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14 नवम्बर 2009, सुबह आठ बजे। जब पूरा देश बाल दिवस मनाने की तैयारी कर रहा था तब हम दो 'बच्चे' मैक्लोडगंज में थे और बारिश थमने का इन्तजार कर रहे थे। यहाँ कल से ही बारिश हो रही थी और पारा धडाम हो गया था। मौसम के मिजाज को देखते हुए लग नहीं रहा था कि आज यह खुल जाएगा। रह-रहकर अँधेरा छा जाता और गडगडाहट के साथ बारिश जारी रही। बस से उतरते ही एक निर्माणाधीन भवन में शरण ले ली और बारिश के कम होने का इन्तजार करने लगे।
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दिल्ली से चलते समय हमने योजना बनाई थी कि चौदह नवम्बर को पूरा मैक्लोडगंज घूमेंगे लेकिन आज यह योजना पूरी होती नहीं दिख रही थी। हम केवल एक उम्मीद से ही यहाँ रुके रहे कि हमारे पास कल का दिन है। हो सकता है कि कल मौसम साफ़ हो जाए। अगर कल तक भी मौसम साफ़ नहीं हुआ तो सुबह-सुबह ही वापसी की बस पकड़ लेंगे।
घंटे भर बाद हमें मौका मिला। भारी बारिश अब फुहारों में बदल गयी थी। हम निकल पड़े। मुख्य चौक से सीधे नीचे की तरफ चले गए और जा पहुंचे दलाई लामा के मंदिर में। भयानक ठण्ड की वजह से दोनों हाथ जेबों में थे इसलिए कैमरा भी नहीं निकला। दलाई लामा के मंदिर में जहाँ तक जूते पहनकर जा सकते थे, गए। जहाँ जूते उतारने का नंबर आया, मैं तो तुरंत पीछे हट गया और जबरदस्ती करके, कह सुन के ललित के जूते उतरवा दिए और उसे अन्दर भेजा। मनाही के बावजूद भी ललित अन्दर से तीन चार फोटो खींच लाया। जब यहाँ से निकले, बारिश फिर बढ़ गयी थी। कोई और ठिकाना ना देख एक होटल में जा घुसे। चार सौ रूपये का कमरा मोलभाव करके साढे तीन सौ में तय किया और बाकी पूरा दिन वहीं पर बिता दिया।
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अब आते हैं शीर्षक पर - देश में विदेश का एहसास। असल में यहाँ की जनसंख्या में मुख्य हिस्सा उन शरणार्थी तिब्बतियों का है जो चीन के अत्याचार के बाद जान बचाने की खातिर वहां से भाग निकले। इन शरणार्थियों में तिब्बतियों के धर्मगुरू और शान्ति नोबेल विजेता दलाई लामा भी हैं। मैक्लोडगंज में इन्ही तिब्बतियों का प्रभुत्व है।
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दूसरा बड़ा हिस्सा है विदेशी पर्यटकों का। 'हिंदुस्तान में मिनी तिब्बत भी है' यह जानकार विदेशी यहाँ आते ही हैं। तिब्बत में जाए बिना ही तिब्बती संस्कृति और लोक कला यहाँ देखने को मिल जाती है। तीसरे तरह के वे लोग हैं जो यहाँ व्यापार करते हैं, दुकानें चलाते हैं और कभी-कभी घूमने भी आ जाते हैं। वे हैं स्थानीय पंजाबी। ये लोग हिंदी-पंजाबी मिश्रित भाषा बोलते हैं। कभी-कभी तो ये अपने से लगते हैं और कभी पराये अजनबी।
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मैक्लोडगंज में एक बात मुझे बुरी लगी। वो ये है कि हम जैसे घुमक्कड़ों को यहाँ हेय दृष्टि से देखा जाता है। यहाँ ज्यादातर होटल वाले, दुकान वाले, नौकर-चाकर कांगड़ा व पंजाब के हैं। और विदेशी पर्यटकों की आवाजाही देशियों के मुकाबले ज्यादा है। इसलिए हर चीज के रेट विदेशियों और हमारे लिए अलग-अलग हैं। जो एक कप चाय हमें पांच रूपये की मिलती है, वही विदेशियों को पचास रूपये की। इसलिए कहीं-कहीं तो चाय बनाने के लिए भी आनाकानी करते हैं, जबकि रास्ते में आने-जाने वाले विदेशियों को "गुड मोर्निंग, टी, सर" से टोकते रहते हैं। यही हाल बाकी चीजों का भी है।
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एक बात अच्छी भी लगी। विदेशी पर्यटक बाहुल्य होने के कारण हमें "नमस्ते जी" भी कई बार सुनने को मिला। एक जगह तो हमें फर्राटेदार हिंदी बोलने वाला मिला। उसने हमसे हिंदी में खूब बातें की। वैसे वो जर्मन था।
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कुल मिलाकर मैक्लोडगंज घूमने के लिए सही जगह है। जहाँ एक और चीड-देवदार मिलेगा तो वहीं दूसरी और बर्फीली धौलाधार की चोटियाँ। दूर-दूर तक फैली कांगड़ा घाटी भी मनोरम लगती है। जाड़ों में यहाँ बरफ भी गिरती है। हमने तो सर्दियाँ शुरू होते ही मैक्लोडगंज का मैदान मार लिया, तो बताओ आप कब जा रहे हो???

(बारिश और बादल)
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(निर्माणाधीन भवन में टाइम पास)
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(मैक्लोडगंज ऐसा लगता है बारिश में)
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(यहाँ तिब्बत समर्थन कार्य चलते रहते हैं)
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(हिन्दी सीखो)
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(दलाई लामा के मन्दिर में)
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(दलाई लामा के मन्दिर में)
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(इन पीपों जैसे डिब्बों में मणि रत्न भरे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि इन्हे घुमाने से सब पाप धुल जाते हैं।)
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(मैं भी घुमा लूँ इन्हे, कुछ पाप तो कम हो ही जायेंगे)
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(इसी मन्दिर में बुद्ध की प्रतिमा)
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(यह पता नहीं किसकी मूर्ति है। जूते उतारकर ललित गया था और अन्दर से इस फोटो को खींच कर लाया था।)
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(आ हा हा!!! क्या सुंदर दृश्य है!)
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(बताओ ये कौन है- मैं या ललित?)
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(बारिश में घूमने से कपड़े भीग गए, जूते भी भीग गए। जल्दी सुखाने थे, इसलिए पंखे पर लटका दिए, पंखा चालू कर दिया।)
अगला भाग: दुर्गम और रोमांचक - त्रियुण्ड
धर्मशाला कांगडा यात्रा श्रंखला
1. धर्मशाला यात्रा
2. मैक्लोडगंज- देश में विदेश का एहसास
3. दुर्गम और रोमांचक- त्रियुण्ड
4. कांगडा का किला
5. ज्वालामुखी- एक चमत्कारी शक्तिपीठ
6. टेढा मन्दिर
मेरी पसंद की जगह पर घूम आ रहे हो.. वाह..
ReplyDeleteलेकिन ये लड़ाई लामा का मंदिर क्या है.. (फोटो का शिर्षक देखें)
मेरी पसंद की जगह पर घूम आ रहे हो.. वाह..
ReplyDeleteलेकिन ये लड़ाई लामा का मंदिर क्या है.. (फोटो का शिर्षक देखें)
वाह घुमक्कड़....जय हो!! क्या तस्वीरें हैं!!
ReplyDeleteमेरी पसंद की जगह पर घूम आ रहे हो.. वाह..
ReplyDeleteलेकिन ये लड़ाई लामा का मंदिर क्या है.. (फोटो का शिर्षक देखें)
खूब घूम लो भई ! और हमें जला लो !खूबसूरत जगह है 1
ReplyDeleteमौसम बहुत ही अच्छा दिख रहा है. हमेशा की तरह मेरी शिकायत है मुसाफिर जी - फोटो बहुत ही कम हैं.
ReplyDeleteरंजन जी - शायद लड़ाई लामा दलाई लामा के भाई हैं
वाह बहुत खूबसुरत जगह घूम आये नीरज,पारा धड़ाम हो गया तो भी।इधर भी आओ छत्तीसगढ मे भी तिब्बतियों को बसाया गया है।बस्तर जैसे ही खूबसुरत आदिवासी बहुल क्षेत्र सरगुजा का मैनपाट आपको तिब्बत का एहसास करा देगा।
ReplyDeleteDalai Lama is cause of our tension with China so it is okay if u call him Ladai Lama.
ReplyDeletevery lively report, but u could have asked the names of 'gods' shown in pics.
Interesting overall.
मैक्लोडगंज की तस्वीरे मनमोहक और शानदार है. साथ में नीरज और ललित की जोड़ी भी मजेदार है.
ReplyDeleteकभी दार्जिलिंग, गंगटोक जाने का प्रोग्राम हो तो याद भर कर लेना...
घुमक्कड़ी जिंदाबाद.
सुलभ
पाश्चात्य देशों से पर्यटकों के वहां आने का एक कारण सुगमता से उपलब्ध नशीले पदार्थ भी हैं।
ReplyDeleteपंखा देखकर आश्चर्य हुआ।
प्रणाम स्वीकार करें
नीरज जाट जी दा जवाब नहीं...ज़िन्दाबाद...
ReplyDeleteनीरज
घुम्मककडी जिंदाबाद, लडाई लामा मंदिर जिंदाबाद करें या मुर्दाबाद?:) बतायें.
ReplyDeleteरामराम.
अब तो यहाँ जाना पड़ेगा .बहुत सुन्दर फोटो हैं .शुक्रिया
ReplyDeleteरंजन जी, प्रयास जी, मुनीश जी, ताऊ जी,
ReplyDeleteआप सभी का इस गलती को बताने का शुक्रिया.
यह वास्तव में 'दलाई लामा' ही है, जो टाइपिंग करते समय लड़ाई लामा हो गया था.
इसे अब ठीक कर दिया है.
धन्यवाद.
सब से नीचे वाला फ़ोटू सब से अच्छा लगा
ReplyDeleteनीरज भैया , बहुत सुन्दर फोटो हैं
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी यात्रा , मनाही के बाद भी फ़ोटो ले लिए अच्छाकिया
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