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Showing posts from February, 2012

पराशर झील- जानकारी और नक्शा

पराशर झील हिमाचल प्रदेश के मण्डी जिले में समुद्र तल से करीब 2600 मीटर की ऊंचाई पर है। यहां जाने से कम से कम चार रास्ते हैं: 1. सडक मार्ग से: पराशर झील तक पक्की मोटर रोड बनी हुई है यानी अपनी गाडी से या टैक्सी से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। मण्डी के बस अड्डे से जब कुल्लू की तरफ चलते हैं तो हमारे बायें तरफ ब्यास नदी बहती है। मण्डी शहर से बाहर निकलने से पहले ब्यास पर एक पुल आता है। कुल्लू वाली सडक को छोडकर पुल पार करना पडता है। पुल पार करके यह रोड जोगिन्दर नगर होते हुए कांगडा चली जाती है। इसी कांगडा वाली रोड पर थोडा आगे बढें तो सीधे हाथ की ओर एक और सडक निकलती दिखाई देती है। यह कटौला होते हुए बजौरा चली जाती है और उसी मण्डी-कुल्लू मुख्य राजमार्ग में जा मिलती है। इस सडक पर मण्डी से कटौला तक बहुत सारी बसें भी चलती हैं।

सोलांग घाटी में बर्फबारी

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 8 दिसम्बर, 2011 की सुबह मैं और भरत कुल्लू में बस अड्डे के पास एक सस्ते यानी दो सौ रुपये के रेस्ट हाउस में सोकर उठे। पडे पडे ही लगा कि रात बारिश हुई है क्योंकि जब काफी दिन बाद बारिश होती है तो वातावरण में एक खुशबू फैल जाती है- बारिश की खुशबू। इस देशी जानवर को इस खुशबू की बखूबी पहचान है। और जब दरवाजा खोलकर बाहर देखा तो पक्का हो गया कि रात बारिश हुई थी। हालांकि अब नहीं हो रही थी।  और दिसम्बर में इन दिनों हिमालय में बारिश होने का एक अर्थ और है कि बर्फबारी भी जरूर होवेगी। मैं खुश हो गया और घोषणा कर दी कि बेटा भरत, तूने आज तक जिन्दगी में बर्फबारी तो दूर, बर्फ तक नहीं देखी है। आज तेरा नसीब बहुत बढिया है। आज तुझे बर्फबारी दिखाऊंगा। बोला कि क्या मनाली में स्नो फाल मिलेगा। मैंने कहा कि मनाली में तो मुश्किल है लेकिन सोलांग में चांस हैं। मैं हालांकि पहले कभी मनाली नहीं गया था लेकिन इतनी तो परख है ही कि कैसा मौसम होने पर हिमालय के किस हिस्से में बारिश पडेगी, किस हिस्से में बर्फ गिरेगी।

पराशर झील ट्रेकिंग- झील से कुल्लू तक

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 7 दिसम्बर, 2011 की दोपहर करीब बारह बजे हम पराशर झील से वापस चल पडे। हमें बताया गया कि यहां से छह किलोमीटर नीचे उतरकर बागी नामक गांव है जहां से मण्डी जाने वाली बस मिल जायेगी और यह भी पता चला कि बस का टाइम ढाई बजे है। उसके बाद साढे चार बजे अगली बस मिलेगी। अभी बारह सवा बारह का टाइम था और हम अगले दो घण्टे में छह किलोमीटर का फासला तय करके बागी पहुंच सकते थे। लेकिन आज की सबसे बडी दिक्कत थी भरत जो चल नहीं पा रहा था।  पराशर झील एक ऐसी जगह पर स्थित है जहां से लौटकर वापस आने के लिये कम से कम चार रास्ते हैं और चारों नीचे ही उतरते हैं। एक तो वही है जिससे हम आये थे यानी पण्डोह की तरफ, दूसरा तुंगा माता से होकर ज्वालापुर की तरफ, तीसरा कच्चा रास्ता बागी-कटौला की तरफ और चौथा यानी पक्की सडक बागी-कटौला की तरफ। सडक से बागी 18 किलोमीटर दूर है जबकि पैदल रास्ते से सीधे नीचे उतरते जाओ तो छह किलोमीटर में ही मामला सुलट जाता है।