चलती रही और उन्हें मेरी। कुछ समय बाद वे गांव के टेढे-मेढे रास्तों को पार करते हुए ठीक हमारे घर पहुंच गये। इस दौरान हमारी कोई बात नहीं हुई और वे पहले कभी हमारे घर नहीं आये थे।
हालांकि अब लैटीट्यूड सुविधा बन्द हो गई है। नई सुविधा के बारे में मुझे कोई ज्यादा जानकारी नहीं है। लेकिन इतना निश्चित है कि यह नई सुविधा लैटीट्यूड सुविधा से ज्यादा उन्नत ही होगी। यह गूगल प्लस पर काम करती है, इससे ज्यादा मुझे नहीं पता। धीरे-धीरे पता लगाने की कोशिश कर रहा हूं।
लोकेशन शेयरिंग बडे काम की चीज है। एक उदाहरण तो अभी बताया है। और भी उदाहरण हो सकते हैं। कुल मिलाकर उद्देश्य इतना ही है कि एक मित्र की लोकेशन दूसरे मित्र को पता चलती रहे। परिजनों को परिवार के सदस्यों की सटीक लोकेशन पता चलती रहे। जयपुर जाना है, रिश्तेदारी में, यार-दोस्तों के पास; रास्ता नहीं पता तो बार-बार फोन करके रास्ता पूछने की जरुरत नहीं है। आपका मोबाइल आपको खुद-ब-खुद रास्ता बताता जायेगा और आप पेचीदा अनजान रास्तों पर चलते हुए अपने ठिकाने पर पहुंच जाओगे। और तो और, आपका मोबाइल खो गया है, आप उसकी भी लोकेशन जान सकते हो।
प्रत्येक एण्ड्रॉयड फोन में जीपीएस होता है। आप एकाध थर्ड पार्टी एप्लीकेशन इंस्टाल करके यह काम कर सकते हैं। मैंने फिलहाल दो एप्लीकेशन डाउनलोड कर रखे हैं। लेकिन अभी तक उनका परीक्षण नहीं किया है। परीक्षण करके शीघ्र ही इसके नतीजों के बारे में आपको बताऊंगा।
मोबाइल सिर्फ फोन करने, फिल्में डाउनलोड करने या व्हाट्स ऐप इस्तेमाल करने के लिये ही नहीं होते।

4. कुछ समय पहले एक मित्र ने इस ब्लॉग का ‘ऐप’ बनाया था। उस समय मेरे पास एण्ड्रॉयड फोन नहीं था, इसलिये मुझे नहीं पता था कि यह क्या बला होती है। अब ‘ऐप’ नाम की चीजों से पाला पडना शुरू हुआ है, तो इनके बारे में पता भी चलने लगा है। अपने ब्लॉग का ऐप होना भी एक अच्छी बात होती। फिर अब मैं भूल गया हूं कि वे मित्र कौन थे। अगर आप इसे पढ रहे हैं तो कृपया बतायें और यह भी बतायें कि वो ऐप अब मुझे कैसे मिलेगा? धन्यवाद।

5. अब थोडी चर्चा रेलवे की भी कर लेते हैं। लगभग एक साल पहले तक दिल्ली से जोधपुर तक तीन ट्रेनें थीं, वो भी रात में- मण्डोर (12461/62), सम्पर्क क्रान्ति (12463/64) और जैसलमेर इंटरसिटी (14659/60)। फिर काठगोदाम से दिल्ली के बीच चलने वाली रानीखेत एक्सप्रेस (15013/14) को जोधपुर के पास भगत की कोठी तक बढाया गया। अब इसमें फिर से परिवर्तन करके इसे जैसलमेर तक कर दिया गया है। हालांकि यह अजमेर, मारवाड का लम्बा चक्कर लगाकर जोधपुर जाती है और दिल्ली से सुबह सवेरे साढे चार बजे निकलती है इसलिये दिन में जोधपुर जाने के लिये यह ज्यादा काम की नहीं है।
उधर सराय रोहिल्ला से रतनगढ तक एक ट्रेन (14705/06) चलाई गई जिसे शीघ्र ही सुजानगढ तक बढा दिया गया। इस ट्रेन को पिछले सप्ताह ही सुजानगढ से बढाकर जोधपुर व भगत की कोठी तक कर दिया गया है। सराय रोहिल्ला से यह सुबह सात बजे चलती है और लगभग बारह घण्टे बाद शाम को जोधपुर पहुंच जाती है।
लगे हाथों एक बात और बता दूं, आपके सामान्य ज्ञान की वृद्धि करेगी। अभी भी बहुत से लोग यही मानते हैं कि भारत की सबसे लम्बी दूरी की ट्रेन जम्मू तवी और कन्याकुमारी के बीच चलने वाली हिमसागर एक्सप्रेस (16317/18) है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। पिछले कई सालों से हिमसागर एक्सप्रेस का यह दर्जा समाप्त हो गया है। अब भारत की सबसे लम्बी दूरी की ट्रेन है विवेक एक्सप्रेस (15905/06) जो डिब्रूगढ और कन्याकुमारी के बीच चलती है और 4273 किलोमीटर की दूरी तय करती है जबकि हिमसागर 3715 किलोमीटर की दूरी तय करती थी।
एक बात और। भारत की सबसे लम्बी दूरी की दैनिक ट्रेन कौन सी है? जाहिर है आप केरल एक्सप्रेस (12625/26-3036 किलोमीटर) का नाम लेंगे। लेकिन अब भूलकर भी इसका नाम मत लेना। अब यह दर्जा अवध असम एक्सप्रेस (15909/10- 3073 किलोमीटर) के पास चला गया है। अवध असम एक्सप्रेस कुछ समय पहले तक लालगढ से गुवाहाटी के बीच चलती थी। अब इसे न्यू तिनसुकिया तक बढा दिया गया है जिससे यह केरल एक्सप्रेस से ज्यादा दूरी तय करने लगी है।
लालगढ से याद आया। पिछले सप्ताह मैं बीकानेर में था। बीकानेर के पास ही लालगढ है और ट्रेनों का एक बडा यार्ड भी है। यहां से सुबह जैसलमेर के लिये एक ट्रेन (14704) चलती है। जैसलमेर जाकर यह रात होने का इन्तजार करती है। रात को यह (22479) बीकानेर के लिये चल देती है और सुबह तक बीकानेर पहुंच जाती है। बीकानेर से फिर यह जयपुर इंटरसिटी (12467) बनकर जयपुर चली जाती है। जयपुर से (12468) अगली सुबह चलती है और शाम तक बीकानेर, रात को बीकानेर से चलकर (22480) सुबह तक जैसलमेर और दोपहर को जैसलमेर से चलकर (14703) शाम तक लालगढ। इस तरह यह अपनी यात्रा पूरी करती है। ज्यादातर ट्रेनें इसी तरह चलती हैं।
दिल्ली सराय रोहिल्ला में सुबह कई ट्रेनें आती हैं। बीकानेर से ट्रेन (12458) आती है तो उसे (14705) सुजानगढ भेज दिया जाता है। अब यह भगत की कोठी तक जाने लगी है। उदयपुर से चेतक एक्सप्रेस (12982) आती है तो उसे बीकानेर (22472) भेज देते हैं। छिन्दवाडा से पातालकोट एक्सप्रेस (14009) आती है तो उसे (14625) फिरोजपुर भेज देते हैं। इसी तरह शाम को ये सभी ट्रेनें क्रमशः भगत की कोठी, बीकानेर और फिरोजपुर से सराय रोहिल्ला वापस आ जाती हैं और अपनी रात्रिकालीन यात्रा पर क्रमशः बीकानेर, उदयपुर और छिन्दवाडा के लिये चली जाती हैं।

6. 4 दिसम्बर को केरल पर्यटन की तरफ से एक मेल आई। ये लोग एक ऐसा आयोजन कर रहे हैं जिसमें विश्व के सर्वश्रेष्ठ यात्रा ब्लॉगर भाग लेंगे। यात्रा दो सप्ताहों की होगी और सारा खर्च केरल पर्यटन विभाग उठायेगा। जाहिर है कि पूरी यात्रा लग्जरी ही होगी। पता नहीं उन्होंने कितनों को आमन्त्रण भेजा है लेकिन वे इनमें से सर्वश्रेष्ठ 25 का चुनाव करेंगे। इसके लिये पहले हमें उनकी वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करना होगा। वे उसका रिव्यू करेंगे। वहां से स्वीकृति मिलने पर वोटिंग होगी। जिन 25 यात्रा ब्लॉगरों को सबसे ज्यादा वोट मिलेंगे, उन्हें वे दो सप्ताहों के लिये केरल बुलायेंगे। मैंने उसी दिन रजिस्ट्रेशन कर दिया था।
लेकिन पूरा एक सप्ताह बीत गया, अभी तक उन्होंने मेरा रजिस्ट्रेशन कन्फर्म नहीं किया है। मैंने उन्हें मेल भी भेजी कि पहले तो आमन्त्रण दिया कि रजिस्ट्रेशन कर लो, अब रजिस्ट्रेशन कर दिया तो क्यों उसे कन्फर्म नहीं कर रहे हो? जवाब आया कि जब भी रिव्यू हो जायेगा, उसकी सूचना ट्विटर पर दी जायेगी। पता नहीं कब करेंगे?
जैसा कि बाद में तिवारी जी ने लिखा- “यानि घुमक्कड़ी की कोई वैल्यू नही.. जिसके दोस्त ज्यादा होंगे उतने ज्यादा वोट मिलेंगे... यानि कम्पीटीशन घुमक्कड़ी या ब्लागिंग का नहीं दोस्तो व वोटों का है।” असल में यह सब खेल मार्केटिंग का है। केरल पर्यटन घुमक्कडों को सम्मानित नहीं कर रहा है बल्कि अपना प्रचार कर रहा है। अब प्रचार तो वे ही ब्लॉगर करेंगे, जिनका दायरा बडा हो। इसीलिये वोटिंग हो रही है।
भईया केरल वालों, एक बार रिव्यू कन्फर्म तो करो, फिर देखना हिन्दी वालों की मार्केटिंग। वोटिंग 31 दिसम्बर को समाप्त हो रही है, पांच दिन पहले भी कन्फर्म करोगे तो भी दिखा दूंगा हिन्दी वालों की ताकत। अंग्रेजी या दूसरी विदेशी भाषाएं ही इस मामले में आगे नहीं हैं, हिन्दी भी अब बहुत आगे चल रही है।

7. साल समाप्त होने वाला है। कुछ छुट्टियां बची हैं। दिसम्बर समाप्त होने से पहले ये छुट्टियां लेनी पडेंगी, अन्यथा ये भी साल के साथ ही स्वतः समाप्त हो जायेंगीं। कुल मिलाकर पांच दिन हाथ में हैं। भीषण सर्दी पडनी शुरू हो गई है लेकिन मोटरसाइकिल का मोह नहीं छूट रहा। जनवरी में मोटरसाइकिल से कच्छ यात्रा करनी है, इसलिये कुछ उसके भी अभ्यास के लिये दिसम्बर में जाना जरूरी लग रहा है। फिलहाल दिल्ली से बीकानेर, देशनोक, फलोदी, ओसियां, जोधपुर, पुष्कर, अजमेर और जयपुर का चक्कर लगाने की योजना है। बीकानेर जाने में रास्ते में झुंझनूं आयेगा। तो दिल्ली से झुंझनूं जाने के रास्ते के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है। एक मित्र ने बताया है कि रेवाडी-नारनौल वाला रास्ता खराब है। तो शायद झज्जर के रास्ते जाना पडे। जिसे जानकारी हो, कृपया बतायें।

8. सचिन त्यागी ने सुझाव दिया कि फोटोग्राफी के लिये अलग से पोस्ट लिखा करो। निःसन्देह यह सुझाव विचारणीय है। लेकिन किसी विषय पर विशेष पोस्ट के लिये उस विषय में विशेषज्ञता भी चाहिये। मैं फोटोग्राफी में विशेषज्ञ नहीं हूं। फिर भी इस बार जितने फोटो चर्चा के लिये आये हैं, इनसे लग रहा है कि एक अलग से पोस्ट ही ठीक है। पहले तो सोचा कि जिस दिन डायरी प्रकाशित हुआ करेगी, उससे अगले दिन फोटोग्राफी वाली पोस्ट प्रकाशित कर दिया करूंगा लेकिन इससे मुझ पर ही अतिरिक्त दबाव पडेगा।
तो अब तय यह हुआ है कि हर महीने के पहले सोमवार को डायरी के पन्ने प्रकाशित हुआ करेंगे और तीसरे सोमवार को फोटोग्राफी पर चर्चा। यानी अब डायरी के पन्ने प्रत्येक महीने की पहली और सोलह तारीख को प्रकाशित नहीं हुआ करेंगे बल्कि पहले सोमवार को डायरी व तीसरे सोमवार को फोटोग्राफी। फिर भी पिछले दिनों आये कुछ फोटो पर इस बार भी चर्चा कर लेते हैं। शर्त यही है कि मैं फोटोग्राफी का विशेषज्ञ नहीं हूं। मेरी आदत है कि मैं अपने खींचे हर फोटो को देखकर कहता हूं कि कुछ अधूरापन है, इससे भी अच्छा फोटो आ सकता था। उस अधूरेपन को पहचानने की कोशिश करता हूं और अगली बार उसकी पूर्ति करता हूं। आपके भेजे फोटो देखकर बस यही बताऊंगा कि अगर मैं होता तो किस तरह फोटो लेता। हो सकता है कि मेरी कही कोई बात आपको बुरी लग जाये, इसके लिये पहले ही क्षमा मांगता हूं।


अमित सिंह 1: फोटो अच्छा है। बर्फबारी के बाद धूप निकली है, पर्यटक आनन्द ले रहे हैं और पैराग्लाइडिंग भी हो रही है। लेकिन इतनी शानदार लोकेशन होने के बावजूद कुछ ‘मिसिंग’ सा लग रहा है, लग रहा है कि कुछ अधूरापन है, वो बात नहीं जो होनी चाहिये थी। ऐसा मुझे ही लग रहा है या आपको भी लग रहा है? ये तो नहीं बता सकता कि क्या अधूरापन है लेकिन शायद आपको अपने खडे होने की इस परम्परागत लोकेशन को बदलना था या फिर किसी एक सब्जेक्ट को पिन पॉइंट करना था। आपने सबकुछ एक ही फोटो में लेने की कोशिश की है और शायद यही चूक हो गई। आपको उन बडे बडे गुब्बारों पर फोकस करना था, या आसमान में उडती हिमाच्छादित पर्वत श्रंखलाओं के साये में पैराग्लाइडर को फोकस करना था, या आनन्द मनाते पर्यटकों को फोकस करना था; मतलब किसी एक सब्जेक्ट को अपने इस फोटो का विषय बनाना था, न कि सभी को।


अमित सिंह 2: फिर से वही बात। इसमें भी कुछ अधूरापन लग रहा है। न ताजी गिरी बर्फ का सौन्दर्य निखरकर आ रहा है, न उन इमारतों का सौन्दर्य अलग दिख रहा है और न ही प्राकृतिक सौन्दर्य। फोटो का निचला आधा हिस्सा बिल्कुल गैर-जरूरी है। आपको थोडा आगे बढकर एक क्लिक और करना था। यह निचला आधा हिस्सा मलबा ही लग रहा है। प्राकृतिक नजारों का फोटो लेते समय आपको गन्दगी, कूडे और मलबे से बचना चाहिये।

सचिन जांगडा 1: जबलपुर के पास नर्मदा नदी पर धुआंधार जलप्रपात। जलप्रपात हमेशा ही शानदार होते हैं लेकिन फिर भी कुछ ‘मिसिंग’ सा लग रहा है। क्या मिसिंग हो सकता है? पहली चीज तो यही कि प्रपात ही नहीं दिख रहा। दिखना चाहिये कि हां, पानी गिर रहा है ऊपर से नीचे तक। हो सकता है कि ऐसी कोई जगह ही न हो कि प्रपात के सामने खडा हुआ जा सके। दूसरी बात, बैकग्राउण्ड में सूखे कगार और भीड भी ध्यान भंग कर रहे हैं। आपको इनसे बचना था। जाहिर है कि आपको अपनी लोकेशन बदलनी थी। जिस जगह आप खडे हो, यह जगह इस प्रपात का फोटो खींचने के लिये उपयुक्त जगह नहीं है।
सचिन जांगडा 2: इस फोटो के लिये तो मैं आपकी पूरी आलोचना करूंगा। फोटो ले रहे हो और इतनी तसल्ली भी नहीं कि एक मिनट के लिये रुक जायें? चलती गाडी से फोटो ले लिया। इसमें आपने पहाडी भू-भाग में शानदार सडक दिखाने की कोशिश की है लेकिन असफल हो गये। सडक पर जमा गोबर सारा ध्यान आकर्षित कर रहा है। आपको ऐसी जगह चुननी थी जहां गोबर न्यूनतम हो और रुककर फोटो लेना था। सडक के मध्य में खडे होते तो और भी अच्छा होता।

सुमित कुमार: अगर कोई वस्तु हमारे कद से छोटी है तो हमें खडे होकर उसका फोटो नहीं लेना चाहिये। बैठ जाना चाहिये या उस वस्तु के कद के बराबर में कैमरा होना चाहिये। दूसरी बात, पीछे चबूतरे पर रखा बोरा ध्यान भंग कर रहा है, उसे हटा देना था। तीसरी बात, अगर मन्दिर को केन्द्र में रखते हुए बैकग्राउण्ड को और ज्यादा दिखाते तो और भी अच्छा होता।

उमेश जांगिड: अगर आपकी जगह मैं होता तो मैं भी शायद ऐसा ही फोटो लेता। फिर भी यहां कुछ प्रयोग किये जा सकते थे। मसलन, कैमरे को जूम-आउट करके इस टापू को और छोटा करके बैकग्राउण्ड को थोडा ज्यादा स्थान देना। इससे यह टापू थोडा रहस्यमय हो जाता और झील में तैरता जहाज जैसा लगता।

विमलेश चन्द्रा 1: चूंकि आप चलती ट्रेन में नहीं हैं इसलिये आपके पास प्रयोग करने के लिये पर्याप्त समय था। आप दोनों लाइनों के बीच में खडे होकर एक ज्यामितीय साम्यता बनाते हुए फोटो ले सकते हैं। या फिर इस पुल के प्रवेश द्वार के पास खडे होकर विशाल लोहे के प्रवेश द्वार को फोकस कर सकते हैं। या फिर थोडा और दूर जाकर इस पुल का बाहर से फोटो ले सकते हैं। थोडा और इन्तजार करके किसी ट्रेन को पुल पर प्रवेश करते हुए दिखा सकते हैं। बहुत सारे प्रयोग कर सकते हैं।

विमलेश चन्द्रा 2: जैसे ही इस फोटो को देखते हैं, सारा ध्यान आसमान आकर्षित कर लेता है। वहां से फुरसत मिलती है, तब जाकर ट्रेन दिखती है। फिर पता चलता है कि वह ट्रेन किसी स्टेशन से छूट रही है। अब ये आपके ऊपर निर्भर है कि फोटो खींचते समय आपका मुख्य सब्जेक्ट क्या था- आसमान या ट्रेन? अगर आसमान दिखाना ही आपके जेहन था तब तो यह फोटो शानदार है, लेकिन अगर ट्रेन आपकी सब्जेक्ट थी तो आप असफल हो गये।

विमलेश चन्द्रा 3: लहरों का फोटो खींचने का मुझे ज्यादा मौका नहीं मिला है इसलिये इनका अनुभव नहीं है। फिर भी सोच रहा हूं कि यहां क्या किया जा सकता था? फोटो बेशक अच्छा लग रहा है... लेकिन.... नहीं, अच्छा है।

विमलेश चन्द्रा 4: अक्सर बिजली के तार किसी फ्रेम में आने अच्छे नहीं होते लेकिन यहां खम्भे और तार मिलकर फोटो को गहराई प्रदान कर रहे हैं। मेरा ध्यान सबसे पहले बिजली के खम्भों पर ही गया है, उनके बाद नीचे दाहिने कोने में पडे मलबे पर और इसके बाद गायों पर। आसमान बिल्कुल भी प्रभावित नहीं कर रहा। आपको थोडा सा आगे बढकर मलबे से बचना था, इससे बिजली का सबसे बायां खम्भा और बायें आ जाता, तारों की दूर तक जाती पंक्ति और स्पष्ट दिखती और गायें भी। इसके पिक्सल ठीक हों तो इसे बनाये गये पैटर्न के अनुसार क्रॉप भी कर सकते हैं।

अभी भी काफी फोटो चर्चा करने से बच गये हैं। उन्हें अगली बार फोटोग्राफी विशेषांक में प्रकाशित किया जायेगा। आप भी इस चर्चा में शामिल हो सकते हैं। जो फोटो ऊपर दिखाये गये हैं, उन पर चर्चा कर सकते हैं। अपने फोटो भी भेज सकते हैं। शर्त केवल इतनी है कि फोटो आपके द्वारा खींचा गया हो। फोटो का साइज 250 केबी से कम हो। हालांकि इस बार कुछ फोटो 500 केबी तक के भी आये, लेकिन उससे मेरा काम बढ गया। इस बार एक परिवर्तन यह भी किया है कि आप अपना व्यक्तिगत फोटो व ग्रुप फोटो भी भेज सकते हैं। आखिर हैं तो वे भी फोटो ही। लेकिन हां, पासपोर्ट साइज फोटो मत भेज देना।
फोटो केवल neerajjaatji@gmail.com पर केवल JPG या JPEG फॉरमेट में ही भेजें। फोटो के बारे में कुछ वर्णन भी कर दें तो और अच्छा। 

डायरी के पन्ने-26 | डायरी के पन्ने-28




Comments

  1. वोटिंग 31
    दिसम्बर को समाप्त हो रही है, पांच दिन
    पहले भी कन्फर्म करोगे
    तो भी दिखा दूंगा हिन्दी वालों की ताकत।
    सही है,
    आपकी जीत हमारी जीत होगी,
    और ये क्या आपकी डायरी तो अब g.k. की book बनती जा रही है, बल्कि एक चर्चा मंच,पहले वाला अपनापन कहाँ घुमक्कडी पर निकल गया|

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    Replies
    1. सर जी/ मैडम जी,
      मैंने सोचा कि कुछ तकनीकी जानकारियां और फोटो पर चर्चा मैं ‘अपनेपन’ के तहत ही कर रहा हूं। लेकिन पहले वाला अपनापन, मतलब?

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  2. नीरज जी,
    डायरी में रोज होने वाली बातों पर चर्चा करना बंद क्यों कर दिया. डायरी वाली रोचकता खत्म हो रही है...
    पहली फोटो बिल्कुल सही है... एक ही सबजेक्ट पर फोकस किया जाये ये कोई आवश्यक नहीं...

    उमेश जांगिड जी का जो फोटो आपको पसंद आ रहा है वो बिल्कुल फ्लैट फोटो है... फोटो लेने का सबसे साधारण तरीका...

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    1. नरेश भाई, यह बडी विडम्बना है कि मैं जिस विषय पर भी डायरी में लिखता हूं, उसी की आलोचना होने लगती है। पारिवारिक मुद्दों पर लिखा था तो आलोचना हुई थी, समसामयिक मुद्दों पर लिखा तो कहा गया कि हम आपके यहां यात्रा सम्बन्धी लेख पढने आते हैं, अब तकनीकी बातें लिखीं तो भी वही बात। अच्छा किया कि डायरी को महीने में एक बार प्रकाशित करने का निर्णय ले लिया।
      और कोई फोटो सही है या गलत, यह कोई मुद्दा नहीं है। आप कभी भी यह नहीं कह सकते कि यह फोटो सही है और यह फोटो गलत है। सबका अपना-अपना नजरिया होता है देखने का। पहला फोटो निःसन्देह बेहद शानदार है। लेकिन इसमें जो कुछ प्रयोग किये जा सकते थे, मैंने उनकी सम्भावना लिखी है। मैं अगर किसी फोटो पर लिख दूं- वाह! शानदार फोटो, तो चर्चा करने का औचित्य ही समाप्त हो गया।
      आप भी चर्चा में भागीदार बनिये लेकिन मुझे निशाना बनाकर नहीं... धन्यवाद आपका बहुत बहुत।

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  3. ट्रेनों के बारे में बिलकुल नयी बात पता चली | खासकर हिमसागर एक्सप्रेस, विवेक एक्सप्रेस, केरल एक्सप्रेस, और अवध असाम एक्सप्रेस के बारे में | सचिन त्यागी जी का फोटोग्राफी के लिए अलग पोस्ट का विचार अत्यंत ही उत्तम है |

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  4. नीरज भाई.… निशन्देह जिस दिन से आपके ब्लॉग से जुड़ा हु उस दिन से आज तक आपकी आज की डायरी को सर्वश्रेष्ठ डायरी का दर्जा दूंगा। लेकिन टिप्पणी पड़ी, थोड़ा दुःख हुआ की लोग आलोचना करने लगे। खैर कुछ तो लोग कहगे ……………… लोगो का काम है कहना। आप वास्तव मे एक अच्छे घुमक्कड़ तो है ही एक अच्छे विचारक और लेखक भी है। आप जब लिखते है तो कलेजा निकाल कर रख देते है। नीरज जी आज की डायरी का विषय थोड़ा टेकनिकल था, हो सकता है कुछ लोगो को टेकनिकल बातो मे ज्यादा रूचि ना हो ,जैसे रेल की बातो मे मुझे ज्यादा रूचि नही है। आप लिखते रहिए लोगो पर ज्यादा ध्यान मत दीजिए।
    अब दूसरा पॉइंट फोटो चर्चा निशन्देह प्रशंसा योगय कदम है ,अब किसी को अगर सुझाव भी आलोचना लगे तो इसमे आपका क्या कशूर। आप फोटो चर्चा जारी रखे।
    ये ब्लॉग आपका है और सिर्फ आप ही इसके कार्यक्रम को निर्धारित करे। हम पाठको के सुझाव मानने के लिए आप पर कोई दबाव नही है।
    "भईया केरल वालों, एक बार रिव्यू कन्फर्म तो करो, फिर देखना हिन्दी वालों की मार्केटिंग। वोटिंग 31 दिसम्बर को समाप्त हो रही है, पांच दिन पहले भी कन्फर्म करोगे तो भी दिखा दूंगा हिन्दी वालों की ताकत" पढ़कर मन गदगद हो गया ,कोई हिंदी वाला भी शेर है।
    भाई हम जी जान लड़ा देगे। आप एक बार आदेश तो करो।

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    1. Yes vinay bhai ham bhi aapke vichar k sath he hamari #मन की बात likh di aapne

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    2. धन्यवाद विनय जी और उमेश भाई...

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  5. जिस तरह किसी डायरी मे कई विषयो पर अनेकों रंग होते है उसी तरह इस डायरी मे भी अनेक रंग भरे गए है,जिस तरह लिफाफा देख कर मजमून जानने की कहावत है वही कहावत फोटो ग्राफी के बारे मे आप पर लागू होती है.

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  6. नीरज भाई
    किसी भी चीज़ को हर व्यक्ति अपने नजरिये से देखता है, सभी का अपना अलग नजरिया होता है और इसमें कुछ भी गलत नही है..!
    और रही बात डायरी के पन्नो की तो जब उसमे पारिवारिक बातें लिखते थे, तभी से एक जुडाव सा लगने लगा था, हालाँकि तब तक मैं आप से मिला भी नही था.! शायद ऊपर किसी मित्र ने इसी सन्दर्भ में "अपनापन" शब्द का प्रयोग किया है..!

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  7. नीरज भाई आपने मेरी सलाह को विचारणीय सोचा,यह मेरे लिए बडी बात है,चलो कुछ तो काम आए,एक पोस्ट फोटो से भरपूर रहेगी कुछ फोटोग्राफी के बारे में हम भी जान जाएगे.
    वैसे अब कुछ पोस्ट से आपकी फोटोग्राफी निखर गई है.
    गोबर वाली सडक वाला फोटो पसंद आया

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  8. नीरज जी ,आपका ब्लॉग न केवल उत्कृष्ट यात्रा वृतांत है बल्कि बहुत सी उपयोगी जानकारियों का खजाना है . हर पोस्ट अपने साथ खूबसूरत सैर कराती है . जब हम लोग 'चेन्नई-एक्सप्रेस ' का ट्रेन वाला सीन देख रहे थे मैंने तुरंत कहा --अरे यह तो दूध-धारा जल प्रपात है . बच्चे चकित हुए . मैंने बताया कि इसे नीरज जी के ब्लॉग 'मुसाफिर हूँ यारो' पर देखा है . अभी सबसे लम्बी दुरी की ट्रेन की जानकारी मेरे लिए सचमुच नई है . यही आपके लेखन की विशेषता है कि ज्ञान सरसता लिए है . कोइ भी बात अनावश्यक नहीं लगती . जहां तक फोटो का सवाल है वे पोस्ट में अलंकारों का काम करते हैं . इसलिए अलग से देना आवश्यक नहीं. हाँ फोटो लेने विषयक बातें काफी सही और उपयोगी हैं .
    पर्यटन विभाग अगर आप जैसे पर्यटकों को शामिल नहीं करता तो उसका आयोजन अधुरा ही होगा . आपके वृतांत पढकर बस एक बात मन में आती है कि आप स्वस्थ रहें और दुनिया के कोने कोने तक जाएँ साथ ही हम पाठकों को भी ले जाएँ .

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  9. डी के शर्मा रायपुर - आपके द्वारा दिए गए जानकारी रोचक होने के साथ ही ज्ञान भी बढ़ाते है ,बधाई आपको।

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  10. फोटो पर चर्चा अच्छी लगी। मैं भी अपनी कुछेक फोटो भेजूंगा ।
    जहां तक ब्लॉगर और वर्डप्रेस की तुलना की बात है, तो अगर किसी को शुरुआत करनी हो और आसानी चाहिए यो उसके लिए ब्लॉगर ठीक है लेकिन यदि एडवांस यूजर हैं तो फिर वर्डप्रेस ही उपयुक्त रहेगा । यह मेरा निजी अनुभव है।

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  11. और किसी भी वेबसाइट का एंड्राइड app बनाना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। इसे आप आरएसएस फीड की सहायता से बना सकते हैं।

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  12. काफी रोचक बाते जानने को मिली ..... धन्यवाद

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  13. फोटोग्राफी और गूगल मैप के विषय में इतनी महत्वपूर्ण जानकारियां देने के लिए धन्यवाद। अभी हाल ही में आपकी मनाली लेह साइकिल यात्रा संबंधी पोस्ट पढ़ी आपने बताया कि पुरे मार्ग में 5 दर्रे पढ़ते है। क्या आप बताना चाहेंगे कि दर्रा किसे कहते है।

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब